Saturday, May 19, 2012

ईमानदारी की समाज मे कद्र नहीं

हिंदुस्तान,लखनऊ,15 मई 2012



"रूखा-सूखा खाय के ठंडा पानी पीव। 


देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव। । "

कभी समाज मे इस कथन को जीवन का आदर्श माना जाता था किन्तु आज?उपरोक्त स्कैन मे ईमानदार अधिकारी ए डी एम विनोद राय साहब की आत्म-हत्या के संबंध मे लखनऊ के जिलाधिकारी महोदय की श्रीमती जी ने जो विचार दिये हैं उन पर गौर किए जाने की नितांत आवश्यकता है। वस्तुतः किसी भी व्यक्ति के ईमानदार होने और बने रहने मे उसके पूरे परिवार का सहयोग होता है। प्रस्तुत मामले मे लेखिका ने जो रहस्योद्घाटन किया है उसके अनुसार राय साहब की पत्नी उनकी ईमानदारी से संतुष्ट नहीं थीं और उनकी ईमानदारी उनके पारिवारिक असंतोष का कारण थी जिसने उन्हें आत्म-हत्या को प्रेरित किया। जनता को एक ईमानदार अधिकारी के न रहने से जो क्षति होगी उसका आंकलन कोई नहीं करेगा। भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर आंदोलन चलाने वाले और उसका समर्थन करने वाले इस हादसे पर क्या दृष्टिकोण अपनाते हैं उसका भी कुछ पता नहीं चलेगा।

भ्रष्टाचार बहता हुआ पानी है जो ऊपर से नीचे बहता है। अर्थात जब शीर्ष पर भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है तभी वह बह कर निचले स्तर पर पहुंचता है किन्तु NGO आंदोलन निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का नाम लेकर चल रहा है वह ऊपर के भ्रष्टाचार को सँजो कर रखने का एक उपक्रम है। इसीलिए बड़े सरकारी अधिकारी उसका समर्थन करते है। जब एक बड़ा अधिकारी ईमानदारी पर चलता है तो समाज की कौन कहे उसके परिवार के लोग ही उसे जीने नहीं देते हैं और वह अवसादग्रस्त होकर आत्म-हत्या करने पर मजबूर हो जाता है। समाज की इस सड़ांध को दूर करने के लिए 'सदाचार' को महत्व देना होगा। 'सदाचार'धुए की भांति नीचे से ऊपर को जाता है। यदि समाज की इकाई परिवारों मे सदाचार रहे तो ऊपर तक उसका प्रभाव पड़ेगा ही

आज हो उल्टा रहा है भ्रष्टाचार दूर करने का  आंदोलन चलाने वाले महा-भ्रष्ट ,लुटेरे,शोषक और उत्पीड़क लोग हैं उनका सदाचार से कोई वास्ता नहीं है।  इन परिस्थितियों मे अन्ना/रामदेव आदि का आंदोलन महज ढोंग और पाखंड को बढ़ा कर लूट और भ्रष्टाचार को और पुख्ता करने वाला ही है। जबकि आवश्यकता है -ईमानदारी और सदाचार को बढ़ावा देने की तभी हम अपने होनहार जन-हितैषी अधिकारियों की रक्षा कर सकेंगे एवं भ्रष्टाचार स्वतः ही समाप्त हो सकेगा। 

5 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आवश्यकता है , ईमानदारी और सदाचार को बढ़ावा देने की .... तभी हम अपने होनहार जन-हितैषी अधिकारियों की रक्षा कर सकेंगे एवं भ्रष्टाचार स्वतः ही समाप्त हो सकेगा।
काश सभी ऐसा सोचते और इस देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाता ....!!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बिल्कुल सही,
ईमानदारी में आज सबसे बडी मुश्किल परिवार ही है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सहमत हूँ.....ईमानदारी की सोच का पोषण परिवार से शुरू होना चाहिए.....

Madhuresh said...

बहुत सही! सार्थक, सटीक आलेख ... आमतौर पर भ्रस्टाचार के मामले में जनता भेड़चाल हो जाती है.. तथ्यों की जानकारी ज़रूरी है..
सादर
मधुरेश

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आवश्यकताओं की पूर्ति न होना ,भ्रस्टाचार करने को मजबूर करता है

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