अनुच्छेद 14 से 18 तक 'समता का अधिकार':
अनुच्छेद 14 के अनुसार कानून के समक्ष सभी नागरिक बराबर हैं।
अनुच्छेद 15 -
अनुच्छेद 16 के अंतर्गत सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों तथा पदों हेतु समानता प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 17 के अंतर्गत अस्पृश्यता का अंत किया गया है।
अनुच्छेद 18 के अंतर्गत सैनिक व शैक्षिक उपाधियों को छोड़ कर अन्य उपाधियों का निषेद्ध किया गया है।
अनुच्छेद 19 से 22 तक 'स्वातंत्र्य अधिकार' दिये गए हैं।
अनुच्छेद 20 के अंतर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा का अधिकार दिया गया है कि कानून का उल्लंघन किए बगैर किसी को बाधित या दंडित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 23 के अंतर्गत शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदत्त हैं।
अनुच्छेद 24 'बाल श्रम' के विरुद्ध अधिकार देता है।
अनुच्छेद 25 'आर्थिक स्वतन्त्रता' का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 26 के अनुसार सभी व्यक्तियों को 'सार्वजनिक व्यवस्था,सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुये अपने धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी विभाग की रक्षा का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 29 'सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी 'एवं अनुच्छेद 31 'संपत्ति 'का अधिकार प्रदान करते हैं।
संविधान निर्माताओं ने 'धर्म' का अभिप्राय 'रिलीजन' या 'मजहब' या 'संप्रदाय' के संदर्भ में लिया है। जबकि 'धर्म' शब्द 'धार्यति इति धर्म:' अर्थात जो मानव शरीर तथा समाज को धारण करने हेतु आवश्यक है वही धर्म है।संविधान सभा के एक महत्वपूर्ण सदस्य डॉ सम्पूर्णानन्द जी (जो बाद में उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा राजस्थान में राज्यपाल भी रहे ) ने 1967 में 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में प्रकाशित अपने लेख द्वारा बताया था कि ,"सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के समुच्य का नाम 'धर्म' है;क्योंकि ये सद्गुण मानव जीवन व समाज को धारण करने हेतु नितांत आवश्यक हैं।
परंतु संविधान में वर्णित उपरोक्त प्राविधानों की गलत व्याख्या करके 'व्यवहार व्याकरण' वीर 'धर्म' की अलग व्याख्या प्रस्तुत करके 'ढोंग-पाखंड-आडंबर जैसे 'अधर्म' को ही कवच प्रदान कर रहे हैं जिसका समाज में घोर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
कुतर्क और उनका परिणाम-
लेकिन क्या कोई व्यक्ति सच्चाई को सामने भी न लाये और सच्चाई से अनभिज्ञ समाज को लुटेरे ठगते रहें?:
सच्चाई न जानने का इससे बड़ा और क्या उदाहरण होगा कि माँ सरीखी वृद्ध महिला के सिर पर नौजवान पोंगा-पंडित अपना पैर रख कर स्नान कराकर उनको अपमानित करे? क्यों? :
और फिर ये पोंगा-पंडित तो न संविधान को मानते हैं और न ही 'वेदों' को जानते हैं तभी तो गैर जिम्मेदाराना बातें करके जनता की बुद्धि कुंद करते हैं और 'व्यवहार व्याकरण वीर' इनके संवैधानिक अधिकारों के पैरोकार बन कर गौरान्वित होते हैं,क्यों? महात्मा बुद्ध का कथन-
विदेशी षड्यंत्र (29 अगस्त 2014 का स्टेटस ) -
कोर्ट में दिये गए बयान के अनुसार संविधान निर्मात्री समिती के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर की पुण्य तिथि पर विवादित स्थल का ढांचा अमेरिकी एजेंसी की साथ-गांठ व सहयोग से गिराया गया था। कहा तो यह भी जा रहा है कि व्हाईट हाउस की एक योजना ( जिसकी बैठक में शामिल होने वालों में लखनऊ विश्वविद्यालय के एक हिन्दी के विद्वान भी थे ) के अंतर्गत हज़ारे/केजरी आंदोलन चलवा कर 'मोदी सरकार ' के गठन का मार्ग प्रशस्त किया गया है। क्यों? क्योंकि इस लूट को बरकरार रखना है :
हालांकि इस संगठन की सहायता के पीछे भी अमेरिकी हाथ बताया जाता है।साम्राज्यवाद के विरुद्ध जन-संघर्ष की गाथा-'रामचरित मानस' तथा उसके रचियता तुलसी दास जी पर प्रहार इसी कड़ी में है फिर चाहे वह SFI के पूर्व नेता के श्रीमुख से हो अथवा AISF के पूर्व नेता के श्रीमुख से। महत्वपूर्ण यह है कि वे दोनों ही जन्मगत ब्राह्मण हैं और उनको पोंगा-पंडितवाद की रक्षा करनी है एथीस्टवाद तो मात्र बहाना है। वस्तुतः अमेरिका भारत को विभाजित करके यहाँ 30 छोटे-छोटे देशों का गठन कराना चाहता है और ऐसा ही चीन भी चाहता है। इसी लिए पोंगा-पंथी और एथीस्ट दोनों ही संप्रदाय 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' जैसे अधर्म को 'धर्म कहने की ज़िद्द करते हैं। हिन्दी के विद्वान अपनी वर्ग अस्मिता की रक्षा करने हेतु व्याकरण के हवाले से धर्म की गलत व्याख्या इसीलिए करते नहीं अघाते हैं।
चीन भी पीछे नहीं -
जब तक जन हितैषी लोग 'सच'-'सत्य'-TRUTH की रक्षा हेतु आगे नहीं आएंगे ये समृद्ध पोंगापंथी निरीह जनता को उल्टे उस्तरे से लूटते ही रहेंगे। अतः जन-जन का यह कर्तव्य है कि 'सत्य' के लिए संघर्ष को जारी रखें।
~विजय राजबली माथुर ©
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