Sunday, December 13, 2015

दोषी और भ्रष्टाचारी न्यायधीशों की जांच के लिए बनें स्पेशल ज्युडिशिअल कमीशन जैसे स्वतंत्र आयोग : उर्वशी शर्मा





Urvashi Sharma
12-12-2015


दोषी और भ्रष्टाचारी न्यायधीशों की जांच के लिए बनें स्पेशल ज्युडिशिअल कमीशन जैसे स्वतंत्र आयोग : उर्वशी शर्मा


लखनऊ/12 दिसम्बर 2015/ आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज में आज नज़ारा बदला हुआ था. लखनऊ का यह इलाका मौज मस्ती और शॉपिंग के लिए विश्वविख्यात है. पर आज की ‘अवध की शाम’ में हर कोई फ़िल्म अभिनेता सनी देओल की हिंदी फ़िल्म ‘दामिनी’ के अदालत में बोले गए डायलॉग ‘तारीख पे तारीख, ‘तारीख पे तारीख’, ‘तारीख पे तारीख’ को याद करता और गुनगुनाता नज़र आ रहा था. चौंकिए मत, यहाँ न तो दामिनी फ़िल्म की स्क्रीनिंग हो रही थी और न ही इस फ़िल्म से जुड़ा कोई कलाकार यहाँ आया हुआ था बल्कि लोग ऐसा बोल और गुनगुना रहे थे 12 फुट ऊंचे उस पोस्टर को देखकर जिसे लेकर आज यहाँ देश भर से आये हुए सामाजिक संगठनों और समाजसेवियों ने लखनऊ के सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा के नेतृत्व में लखनऊ के जिलाधिकारी आवास से हजरतगंज जीपीओ स्थित महात्मा गांधी पार्क तक पैदल शांति मार्च ‘न्याय-यात्रा’ निकालकर भारत की अदालतों में ‘न्याय’ की जगह ‘तारीख पे तारीख’ ही मिलने की बात रखते हुए अदालती कार्यवाहियों में वीडियो रिकॉर्डिंग कराने, अदालतों में मामलों के निपटारे की अधिकतम समय सीमा निर्धारित करने समेत अनेकों मांगों को बुलंद कर न्यायिक भ्रष्टाचार की भर्त्सना की और अदालती कार्यवाहियों में पारदर्शिता और जबाबदेही लाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की. न्याय यात्रा के संपन्न होने पर समाजसेवियों ने हजरतगंज जीपीओ स्थित महात्मा गांधी पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा के नीचे मोमबत्ती जलाकर बैठकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी किया.
येश्वर्याज की सचिव और आरटीआई कार्यकर्त्ता उर्वशी शर्मा ने न्याय मिलने में देरी को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि देश भर की सभी अदालतों में सभी को एक समान,सस्ता,सही और त्वरित न्याय दिलाने के लिए चल रही देशव्यापी मुहिम के तहत ही आज इस कार्यक्रम का आयोजन यूपी की राजधानी लखनऊ में किया गया है जिसमें येश्वर्याज के साथ साथ दिल्ली की सामाजिक संस्था फाइट फॉर जुडिशिअल रिफॉर्म्स, गाजियावाद की राष्ट्रीय सूचना का अधिकार टास्क फोर्स ट्रस्ट, लखनऊ की सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस, जन जर्नलिस्ट एसोसिएशन, एस.आर.पी.डी.एम. समाज सेवा संस्थान, अवाम वेलफेयर सोसाइटी और सूचना का अधिकार कार्यकर्त्ता वेलफेयर एसोसिएशन ने भी अपने अपने बैनर के साथ प्रतिभाग किया l
कार्यक्रम की संयोजिका उर्वशी शर्मा ने कहा कि न्याय देने जैसा ईश्वरीय काम करने बाले जज भी आम लोगों के बीच से ही आये होते हैं और इस कारण उनमें गुणों के साथ साथ अवगुण भी होना स्वाभाविक ही है. उर्वशी ने भ्रष्टाचारी और अन्य मामलों के दोषी न्यायधीशों, जजों की जांच के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्पेशल ज्युडिशिअल कमीशन जैसे स्वतंत्र आयोगों की स्थापना की मांग करते हुए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों के खिलाफ कार्यवाही के लिए बनी सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस कमेटी द्वारा आज तक किसी भी न्यायधीश के खिलाफ कार्यवाही न करने के आधार पर इसे न्यायिक भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए नाकाफी बताया. न्यायधीशों की भिन्न और महत्वपूर्ण जिम्मेवारियों को इंगित करते हुए उर्वशी ने कहा कि सभी को न्यायधीशों से बहुत अधिक अपेक्षाएं होती हैं क्योंकि यदि लोकतंत्र का और कोई अंग गलती करता है तो सुधार का मौका होता है लेकिन एक न्यायधीश के गलती करने पर उसे दूसरा मौका नहीं मिलता है । भारतीय संविधान की बात करते हुए उर्वशी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता और समानता से पहले न्याय को जगह दिया जाना यह स्पष्ट करता है कि संविधान निर्माताओं ने भारत के सभी नागरिकों को न्याय उपलब्ध कराने को प्रमुखता दी थी किन्तु आजाद भारत की सरकारें इस संविधान के लागू होने के 65 सालों के बाद भी न्यायिक प्रक्रियाओं में समानता स्थापित करने में असफल ही रही हैं.उर्वशी ने कहा कि न्यायपालिका द्वारा स्वायत्तता के नाम पर जवाबदेही से बचने के कारण ही न्याय व्यवस्था दूषित हो गयी है और न्याय की एक पारदर्शी और जिम्मेदार प्रणाली विकसित किये बिना इस समस्या का समाधान संभव ही नहीं है.
न्याय व्यवस्था के मकड़जाल में बहुतायत मध्यम वर्ग और गरीबों के फंसे होने की बात कहते हुए आंकड़ों की बात करते हुए उर्वशी ने कहा कि अभी देश में जजों की संख्या लगभग 19 हजार है जिसमें से लगभग 18 हजार निचली अदालतों में कार्य कर रहे हैं. उर्वशी ने बताया कि देश के उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों की संख्या की संख्या अंतरराष्ट्रीय मानकों के सापेक्ष लगभग 30% कम है.भारत में लगभग 62 हज़ार नागरिकों पर एक ही जज है जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों से बहुत कम है जिसके कारण देश की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं और देश की बढ़ती आबादी के चलते अगले 25 सालों में यह संख्या 15 करोड़ तक पहुंच जाएगी और यदि हम अभी नहीं चेते तो स्थिति अत्यन्त भयावह हो जायेगी. अभी निचली अदालतों में ढाई करोड़ से ज्यादा मामले और उच्च न्यायालयों में 45 लाख से अधिक मामलों पर सुनवाई चल रही है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी लगभग 70 हज़ार मामले लंबित हैं.इनमें से एक चौथाई मामले ऐसे हैं जो पांच साल से भी अधिक समय से चल रहे हैं.
दिल्ली के समाजसेवी गुलशन पाहुजा का कहना था कि न्यायिक पारदर्शिता की कमी के कारण न्यायिक प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार गहरे तक घर कर गया है और इसलिए आज सभी के लिए एकसमान न्याय की बात बेमानी सी होती जा रहे है. फ़िल्म अभिनेता सलमान खान के केस का जिक्र करते हुए पाहुजा ने अदालती कार्यवाहियों की आडिओ-वीडिओ रिकॉर्डिंग की अनिवार्यता पर बल दिया तो वहीं मोदीनगर,गाजियावाद से आये समाजसेवी सुरेश शर्मा ने कहा कि वे यहाँ अर्थ आधारित उस न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करने को आये हैं जिसमें विशिष्ट लोग और अमीर लोग जेल जाने से बच जाते हैं और निर्दोष होने पर भी गरीब जेलों में पड़े रहने को मजबूर हैं. सुरेश ने कहा कि हालांकि अदालतों को न्याय का मंदिर कहे जाने बाली अदालतों का चक्कर काटना बहुत बुरा और कष्टदायक है और सभी ट्रायल कोर्ट और सभी अपीलीय कोर्ट में मामलों के निस्तारण की अधिकतम समयसीमा के निर्धारण की मांग की.
आज आयोजित होने बाली लोक अदालतों का जिक्र करते हुए लखनऊ के राम स्वरुप यादव ने कहा कि इन लोक अदालतों में न्याय नहीं समझौता मिलता है. न्याय में देरी को न्याय न मिलने जैसा बताते हुए यादव ने भ्रष्टाचार को न्याय में देरी की मुख्य वजह बताया.
सरकारों का देश की सबसे बड़ी वादकारी होने पर चिंता व्यक्त करते हुए समाजसेवी तनवीर ने कहा कि यह आवश्यक है कि सरकारें भी अपने निर्णयों और फैसलों में स्पष्टता और पारदर्शिता लायें ताकि अदालतों पर पड़ा मुकदमों का बोझ कम हो सके.
दिल्ली के अरुण कुमार,हरिद्वार के मनोज कुमार, उन्नाव के ओम प्रकाश यादव,श्याम लाल यादव, सीतापुर के एच.एस.आनंद, लखनऊ की समाजसेविका इंदु सुभाष,पत्रकार राशिद अली आजाद, फरहत खानम,मो० हयात कादरी,स्वतंत्र प्रिय,अधिवक्ता रुवैद किदवई, अधिवक्ता अशोक कुमार शुक्ल, अधिवक्ता अरविन्द कुमार गौतम,अशफाक खान,संजय आजाद,अधिवक्ता अब्दुल्ला सिद्दीकी,शमीम अहमद,मनीष त्रिपाठी,होमेंद्र पाण्डेय,एस.के.शर्मा,राम पाल कश्यप,सूरज प्रसाद,सईद खान,टी.बी.गुप्ता,हरपाल सिंह,आर.डी.कश्यप,मारूफ हुसैन, अजय कुमार,अशोक यादव,अनुज कुमार,जे.पी. शाह,सरवन कुमार,विनोद कुमार यादव,राणा प्रताप यादव,मंजू वर्मा,बबिता सिंह,नीतू अवस्थी,समीर अंसारी,कवि अनिल अनाड़ी समेत बड़ी संख्या में समाजसेवियों ने न्यायधीशों की नियुक्तिओं में पारदर्शिता लाने,अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप जनसँख्या के समानुपातिक कोर्ट और न्यायधीशों की संख्या बढाकर प्रणालीगत समस्या को दूर किये जाने,न्यायिक प्रणाली में न्यायधीशों द्वारा दिए निर्णयों की संख्या और उनकी गुणवत्ता को लेकर उत्तरदायित्व निर्धारण की स्पष्ट व्यवस्था लागू किये जाने,सरकारी अधिकारी या पुलिस द्वारा किसी नागरिक पर किया गया केस अदालत में गलत सिद्ध होने सरकारी अधिकारी या पुलिस पर स्वतः पेनाल्टी की व्यवस्था स्थापित किये जाने,गैर-आईपीसी अपराधों के लिए सीआरपीसी की व्यवस्था के अनुसार सेवानिवृत्त ज्युडिशल मैजिस्टे्रट या एग्जिक्युटिव मैजिस्ट्रेट को स्पेशल ज्युडिशल मैजिस्ट्रेट नियुक्त किए जाने,अदालत में सभी मामलों में मौखिक सुनवाई की अनिवार्यता के स्थान पर वादी और प्रतिवादी के लिखित पक्ष के आधार पर भी फैसला किये जाने,अदालत द्वारा तारीख दिए जाने में उभय-पक्षों की रजामंदी जरूरी किये जाने, गैर-जरूरी कानून को खत्म करने,न्यायपालिका का प्रभावी तंत्र स्थापित करने के लिए समुचित संसाधन प्रदान करने, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आंच लाये बिना न्यायिक सुधार करने समेत अनेकों मांगे उठाईं.
समाजसेवी तनवीर अहमद सिद्दीकी ने इस कार्यक्रम का समन्वयन और राम स्वरुप यादव ने सह-समन्वयन किया. कार्यक्रम के अंत में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के माध्यम से देश के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,मुख्य न्यायधीश और सभी प्रदेशों के राज्यपालों,मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों को ज्ञापन भेजा गया.
 ~विजय राजबली माथुर ©
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1 comment:

अजय कुमार झा said...

बहुत ही सटीक जानकारी और शोध पूर्ण रिपोर्ट | बेबाकी से यूं इन विषयों पर लिखा जाना चाहिए और निरंतर लिखा जाना चाहिए