मनीषा पांडेय
और भी स्याह हुआ मर्दवाद का चेहरा
दिल्ली के गार्गी कॉलेज में छेड़खानी की घटना के विरोध में छात्राओं का प्रदर्शन
सजा औरत के साथ हुए अन्याय से नहीं, मर्द की औकात से तय हो रही है। गरीब मजदूर हुआ तो उसे फांसी और ताकतवर बाबा हुआ तो उसे माला पहनाई जाएगी
सत्ता और समाज का एक तबका अब भी औरतों को उपभोग की वस्तु समझता है
इलाहाबाद की यह घटना करीब 23 साल पुरानी है। मेरी आर्यकन्या पाठशाला की दो शिक्षिकाएं लड़कियों को भेड़-बकरियों की तरह टैंपो में ठूंसकर दूसरी कन्या पाठशाला लेकर जा रही थीं, किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए। पास में ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय का कैंपस था। टैंपो बैंक रोड पर मुड़ा तो साइकिल, मोटरसाइकिल से और पैदल चल रहे लड़कों के हुजूम में जाकर फंस गया। छात्रसंघ चुनाव सिर पर थे और सैकड़ों की तादाद में यूनिवर्सिटी के लड़के सड़क पर रैली निकाल रहे थे। तभी भीड़ में से एक लड़के ने कछुए की चाल से सरक रहे टैंपो के अंदर हाथ डाल खिड़की के पास बैठी लड़की के सीने पर हाथ मारा। लड़की की दबी हुई सी चीख निकली। 23 साल पहले छोटे शहर की डरपोक लड़कियां जोर से चीख भी नहीं पाती थीं। टीचर ने उलटे उसे ही डांट लगाई। बाकी लड़कियों को भी चुप रहने को कहा। टैंपो के अंदर एकदम सन्नाटा!
• हम बोलते नहीं
एक-दूसरे की हथेलियां कसकर पकड़े हुए लड़कियां शोर मचाते, चिल्लाते, पैंट की जिप पर हाथ मलते, आंख मारते, लार टपकाते हिंदुस्तानी मर्दानगी के उस जुलूस के गुजर जाने का इंतजार करती रहीं। दूसरे स्कूल की प्रतियोगिता में पहुंचकर ‘आधुनिक नारी की स्वातंत्र्य चेतना’ जैसे किसी विषय पर जोरदार भाषण देकर आईं। स्कूल को फर्स्ट प्राइज मिला। सब गर्व से फूले-समाए, लेकिन असली सवाल किसी ने नहीं पूछा। जहां हमें सचमुच बोलना था, हम बोलीं क्यों नहीं/ हमारी टीचर क्यों नहीं बोलीं/ हमारे मां-बाप क्यों नहीं बोलते/ कोई सही मौके पर सही बात बोलता क्यों नहीं/
कुछ ऐसा ही वाकया पेश आया था 6 फरवरी को दिल्ली के गार्गी कॉलेज में, जब लड़कियों के एक सालाना जलसे में सैकड़ों की संख्या में लड़के घुस आए और अभद्रता की सारी हदें पार कर दीं। वे ‘जय श्रीराम’ के नारे लगा रहे थे, लड़कियों के सामने मास्टरबेट कर रहे थे, भीड़ में घुसकर लड़कियों को छू रहे थे। पूरी बेशर्मी और गुंडागर्दी के साथ घंटों ये सब होता रहा, लेकिन कैंपस के बाहर किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई। मीडिया में भी घटना की रिपोर्ट हुई तीन दिन बाद। न कॉलेज प्रशासन जागा, न पुलिस आई। दिन-दहाड़े लड़कियों के कॉलेज में, उनके निजी और सुरक्षित स्पेस में घुसकर मर्दों ने सब जगह अपनी मर्दानगी के पोस्टर चिपका दिए और कोई उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाया।
कॉलेज की प्रिंसिपल ने जिस तरह पूरे मामले से पल्ला झाड़ा, मुझे अपनी आर्यकन्या पाठशाला की शिक्षिकाएं याद आ गईं। वह तो ऐसे बोल रही थीं कि लड़कियां ही जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने अपना दायरा तोड़ा, बाहर गईं। 23 बरस गुजर गए, लेकिन वह सवाल जस का तस है। जहां हमें सचमुच बोलना था, हम बोलीं क्यों नहीं/ हमारी टीचर क्यों नहीं बोलीं/ कॉलेज की प्रिंसिपल क्यों नहीं बोल रहीं, टीचर्स क्यों नहीं बोल रहे, मीडिया क्यों नहीं बोल रहा, संसद में बैठी औरतें क्यों नहीं बोल रहीं, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की बात करने वाले सत्तारूढ़ पार्टी के मर्द क्यों नहीं बोल रहे, सड़कों पर उतरकर लोग क्यों नहीं बोल रहे, पूरा देश क्यों नहीं बोल रहा/ सिर्फ चंद लड़कियां ही क्यों बोल रही हैं/ सिर्फ जिन्हें छुआ, छेड़ा, अपमानित किया गया, अकेली वही क्यों बोल रहीं, बाकी क्यों नहीं बोल रहे/
यूं तो औरत से जुड़े हर अहम सवाल पर न तो खुद बोलना, न किसी को बोलने देना ही इस देश की परपंरा रही है, लेकिन 8 साल पहले निर्भया वाली घटना के विरोध में जब राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक लोग सड़कों पर उतर आए, जब अखबारों के पन्ने औरत के सम्मान और सुरक्षा पर लिखे लेखों से पट गए, जब ये सवाल इतना बड़ा हो गया कि संसद से लेकर न्यायालय के गलियारों तक में हलचल होने लगी तब कानून बदला, सख्त हुआ। जब सब ओर से इस बारे में लोग बात करने लगे और अचानक औरतों की जिंदगी से जुड़े सवाल देश और राजनीति की मुख्यधारा में आ गए तो लगा कि चुप्पी टूट रही है। और अभी बोलना शुरू किए ढंग से 8 बरस भी नहीं बीते हैं कि लग रहा है अचानक सब चुप हो गए हैं। यह चुप्पी डराने वाली है, उन लड़कियों के लिए, जिन्होंने इतने सालों में लड़-लड़कर अपने लिए थोड़ी सी जगह बनाई है, थोड़ी सी आजादी कमाई है। यह चुप्पी डराने वाली है क्योंकि यह सिर्फ न बोलना भर नहीं है। यह धमकी है कि दुनिया में अभी भी मर्दों का राज है। वे कह रहे हैं कि हम जिस जय श्रीराम के नारे के साथ जमानत पर छूटे बलात्कारी बाबा का स्वागत करेंगे, उसी नारे से तुम्हारे कॉलेज में घुसकर तुम्हारे साथ जो चाहेंगे करेंगे और तुम कुछ नहीं कर पाओगी। सत्ता में बैठे लोग हमारे साथ हैं, हम मर्द हैं, हम ही सत्ता हैं। इस घटना पर हर न बोले गए शब्द, हर न उठी आवाज का अर्थ यही है कि औरतों की कोई औकात नहीं है। औकात सिर्फ मर्द की होती है क्योंकि बलात्कार से लेकर छेड़खानी तक की हर सजा औरत के साथ हुए अन्याय से नहीं, मर्द की औकात से तय हो रही है। गरीब मजदूर हुआ तो उसे फांसी पर चढ़ाया जाएगा और ताकतवर बाबा हुआ तो उसे माला पहनाई जाएगी।• वही पुरानी स्क्रिप्ट
बीते 23 सालों में इस मर्दवादी मुल्क की लड़कियों ने शिक्षा, नौकरी, रोजगार और आत्मसम्मान हासिल करने के लिए कितना लंबा सफर तय किया है, अपने लिए बोलना और लड़ना सीखा है, लेकिन हिंदुस्तानी मर्दानगी की स्क्रिप्ट इतने सालों में भी नहीं बदली है। वह उसी बेशर्मी और अहंकार के साथ बीच चौराहे पर खड़े मास्टरबेट कर रहे हैं और लड़कियां शर्म और डर से झुकी जा रही हैं। यह स्क्रिप्ट आखिर बदलेगी कैसे/ नई कहानी कौन लिखेगा/ जाहिर है वो नहीं, जिसे सारे बेशर्म, बेलगाम अधिकार हासिल हैं। नई कहानी वही लिखेंगी, जिन्हें पहले अपमानित किया गया और फिर कहा गया- चुप रहो।
he Public
Anand Vardhan Singh talks about the molestation and misbehaviour with the students of Gargi College affiliated to University of Delhi #DU in New Delhi. The incident happened on 6 February 2020 during the annual college fest #Reverie2020 where many of goons forcefully entered the #GargiCollege Campus and abused, harassed to students where Zubin Nautiyal was supposed perform on the last day of the fest.
6 February was the last day of election campaign of Delhi Assembly Elections and the incident occurred in front of security personnel deployed at Gargi College. Girls have alleged that they were shouting Pro #CAA #NRC Slogans and molested, harassed, masturbated on them and followed home. After this horrific incident and college Principal Dr. Promila Kumar formed a committee to investigate and after the notice issues by Ms. Swati Maliwal, Chairperson of Delhi Commission for Women, an FIR was lodged and several people were arrested.
~विजय राजबली माथुर ©
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