Saturday, February 29, 2020

डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी की पुण्यतिथि पर वसुंधरा फाउंडेशन की स्मरांजली ------ विजय राजबली माथुर

अखिलेश श्रीवास्तव ' चमन ' साहब 
  
शीला पांडे जी 
डॉ विद्या बिंदू सिंह जी 
एसिड पीडिताओं का वसुंधरा फाउंडेशन की ओर से सम्मान 

एसिड पीडिताओं का वसुंधरा फाउंडेशन की ओर से सम्मान 


कल दिनांक २८ फरवरी २०२० को साँयकाल लखनऊ महोत्सव स्थित पंडाल में ' वसुंधरा फाउंडेशन ' की ओर से सदाकत के संत, संविधान निर्माता, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद  जी की  ५८ वीं पुण्यतिथि पर एक स्मृति गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ विद्या बिंदू सिंह जी ने व संचालन शुक्ल जी ने किया। संस्था के संयोजक राकेश श्रीवास्तव द्वारा संक्षिप्त परिचय के उपरांत अखिलेश श्रीवास्तव ' चमन ' द्वारा राजेन्द्र प्रसाद  के व्यक्तित्व व कृतित्व पर सुबोध प्रकाश डाला गया। उनका मत था कि राजेन्द्र प्रसाद जी की सादगी ही उनका विशिष्ट आकर्षक गुण था। अनेक उदाहरणों द्वारा उन्होंने इसकी पुष्टि की। सादगी और ईमानदारी जनित अभावों में उनकी मृत्यु होने का उल्लेख कर उन्होंने व्यवस्था की असंगती को भी इंगित किया। 
इसी प्रकार शीला पांडे जी ने भी डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के साथ - साथ  उनकी पत्नी राजवंशी देवी जी की सादगी पसंदगी को भी विशेष रूप से स्तुत्य बताया। शीला जी ने एक दृष्टांत द्वारा इसकी पुष्टि की जिसमें राजवंशी देवी जी द्वारा महान लेखिका / कवित्री महादेवी वर्मा जी से  ' सूप '  उपहार देने का निवेदन किया था जिसे महादेवी जी द्वारा सहर्ष  पूरा भी किया गया था। उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन  किसान भवन के रूप में था। शीला जी ने इस प्रकार की गोष्ठियों में महान नेताओं को स्मरण किए जाने को भावी पीढ़ियों के हितार्थ आवश्यक बताया। 
विजय राजबली माथुर ने ज्योतिषीय गणना से राजेन्द्र प्रसाद जी के राजनीतिक  कृतित्व  व सरल व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए उनको गांधी जी का सर्वप्रिय शिष्य बताया। 
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ विद्या बिंदू सिंह जी ने गांधी जी से जुड़ी स्मृतियों के साथ राजेन्द्र प्रसाद जी की तुलना करते हुए उनको भारत का महान सपूत बताया। उन्होंने विजय राजबली माथुर द्वारा गांधी जी के संबंध में सोहन लाल  द्विवेदी  की उद्धृत इन पक्तियों की पुष्टि की  : 

चल पड़े जिधर भी दो डग मग में , चल पड़े कोटी  पग उसी ओर । 

गड़  गई जिधर भी एक दृष्टि   , गड़  गए कोटी  दृग  उसे ओर । । 





राकेश श्रीवास्तव साहब के साथ लेखक 

विजय राजबली माथुर 





~विजय राजबली माथुर ©

No comments: