हमारी पृथ्वी १ लाख ११ हज़ार ६ सौ कि .मी .प्रति घंटे की गति से घूमते हुए अपने से १३ लाख गुने बड़े और ९ करोड़ ३० लाख मील की दूरी पर स्थित सूर्य की परिक्रमा कर रही है .सब ग्रहों का परिवार एक सौर परिवार है .एक अरब सौर परिवारों क़े समूह को एक निहारिका कहते हैं और ऐसी १५०० निहारीकाएँ वैज्ञानिक साधनों द्वारा देखी गई हैं .एक आकाश गंगा में २०० अरब तारें हैं और अरबों आकाश गंगाएं विद्यमान हैं .सूर्य हमारी पृथ्वी का निकटतम तारा है .सूर्य पर प्रतिक्षण हीलियम और हाईड्रोजन क़े विस्फोट हो रहे हैं जिनकी ऊर्जा और प्रकाश हम पृथ्वी वासियों क़े लिए जीवन दायनी शक्ति है .प्रिज्म (prism ) से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि सूर्य की एक किरण में ७ रंग होते हैं -
१ .बैंगनी ,२ .नीला ,३ .आसमानी ,४ .हरा ,५ .पीला ,६ .नारंगी ,७ .लाल .
हमारे प्राचीन ऋषियों ने इस तथ्य को बहुत पहले ही खोज लिया था.किन्तु महाभारत -काल क़े बाद वैदिक सिद्धांतों का क्षरण होता चला गया और कुरान की तर्ज़ पर पुराण क़े रचयिताओं ने सारे सिद्धांतों को मटियामेट कर नयी नियमावलियां गढ़ लीं जो आज तक खूब जोर -शोर से प्रचलित हैं.सूर्य की किरण क़े सात रंगों को ७ घोड़ों में तब्दील कर दिया गया और दुष्प्रचारित किया जाने लगा कि सूर्य को सात घोड़ो का रथ खींच रहा है -इसी बात ने आधुनिक वैज्ञानिकों को यह कहने का मौका दे दिया कि हमारा देश जाहिलों का देश था ,वेद गडरियों क़े गीत थे ,यहाँ केवल शून्य का आविष्कार हुआ ,बाक़ी सारा विज्ञान पश्चिम की देन है -आदि ,आदि.
सारे तीज -त्यौहार गलत मान्यताओं और गलत तरीकों से मनाये जाने लगे -आज भी वही प्रक्रिया जारी है.
गलत बातें कितनी तेज़ी से फैलती हैं उसका एक नमूना प्रस्तुत है :
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को 'सूर्य षष्ठी' कहते हैं जो बिहार में बड़ी धूम -धाम से चार दिनों तक मनाई जाती है ;अब पूरे देश में उसका प्रचलन बढ़ता जा रहा है .
लेकिन कहीं भी इसे मनाने में कोई वैज्ञानिक आधार नहीं लिया जा रहा है. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से आस्था और विश्वास क़े आधार पर कई लोग लाभ प्राप्त होने की तसल्ली भर कर सकते हैं .
वस्तुतः १६ जूलाई को दक्षिणायन होने क़े बाद मध्य अक्टूबर में सूर्य तुला राशि में आ जाता है जोकि,सूर्य की नीच राशि है. इस समय पृथ्वी से अधिक दूर होने क़े कारण सूर्य का ताप कुछ क्षीण प्राप्त होता है. उधर खरीफ की फसलें पक कर तैयार हो चुकती हैं अतः इस समय दीपावली क़े बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर विशेष सूर्य उपासना का विधान रखा गया था ,जिसे विकृत रूप में हम व्यापक रूप से फैलते देख रहे हैं .
वैदिक (वैज्ञानिक ) पद्धति
पदार्थ विज्ञान (Material -Science ) क़े आधार पर जिस हवन पद्धति को हमारे ऋषियों ने अपनाया था उसमे यजुर्वेद क़े अध्य्याय ३ क़े मन्त्र सं .९ और १० द्वारा सूर्य स्तुति की आहुतियाँ ही पहले -पहल सामग्री क़े साथ दैनिक होम में भी दी जाती हैं उससे पूर्व १२ आहुतियों में सामग्री का प्रयोग नहीं करते हैं. ३ में समिधा औए ९ में केवल घी का ही प्रयोग करतेहैं :-
पहली आहुति -ॐ सूर्यो ज्योति ज्योर्तिः सूर्यः स्वाहा -अर्थात सूर्य क़े प्रकाश क़े प्रकाशक परमात्मा की प्रसंन्त्ता क़े लिए हम स्तुति करते हैं.
दूसरी आहुति -ॐ सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चा : स्वाहा -अर्थात सर्वविद्ध्या और ज्ञान क़े दाता सर्वेश्वर क़े अनुग्रह क़े लिए हम स्तुति करते हैं .
तीसरी आहुति -ॐ ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा -अर्थात जिसकी ज्योति से सारा जगत जगमग हो रहा ,उसी जगदीश्वर की प्रसंन्त्ता क़े लिए हम स्तुति करते हैं.
चौथी आहुति -ॐ सजूदेर्वेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्र्वत्या जुषाण: सूर्यो वेतु स्वाहा -अर्थात सर्व लोक में व्यापक सर्व -शक्तिमान सर्वनियन्ता सर्वेश्वर की प्रीती प्राप्त करने क़े लिए हम स्तुति करते हैं.
अग्निहोत्र से पूर्व मनसा परिक्रमा क़े प्रथम मन्त्र "ॐ प्राची....." द्वारा भी सूर्य की ही सर्वप्रथम आराधना की गयी है:-
हे ज्ञानमय प्रकाशक!बंधन विहीन प्यारा
प्राची में रम रहा तू रक्षक पिता हमारा
रवि -रश्मियों से जीवन पोषण विकास पाता.
अज्ञान क़े अँधेरे में तू ,प्रभा दिखाता
हम बार बार भगवन!करते तुम्हे नमस्ते
जो द्वेष हों परस्पर वह तेरे न्याय हस्ते
उपस्थान मन्त्रों में भी प्रथम तीन मन्त्र सूर्य आहुति क़े ही हैं:-
रवि -रश्मि क़े रमैय्या! पावन प्रभो दिखा दो
अज्ञान की तमिस्त्रा भू लोक से मिटा दो
देवों क़े देव !दिन दिन हो दिव्य दृष्टि प्यारी
श्रुति ज्ञान को न भूलें रसना कभी हमारी
(यजुर्वेद अध्याय ५ मन्त्र १४ का पद्यानुवाद)
इन वाह्य चक्षुओं से वह दृष्टि में न आया
चाहा पता लगाना उसका पता न पाया
हो कर निराश जब मैं घर लौटा आ रहा था
सृष्टि का ज़र्रा ज़र्रा प्रभु गान गा रहा था
दर्शन प्रभु क़े कर क़े जब मन मरे न माना
भर कर खुशी में उसने गाया नया तराना
जीवन में ज्योति प्राणों में प्रेरणा तुम्ही हो
मन में मनन ,बदन में नव चेतना तुम्हीं हो.
(यजुर्वेद अध्याय ३३ मन्त्र ३१ पद्यानुवाद)
अद्भुत स्वरुप तेरा,तेरी अपूर्व करनी
हैं आप में अवस्थित द्यौ अन्तरिक्ष अवनी
तेरी कृपा से प्रभुवर !सच्चा प्रकाश पाया
श्रद्धा की अंजलि ले तेरे समीप आया
(यजुर्वेद अध्याय ७ मन्त्र ४२ का पद्यानुवाद)
आप और हम सब देखेंगे इस बार भी छठ-पूजा क़े नाम पर अधर्म (ढोंग व पाखण्ड )का बोल -बाला कोई भी सूर्य क़े निमित्त हवन -आहुति नहीं करेगा और सूर्य का सबसे बड़ा पुजारी बनेगा. सूर्य मन्त्र से दी गई आहुति का धूम्र वायु द्वारा तत्काल सूर्य तारा तक पहुँच जाता है जब कि यह अर्ध्य, यह फल -दान आदि आदि इसी पृथ्वी पर रह कर नष्ट हो जाते हैं .दैनिक रूप में सूर्य की उपासना और हवन ५ हज़ार वर्ष पूर्व तक होते थे अब तो विशेष सूर्य पर्वों पर भी नहीं होते ;जबकि सूर्य षष्ठी तो सार्वजनिक रूप से हवन करने का पर्व होना चाहिए था. लेकिन हम लोग तो आज के दिन भी हवन ही करते हैं.हवन की समाप्ति पर शान्ति -पाठ से पूर्व होने वाली सूर्य स्तुति आप भी सुन सकते हैं :-