Thursday, March 31, 2016

प्राकृतिक असंतुलन को एक न्यौता : नारी भ्रूण हत्या (समाजशास्त्रीय विश्लेषण ) ------ विजय राजबली माथुर







प्रस्तुत लिंक पर चार साल की बच्ची के साथ उसके माता-पिता की उत्पीड़नात्मक कारवाई को देखा जा सकता है। 
http://hindi.eenaduindia.com/News/TopNews/2016/03/29181625/Parents-tied-hand-of-their-daughter-in-Aligarh.vpf



आवश्यकता आविष्कार की जननी है। विज्ञान ने नित्य नए-नए आविष्कारों द्वारा समाज में क्रांतिकारी बदलाव ला दिये हैं। विश्व के एक क्षेत्र में घटित घटना की सूचना न केवल दूसरे क्षेत्रों में तत्काल पहुँच जाती है वरन उस पर प्रतिक्रिया भी त्वरित होती है। ये सब विज्ञान के ही चमत्कार हैं कि, घर बैठे हम सम्पूर्ण विश्व से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। चिकित्सा क्षेत्र में विज्ञान के नए अन्वेषणों ने कई असाध्य रोगों को साध्य बना दिया है। अब टी बी और कैंसर जैसे रोग भी लाइलाज नहीं रहे । अल्ट्रा साउंड के आविष्कार ने अल्सर पथरी आदि कितने  ही भयानक रोगों के उपचार में अमूल्य योगदान दिया है। किन्तु खेद की बात है कि, यही मानवोपयोगी अल्ट्रा साउंड मानव जाति के विनाश के दानव के रूप में अब सामने आ रहा है। अल्ट्रा साउंड द्वारा गर्भ के तीन माह बाद लिंग निर्धारण संभव होने से नारी भ्रूणों की हत्या एक आम रिवाज बनता जा रहा है। 

नारी भ्रूण की हत्या क्यों? : 


नारी भ्रूण की हत्या के पीछे जहां समाज में बेटे के प्रति विशिष्ट आकर्षण का भाव है वहीं गरीबी व दहेज की कुप्रथा भी इसके मूल में है। हालांकि अनेक सामाजिक संगठन और सरकारी संचार माध्यम लड़का-लड़की एक समान का थोथा ढ़ोल तो पीटते रहते हैं परंतु व्यवहार मेंआज भी समाज लड़के और लड़की में भेद ही करता आ रहा है। जहां एक ओर बालक को कमाऊ पूत समझा जाता है वहीं कन्या के जन्मते ही उसके विवाह में दिये जाने वाले दहेज की चिंता उसके माता-पिता को सताने लगती है। आर्थिक दृष्टि से गरीब माता-पिता इस कुप्रथा के दुष्प्रभाव में अपनी बेटी के अविवाहित रह जाने की आशंका से गर्भ में ही नारी भ्रूण का समापन करना उचित समझते हैं जिससे उनको भावी कष्टों से निजात मिल जाये। 


दहेज क्यों? :


शुरू-शुरू में जब दहेज प्रथा का समाज में चलन हुआ तो यह समृद्ध व्यक्तियों द्वारा अपनी कुरूप कन्याओं को विवाहित देखने के उद्देश्य से दिया जाने वाला अनुग्रह- दान था । कालांतर में इस प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया और आज तो यह दहेज एक दानव ही है। दहेज की बलिवेदी पर असंख्य कुआँरी कन्याओं एवं नव - विवाहिताओं ने अपनी आहुति  चढ़ा दी है। परंतु दहेज दानव के संतुष्ट होने का  सवाल कहाँ? यह तो और भी विकराल रूप धारण करता जा रहा है। भौतिकता की चकाचौंध और आधुनिक सुविधाओं को पाने की होड में मनुष्य चरित्र इतना गिर चुका है कि, वह पुत्र के विवाह पर अधिक से अधिक सुविधाएं कन्या पक्ष से झटक लेना चाहता है। आज कन्यादान एक पुण्य दान न होकर वर पक्ष को संतुष्ट करने करने का एक ऐसा यज्ञ बन चुका है जिसमें कन्या के जीवन तक की आहुति दे दी जाती है। 


एक निदान भारी भूल : 

इस प्रकार आज के तेज़ी से दौड़ते समाज में पिछड़ने से बचने और संभावित दहेज -दुष्चक्र से निदान पाने हेतु अधिकांश लोग नारी भ्रूण समापन का सहारा लेने लगे हैं। हमारे समाज सुधारकों का ध्यान अब इस भारी भूल की ओर गया है कि, नारी भ्रूण समापन की प्रक्रिया के चलते आज समाज में पुरुषों की अपेक्षा नारियों की स्थिति 20 प्रतिशत कम हो गई है। यह समाज में स्त्री-पुरुष संतुलन बिगड़ने का संकेत है। जब लड़कों की अपेक्षा 80 लड़कियां ही उपलब्ध होंगी तो 20 लड़कों को कुआँरा ही रहना पड़ेगा। इससे समाज में पहले से ही व्याप्त यौन अपराध और भीषण गति से बढ़ेंगे। विवाहित और अविवाहितों के बीच बढ़ता हुआ अनुपात समाज में नारी जाति की दुर्दशा को और बढ़ाने वाला ही होगा। नारी का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। असंतृप्त पुरुष यौन -पिपासा शांत करने हेतु नारी चाहे वह कुआँरी  कन्या हो अथवा विवाहित वधू पर उसी प्रकार झपटेगा जिस प्रकार भूखा बाघ अपने शिकार पर झपट्ता है। यौन अपराध एक फैशन बन जाएगा। 

नारी स्वातंत्र्य पर आघात : 

नारी -मुक्ति आंदोलन आज भी सफल नहीं हो सका है। परंतु नारी भ्रूण समापन से होने वाले भावी यौन अपराधों की विभीषिका नारी की स्वतन्त्रता का सम्पूर्ण समापन कर देगी। आज हर क्षेत्र में नारियां जो बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं आने वाले समय में घर में कैद होकर रह जाएंगी। क्योंकि बाहर निकलते ही भूखे यौन पिपासू भेड़िये उन पर घात  लगाने की टोह में घूम रहे होंगे। कई-कई पुरुषों के मध्य एक ही स्त्री से विवाह करने की कुप्रथा का भी कहीं-कहीं उदय हो सकता है। इससे संतान के पिता की पहचान की व उस पर पुरुष अधिकार की समस्या भी उठ खड़ी होगी। 

भ्रूण परीक्षण / गर्भ समापन पर प्रतिबंध लगे :

समाज में स्त्री-पुरुष अनुपात में होने वाले प्राकृतिक  असंतुलन को रोकने, नारी की दुर्गति की संभावना को टालने व यौन अपराधों पर नियंत्रण हेतु शीघ्र ही सरकार को भ्रूण परीक्षण पर  ही प्रतिबंध लगा कर इसे दंडनीय अपराध घोषित कर देना चाहिए। भ्रूण चाहे वह नर हो या मादा उसका समापन करने वाले डॉ व नर्सिंग होम का लाइसेन्स छीन लिया जाये और उनको कड़ी सज़ा दी जाये । इसके अतिरिक्त इन सभी खतरों का प्रचार कर जनता को भ्रूण परीक्षणों के विरुद्ध जागृत किया जाये तभी नारी भ्रूण हत्या की कुरीति से निदान मिल सकता है और प्रकृति में होने वाली भीषण विभीषिका को टाला जा सकता है। 

(1 ) प्रकृति की अनमोल सृष्टि है यह मानव जात । 
      नर औ ' नारी के बिना अधूरी है कोई बात । । 

(2 ) दहेज ही है मानव-जीवन का अभिशाप। 
      भ्रूण- परीक्षण, गर्भ समापन है महापाप। । 

(3 ) जन-जन को है हमारा यह संदेश   । 
      छोड़ो नारी से विभेद, राग और द्वेष । ।    
~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-04-2016) को "फर्ज और कर्ज" (चर्चा अंक-2300) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मूर्ख दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

उम्दा आलेख..