Sunday, May 26, 2013

समस्याएँ अनेक-समाधान एक---विजय राजबली माथुर

04 मई से 29 मई 2013 तक वृष राशि में 'गुरु' व 'शुक्र' ग्रह एक साथ होने का परिणाम है आज कल ग्रीष्म का प्रचंड -प्रकोप । 'राहू' व 'मंगल' तथा 'शनि' व 'मंगल' के मध्य बना 180 डिग्री का संबंध अमेरिका के तूफानी बवंडर ,बस्तर आदि की आतंकवादी  घटनाओं के कारक हैं (निर्णय सागर पंचांग के पृष्ठ-32एवं 33 पर पूर्व चेतावनी दी गई थी-
"राहू भौम सप्तम गति,शनि भौम संम सप्त। 
भूक्रंदनजन धन क्षति,मनसा मानस तप्त। । 
चक्रवात आंधी पवन,सागर देश विदेश। 
संहारक रचना गति,जन धन मध्य विशेष। । "

26 मई से 23 जून के मध्य सीमा क्षेत्रों में यातना तथा सम्पूर्ण विश्व में आतंकवादी हिंसा बढ्ने की चेतावनी दी गई है। 
परंतु खेद के साथ कहना और लिखना पड़ रहा है  कि कोई भी इस ओर उसी प्रकार ध्यान नहीं देगा जैसा कि पूर्व में हुआ था जो कि निम्नांकित के अवलोकन से सिद्ध हो जाएगा। :-----
 

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

[२७ अप्रैल २०१० को लखनऊ के एक स्थानीय समाचार पत्र में पूर्व प्रकाशित आलेख ]


दंतेवाडा त्रासदी - समाधान क्या है? http://krantiswar.blogspot.in/2011/04/blog-post_06.html




(त्रासदी के एक साल पूरा होने पर )

समय करे नर क्या करे,समय बड़ा बलवान.

असर ग्रह सब पर करे ,परिंदा पशु इनसान। 



मंगल वार 6 अप्रैल 2010 के भोर में छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में ०३:३० प्रात पर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल पर नक्सलियों का जो हमला हुआ उसमें ७६ सुरक्षाबल कर्मी और ८ नक्सलियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.यह त्रासदी समय कि देन है.हमले के समय वहां मकर लग्न उदित थी और सेना का प्रतीक मंगल-गृह सप्तम भाव में नीच राशिस्थ था.द्वितीय भाव में गुरु कुम्भ राशिस्थ व नवं भाव में शनि कन्या राशिस्थ था.वक्री शनि और गुरु के मध्य तथा गुरु और नीचस्थ मंगल के मध्य षडाष्टक योग था.द्वादश भाव में चन्द्र-रहू का ग्रहण योग था.समय के यह संकेत रक्त-पात,विस्फोट और विध्वंस को इंगित कर रहे थे जो यथार्थ में हो कर रहा.विज्ञानं का यह नियम है कि,हर क्रिया कि प्रतिक्रिया होती है.यदि आकाश मंडल में ग्रहों की इस क्रिया पर शासन अथवा जनता के स्तर से प्रतिक्रिया ग्रहों के अरिष्ट शमन की हुई होती तो इतनी जिन्दगियों को आहुति न देनी पड़ती।

जब हम जानते हैंकि तेज धुप या बारिश होने वाली है तो बचाव में छाते का प्रयोग करते हैं.शीत प्रकोप में ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते हैं तब जानबूझकर भी अरिष्ट ग्रहों का शमन क्यों नहीं करते? नहीं करते हैं तभी तो दिनों दिन हमें अनेकों त्रासदियों का सामना करना पड़ता है.जाँच-पड़ताल,लीपा – पोती ,खेद –व्यक्ति ,आरोप प्रत्यारोप के बाद फिर वही बेढंगी चाल ही चलती रहेगी.सरकारी दमन और नक्सलियों का प्रतिशोध और फिर उसका दमन यह सब क्रिया-प्रतिक्रिया सदा चलती ही रहेगी.तब प्रश्न यह है कि समाधान क्या है?महात्मा बुद्द के नियम –दुःख है! दुःख दूर हो सकता है!! दुःख दूर करने के उपाय हैं!!! दंतेवाडा आदि नक्सली आन्दोलनों का समाधान हो सकता है सर्वप्रथम दोनों और की हिंसा को विराम देना होगा फिर वास्तविक धर्म अथार्त सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य  का वस्तुतः पालन करना होगा.

सत्य-सत्य यह है कि गरीब मजदूर-किसान का शोषण व्यापारी,उद्योगपति,साम्राज्यवादी सब मिलकर कर रहे हैं.यह शोषण अविलम्ब समाप्त किया जाये.

अहिंसा-अहिंसा मनसा,वाचा,कर्मणा  होनी चाहिए.शक्तिशाली व समृद्ध वर्ग तत्काल प्रभाव से गरीब किसान-मजदूर का शोषण और उत्पीडन बंद करें.
अस्तेय-अस्तेय अथार्त चोरी न करना,गरीबों के हकों पर डाका डालना व उन के निमित्त सहयोग –निधियों को चुराया जाना तत्काल  प्रभाव से 

बंद किया जाये.कर-अपवंचना  समाप्त की जाये.
अपरिग्रह-जमाखोरों,सटोरियों,जुअरियों,हवाला व्यापारियों,पर तत्काल प्रभाव से लगाम कासी जाये और बाज़ार में मूल्यों को उचित स्तर पर आने दिया जाये.कहीं नोटों को बोरों में भर कर रखने कि भी जगह नहीं है तो अधिकांश गरीब जनता भूख से त्राहि त्राहि कर रही है इस विषमता को तत्काल दूर किया जाये.
ब्रह्मचर्य -धन का असमान और अन्यायी वितरण ब्रह्मचर्य  व्यवस्था को खोखला कर रहा हैऔर इंदिरा नगर, लखनऊ के कल्याण अपार्टमेन्ट जैसे अनैतिक व्यवहारों को प्रचलित कर रहा है.
अतः आर्थिक विषमता को अविलम्ब दूर किया जाये.चूँकि हम देखते हैं कि व्यवहार में धर्मं का कहीं भी पालन नहीं किया जा रहा है इसीलिए तो आन्दोलनों का बोल बाला हो रहा है. दंतेवाडा त्रासदी खेदजनक है किन्तु इसकी प्रेरणा स्त्रोत वह सामाजिक दुर्व्यवस्था है जिसके तहत गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है.कहाँ हैं धर्मं का पालन कराने वाले?पाखंड और ढोंग तो धर्मं नहीं है,बल्कि यह ढोंग और पाखण्ड का ही दुष्परिनाम है कि शोषण और उत्पीडन की घटनाएँ बदती जा रही हैं.जब क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया होगी ही.



शुद्द रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं.
इसीलिए तो आज ,सुखी कोई परिवार नहीं.



समय का तकाजा है कि हम देश,समाज ,परिवार और विश्व को खुशहाल बनाने हेतु संयम पूर्वक धर्म का पालन करें.झूठ ,ढोंग-पाखंड की प्रवृत्ति को त्यागें और सब के भले में अपने भले को खोजें.



यदि करम खोटें हैं तो प्रभु के गुण गाने से क्या 
होगा?
किया न परहेज़ तो दवा खाने से क्या होगा?

आईये मिलकर संकल्प करें कि कोई किसी का शोषण न करे,किसी का उत्पीडन न हो,सब खुशहाल हों.फिर कोई दंतेवाडा सरीखी त्रासदी भी नहीं दोहराए.



इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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