Rajanish Kumar Srivastava
#C.A.A.# यानी *अपनो पे सितम गैरों पर करम*
जब विभाजन का दंश झेल भारत आजाद हुआ तो बहुत सारे हिन्दू और सिखों ने इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान को छोड़ कर सेकुलर भारत को तरजीह देते हुए भारत आना और भारत का नागरिक बन देश की सेवा करना स्वीकार किया और अपनी हवेली,खेत और सम्पत्ति सब कुछ पाकिस्तान में छोड़कर भारत में गरीबी का जीवन स्वीकार किया और भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।लेकिन लगभग दो करोड़ हिन्दू और सिखों ने अपनी सम्पत्ति के लालच में कट्टर इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान को ही अपना मादरे वतन कुबूल करना मुनासिब समझा।हालाँकि कट्टर इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान से सेकुलर भारत जैसी उदारता की उम्मीद तो की भी नहीं जा सकती थी।लिहाजा उन पर अत्याचार तो हुए।अब सवाल यह है कि सम्पत्ति के लालच में कट्टर इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान को अपना मादरे वतन कुबूल करने का गलत निर्णय लेने वाले लोगों को रिकार्ड बेरोजगारी और दुनिया के सबसे ज्यादा गरीबों का पहले से ही बोझ ढ़ोने वाले भारत को बोझ बर्दाश्त कर अपने मूल नागरिकों का हिस्सा उनमें बाँट देना चाहिए? इस पृष्ठभूमि में नागरिकता संशोधन विधेयक -2019 को इस कहानी से समझें-----↓
*******कहानी*****
एक गरीब व्यक्ति अपने वृद्ध माता और पिता के साथ किसी तरह अपने पाँच बच्चों को पाल रहा था।बच्चे कुपोषण के शिकार थे और बेरोजगार भी थे।तभी उस गरीब व्यक्ति के वृद्ध पिता को अपने से भी ज्यादा गरीब पड़ोसी के पाँच बच्चों पर इस कारण से दया आ गयी कि उनकी सौतेली माता उन्हें बहुत प्रताड़ित करती है।अतः उसने अपने गरीब पुत्र को दया के वशीभूत आदेश दिया कि वह पड़ोसी के इन प्रताड़ित पाँचों बच्चो को गोद ले ले।गरीब व्यक्ति घबरा गया कि जब वह अपनें ही पाँच बच्चों का ठीक से पालन पोषण नहीं कर पा रहा है और न ही उन्हें रोजगार दिला पा रहा है तो ऐसी दशा में वह पड़ोसी के पाँच और बच्चों को कैसे गोद ले ले।उधर उस गरीब व्यक्ति के पाँचों बच्चों ने भी अपने बाबा के गोद लेने वाले आदेश के खिलाफ बगावत कर दी ।क्योंकि उनको भय हो गया कि गोद लेने की दशा में पड़ोसी के ये पाँच गोद लिए बच्चे भी उनकी छोटी सी जमीन और घर के हिस्सेदार हो जाएँगे और पिता की कमाई का बहुत थोड़ा सा हिस्सा अब इनके पालन पोषण पर भी खर्च हो जाएगा।....... अब आप ही फैसला करें कि पहले से कुपोषित,गरीब और बेरोजगार पाँचो सगे पुत्रों की बगावत सही है या गलत।
~विजय राजबली माथुर ©
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