रतन टाटा को त्रिशंकु बना दिया है। कुछ उन्हें अतिरिक्त महान बनाने पर तुले हैं ,कुछ उन्हें इस अतिरिक्त महानता से नीचे खींचकर उनकी पोल पट्टी खोलकर नीचे उतारने पर ।वे विशुद्ध उद्योगपति ही थे । सारे समझौते उन्होंने भी किए होंगे। अब सो गए तो सोने दो। सारी जमा पूंजी यहीं रह गई ये सोचने वाली बात है । अदानियों खदानियों की भी यहीं रहनी है। अच्छाई और बुराई मरने पर भी साथ नहीं छोड़ती । अगर हम झर से झरने वाले नमक के बजाय डली का नमक खाते तो वह क्या बुरा था ? आधी जनता को थायराइड हो गया । पहले किसी को न था । उद्योगपतियों ने साफ, नकली ,मिलावटी घी ,तेल, दूध, डालडा , दवा आदि से बीमार बना डाला। सुई से लेकर जहाज तक भी बनाए ।अच्छी चीज़ के साथ में बुरी भी आती है । पूर्ण शुद्ध कोई नहीं ।न हम, न तुम, न टाटा ।बस परिमाण का अंतर है ।मिलावट नमक जितनी हो तो चलती है । हम तो उनकी नैनो पर फिदा थे । उनके बारे में एक पोस्ट पर यह भी पढ़ा ।जो रतन टाटा प्रेमियों की आँखें मेरी आँखों की तरह फ़ाड़ देगा।मेरे दिमाग में उनकी अन्य से थोड़ी सी बेहतर छवि रही ।
दिगंबर जी की पोस्ट पर अजित पाटिल का ये कमेंट देखिए
Digamber पढ़ी हम तो नैनो पर ही फिदा थे ।वे अपनी।
टिप्पणी डिलीट कर गए ये वाली
[10/10, 10:26] Ajit Patil: मरने के बाद महान बनाने की जो रेस चलती है उसकी स्पीड सुपरसोनिक या रॉकेट से भी तेज़ होती है । रतन टाटा चले गये , जाना सबको है । लेकिन यही टाटा साहब की नैनों जब बंगाल के सिंगुर से गुजरात के सानंद तक पहुँची तो क्या - क्या नहीं हुआ ?.... उसके बाद मोदी की मार्केटिंग का ठेका रतन टाटा ने अपने कंधों पर लिया तथा वाइब्रेंट गुजरात और गुजरात मॉडल की मार्केटिंग करी । देश के बड़े टाइकून को गुजरात लाया गया , कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई और क़ातिलो को स्टेटसमैन साबित करने की चालाकियां शुरू किया गया ... याद है कि नहीं ? ... बाक़ी , कलिंगनगर उड़ीसा से लेकर कुसुमा के जंगलों तक के आदिवासियों से पूछ लीजिएगा , उनकी गोली , उनकी बंदूक़ की ताक़त के बारे में । इसके बाद भी दिल ना भरे तो इस वक़्त फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ जो कंपनी इसराइल को माल सप्लाई कर रही है उसकी भी लिस्ट देख लीजिएगा । शोक व्यक्त करना हो , शौक से करिए , लेकिन महान बनाने के इतने जोश में ना आइये .... इनका आधुनिक इतिहास , जमशेदपुर का आधुनिक इतिहास , चीन के साथ अफ़ीम के व्यापार का इतिहास ...... वगैरह तो सब कुछ भूल ही जाइए फिलहाल ..... यह सब आप बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे शायद ...
[10/10, 10:26] Ajit Patil: क्या कोई गैर शोषक, गैर लुटेरा, कल्याणकारी, संत पूंजीपति भी होता है, या हो सकता है?
“Capital comes dripping from head to foot, from every pore, with blood and dirt.” - Marx
("पूंजी के सिर से पैर तक, हर छिद्र से, खून और गंदगी टपकती है।”)
अजित पाटिल
अगर आत्मा सोचती देखती है तो क्या सोच रहे होंगें ।वो तो जो सोचेंगे सोचेंगे पढ़कर अदाणी खदानी क्या सोचेंगें ।मगर उन्हें अभी सोचने की फुरसत नहीं जब जाएंगे तब सोचेंगें ।हम सभी जीवित रहते सोचते ही कहाँ है।
सिद्धांत सहगल साहब एक सुविख्यात ज्योतिषी हैं अक्सर विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं और कभी - कभी मैं उनके पोस्ट्स को शेयर कर लेता हूँ। अभी नवीनतम उनके पोस्ट पर उनके यहाँ महिलाओं ने भी उनका समर्थन किया है लेकिन मेरे द्वारा शेयर की गई पोस्ट पर इसको स्त्री द्वेष की संज्ञा दे दी गई है।
अतः यह आवश्यक हो जाता है कि, मुझे स्पष्ट करना चाहिए कि, स्त्री द्वेषी पुरुष नहीं खुद स्त्रियाँ ही होती हैं। उदाहरणार्थ आतिशी जी के र्दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने का विरोध स्वाती मालिवाल जी द्वारा किया गया है किसी पुरुष द्वारा नहीं। अनेकों ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जहां स्त्रियों द्वारा ही स्त्रियों से द्वेष ही नहीं दुश्मनी की जाती है।
सन 2000 से 2002 के मध्य दयालबाग,आगरा के सरलाबाग में मैं ज्योतिष कार्यालय चला रहा था उस समय मुझे कई महिलाओं के जन्म -पत्र और हस्त अवलोकन का अवसर मिला है। मेरे पास एक महिला अपने जेठ साहब की पुत्री को लेकर आईं और कहा इनका तलाक करवा दीजिए । मैंने उन महिला से कहा कि आप साथ जरूर लाई हैं लेकिन अब आप हस्तक्षेप न करें और मुझे सीधे उनकी राय जानने दें । जी जी आई सी की उन शिक्षिका ने स्पष्ट कहा कि वह तलाक नहीं देना चाहतीं हैं उनकी चाची का ऐसा सुझाव है। इस मामले में स्त्री चाची के रूप में दूसरी स्त्री भतीजी के साथ न केवल द्वेष वरन दुश्मनी रख रही थी।
मेरे द्वारा बताए समाधान से उन शिक्षिका महोदया के पति साहब भी संतुष्ट हुए और जब उन्होंने अपना मकान बनाया मुझ से गृह प्रवेश की प्रक्रिया सम्पन्न करवाई थी फिर जब एक और मकान उन्होंने बनवाया उसमें भी मुझ से ही गृह प्रवेश की प्रक्रिया सम्पन्न करवाई ।
हो सकता है सिद्धांत सहगल साहब ने जन्म - पत्र विश्लेषण के दौरान जो अनुभव प्राप्त किए होंगे उनके आधार पर ही यह निष्कर्ष दिया हो। अपने अनुभव के आधार पर मैं उनसे सहमत हूँ इसलिए ही उनकी पोस्ट को शेयर किया था किसी स्त्री द्वेष के आधार पर नहीं।
सोशल मिडिया पर सारा दिन लम्बे लम्बे पुरुष विद्वेषी नारीवादी लेख आते हैं इन लेखों का सिर्फ एक ही उद्देश्य होता हैं , पुरुष कितना अत्याचारी है। हर बात में पुरुष का ही दोष है नारी कितनी बेचारी है , नारी कितना त्याग करती है। तब किसी को तकलीफ नहीं होती न नारी को न किसी पुरुष को , क्योंकि ऐसे नारीवादी लेख पुरुष ही ज्यादा लिखते हैं , ऐसा वो तीन कारणों से करते हैं
१- लाइक कमेंट ज्यादा आते हैं , पोस्ट वायरल होती है
२- नारियों की गुड लिस्ट में जगह मिलती है
३- तीसरा कारण बहुत गन्दा है जिसे स्त्री समझ नहीं पाती , ऐसे नारीवादी पुरुष के हाथो की नारी ज्यादा प्रताड़ित होती है क्योंकि नारी की नजर में ये देवता का स्थान प्राप्त कर चुके होते हैं।
एक पोस्ट नारी की असलियत पर कोई लिख दे तो - नारी तो बिदकेगी ही -नारी वादी पुरुषो को सबसे ज्यादा आग लगती है।
सोशल मिडिया पर पुरुषों के समर्थन में इसलिए कोई पोस्ट जल्दी नहीं आती क्योंकि सब टूट पड़ते हैं उसपर।
लेकिन सबसे कटु सत्य यही है कि स्त्री विस्वाश के काबिल नहीं होती - जो करता हैं वो बर्बाद होता हैं - अपवाद हर जगह हैं। पर हकीकत यही हैं।
85% पुरुष हर साल स्त्री के हाथों छले जाने की वजह से आत्महत्या करते हैं - जहाँ स्त्री की आत्महत्या का % सिर्फ 35% है।
वैदिक पद्धति के अनुसार यजमान की दाईं ओर उसकी पत्नी का स्थान होता है लेकिन प्रस्तुत कार्यक्रम में यजमान की दाईं ओर प्रधानमंत्री हैं और उनकी दाईं ओर यजमान की पत्नी । पुरोहित महोदय क्या अनभिज्ञ थे ?
07 मई 1997 को निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन प्रधान न्यायाधीश द्वारा क्यों किया गया ?
1975 में आपात काल के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश कुँवर बहादुर अस्थाना साहब ने तमाम लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया था बिना सरकार के दबाव के आगे झुके हुए।
12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी के विरुद्ध फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब ने अपने कर्तव्य का पालन बिना डरे और झुके हुए किया था।
जगमोहन लाल सिन्हा साहब जब मेरठ में जिला न्यायाधीश थे और चौधरी चरण सिंह साहब उत्तर - प्रदेश के मुख्यमंत्री । चौधरी साहब के किसी खास व्यक्ति का केस सिन्हा साहब की अदालत में था उसके पक्ष में फैसला की चाहत लेकर चौधरी साहब मेरठ में सिन्हा साहब के सरकारी आवास पर मिलने गए थे।
सिन्हा साहब ने अर्दली के जरिए पुछवाया था कि, चौधरी चरण सिंह आए हैं या उत्तर -प्रदेश के मुख्यमंत्री ?
चौधरी चरण सिंह ने अर्दली से जवाब भिजवाया था कि, जज साहब से कह दो कि, " उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह आए हैं। "
सिन्हा साहब ने मुख्यमंत्री से मिलने से इनकार कर दिया , चौधरी चरण सिंह साहब को बिना मिले ही वापिस लौटना पड़ा था।
क्या सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चंद्र चूड़ साहब प्रधान मंत्री को अपने निजी कार्यक्रम में शामिल करने से इनकार नहीं कर सकते थे ?
26 जनवरी 1950 को लागू हुआ संविधान भारत की विविधता में एकता का परिचायक है। 1967 से इस पर प्रारंभ हुआ कटाक्ष 06 दिसंबर 1992 को संहारक रूप में सामने आया और 22 जनवरी 2024 को अप्रत्यक्ष रूप से इसके पटाक्षेप का प्रयास सम्पन्न हुआ किन्तु इकबाल साहब के अनुसार ' सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा ' और ' कुछ बात है कि हस्ती मिट्टी नहीं हमारी' । काली घटायें जरूर छँटेंगी और भारत अपने मौलिक स्वरूप को पुनः जरूर प्राप्त करेगा।
Tuesday, August 22, 2017
विविधता में एकता ही ' शिव ' अर्थात 'भारत ' देश है ------ विजय राजबली माथुर
"ॐ नमः शिवाय च का अर्थ है-Salutation To That Lord The Benefactor of all "यह कथन है संत श्याम जी पाराशर का.अर्थात हम अपनी मातृ -भूमि भारत को नमन करते हैं.वस्तुतः यदि हम भारत का मान-चित्र और शंकर जी का चित्र एक साथ रख कर तुलना करें तो उन महान संत क़े विचारों को ठीक से समझ सकते हैं.शंकर या शिव जी क़े माथे पर अर्ध-चंद्राकार हिमाच्छादित हिमालय पर्वत ही तो है.जटा से निकलती हुई गंगा -तिब्बत स्थित (अब चीन क़े कब्जे में)मानसरोवर झील से गंगा जी क़े उदगम की ही निशानी बता रही है.नंदी(बैल)की सवारी इस बात की ओर इशारा है कि,हमारा भारत एक कृषि -प्रधान देश है.क्योंकि ,आज ट्रेक्टर-युग में भी बैल ही सर्वत्र हल जोतने का मुख्य आधार है.शिव द्वारा सिंह-चर्म को धारण करना संकेत करता है कि,भारत वीर-बांकुरों का देश है.शिव क़े आभूषण(परस्पर विरोधी जीव)यह दर्शाते हैंकि,भारत "विविधताओं में एकता वाला देश है."यहाँ संसार में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र चेरापूंजी है तो संसार का सर्वाधिक रेगिस्तानी इलाका थार का मरुस्थल भी है.विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं तो पोशाकों में भी विविधता है.बंगाल में धोती-कुर्ता व धोती ब्लाउज का चलन है तो पंजाब में सलवार -कुर्ता व कुर्ता-पायजामा पहना जाता है.तमिलनाडु व केरल में तहमद प्रचलित है तो आदिवासी क्षेत्रों में पुरुष व महिला मात्र गोपनीय अंगों को ही ढकते हैं.पश्चिम और उत्तर भारत में गेहूं अधिक पाया जाता है तो पूर्व व दक्षिण भारत में चावल का भात खाया जाता है.विभिन्न प्रकार क़े शिव जी क़े गण इस बात का द्योतक हैं कि, यहाँ विभिन्न मत-मतान्तर क़े अनुयायी सुगमता पूर्वक रहते हैं.शिव जी की अर्धांगिनी -पार्वती जी हमारे देश भारत की संस्कृति (Culture )ही तो है.भारतीय संस्कृति में विविधता व अनेकता तो है परन्तु साथ ही साथ वह कुछ मौलिक सूत्रों द्वारा एकता में भी आबद्ध हैं.हमारे यहाँ धर्म की अवधारणा-धारण करने योग्य से है.हमारे देश में धर्म का प्रवर्तन किसी महापुरुष विशेष द्वारा नहीं हुआ है जिस प्रकार इस्लाम क़े प्रवर्तक हजरत मोहम्मद व ईसाईयत क़े प्रवर्तक ईसा मसीह थे.हमारे यहाँ राम अथवा कृष्ण धर्म क़े प्रवर्तक नहीं बल्कि धर्म की ही उपज थे.राम और कृष्ण क़े रूप में मोक्ष -प्राप्त आत्माओं का अवतरण धर्म की रक्षा हेतु ही,बुराइयों पर प्रहार करने क़े लिये हुआ था.उन्होंने कोई व्यक्तिगत धर्म नहीं प्रतिपादित किया था.आज जिन मतों को विभिन्न धर्म क़े नाम से पुकारा जा रहा है ;वास्तव में वे भिन्न-भिन्न उपासना-पद्धतियाँ हैं न कि,कोई धर्म अलग से हैं.लेकिन आप देखते हैं कि,लोग धर्म क़े नाम पर भी विद्वेष फैलाने में कामयाब हो जाते हैं.ऐसे लोग अपने महापुरुषों क़े आदर्शों को सहज ही भुला देते हैं.
"भक्ति" :
आचार्य श्री राम शर्मा गायत्री परिवार क़े संस्थापक थे और उन्होंने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा था -"उन्हें मत सराहो जिनने अनीति पूर्वक सफलता पायी और संपत्ति कमाई."लेकिन हम देखते हैं कि,आज उन्हीं क़े परिवार में उनके पुत्र व दामाद इसी संपत्ति क़े कारण आमने सामने टकरा रहे हैं.गायत्री परिवार में दो प्रबंध समितियां बन गई हैं.अनुयायी भी उन दोनों क़े मध्य बंट गये हैं.कहाँ गई भक्ति?"भक्ति"शब्द ढाई अक्षरों क़े मेल से बना है."भ "अर्थात भजन .कर्म दो प्रकार क़े होते हैं -सकाम और निष्काम,इनमे से निष्काम कर्म का (आधा क) और त्याग हेतु "ति" लेकर "भक्ति"होती है.आज भक्ति है कहाँ?
विकृति :
महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना धर्म में प्रविष्ट कुरीतियों को समाप्त करने हेतु ही एक आन्दोलन क़े रूप में की थी.नारी शिक्षा,विधवा-पुनर्विवाह ,जातीय विषमता की समाप्ति की दिशा में महर्षि दयानंद क़े योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता.आज उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज में क्या हो रहा है-गुटबाजी -प्रतिद्वंदिता .
काफी अरसा पूर्व आगरा में आर्य समाज क़े वार्षिक निर्वाचन में गोलियां खुल कर चलीं थीं.यह कौन सी अहिंसा है?जिस पर स्वामी जी ने सर्वाधिक बल दिया था. स्वभाविक है कि, यह सब नीति-नियमों की अवहेलना का ही परिणाम है,जबकि आर्य समाज में प्रत्येक कार्यक्रम क़े समापन पर शांति-पाठ का विधान है.यह शांति-पाठ यह प्रेरणा देता है कि, जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में विभिन्न तारागण एक नियम क़े तहत अपनी अपनी कक्षा (Orbits ) में चलते हैं उसी प्रकार यह संसार भी जियो और जीने दो क़े सिद्धांत पर चले.परन्तु एरवा कटरा में गुरुकुल चलाने वाले एक शास्त्री जी ने रेलवे क़े भ्रष्टतम व्यक्ति जो एक शाखा क़े आर्य समाज का प्रधान भी रह चुका था क़े भ्रष्टतम सहयोगी क़े धन क़े बल पर एक ईमानदार कार्यकर्ता पर प्रहार किया एवं सहयोग दिया पुजारी व पदाधिकारियों ने तो क्या कहा जाये कि, आज सत्यार्थ-प्रकाश क़े अनुयायी ही सत्य का गला घोंट कर ईमानदारी का दण्ड देने लगे हैं.यह सब धर्म नहीं है.परन्तु जन-समाज ऐसे लोगों को बड़ा धार्मिक मान कर उनका जय-जयकारा करता है.आज जो लोगों को उलटे उस्तरे से मूढ़ ले जाये उसे ही मान-सम्मान मिलता है.ऐसे ही लोग धर्म व राजनीति क़े अगुआ बन जाते हैं.ग्रेषम का अर्थशास्त्र में एक सिद्धांत है कि,ख़राब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है.ठीक यही हाल समाज,धर्म व राजनीति क़े क्षेत्र में चल रहा है.जबसे आर्यसमाज में संघ अनुयायी छा गए हैं आर्यसमाज दयानन्द सरस्वती के मार्ग से भटक गया है और इसी लिए उसमें उपरोक्त विकृति पनप सकीं .
दुनिया लूटो,मक्कर से.
रोटी खाओ,घी-शक्कर से.
एवं
अब सच्चे साधक धक्के खाते हैं .
फरेबी आज मजे-मौज उड़ाते हैं.
शिव : ज्ञान -विज्ञान का प्रदाता : :
आज बड़े विद्वान,ज्ञानी और मान्यजन लोगों को जागरूक होने नहीं देना चाहते,स्वजाति बंधुओं की उदर-पूर्ती की खातिर नियमों की गलत व्याख्या प्रस्तुत कर देते हैं.राम द्वारा शिव -लिंग की पूजा किया जाना बता कर मिथ्या सिद्ध करना चाहते हैं कि, राम क़े युग में मूर्ती-पूजा थी और राम खुद मूर्ती-पूजक थे. वे यह नहीं बताना चाहते कि राम की शिव पूजा का तात्पर्य भारत -भू की पूजा था. वे यह भी नहीं बताना चाहते कि, शिव परमात्मा क़े उस स्वरूप को कहते हैं कि, जो ज्ञान -विज्ञान का दाता और शीघ्र प्रसन्न होने वाला है. ब्रह्माण्ड में चल रहे अगणित तारा-मंडलों को यदि मानव शरीर क़े रूप में कल्पित करें तो हमारी पृथ्वी का स्थान वहां आता है जहाँ मानव शरीर में लिंग होता है.यही कारण है कि, हम पृथ्वी -वासी शिव का स्मरण लिंग रूप में करते हैं और यही राम ने समझाया भी होगा न कि, स्वंय ही लिंग बना कर पूजा की होगी. स्मरण करने को कंठस्थ करना कहते हैं न कि, उदरस्थ करना.परन्तु ऐसा ही समझाया जा रहा है और दूसरे विद्वजनों से अपार प्रशंसा भी प्राप्त की जा रही है. यही कारण है भारत क़े गारत होने का.
जैसे सरबाईना और सेरिडोन क़े विज्ञापनों में अमीन सायानी और हरीश भीमानी जोर लगते है अपने-अपने उत्पाद की बिक्री का वैसे ही उस समय जब इस्लाम क़े प्रचार में कहा गया कि हजरत सा: ने चाँद क़े दो टुकड़े कर दिए तो जवाब आया कि, हमारे भी हनुमान ने मात्र ५ वर्ष की अवस्था में सूर्य को निगल लिया था अतः हमारा दृष्टिकोण श्रेष्ठ है. परन्तु दुःख और अफ़सोस की बात है कि, सच्चाई साफ़ करने क़े बजाये ढोंग को वैज्ञानिकता का जामा ओढाया जा रहा है.
यदि हम अपने देश व समाज को पिछड़ेपन से निकाल कर ,अपने खोये हुए गौरव को पुनः पाना चाहते हैं,सोने की चिड़िया क़े नाम से पुकारे जाने वाले देश से गरीबी को मिटाना चाहते हैं,भूख और अशिक्षा को हटाना चाहते हैं तो हमें "ॐ नमः शिवाय च "क़े अर्थ को ठीक से समझना ,मानना और उस पर चलना होगा तभी हम अपने देश को "सत्यम,शिवम्,सुन्दरम"बना सकते हैं.आज की युवा पीढी ही इस कार्य को करने में सक्षम हो सकती है.अतः युवा -वर्ग का आह्वान है कि, वह सत्य-न्याय-नियम और नीति पर चलने का संकल्प ले और इसके विपरीत आचरण करने वालों को सामजिक उपेक्षा का सामना करने पर बाध्य कर दे तभी हम अपने भारत का भविष्य उज्जवल बना सकते हैं.काश ऐसा हो सकेगा?हम ऐसी आशा तो संजो ही सकते हैं.
" ओ ३ म *नमः शिवाय च" कहने पर उसका मतलब यह होता है.:-
*अ +उ +म अर्थात आत्मा +परमात्मा +प्रकृति
च अर्थात तथा/ एवं / और
शिवाय -हितकारी,दुःख हारी ,सुख-स्वरूप
नमः नमस्ते या प्रणाम या वंदना या नमन ******
'शैव' व 'वैष्णव' दृष्टिकोण की बात कुछ विद्वान उठाते हैं तो कुछ प्रत्यक्ष पोंगापंथ का समर्थन करते हैं तो कुछ 'नास्तिक' अप्रत्यक्ष रूप से पोंगापंथ को ही पुष्ट करते हैं। सार यह कि 'सत्य ' को साधारण जन के सामने न आने देना ही इनका लक्ष्य होता है। सावन या श्रावण मास में सोमवार के दिन 'शिव' पर जल चढ़ाने के नाम पर, शिव रात्रि पर भी तांडव करना और साधारण जनता का उत्पीड़न करना इन पोंगापंथियों का गोरख धंधा है।
'परिक्रमा' क्या थी ?:
वस्तुतः प्राचीन काल में जब छोटे छोटे नगर राज्य (CITY STATES) थे और वर्षा काल में साधारण जन 'कृषि कार्य' में व्यस्त होता था तब शासक की ओर से राज्य की सेना नगर राज्य के चारों ओर परिक्रमा (गश्त) किया करती थी और यह सम्पूर्ण वर्षा काल में चलने वाली निरंतर प्रक्रिया थी जिसका उद्देश्य दूसरे राज्य द्वारा अपने राज्य की व अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। कालांतर में जब छोटे राज्य समाप्त हो गए तब इस प्रक्रिया का औचित्य भी समाप्त हो गया। किन्तु ब्राह्मणवादी पोंगापंथियों ने अपने व अपने पोषक व्यापारियों के हितों की रक्षार्थ धर्म की संज्ञा से सजा कर शिव के जलाभिषेक के नाम पर 'कांवड़िया' प्रथा का सूत्रपात किया जो आज भी अपना तांडव जारी रखे हुये है। अफसोस की बात यह है कि पोंगापंथ का पर्दाफाश करने के बजाए 'नास्तिकवादी' विद्वान भी पोंगापंथ को ही बढ़ावा दे रहे हैं और सच्चाई का विरोध कर रहे हैं।ऐसे ही लोग विविधता और मत- वैभिन्यता का विरोध करते हैं .
आज केवल कठोर कानून बनाने का शोर तो गूंज रहा है कहीं कोई कठोर 'आत्मानुशासन' लागू करने की चर्चा नहीं है। ये विचार स्वामी विवेकानंद के 'रामकृष्ण मिशन' द्वारा व्यक्त किए गए हैं जिनमे स्वामी दयानन्द के कठोर आत्मानुशासन की झलक मिलती है। आज ऐसे ही विचारों को अपनाने की आवश्यकता है जो समाज मे शांति-व्यवस्था स्थापित करने मे कारगर होंगे।
Danda Lakhnavi
हर नारी के स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए .... हर जरूरी कदम अवश्य उठाए जाने चाहिए| मात्र भावावेश में कठोर क़ानून बना देने भर से कुछ लाभ होने से रहा .... यदि आम जनता का चारित्रिक स्तर ऊँचा नहीं है .... तो कठोर कानूनों दुरुपयोग भी खूब होता है ...