Thursday, October 28, 2010

पूजा क्या ,क्यों और कैसे ? ------ विजय राजबली माथुर

यह धन और धरती बंट क़े रहेगी ,भूखी जनता अब चुप न रहेगी .नारे लगाने वालों क़े मत क़े प्रणेता कार्ल मार्क्स महर्षि चार्वाक से प्रभावित थे . चार्वाक परमात्मा को नहीं मानते थे और उन्होंने कहा था -"जब तक जियो मौज से जियो ;घी पियो चाहे उधार ले क़े पियो ."इसी प्रकार कार्ल मार्क्स ने कहा "man has created the god for his mental security only ."परन्तु विश्व का बहुमत परमात्मा को मानता है चाहे वह खुदा कहता हो अर्थात वह शक्ति जो खुद ही बनी है उसे किसी ने बनाया नहीं है चाहे god कहे जिसका अभिप्राय ही generate ,operate ,destroy से है .हम भारतीय उस शक्ति को परमात्मा कहते हैं जिसने स्वंयअपना नाम ओ३म  बताया है .परमात्मा ने मनुष्य रूपी प्राणी का नाम कृतु रखा है अर्थात कर्म करने वाला .मनुष्य शरीर में आत्मा को कर्म करने की छूट है ,अन्य योनिओं में आत्मा केवल भोग ही भोगता रहता है .मनुष्य कहा ही इसलिए जाता है क्योंकि यह मननशील  प्राणी है जो अपने बुध्दी व विवेक से मनन करता हुआ कर्म करता है .कर्म तीन प्रकार क़े होते हैं ---सद्कर्म ,दुष्कर्म और अकर्म .सद्कर्म का फल अच्छा ,दुष्कर्म का बुरा फल और अकर्म का दण्ड मिलता है .अकर्म का अर्थ है वह ड्यूटी ,दायित्व या फ़र्ज़ जो किया जाना चाहिए था परन्तु किया नहीं गया .हालाँकि यह सद्कर्म या दुष्कर्म तो नहीं है परन्तु इस अकर्म से दूसरे प्राणी का जो अहित हुआ वह परमात्मा की निगाह में दण्ड  का भागीदार बना देता है .जब कर्मों क़े अनुसार फल मिलना ही है तो फिर परमात्मा को याद क्यों किया जाये ?यह प्रश्न स्वभाविक है .हमें यह मनुष्य  शरीर परमात्मा की कृपा से मिला है जिसमे हमें कर्म करने की छूट मिली है ,इसलिए परमात्मा को धन्यवाद देने हेतु हमें उसकी उपासना अथवा उसकी पूजा करनी चाहिए .पूजा वह विधि है जिससे परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त किया जा सकता है .यों तो परमात्मा सर्वत्र है हमारे शरीर में भी है परन्तु उसका ध्यान करना ,उसे याद करना ही पूजा कहलाता है .

वास्तविक पूजा कैसे हो ?                 

पूजा परमात्मा का ध्यान करने की विधि है और परमात्मा को धन्यवाद देने हेतु की जाती है परन्तु इसे कैसे करें -इस विषय में घोर मतभेद ,व्यापक विवाद एवं अनेकों भ्रांतियां हैं .तरह -तरह क़े लोगों ने अपनी सुविधा और इच्छा से तरह -तरह की पूजा विधियाँ गढ़ ली हैं .कोई मानस पाठ करा रहा है ,कोई भागवद पाठ ,कोई गीता पाठ ,कोई देवी जागरण ,कोई सुन्दर काण्ड पाठ ,कोई कुरआन की अज़ान दे रहा है तो कोई बाईबिल से प्रयेर कर रहा है .परन्तु ये सभी पधितियाँ अवैज्ञानिक हैं और उनसे परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है .जिस प्रकार किसी संस्था क़े निर्माण क़े समय पहले उसका विधान तैयार किया जाता है उसी प्रकार सृष्टी निर्माण क़े समय परमात्मा ने भी सृष्टी -संचालन हेतु सृष्टी क़े निर्माण क़े ही साथ विधान प्रस्तुत किया है जिसे हम वैदिक -ज्ञान कहते हैं .पूर्व सृष्टी की प्रलय क़े समय मोक्ष -प्राप्त आत्माओं में से श्रेष्ठ को परमात्मा ने इस सृष्टी का विधान प्रस्तुत करने हेतु इस पृथ्वी पर भेजा जिन्होंने ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद की रचना की है .इन वेदों में गूढ़ ज्ञान -विज्ञान क़े साथ -साथ परमात्मा से सान्निध्य स्थापित करने का ज्ञान भी बताया गया है .

वेदों में बताया गया है -परमात्मा का मुख अग्नि है .अग्नि में मंत्रोच्चार क़े साथ डाले गए पदार्थ वायु की सहायता से परमात्मा तथा सभी जड़ देवताओं तक पहुंचा दिए जाते हैं .अग्नि का गुण है पदार्थ को सूक्ष्म परमाणुओं (Atoms )में परिवर्तित कर देना और वायु उनको सम्बंधित तक पहुँचाने का कार्य करता है .हवन में डाली गई जडी -बूटियाँ ,बूरा ,गूगल ,घी ,किशमिश तथा आम की समिधा टी .बी .,टायफायड़ आदि विभिन रोगों क़े कीटाणुओं (BACTARIAS )को नष्ट करने का कार्य करते हैं .इससे पर्यावरण शुद्ध होता है और डाले गए पदार्थों का पचास प्रतिशत भाग नासिका क़े माध्यम से धूम्र -चिकित्सा (SMOKE TREATMENT )द्वारा हवन पर बैठे मनुष्यों को तुरन्त मिल जाता है शेष पचास प्रतिशत जन -कल्याण हेतु पुण्य क़े रूप में संचित हो जाता है .हवन करने से पहले परमात्मा से प्रार्थना की जाती है .प्रार्थना क़े वैज्ञानिक महत्त्व को अब   अमेरिकी चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार कर लिया है .८ सितम्बर २००३ को दैनिक जागरण ने प्रकाशित किया था कि सन १९६५ ई .में माउन्ट एवरेस्ट फतह करने वाले कैप्टन एम् .एस .कोहली ने अपनी पुस्तक " मिराकल आफ अरदास इनक्रेडिबल सर्वाइवर्स एंड एडवेंचर्स " में रहस्योदघाटन किया है कि अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कुछ मरीजों क़े लिए दुआएं (प्रार्थनाएँ )कराईं तो यह सिद्ध हुआ कि जिन मरीजों का आपरेशन हुआ था और उनके लिए दुआ की गई उनके ठीक होने की रफ़्तार पचास से सौ प्रतिशत बढ़ गई .

महाभारत काल क़े बाद हमारी प्राचीन वैज्ञानिक हवन की पूजा पद्धति को छोड़ कर अन्य विकृत और अवैज्ञानिक पूजा पद्धतिओं को विकसित किया गया है और उसी का दुष्परिणाम हम सब भुगत रहे हैं .पोंगापंथी कर्मकांडियो ने हवन को ढकोसला बना कर रख दिया है और उपयुक्त तथा उचित प्रार्थनाओं को महत्त्व न देकर जनता को दिग्भ्रमित करके अपना उल्लू सीधा करते हैं .

यदि हम वैज्ञानिक पूजा (हवन )प्रारम्भ करने से पूर्व वैज्ञानिक विधि से प्रार्थना भी करें तो की गई प्रार्थनाओं क़े आधार पर परमात्मा मनुष्य की बात उसी प्रकार स्वीकार करता है जिस प्रकार माता -पिता अपने बच्चे क़े अनुनय -विनय को स्वीकार कर लेते हैं .यदि हम परमात्मा क़े गणपति रूप से रक्षा ,स्वास्थ्य आदि की प्रार्थना ,विष्णु स्वरूप से कल्याणकारी पालन की प्रार्थना तथा शिव स्वरूप से दीर्घायु और उत्तम जीवन -यापन की प्रार्थना हवन से पूर्व कर लें तो उस हवन द्वारा प्राप्त होने वाला सुफल द्विगुणित  हो सकता है .परन्तु आज क़े आपा -धापी क़े युग में लोग तीन घंटे पिक्चर हाल में बैठ सकते हैं ,सारी -सारी रात डिस्को पार्टी में बैठ सकते हैं ,न तो उनके पास प्रार्थना और हवन में बैठने का समय है न ही पोंगापंथियों  द्वारा अपना दायित्व निर्वहन किया जा रहा है ---परिणाम परिवारों ,समाज और राष्ट्र क़े विघटन क़े रूप में सामने है .हम मनुष्य हैं क्या हम मनन करेंगे कि पुनः अपनी प्राचीन पूजा (हवन )और प्रार्थना को अपना कर जीवन को सुखमय बना सकें ?


(यह आलेख पहली दफा २००३ में कायस्थ -सभा ,आगरा की त्रेमासिक पत्रिका "प्रेरणा "में फिर दूसरी बार  वैश्य -समुदाय की मांग पर उनकी त्रेमासिक पत्रिका "अग्र मन्त्र "क़े मई -जुलाई २००४ अंक में प्रकाशित हो चुका है .ब्लाग -जगत क़े जागरूक साथियों  क़े हितार्थ पुनः प्रकाशित किया जा रहा है .अगले अंकों में स्तुतियों को देने 
का प्रयास करेंगे )


(डॉ.दाराल की नेक टिप्पणी क़े बाद यह कटिंग लगा दी गयी है.) 



(इस वीडियो में आप विदेशियों को गायत्री मन्त्र का पाठ करते भी देख सकते हैं)
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फेसबुक पर प्राप्त कमेंट्स ::
16-07-2016 

8 comments:

डॉ टी एस दराल said...

हवन यानि वैज्ञानिक पूजा --बहुत प्रभावशाली सत्य कहा है आपने ।
हवन की महत्ता को आज लोग भूले जा रहे हैं और ढकोसलों में ज्यादा पड़ रहे हैं ।

अत्यंत सार्थक लेख ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

pooja...prarthana ko itne chhe samjhane ke liye aabhar..... mera khud ka prarthana aur uske asar me poora vishwas hai....

vijai Rajbali Mathur said...

डॉ.दाराल साः और मोनिका जी,
धन्यवाद आप लोगों की राय क़े लिए. डॉ.दाराल साहब आपने बहुत सही कहा कि अब लोग हवन को भूलते जा रहे हैं;इसी लिए विदेशी अब हमें हवन सिखाने आ रहे हैं.आप क़े पॉइंट आउट करने क़े बाद हमने 'हिन्दुस्तान;आगरा में छपी खबर की कतरन पोस्ट में बढ़ा दी है.आप की राय हमारे लिए काफी अमूल्य रही पुनः धन्यवाद!

BrijmohanShrivastava said...

वैसे आम लोग इसका महत्व समझने लगे हैं आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने एक उदाहरण देकर समझाया था कि एक मिर्च जिसे एक व्यक्ति खायेगा उसी पर असर होगा अगर उसे पीसी जाये जो दस लोग प्रभावित होंगे और अगर उसे जलाई जाये तो सैकडों लोग । यज्ञ चिकित्सा एक किताव भी निकाली गई थी । किन्तु दिक्कत वहां होती है जब अनेक प्रकार के दावे किये जाकर मजाक उडवाया जाता है । एक यज्ञ हुआ था यज्ञ कर्ता का चेलेन्ज था कि हवन समाप्त होते होते पानी बरसने लगेगा । नहीं बरसा । टीवी ने भी समाचार दिखाया बहुत पुरानी बात है। लोगो ने हंसी भी उडाई मुझे आज तक याद है।

Patali-The-Village said...

बहुत प्रभावशाली सत्य कहा है आपने ।

vijai Rajbali Mathur said...

Patali -The Village ,
धन्यवाद आपकी सकारात्मक सोच के लिए .
ब्रिज मोहन श्रीवास्तव सा :,
आपने ध्यान से पोस्ट नहीं देखा तभी ऐसा कहा ,मैंने स्वंय ढोंगियों के प्रति आगाह किया है .आपकी आशंकाओं और सवालों का समाधान दीपावली पर पोस्ट -भारत की भाग्य लक्ष्मी क्यों रूठी ?में देने का प्रयास किया जायेगा .

Alpana Verma said...

सही लिखते हैं ...योग -योगा बनकर वापस भारत आया तो असर देखिये!//अब हवन/मन्त्र आदि भी वहीँ से आयेंगे वापस अपने यहाँ तब महत्व समझ आएगा हमें..

Dr.J.P.Tiwari said...

माथुर साहब!आपके तर्कपूर्ण विचार से पूरी तरह सहमत. आपने बिल्कुल ठीक कहा यह ट्रीटमेंट है, प्रकृति का शोधन है. डॉ असल जिसे हम आज ओजोन लायर के नाम से जानते है उसकी खोज भारतियों ने बहुत पहले कर ली थी और उसे प्रतीकों में बताया था, कहानियों द्वारा समझाया था. जिस कहानी को हम वृतासुर के नाम से जानते हैं वह वही है. वृत्तासुर अर्थात वृत्त , गोलाई में घेरा हुआ असुर. उससे इन्द्र लड़ता है. इन्द्र एक दिक् पाल है, इस तरह आठ दिक्पालों में वह एक है, लेकिन प्रमुख होने के नाते उसका संबोधन सबका संबोधन हो. वह सोम पान करता है, बलवान बनता है और वृत्तासुर का नाश कतरा है. सोम को ऊपर वायु मंडल तक पहुचाने का कार्य प्रणाली, विधा यह यज्ञ है. आज भी रॉकेट नोदक प्रणाली द्वारा ऊपर भेजा जाता है. यज्ञ वही नोदक की भूमिका अदा करता है.यह जगत 'अग्नि -सोमात्म्कम' है. अग्नि और सोम का संतुअल है. हम वातावरण में सोम, अतिरिक्त सोम को प्रेषित कर संतुलन स्थापित करते हैं. सोम के अभाव में ओजोन में छिद्र है, सोम की प्रचुरता में लायर स्वस्थ है. लायर का स्वस्थ बना रहना इन्द्र की जीत है. छिद्र का दिखाई पड़ना वृत्तासुर की सक्रियता है. वैसे इस पर एक स्वतंत्र आर्टिकल लिखने की सोच रहा हूँ. आपको धन्वाद प्रेरित करने के लिए......