Tuesday, December 21, 2010

श्रीराम की सफल कूट नीति



हाराज दशरथ क़े पुत्र मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम का आविर्भाव एक ऐसे समय में हुआ था जब भारत क़े आर्यावर्त और जम्बू द्वीप खंडों में विभिन्न छोटे छोटे राज्य परस्पर संघर्षरत थे और महा साम्राज्यवादी रावण सम्पूर्ण विश्व में एक छत्र वर्चस्व स्थापित करने को लालायित था.जैसाकि पाश्चात्य इतिहासकारों ने कुप्रचारित किया है कि रावण द्रविड़ संस्कृति का वाहक था वह सर्वथा गलत है.वस्तुतः रावण वेदों का प्रकांड पंडित और आर्य संस्कृति का ध्वजा वाहक था और प्रवासी आर्यों का सिरमौर भी इसलिए वह अपने को रक्षस कहता था.रक्ष धातु का अर्थ है रक्षा और रक्षस का अभिप्राय हुआ आर्य सभ्यता और संस्कृत की  रक्षा करने वाला.कालांतर में यही रक्षस अपभ्रंश होकर राक्षस कहा जाने लगा.त्रिवृष्टि(वर्तमान तिब्बत) से आर्ष-आर्य श्रेष्ठ संस्कृति का उद्भव व विकास हुआ और उत्तर भारत में विंध्यांचल तक क़े क्षेत्रों में फ़ैल गयी जिस कारण इस क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाने लगा.दक्षिण भारत का त्रिभुजाकार क्षेत्र जो जम्बू द्वीप कहलाता था समुद्र क़े पटाव से और प्राकृतिक परिवर्तनों क़े आधार पर आर्यावर्त से जुड़ गया और यहाँ भी आर्य संस्कृति का प्रचार एवं विकास हो गया.इस प्रकार सम्पूर्ण भारत को आर्य बनाने क़े बाद आर्य मनीषियों क़े प्रचारक दल विदेशो में भी आर्य सभ्यता और संस्कृति का प्रसार करने हेतु भेजे गये.कामरूप आसाम स्वर्ण देश (बर्मा या म्यांमार ) होते हुए साईबेरिया -अलास्का मार्ग से मय और तक्षक ऋषि क़े नेतृत्व में उत्तर पूर्व से एक दल गया.तक्षक ऋषि ने जहाँ पड़ाव डाला वह स्थान आज भी उनके नाम पर टेक्सास कहलाता है,यहीं पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जान ऍफ़.कैनेडी की ह्त्या की गयी थी. मय ऋषि अपने दल क़े साथ दक्षिण अमरीका क़े उस क्षेत्र में रुके जो आज भी मैक्सिको कहलाता है.पश्चिम क्षेत्र से गये ऋषियों का पहला पड़ाव  आर्यनगर ऐर्यान वर्तमान ईरान था.(ईरान का अपदस्थ शाह तक स्वयं को आर्यमेहर रजा पहलवी लिखा करता था.जो उसके पूर्वजों क़े आर्य होने का संकेत है.)यह दल मैसोपोटामिया (ईराक )होते हुए यूरोप में जर्मन तक पहुंचा.(एडोल्फ हिटलर तो स्वयं को शुद्ध आर्य कहा करता था और यूरोपीय इतिहासकारों ने मध्य एशिया अथवा जर्मन को ही आर्यों का उद्भव प्रदेश बता कर हमारे देश को विकृत इतिहास परोस दिया है) दक्षिण प्रदेश से पुलस्त्य मुनि क़े नेतृत्व में गया आर्य दल उस क्षेत्र में जा पहुंचा जो आज आस्ट्रेलिया कहलाता है.इनके पुत्र विश्र्वा मुनि में राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जाग उठीं और उन्होंने वहां शासन स्थापित कर लिया.उनके तीन पुत्र थे-कुबेर,रावण,और विभीषण.रावण ने विभीषण को मिलाकर सत्ता पर अधिकार करके कुबेर को भगा दिया जो प्रयाग क़े भारद्वाज मुनि (जो उसके नाना थे)क़े पास पहुंचा.भारद्वाज मुनि ने कुबेर को स्वर्ग लोक  (वर्तमान हिमाचल प्रदेश) का शासक बना दिया.रावण ने व्यापारिक साम्राज्य फैलाते हुए वर्तमान लंका प्रदेश पर अधिकार कर लिया और सत्ता का केंद्र इसे ही बना दिया.(विश्व व्यापार हेतु यह क्षेत्र उत्तम सफलता का है और इसी कारण अमरीका ने डियागोगर्शिया में अपना सैन्य अड्डा कायाम किया है) यहाँ क़े शासक सोमाली को भगा दिया गया जो आस्ट्रेलया क़े पास पड़े उस निर्जन प्रदेश में बस गया जो अब उसी क़े नाम पर सोमाली लैंड कहा जाता है.छः माह क़े लम्बे संघर्ष क़े बाद रावण ने वानर-प्रदेश (आंध्र) क़े शासक बाली से यह फ्रेंडली एलायंस किया कि एक दूसरे पर आक्रमण होने की दशा में वे परस्पर सहयोग करेंगे और उसने दक्षिण भारत से हो कर सीढी बना कर स्वर्ग लोक (हिमाचल) पहुँचने का विचार त्याग दिया,अब रावण ने कुबेर को पकड़ने हेतु कांधार क्षेत्र से आर्यावर्त में घुसने का प्रयास किया और यहाँ भीषण देवासुर संग्राम चले.हमारे आर्य ऋषि मुनियों ने परस्पर संघर्षरत आर्य राज्यों क़े एकीकरण व सहयोग का बीड़ा उठाया और उसमे उन्हें सफलता भी मिली.अयोध्या क़े शासक दशरथ भी इस संग्राम में पहुंचे और कैकेय प्रदेश की राजकुमारी कैकयी से उनका विवाह सम्पन्न कराकर आर्य ऋषियों ने दो आर्य राज्यों को रिश्तों क़े सूत्र में बाँध दिया.जनक मिथिला क़े शासक थे और उनका भी दशरथ से शत्रुत्व था जिसे उनकी पुत्री सीता से दशरथ पुत्र राम का विवाह कराकर दूर किया गया.आर्यावर्त को एकीकरण क़े सूत्र में पिरोकर दक्षिण को भी मिलाने हेतु ऋषि योजना क़े अनुकूल राष्ट्रवादी कैकेयी क़े माध्यम से राम को वनवास दिलाया गया.इस वनवास काल का प्रयोग श्री राम ने जम्बू द्वीप क़े आर्यों को उत्तर भारत क़े आर्यावर्त से जोड़ने का कार्य किया.एक बाधा सिर्फ बाली की रह गयी जिसका रावण से पूर्व में ही फ्रेंडली एलायंस हो चुका था.श्री राम ने कूटनीति (DIPLOMACY) का सहारा ले कर बाली क़े भाई सुग्रीव को अपनी ओर मिलाया और छिपकर बाली का वध कर दिया.(यदि घोषित युद्ध होता तो रावण बाली की मदद को आ जाता और तब संघर्ष भारत भू पर ही होता).सुग्रीव को किष्किन्धा का शासक बना कर उसके विरूद्ध बाली पुत्र अंगद की संभावित बगावत को टालने हेतु बाली की विधवा तारामती (जो सुषेन वैद्य की पुत्री और विदुषी थी) से करा दिया जो की नियोग की वैदिक पद्दति क़े सर्वथा अनुकूल था और देवर से भाभी का विवाह कराकर श्री राम ने कोई अनर्थ नहीं किया था बल्कि आर्य संस्कृति का ही निर्वहन किया था.इसके बाद रावण क़े भाई विभीषण को श्री  हनुमान की मदद से मिलाकर और लंका की फ़ौज व खजाना ध्वस्त करने क़े बाद लंका पर चढ़ाई की.रावण क़े संहार क़े साथ साम्राज्यवाद का उन्मूलन किया और यहाँ भी विभीषण को सत्ता सौपने क़े उपरान्त रावण की विधवा मंदोदरी से विभीषण का विवाह नियोग पद्दति से करा दिया.श्री राम ने एक सफल कूटनीतिक प्रयोग करते  हुए भारत भूमि को साम्राज्यवाद क़े चंगुल से  भी मुक्ति दिलाई तथा सम्पूर्ण भारत का एकीकरण किया इसीलिए आज नौ लाख वर्षों बाद भी वह हमारे देश में पूजनीय हैं,वन्दनीय हैं,स्तुत्य हैं और उनका जीवन अनुकरणीय है.प्रत्येक राष्ट्रवादी को श्री राम का चरित्र अपनाना चाहिए.      





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(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

3 comments:

डॉ टी एस दराल said...

बहुत खूब माथुर जी । आपने रामायण के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालकर बहुत उपयोगी जानकारी प्रदान की है ।
आर्यों के बारे में इतना विस्तार से जानना अच्छा लगा ।
संग्रहणीय पोस्ट ।

Alpana Verma said...

बहुत ही अच्छा लेख.कई नयी जानकारियाँ मिलीं.

लिखने के लिए काफी शोध किया गया है.बेशक ,यह एक संग्रहणीय पोस्ट है.

vijai Rajbali Mathur said...

डा.दराल सा :एवं अल्पना वर्मा जी ,
धन्यवाद आपके इन सद्विचारों के लिए कि,आपने इस पोस्ट को संग्रहणीय माना है.
जी हाँ विद्वानों के प्रवचनों तथा समाचार-पत्रों में छपी शोद्धों का संकलन करके ही आप सब तक यह लेख पहुंचा सका हूँ.शीघ्र ही "रावण-वध एक पूर्व-निर्धारित योजना" ४ किश्तों में (इसी ब्लाग पर २ भागों में पहले से है) प्रस्तुत करूंगा.उसी के आधार पर यह लेख था.