With_u_Navendu
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◆ देख लीजिये...जनाधार की राजनीति क्या होती है, इस वीडियो रिपोर्ट से आपको पता चल जायेगा। जनता का मेला था- और जैसे उमड़ पड़ा हो कोई जनसमुद्र!
● मुलायम कोई प्रधानमंत्री तो नहीं थे। न नेहरू थे। न गांधी थे। न शहीदे-आज़म भगत सिंह। ना ही भारत को "दूसरी आज़ादी" दिलाने वाले लोकनायक जयप्रकाश। तो फिर क्यों मुलायम के निधन पर दलीय दीवार टूटती दिखाई दी। क्यों लालू प्रसाद की पार्टी राजद के राष्ट्रीय अधिवेशन में सपा नेता "मुलायम अमर रहें" के नारे हज़ारों-हज़ार लोग लगा रहे। क्यों पीएम मोदी हों या लालू प्रसाद अपनी सभा में मुलायम की गौरवगाथा सुना कर अपना शोक जगजाहिर कर रहे थे?
● मुलायम- लालू को समझियेगा तो समझ में आएगी लेफ्ट और आरएसएस के कैडर आधारित राजनीतिक दलों की संरचना और दर्शन से इतर भारत में "जनाधार की राजनीति" की ताकत और उसका दर्शन। समाजवाद की कसौटी पर इसे शुध्द समाजवादी राजनीति न भी मानें तो इतना मानना तो पड़ेगा कि सत्ता-समाज-राजनीति में "संख्या भारी तो उतनी हिस्सेदारी" और "सामाजिक न्याय के साथ विकास" की भूख ही इस जनाधार की राजनीति का मूल आधार है।
● बहुसंख्यक जनता की यही भूख मुलायम और लालू जैसे नेता और लोहिया के बुनियादी राजनीति को जन्म देती है। ऐसी राजनीति जो कैडर आधारित राजनीति के मुक़ाबिल एक ताक़त दिखती है। इसे "पिछड़ा उभार" कह कर भले अलगा दें पर है ये जनता के वंचित पीड़ित ज़मात की राजनीति का विस्फोटक व्याकरण। यही वज़ह है कि राजनीतिक सक्रियता के मामले में शिथिल निस्तेज हो चुके मुलायम सिंह यादव के देहावसान पर शोक विलाप भी किसी विस्फोटक जन आंदोलन के नारे के बतौर सुनाई और दिखाई देता लगता है।
● "धार्मिक उन्माद" और "हिंदुत्वा राष्ट्रवादी ब्रांड" की सत्ता-राजनीति के इस दौर में किसी "सेकुलर छवि" वाले नेता की मृत्यु पर जनता का हाहाकार और जुटान, राजनीति की कई समझ और संकेत देता है। इस संकेत को समझे बिना सत्ता को भले हांक ले कोई पार्टी या संगठन, सर्व समाज और सर्वजन को नहीं हांक सकता कोई महाबली या राष्ट्रबली!!
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