Wednesday, October 31, 2018
सरदार पटेल का व्यक्तित्व अनन्त ऊंचाई लिए हुये था
यह एक सरकारी विज्ञापन छपा है जिसके अनुसार यह --- " सरदार पटेल के विशाल व्यक्तित्व जितनी विशाल प्रतिमा " और इसकी ऊंचाई 182 मीटर बताई गई है।
वर्तमान केंद्र सरकार सरदार पटेल के व्यक्तित्व को मात्र 182 मीटर ऊंचा ही मान रही है जबकि जनता की नजरों में सरदार पटेल का व्यक्तित्व अनन्त ऊंचाई लिए हुये था जिसकी कोई माप नहीं की जा सकती है।
यह मोदी सरकार द्वारा सरदार पटेल का घोर अपमान है कि उनके व्यक्तित्व को एक पैमाने में बांध कर छोटा कर दिया गया है ।
~विजय राजबली माथुर ©
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Friday, October 26, 2018
सीबीआई बनाम सीबीआई नहीं अमित शाह बनाम अहमद पटेल ! ------ Vikash Narain Rai
Vikash Narain Rai
25-10-2018गत नवम्बर में जब राकेश अस्थाना को सीबीआई में एडिशनल डायरेक्टर से स्पेशल डायरेक्टर बनाया जाना था उनके बॉस आलोक वर्मा ने सीवीसी को चिट्ठी लिख कर सूचित किया कि अस्थाना के विरुद्ध छह मामलों में गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप सामने आये हैं और उनकी जांच चल रही है| न सिर्फ मोदी सरकार के सीवीसी ने इस चिट्ठी का संज्ञान नहीं लिया बल्कि मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट अपॉइंटमेंट कमेटी ने एक ही दिन में अस्थाना की पदोन्नति पर स्वीकृति की मुहर लगा दी|
लिहाजा, बेशक सीबीआई चीफ और उनके डिप्टी फिलहाल एक दूसरे पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हों और उन्हें छुट्टी भेजकर जिस अफसर को सीवीसी की मार्फ़त नया चीफ बनाया गया वह भी ऐसे ही आरोपों से घिरा हो, लेकिन इस बेशर्म कलह की जड़ स्वयं प्रधानमन्त्री हैं| यहाँ तक कि अस्थाना को अपने मंसूबों में फलने-फूलने के लिए मन माफिक सहयोगी जुटाने का खुला अवसर भी देश के प्रधानमन्त्री के इशारे पर ही मुहैय्या हुआ|
इसी वर्ष जुलाई में आलोक वर्मा इंटरपोल की कांफ्रेंस में शामिल होने देश से बाहर क्या गये, सीवीसी की ओर से आनन-फानन में नए अफसरों को सीबीआई में लेने की बैठक बुला ली गयी| वर्मा के लिखित विरोध के बावजूद पीएमओ और सीवीसी ने अस्थाना को इस बैठक में सीबीआई का प्रतिनिधित्व करने दिया और इस तरह अस्थाना के चहेते लोग सीबीआई में शामिल कर लिए गए| इन्हीं में से एक डीएसपी को वर्मा के आदेश पर अस्थाना के विरुद्ध दर्ज हुए केस में गिरफ्तार भी किया जा चुका है|
मोदी की गुरुतर बेशर्मी के कद को उनके बड़े पद के समकक्ष होने का श्रेय जरूर दिया जाना चाहिये| आज कम ही लोगों को याद होगा कि नब्बे के दशक के शुरू में प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर की सरकार हरियाणा पुलिस के दो सिपाहियों की निगरानी के चलते गिर गयी थी| तब बुरी तरह उखड़े चंद्रशेखर को राजीव गांधी के दूतों ने मनाने का बहुत प्रयास किया पर बात बनी नहीं| सीबीआई में आये प्रशासनिक भूकंप की वजह कम से कम वरिष्ठ आईपीएस अफसर तो बने जो नरेंद्र मोदी की मीडिया के दम पर बनायी ‘न खाऊँगा न खाने दूंगा’ साख को बेतरह क्षति पहुंचा गये हैं|
सीबीआई में भ्रष्टाचार की जंग कोई नई बात नहीं, बेशक इतने खुले में पहली बार नजर आ रही हो| दरअसल, जो मांस व्यापारी मोईन कुरैशी ताजातरीन जंग के केंद्र में है, वह सीबीआई के दो पूर्व डायरेक्टरों का खासमखास दल्ला रहा है| सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हुयी जांच में ये दोनों डायरेक्टर घोर भ्रष्टाचार के दोषी पाये गए और स्वयं सीबीआई के जिम्मे इनके विरुद्ध केस को सिरे चढाने का कार्यभार आन पड़ा| अस्थाना और वर्मा के बीच एक दूसरे पर रिश्वत के आरोप की महाभारत में यही मुईन कुरैशी शिखंडी बनाया हुआ है|
यूं भी यह जंग सीबीआई बनाम सीबीआई न होकर अमित शाह बनाम अहमद पटेल का नमूना ज्यादा है| जितनी प्रशासनिक नहीं उससे अधिक राजनीतिक| दो टूक कहें तो केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद अमित शाह ने अपने आका के राजनीतिक हित साधने में सीबीआई को वैसे ही हांका है जैसे मनमोहन सरकार में अहमद पटेल किया करते रहे थे| संयोग से दोनों गुजरात से हैं; अमित शाह, नरेंद्र मोदी की कठपुतली भाजपा के अध्यक्ष और अहमद पटेल तब की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रमुख किरदार!
अगर अहमद पटेल के संचालन दौर में आज जैसी खुली कलह सीबीआई ने नहीं देखी तो कह सकते हैं कि आज के दिन अमित शाह की ‘तड़ीपार’ कार्य-शैली सीबीआई अफसरों के सर चढ़ कर बोल रही है| भूलना नहीं चाहिए कि शाह के गुजरात का गृह मंत्री रहते, इसी कार्य-शैली के शिकार, मोदी के वफादार दो दर्जन से अधिक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हत्या और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों में जेल पहुँच गये थे|
यहाँ, सीबीआई चलाने में, कांग्रेस और भाजपा सरकारों के चरित्र का अंतर भी अपना काम कर रहा है| जहाँ मनमोहन सरकार में ‘भ्रष्टाचार’ को अफसरों के प्रलोभन का मुख्य हथियार बनाया जाता था, मोदी सरकार में ‘धौंस-पट्टी’ भी शामिल है| इसी का प्रतिबिम्ब है कि सीबीआई के दो भ्रष्टतम डायरेक्टर, जिनका जिक्र ऊपर आया है, एपी सिंह और रंजीत सिन्हा, कांग्रेस शासन में अवतरित हुए जबकि इस नामी एजेंसी के इतिहास की सबसे बड़ी अंतर कलह भाजपा शासन में चलती दिख रही है|
मौजूदा सीबीआई तनाव की छानबीन के क्रम में निम्न पक्षों, आयामों व प्रसंगों को ध्यान में रखने से सहजता होगी|
1. सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा की छुट्टी होने से रेखांकित हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच एजेंसी को पिंजड़े में कैद तोता यूँ ही नहीं कहा था- ‘न खाऊँगा न खाने दूंगा’ हुंकार की दैत्याकार छवि को सहेजने वाला मोदी भी तोते के जरा सा स्वतंत्र पर फड़फड़ाने को सह नहीं सका|
2. वर्मा को एक मिनट किनारे रख दीजिये| वर्तमान कलह में शामिल शेष दो किरदार, वर्मा विरोधी स्पेशल डायरेक्टर अस्थाना और वर्मा सहयोगी एडिशनल डायरेक्टर अरुण शर्मा की सीबीआई में आने की औकात को समझिये| गुजरात कैडर के ये दोनों अधिकारी राज्य में अमित शाह के प्यादे रहे थे|
3. अस्थाना ने कुख्यात गोधरा काण्ड को एक स्वतः स्फूर्त हिंसक उपद्रव से बदल कर अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम आतंकी साजिश बना दिया था| इसी तरह शर्मा ने अमित शाह के निर्देश पर ‘साहब’ के लिए उस आर्किटेक्ट महिला की जासूसी करायी थी जिसका नाम मोदी के साथ जोड़ा जाता रहा है|
4. दो वर्ष पहले, वर्मा के पूर्ववर्ती सुनील सिन्हा के रिटायर होने से ठीक पहले मोदी-शाह ने सीबीआई के अगले वरिष्ठ अधिकारी को तो तबादले पर सीबीआई से बाहर भेज दिया और तब काफी जूनियर अस्थाना को कार्यवाहक डायरेक्टर का चार्ज दे दिया| सुप्रीम कोर्ट के दखल से सेलेक्शन समिति की बैठक हुयी जिसमें मोदी के अलावा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व नेता विपक्ष लोकसभा भी थे, और मजबूरी में वर्मा को चुनना पड़ा|
5. वर्मा को भी, जो उस समय दिल्ली के पुलिस कमिश्नर होते थे, अमित शाह के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद ही डायरेक्टर की कुर्सी के लिए मोदी की हाँ नसीब हुयी थी| ऐसा भी नहीं कि वर्मा ने मोदी-शाह से निभाया नहीं| उदाहरण के लिए मायावती और मुलायम पर कांग्रेस के जमाने से लटकती तलवार का हौव्वा बनाए रखना, ठंडे किये जा रहे व्यापमं प्रकरण को ठंडा रखना और विजय माल्या फरारी पर ढक्कन लगाए रखना, आम लोगों की स्मृति में भी बने हुए हैं|
6. तब भी अस्थाना की शाह समर्थित रंगबाजी के सामने वर्मा ने घुटने नहीं टेके और इसके लिए उन्होंने अभूतपूर्व प्रशासनिक क्षमता दिखायी है| अब वे मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी ले गये हैं| उनकी दो वर्ष की तैनाती इस आधार पर समाप्त नहीं की जा सकती कि ‘तोता ज्यादा ही पर फड़फड़ाने लगा था’|
मैंने कुछ दिन पहले मोदी को ऐसा डूबता जहाज कहा था जिसे छोड़कर चूहे भागने लगे हैं| दरअसल, वे जलता हुआ जहाज सिद्ध हो रहे हैं और इस जहाज पर सवार हर व्यक्ति तक आंच पहुंचेगी|
Vikash Narain Rai
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~विजय राजबली माथुर ©
Tuesday, October 23, 2018
मोदी के जाने की आहट : टॉप ब्यूरोक्रेट्स ने मोदी को ठेंगा दिखाना शुरु कर दिया ------ राजेश राजेश
Rajesh Rajesh
मोदी के जाने की आहट : टॉप ब्यूरोक्रेट्स ने मोदी को ठेंगा दिखाना शुरु कर दिया---------------//
देश के इतिहास में ये पहली बार है कि किसी जांच एजेंसी ने अपनी जांच एजेंसी के खिलाफ छापेमारे शुरू कर दी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने राकेश अस्थाना और अलोक वर्मा को तलब किया मगर दोनों के बीच बढ़ चुकी दूरियां कम होंगी, इसकी उम्मीद कम ही नज़र आती है।
3 करोड़ की घूसखोरी में फंसे सीबीआई के राकेश अस्थाना पीएम मोदी और भाजपा के तड़ीपार अमित शाह के बेहद करीबी हैं। मोदी जी के कहने पर ही सीबीआई में उन्हें नम्बर 2 यानी स्पेशल डायरेक्टर की पोस्ट दी गई उन्होंने ही गोधरा जांच से मोदी को बचाया तो अब एफआईआर दर्ज होने के बाद भी पीएमओ के हस्तक्षेप से अस्थाना भी गिरफ्तारी से अभी तक बचे हुए हैं।
गुजरात के सूरत में पुलिस कमिश्नर रहने के समय से ही घूसखोर अस्थाना को मोदी वाला पीआर का चस्का लगा हुआ है और उसने बकायदा वीडियो बनवाकर अपनी तुलना सरदार पटेल और स्वामी विवेकानंद से की।
लेकिन मोदी, अमित शाह और तमाम बड़े-बड़े नामों का तमगा लगाये भ्रष्टाचारी अस्थाना की मूर्ति को सीबीआई निदेशक ने एक झटके में जमींदोज कर दिया। आलोक वर्मा ने अचानक सौ सुनार की ओर एक लोहार की तर्ज पर चोट मारी।
हकबकाये मोदी ने तुरंत सीबीआई निदेशक को बुलावा भेजा लेकिन सीबीआई निदेशक वर्मा ने साफ कर दिया कि इस घूसखोर अस्थाना को अब सीबीआई में और बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। मोदी को जो उखाड़ना है उनका उखाड़ लें।
मोदी और शाह के ईशारों पर चलने वाले राकेश अस्थाना के निशाने पर सारे विपक्षी दल थे। ******
अमित शाह के कहने पर ही अस्थाना ने मेडिकल कॉलेज घूसखोरी में रंगेहाथ 2 करोड़ की वसूली की रकम ऐंठते पकड़े गये इंडिया टीवी के बड़े पत्रकार दलाल का नाम एफआईआर से निकाल दिया और रंगेहाथ पकड़े जाने के बावजूद उसे छोड़ दिया।क्योंकि उसके पकड़े जाने पर जांच की आंच खुद अमित शाह तक पहुंच जाती और 200 करोड़ की वसूली का पूरा खेल खुल जाता।
हालांकि मोदी सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से बहुत नाराज हैं और चाहते हैं कि उनकी छुट्टी हो मगर प्रधानमंत्री उनको बर्खास्त नहीं कर सकते। उधर टॉप ब्यूरोक्रेट्स और आम नौकरशाही में फैली चर्चा की मानें तो अधिकारी जानते हैं कि 2019 में मोदी लौटकर सत्ता में नहीं आ रहे। इसलिये अब अफसरों ने मोदी को ठेंगा दिखाना शुरु कर दिया। सीबीआई निदेशक वर्मा ने भी मोदी को साफ कर दिया कि अब और नहीं चलेगा ये सब। घूसखोरों को सीबीआई से बाहर जाना ही होगा।खैर, मोदी की गढ़ी हुई झूठ और झूठी ईमानदारी की मूर्तियां एक-एक कर गिरना शुरु हो चुकी हैं।अब तो तय है कि 2019 के चुनावों में मोदी ईमानदारी का ढोल कतई नहीं पीट पायेंगे और अंततः उनको बेआबरु होकर सत्ता छोड़नी ही होगी।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=762971610718457&set=a.111828709166087&type=3
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~विजय राजबली माथुर ©
Monday, October 22, 2018
Tuesday, October 16, 2018
ब्रह्मांड : इक तारा भी है आवारा ------ चंद्रशेखर जोशी
...ये ज्ञान के दुश्मन, नियम के दुश्मन-हर सुंदर चीज से चिढ़ते हैं...
Chandrashekhar Joshi
इक तारा भी है आवारा :-----------------------------------
कम बुद्धि के लोग जिस धरती को लूटने पर तुले हैं, उसे करोड़ों बुद्धिमानों ने संवारा है। सौरमंडल को प्रकृति ने गजब कारीगरी से सजाया, लेकिन वहां भी आवारा हैं। घर-परिवार से सौर परिवार तक आवारगी पैदाइशी खोट है। ये विफल जीवन के घुमंतु, कांतिम रोशनी बिखेरते हैं, सबको चौंकाते हैं। गर आवारा को मौका मिला तो जंगल-पर्वत, धरती-अंबर कुछ न बचेगा।
...ऐसा बताते हैं कि अरबों साल पहले हीलियम, हाइड्रोजन और कुछ अन्य गैसों के विशाल बादल या पिंड में एक महाविस्फोट हुआ। इस सुपरनोवा के बाद कई छोटे टुकड़े बिखर गए। आकाशगंगा के बाहरी इलाके पर हमारा सौरमंडल बना और इस केंद्र की परिक्रमा करने लगा। आकाशगंगा में अरबों तारे बने। हमारे सूरज ने अपना परिवार बनाया। आठ ग्रह, क्षुद्र ग्रह, उपग्रह, उल्का, धूमकेतु सभी एक सुंदर तश्तरी के अंग बन गए। घूर्णन का अक्ष बना, ग्रहों ने अपना घेरा बनाया और एक निश्चित दिशा में चल पड़े। सौरमंडल का सबसे बड़ा गैस दानव बृहस्पति भी गुरुत्वाकर्षण बल से बंध गया। सूर्य के प्लाज्मा से सौर हवाएं निकलीं। इन हवाओं ने तारों के बीच बुलबुलों का हेलिओमंडल बनाया। विविध नियमों के रंगों से तश्तरी सज गई। कई और भी आकाशगंगाएं बनीं, सभी के अपने सूरज बने। मातृ तारे ने सबको कुछ नियमों में बांध लिया।
...खगोल विज्ञानी मानते हैं कि जब यह प्रक्रिया चल रही थी तो कुछ पिंड स्वच्छंद विचरण पर दूर निकल गए। एक मत यह भी है कि इनकी गड़बड़ चाल देख, इन्हें सौरमंडल से बाहर धकेल दिया गया। जब सौर परिवारों की सजावट पूरी हो गई तो आवारा तारे पास आने लगे। सुंदरता में खलल डालना आवारा की फितरत होती है। यह किसी नियम से बंधते नहीं। ये अपनी बेतरतीब चाल से आते-जाते ग्रहों के नियमों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और तेज रोशनी बिखरते हैं। ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने में जुटे विज्ञानियों को जब दूरबीनों में बार-बार दिक्कत महसूस होने लगी तो उनका दिमाग ठनक गया।
...हाल के वर्षों में खगोल शास्त्रियों ने हमारी मंदाकिनी के केन्द्र के पास एक भाग का निरीक्षण किया। करीब 500 लाख तारों का अध्ययन करने में एक चमत्कारिक घटना बार-बार दिखने लगी। इस बीच दूरबीन के लेंस प्रभावित होते रहे। तब समझ आया कि इतना गहरा प्रभाव कोई ग्रह ही डाल सकता है। जब गौर से समझा गया तो पता चला कि ये कोई विशालकाय तारे हैं। इनका द्रव्यमान महाकाय बृहस्पति से भी ज्यादा है। इनका अपने मातृ तारे से भी कोई संबंध नहीं है। ये आवारा ग्रह अंतरिक्ष में स्वतंत्र तैर रहे हैं।
...एक संभावना यह भी है कि ये भारी ग्रह किसी समय अपने मातृ तारे से ज्यादा दूरी पर परिक्रमा करते रहे होंगे। किसी खास समय में यह ग्रह अपने सौरमंडल से दूर फेंक दिए गए होंगे। इनकी संख्या बेतरतीब मानी जा रही है। खगोल विज्ञानियों के अनुसार आवारा ग्रहों की संख्या तारों की संख्या से दोगुनी तक हो सकती है। ध्यान रहे कि हमारी आकाशगंगा में ही सैकड़ों अरब तारे हैं।
...भटकते आवारा ग्रहों की बनावट जरा भिन्न होती है। ये झूठे पिंड, गैसीय गेंद हैं, इनमें बिरादरी के कोई अच्छे गुण नहीं हैं। इन ग्रहों का कोई चंद्रमा भी नहीं है। इनमें जीवन की कोई संभावना नहीं, सुंदरता से इनका दूर तलक नाता नहीं। खगोल विज्ञानी मानते हैं कि ये भीमकाय आवारा इतने खुराफाती होते हैं कि यदि इनको मौका मिल जाए तो कई ग्रहों को एकसाथ तबाह कर सकते हैं। लेकिन सौर परिवार की ताकत इतनी मजबूत है कि आवारा किसी का बाल बांका नहीं कर पाते।
...धरती में आवारा तत्वों की कमी नहीं। यह समाज की हर इकाई में पैदा हो सकते हैं। सदियों बाद भी मानव परिवार की एकता बेहद कमजोर है। यही कारण है कि मौका मिलते ही आवारा तत्व घर से लेकर सत्ता के शीर्ष तक हावी हो जाते हैं। इनकी हरकतें रोकने के बड़े उपाय होते हैं, पर जैसे ही इनका बस चला तो तबाही तय रहती है।
...ये ज्ञान के दुश्मन, नियम के दुश्मन-हर सुंदर चीज से चिढ़ते हैं...
https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=494121047766218&id=100015049811954
~विजय राजबली माथुर ©
Sunday, October 14, 2018
इन्द्र - अहल्या, कृष्ण - राधा जैसे प्रसंग उत्तरदाई हैं महिला उत्पीड़न के ------ विजय राजबली माथुर
जब किसी समाज को ध्वस्त करना होता है तब उसके पूर्वज महापुरुषों के चरित्र - हनन की कहानियाँ गढ़ी जाती हैं। ऐसा ही विदेशी शासन - काल में भारत में भी हुआ था। पुराणों के माध्यम से विदेशी शासकों ने यहाँ के पोंगा - पंथियों द्वारा जनता को भ्रमित करके विकृत ज्ञान दिलवाया था। चंद्रमा जो पृथ्वी का छाया ग्रह है को मुर्गा बन कर बांग देने का वर्णन प्रक्षेपित कराया गया है जिसके अनुसार इन्द्र ने गौतम मुनि की पत्नी अहल्या का यौन उत्पीड़न करने हेतु चंद्रमा का सहारा लिया ।
भागवत पुराण में विवाहित राधा को कृष्ण की प्रेमिका बना दिया गया है जबकि ब्रह्म पुराण में राधा कृष्ण की मामी बताई गई हैं । इस प्रकार मामी - भांजे की रास - लीला की कहानियाँ गढ़ी गई हैं।
इसी प्रकार ' दुर्गा ' - 'महिषासुर ' जैसी निरर्थक कहानियाँ देवी पुराण में मिल जाएंगी।
जब तक ऐसे निराधार कुतर्क समाज में धार्मिक चोला ओढा कर चलते रहेंगे तब तक समाज से महिला उत्पीड़न कैसे समाप्त किया जा सकता है ? आवश्यकता है समाज को चरित्र - भ्रष्ट बनाने वाले पुराणों को धार्मिकता के आडंबर से निकाल कर अश्लील एवं त्याज्य साहित्य घोषित करने और उससे दूर रहने का उपदेश देने की तभी समाज में नर - नारी समानता को पुनः बहाल किया जा सकेगा।
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
'नवरात्र पर्व '
अब से दस लाख वर्ष पूर्व जब इस धरती पर 'मानव जीवन ' की सृष्टि हुई तब अफ्रीका, यूरोप व त्रि वृष्टि (वर्तमान तिब्बत ) में 'युवा पुरुष' व 'युवा - नारी ' के रूप में ही। जहां प्रकृति ने राह दी वहाँ मानव बढ़ गया और जहां प्रकृति की विषमताओं ने रोका वहीं वह रुक गया। त्रि वृष्टि का मानव अफ्रीका व यूरोप के मुक़ाबले अधिक विकास कर सका और हिमालय पर्वत पार कर दक्षिण में उस 'निर्जन' प्रदेश में आबाद हुआ जिसे उसने 'आर्यावृत ' सम्बोधन दिया। आर्य शब्द आर्ष का अपभ्रंश था जिसका अर्थ है 'श्रेष्ठ ' । यह न कोई जाति है न संप्रदाय और न ही मजहब । आर्यावृत में वेदों का सृजन इसलिए हुआ था कि, मानव जीवन को उस प्रकार जिया जाये जिससे वह श्रेष्ठ बन सके। परंतु यूरोपीय व्यापारियों ने मनगढ़ंत कहानियों द्वारा आर्य को यूरोपीय जाति के रूप में प्रचारित करके वेदों को गड़रियों के गीत घोषित कर दिया और यह भी कि, आर्य आक्रांता थे जिनहोने यहाँ के मूल निवासियों को उजाड़ कर कब्जा किया था। आज मूल निवासी आंदोलन उन मनगढ़ंत कहानियों के आधार पर 'वेद' की आलोचना करता है और तथाकथित नास्तिक/ एथीस्ट भी जबकि पोंगापंथी ब्राह्मण ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म के रूप में प्रचारित करते हैं व पुराणों के माध्यम से जनता को गुमराह करके वेद व पुराण को एक ही बताते हैं।
चारों वेदों में जीवन के अलग-अलग आयामों का उल्लेख है। 'अथर्व वेद ' अधिकांशतः 'स्वास्थ्य ' संबंधी आख्यान करता है। 'मार्कन्डेय चिकित्सा पद्धति ' अथर्व वेद पर आधारित है जिसका वर्णन किशोर चंद्र चौबे जी ने किया है। इस वर्णन के अनुसार 'नवरात्र ' में नौ दिन नौ औषद्धियों का सेवन कर के जीवन को स्वस्थ रखना था। किन्तु पोंगा पंथी कन्या -पूजन, दान , भजन, ढोंग , शोर शराबा करके वातावरण भी प्रदूषित कर रहे हैं व मानव जीवन को विकृत भी। क्या मनुष्य बुद्धि, ज्ञान व विवेक द्वारा मनन ( जिस कारण 'मानव' कहलाता है ) करके ढोंग-पाखंड-आडंबर का परित्याग करते हुये इन दोनों नवरात्र पर्वों को स्वास्थ्य रक्षा के पर्वों के रूप में पुनः नहीं मना सकता ?
~विजय राजबली माथुर ©
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