Saturday, October 31, 2015

करवा चौथ जैसे भेद -भाव मूलक उपवास स्त्री को दंड से अधिक कुछ नहीं हैं --- विजय राजबली माथुर

 ***** पाँच वर्ष पूर्व ब्लाग-पोस्ट के माध्यम से नारियों/महिलाओं को 'करवा चौथ' जैसे कुत्सित एवं वीभत्स कु-पर्व के संबंध में सचेत करने का प्रयास किया था। लेकिन समाज में यह संक्रामक रोग और अधिक तेज़ी से फैल गया है। व्यापार/उद्योग जगत के मुनाफे की जुगत ने ढोंग-पाखंड एवं अंध-विश्वास में बेतहाशा वृद्धि की है। लेकिन अब कुछ जागरूक महिलाएं इस कु-प्रथा के विरोध में भी सामने आई हैं, परंतु विरोध का तरीका ऐसा नहीं है कि जिसका समाज पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ सके  और यह कु-प्रथा जड़-मूल से समाप्त हो सके। अपने पोस्ट द्वारा सकारात्मक व 'तर्क' के आधार पर मैंने विश्लेषण प्रस्तुत किया था किन्तु दुर्भाग्य यह है कि जो ढ़ोंगी हैं वे तो मानने से रहे किन्तु जो प्रगतिशील हैं वे एथीस्टवाद के अंध-विश्वास में कुतर्क के साथ व्यंग्य तो कर सकते हैं जबकि सकारात्मक - तर्क स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। पिछली पोस्ट द्वारा भी ऐसे ही प्रगतिशील कुतार्किक व्यंग्य के संदर्भ में सकारात्मक-तर्क प्रस्तुत किया था। जब तक हम सकारात्मक-तर्क के आधार पर ढोंगियों-पाखंडियों-आडंबरधारियों का पर्दाफाश नहीं करते तब तक मात्र व्यंग्य और मखौल से उनको शिकस्त देना संभव नहीं है। पौराणिक पोंगा-पंडितों ने ढोंगियों व एथीस्ट वादियों दोनों को समान रूप से जकड़ा हुआ है जिससे दोनों ही मुक्त नहीं होना चाहते हैं जिसका लाभ लुटेरे व्यापारियों को  होता है व हानि देश की अबोध जनता को हो रही है। उदाहरणार्थ संस्कृत में 'महिष' का अर्थ भैंस से है जिस संदर्भ में कहा जाता है कि 'अक्ल बड़ी या भैंस?' उसी संदर्भ में जड़ता के लिए 'महिषासुर' शब्द का प्रयोग हुआ है परंतु साम्राज्यवादियो से प्रेरित 'मूल निवासी आंदोलन' के हिमायती इसे पौराणिक पोंगापंथियों द्वारा कु-व्याख्यायित महीषासुर को अपना नायक बताते हुये अर्थ का अनर्थ करके वस्तुतः पोंगापंथी-ब्राह्मणों को मजबूती प्रदान कर देते हैं। ऐसा ही एथीस्ट वादी भी करते हैं। युद्ध एक कला भी है और विज्ञान भी। अतः जब तक कलात्मक ढंग से विज्ञान सम्मत युद्ध पोंगा-पंथियों के विरुद्ध नहीं छेड़ा जाता तब तक व्यंग्य और एथीस्ट वाद ढोंगवाद को ही मजबूती जैसे देता आ रहा है वैसे ही आगे भी देता रहेगा। 

Tuesday, October 12, 2010
मातृ शक्ति अपना महत्व पहचाने  :
वीर शिरोमणि झाँसी वाली रानी लक्ष्मी बाई (जिन्होंने १८५७ की क्रांति में साम्राज्यवादी ब्रिटिश सत्ता को ज़बरदस्त चुनौती दी थी )हों या उनसे भी पूर्व वीर क्षत्र साल की माँ रानी सारंधा हों (जिन्होंने विदेशी शत्रु के सम्मुख घुटने टेकने की बजाय अपने मरणासन पति राजा चम्पत राय को कटार भोंक कर स्वंय भी प्राणाहुति दे दी थी )या रानी पद्मावती और उनकी सहयोगी साथिने हों ऐसे अनगिनत विभूतिया हमारे देश में हुई हैं जो व्यवस्था से टकरा कर अमर हो गईं और एक मिसाल छोड़ गईं आने वाली पीढियो के लिए ,परन्तु खेद है कि आज हमारी मातृ  शक्ति इन कुर्बानियों  को भुला चुकी है . यों तो ऋतु परिवर्तन पर स्वास्थ्य रक्षा हेतु नवरात्र पर्व का सृजन हुआ है और उपवास स्त्री -पुरुष सभी के लिए बताया गया है परन्तु करवा चौथ जैसे भेद -भाव मूलक उपवास स्त्री को दंड से अधिक कुछ नहीं हैं ,उसका कोई औचित्य नहीं है .नवरात्रों का उपवास हमारे स्थूल ,कारण और सूक्ष्म शरीर की शुद्धि  करता है.लोग भ्रम वश इसे व्रत कहते हैं जबकि व्रत का मतलब संकल्प से होता है.जैसे कोई सिगरेट,शराब आदि बुरी आदतें  छोड़ने का संकल्प ले तो यह व्रत होगा .
श्री श्री रवि शंकर कहते हैं -उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त हो जाता है ,मौन द्वारा वचनों में शुद्धता आती है और बातूनी मन शांत होता है और ध्यान के द्वारा अपने अस्तित्व की गहराईयों में डूब कर हमें आत्म निरीक्षण का अवसर मिलता है .यह आंतरिक यात्रा हमारे बुरे कर्मों को समाप्त करती है.नवरात्र आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात जड़ता ),शुम्भ -निशुम्भ (गर्व और शर्म )और मधु -कैटभ (अत्यधिक राग -द्वेष )को नष्ट किया जा सकता है .जड़ता ,गहरी नकारात्मकता और
मनोग्रंथियां (रक्त्बीजासुर ),बेमतलब का वितर्क (चंड -मुंड )और धुंधली दृष्टि (धूम्र लोचन )को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठा कर ही दूर किया जा सकता है .

 आज जनता इन विद्वानों का मान तो करती है परन्तु उनके द्वारा बताई बातों को मानने को कतई तैयार नहीं है .हमारे ब्लॉग जगत के एक विद्वान कमेन्ट करने में बहुत माहिर हैं ,मैंने उनसे इस समस्या पर मार्ग दर्शन माँगा तो वह पलायन कर गए .
http://krantiswar.blogspot.in/2010/10/blog-post_12.html

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Neelima Chauhan
30-10-2015 
https://www.facebook.com/neelima.chauhan.334/posts/1022235507799837?pnref=story


https://www.facebook.com/genie.lehrerin/posts/536103789891981




https://www.facebook.com/neelima.chauhan.334/posts/1022621361094585?pnref





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 ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-11-2015) को "ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर" (चर्चा अंक-2147) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

जमशेद आज़मी said...

सचमुच यह क्रा‍ंति का स्‍वर है। धर्म कोई भी सबसे ज्‍यादा मार महिलाओं पर ही पड़ती है। महिलाओं के अधिक धार्मिक होने से ही धर्मों का अस्तित्‍व है।