Sunday, April 10, 2011

धर्म के नाम पर अधर्म का बोलबाला

आज बड़े-बड़े विद्वान और विज्ञान के ज्ञाता भी ढोंग और पाखण्ड को इस प्रकार धारण किये हुए हैं जिस प्रकार वस्त्र धारण किये जाते हैं.अर्थशास्त्र में ग्रेषम ने एक नियम का उल्लेख किया है-"खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है."ठीक इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी आज अधर्मी लोगों का बोलबाला हो गया है और धर्म की सच्ची बात करने वाले भी पीछे धकेले जा रहे हैं.

जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी जब अधार्मिक बातों की पैरवी करेंगे तो आम जनता तो गुमराह होगी ही .धर्म को आज एक उद्योग के रूप में चलाया जा रहा है और यह धन कमाने का साधन मात्र बन कर रह गया है.इसी का परिणाम है कि देश-विदेश सब जगह अशांति और मारा-मारी फ़ैल गयी है.एक विद्वान का कहना है-

शुद्ध रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं.
इसी लिए तो आज देख लो सुखी कोई परिवार नहीं..

वास्तव में' धर्म 'वह है जो शरीर को धारण करने के लिए आवश्यक है.शरीर में 'वात,पित्त,कफ' एक नियमित मात्रा में रहते हैं तो शरीर को धारण करने के कारण' धातु' कहलाते हैं,जब उनमें किसी कारण विकार आ जाता है और वे दूषित होने लगते हैं तो' दोष' कहलाते हैं और दोष जब मलिन होकर शरीर को कष्ट पहुंचाने लगते हैं तब उन्हें 'मल' कहा जाता है और उनका त्याग किया जाता है.

वात -वायु और आकाश से मिलकर बनता है.
कफ -भूमि और जल से मिलकर बनता है
पित्त - अग्नि से बनता है.

भगवान्-प्रकृति के ये पञ्च तत्व =भूमि,गगन,वायु,अनल और नीर मिलकर (इनके पहले अक्षरों का संयोग )'भगवान्' कहलाता है.जो GENERATE ,OPERATE ,DESTROY करने के कारण" GOD '' भी कहलाता है और चूंकि प्रकृति के ये पञ्च तत्व वैज्ञानिक आधार पर खु ही बने हैं इन्हें किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये 'खुदा ' भी हैं .हमें मानव जाति तथा सम्पूर्ण सृष्टि के हित में 'भगवान्'(GOD या खुदा )की रक्षा करनी चाहिए उनका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए.परन्तु आज धर्म के स्वम्भू ठेकेदार 'धर्म'का दुरूपयोग कर सम्पूर्ण सृष्टि को नुक्सान पहुंचा रहे हैं.परिणाम सामने है कि कहीं ग्लोबल वार्मिंग ,कहीं बाढ़,कहीं सूखा,कहीं दुर्घटना कहीं आतंकवाद से मानवता कराह रही है.धर्म के ये ठेकेदार जनता को त्याग,पुण्य-दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं.गरीब किसान,मजदूर कहीं अपने हक -हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए 'भाग्य और भगवान्'के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के ये हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंडन कर रहे हैं.पंचशील के नाम पर शान्ति के पुरोधा ने जब देशवासियों को गुमराह कर रखा था तो १९६२ ई.में देश को चीन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था.हमारा काफी भू-भाग आज भी चीन के कब्जे में ही है.तब १९६४ में' चित्रलेखा ' फिल्म में साहिर लुधयानवी के गीत पर लता मंगेशकर ने यह गा कर धर्म के पाखण्ड पर प्रहार किया था-

संसार से भागे फिरते हो,भगवान् को तुम क्या पाओगे.
इस लोक को भी अपना न सके ,उस लोक में भी पछताओगे..
ये पाप हैं क्या,ये पुण्य हैं क्या,रीतों पर धर्म की मोहरें हैं.
हर युग में बदलते धर्मों को ,कैसे आदर्श बनाओगे..
ये भोग भी एक तपस्या है,तुम त्याग के मारे क्या जानो.
अपमान रचेता का होगा ,रचना को अगर ठुकराओगे..
हम कहते हैं ये जग अपना है,तुम कहते हो झूठा सपना है.
हम जनम बिताकर जायेंगे,तुम जनम गवां कर जाओगे..

हमारे यहाँ 'जगत मिथ्या 'का मिथ्या पाठ खूब पढ़ाया गया है और उसी का परिणाम था झूठी शान्ति के नाम पर चीन से करारी-शर्मनाक हार.आज भी बडबोले धार्मिक ज्ञाता जनता को गुमराह करने हेतु' यथार्थ कथन' को 'मूर्खतापूर्ण कथन' कहते नहीं अघाते हैं. स्व.सन्त श्याम जी पाराशर (रामायण का ऐतिहासिक महत्त्व ,योगीराज श्री कृष्ण,अपराधी कौन?आदि पुस्तकों के रचयिता और कनखल,हरिद्वार से प्रकाशित होते रहे 'विश्व मनोविज्ञान मंदिर'के सम्पादक ),'भूमिजा'के रचयिता डा.रघुवीर शरण मित्र और 'जय हनुमान'के रचयिता स्व.श्याम नारायण पाण्डेय की व्याख्याओं के आधार पर निकले निष्कर्षों को' बेपर की उड़ान'  और' कूडा-कचरा'  कह कर मखौल उड़ाया जाता है और उस पर भी तुर्रा यह कि  गोदियाल जी के नेतृत्व  में धनाढ्य गण कहते हैं -इन कुतर्कों का खंडन न किया जाए एवं जनता को गुमराह होते चुप-चाप देखा जाए.

यह सत्य है कि जो लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं पक्के तौर पर काफी नुक्सान उठाएंगे ही परन्तु आज उनको अभी अहंकार में डूबे होने के कारण इसका एहसास नहीं है.वैज्ञानिक आधार पर 'भगवान्'=प्रकृति के पञ्च तत्व ही हैं और उनकी पूजा का साधन मैटेरियल साईंस (पदार्थ विज्ञान )पर आधारित ' हवन' ही है बाकी सब ढोंग-ढकोसला ,पाखण्ड ही है,चाहे उसका प्रचारक कितना भी बड़ा ओहदेदार ही क्यों न हो.हमें धर्म के नाम पर हो रहे अधर्म के बोलबाले पर नहीं जाना चाहिए;वरन मानव-मात्र  के हित में विश्वबन्धुत्व की -'सर्वे भवन्तु सुखिनः 'वाली उक्ति पर चलना चाहिए.

2 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मुझे नहीं मालूम कि मैं आपकी बात को गलत समझ रहा हूँ या फिर आप बात को कुछ ज्यादा ही घुमा गए माथुर साहब, मैंने तो कभी इस मकसद से नहीं कहा कि आप अधर्म और पाखंडो का पर्दाफास करना बंद कर दीजिये, कहने का मकसद सिर्फ इतना था कि आपस में एक दूसरे से उलझना खुद को भी टेंसन देता है ! खैर, मैं कुछ गलत समझ गया हूँ तो एक बार फिरसे क्षमा ! इस देश में आजादी के बाद से और कुछ मिला हो अथवा नहीं, नहीं मालूम मगर अभ्व्यक्ति की स्वतंत्रता खूब मिली हुई है ! यही कहूंगा कि आप खूब लिखिए, मेरी शुभकामनाये !

Patali-The-Village said...

सही लिखा है आपने| आप की बातों से सहमत हूँ|