ऐसा प्रतीत होता है कि , इन विद्वान लेखक ने उन एक्जिट पोल्स को हू - ब - हू सही मान लिया है जो मोदी / भाजपा समर्थक चेनल्स के इशारे पर किए गए हैं। कुछ निष्पक्ष विश्लेषकों के अनुसार ये एक्जिट पोल्स अक्सर सही नहीं होते हैं। परंतु विद्वान लेखक ने उन पर भरोसा करके वर्तमान विपक्ष की भूमिका को प्रश्नांकित किया है। जबकि इसके विपरीत LTV के सर्वे में भाजपा गठबंधन को 171 तथा करेंट के आंकलन द्वारा 190 सीटें ही मिल पाने का अनुमान है। पुण्य प्रसून बाजपेयी के आंकलन में भाजपा को 145 सीटें मिलने व 137 सीटें हारने का अनुमान है।
जब कोलकाता में 2013 ई में आर एस एस ने मोदी को 10 वर्ष पी एम बनाए रख कर बाद में योगी को उनके विकल्प के रूप में रख कर नीति निर्धारण किया था तबसे 2019 तक परिस्थितियेँ काफी बदल चुकी हैं। अब आर एस एस ने प्रथम कार्यकाल के बीच में ही मोदी को हटा कर नितिन गडकरी को बनाने का अभियान चलाया था जिसे मोदी - शाह की जोड़ी ने विफल कर दिया था। तब उसके द्वारा मोदी को दूसरा कार्यकाल देने का प्रश्न कहाँ से ?
जैसा कि बसपा प्रमुख मायावती सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं कि आर एस एस कार्यकर्ताओं ने मोदी की भाजपा के लिए प्रचार नहीं किया है । ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा को बहुमत मिलने की दशा में मोदी - शाह जोड़ी को हटाना संभव नहीं और इस जोड़ी का दोबारा सत्तासीन होना आर एस एस के भविष्य के लिए सुखद नहीं। अतः भाजपा गठबंधन के पुनः सत्तासीन होने का प्रश्न नहीं है सत्ता का लाभ लेकर चाहे एक्जिट पोल्स जितने भी अपने पक्ष में करा लिए हों मोदी सरकार का सत्ताच्युत होना संभावित है।
कारपोरेट वैसे ही सत्तारूढ़ सरकार का विरोध नहीं करता है जब तक पूर्ण आश्वस्त न हो कि वह सरकार जाने वाली है। रतन टाटा आर एस एस प्रमुख के साथ दो बार बैठक कर चुके हैं। महेन्द्रा ग्रुप के एक प्रमुख व्यक्ति द्वारा क्षेत्रीय पार्टियों के नेतृत्व की सरकार का भी स्वागत करने का बयान यों ही व्यर्थ नहीं हो सकता। राजनीतिक दल भले ही जन हित न देख कर मोदी का साथ देने को तत्पर हों परंतु कारपोरेट को अब मोदी से कोई लाभ नहीं दीखता अतः वे उनको हटाने हेतु कटिबद्ध है।
यह आसन्न चुनाव परिणामों की ही धमक है जो इनकी हेकड़ी ढीली पड़ गई।
इन परिस्थितियों में कमर्शियल लाभ के लिए जारी किए गए एक्जिट पोल्स से अलग चुनाव परिणाम आने की प्रबल संभावनाएं हैं।
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~विजय राजबली माथुर ©
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