Wednesday, October 19, 2011

भ्रष्टाचार मिटाने को भ्रष्टाचार का सहारा एक तरफ और जन-संघर्ष दूसरी तरफ

Hindustan-Lucknow-13/10/2011
रामदेव,अन्ना ट्रायल के बाद आडवाणी साहब( जो भारत की आजादी के पाँच साल बाद  मुंबई से कारांची पहुंचे जेड ए भुट्टो के बदले मे करांची से भारत एक गुप्त समझौते के तहत आए थे) 'भ्रष्टाचार'के विरोध मे और सुशासन के पक्ष मे एक माडर्न-रथ पर सवार होकर निकले जिसके पक्ष मे  सूचना देने के लिए मध्य -प्रदेश मे पत्रकारों को रु 500/-500/-की खुली रिश्वत दी गई जिसे आप ऊपर के स्कैन मे देख रहे हैं।

आडवाणी साहब खुद भी पत्रकार रहे हैं उनसे बेहतर पत्रकारों को कोई नहीं समझ सकता है। इस मामले मे प्रबन्धकों ने गोपनीयता का पालन क्यों नहीं किया ?आडवाणी साहब का भंडाफोड़ क्यों कर दिया?ये सब बातें भाजपा की अंदरूनी राजनीति से ताल्लुक रखती हैं ,हमारे चिंतन का विषय नहीं है। हम केवल यह बताना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के तीरों से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की कलाकारी क्या सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाने के लिए नहीं है?

1974 मे भी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के 'सप्तक्रांति'/सम्पूर्ण  क्रान्ति  आंदोलन मे नानाजी देशमुख को आगे करके संघ और जनसंघ ने अपनी घुसपैठ कर ली थी और उसी के परिणामस्वरूप मोरारजी देसाई की जनता सरकार मे अटल बिहारी बाजपेयी 'विदेश' तथा आडवाणी साहब 'सूचना व प्रसारण मंत्री' बन सके थे। इन लोगों ने अपने-अपने विभागों मे संघियों को नियुक्त कर लिया था। इनके द्वारा नियुक्त कर्मचारियों-अधिकारियों ने भविष्य मे आने वाली सरकारों को भी प्रभावित किया।

1975 की एमेर्जेंसी के दौरान सम्पन्न  'देवरस-इंदिरा' गुप्त  समझौते के अनुसार संघियों ने जनता सरकार को गिरा दिया और खुल कर संघ ने 1980 मे इंदिरा कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत दिला दिया । भाजपा ने इस चुनाव मे दो सीटें प्राप्त कीं और अटल जी भी हार गए किन्तु संघ को जो राजनीतिक लाभ मिला वह कहीं ज्यादा लाभप्रद था।

जयप्रकाश के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन,वी पी सिंह के बोफोर्स भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और अभी हाल ही मे अन्ना साहब के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन मे घुस कर संघ/भाजपा ने अपनी स्थिति सुदृढ़  कर ली है। इस स्थिति को आगामी चुनावों तक बरकरार रखने के लिए भाजपा ने अपने कई नेताओं को रथ-यात्राओं पर उतारा था उसी कड़ी मे खुद को सुपर लीडर बताने हेतु आडवाणी साहब भी कूद पड़े। उनको वहम  है कि 'जिन्ना' साहब की पाकिस्तान जाकर तारीफ करने से उन्हें दूसरे दलों का भी समर्थन मिल जा सकता है। ज्योतिषीय आधार पर वह उप-प्रधानमंत्री तक ही पहुँच सकते थे जो पहुँच चुके अब उनकी सारी कवायद व्यर्थ है बस उससे केवल वह भाजपा के भ्रष्टाचार को ढकने का ही कार्य कर पाएंगे।

आज पत्रकार बड़े-बड़े नेताओं को अपने इशारे पर नचा कर फोटो खींचते और उनकी रिपोर्ट छापते  हैं यही वजह है कि बड़े से बड़े पूंजीवादी  नेता उन्हें खुश करने हेतु आडवाणी साहब जैसा ही प्रयास करते हैं। पत्रकार दावा करते हैं कि वे चाहे जिस नेता को गिरा दें ,चाहे जिस नेता को उठा दें। एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा।

आगरा मे एक वर्ष सूखा पड़ने पर भाजपा ने प्रार्थना-प्रदर्शन की योजना बनाई थी ,दैनिक जागरण उन्हीं की विचार-धारा का अखबार होने के कारण उन्होने संबन्धित पत्रकार को मुंह-मांगी रकम देने से इंकार कर दिया। उस पत्रकार ने भाजपा का प्रदर्शन फ्लाप करने हेतु समाजवादी पार्टी की महिला विंग की नगर मंत्री से संपर्क साध कर उनके प्रदर्शन कार्यक्रम से एक दिन पूर्व विक्टोरिया पार्क मे 'समाजवादी महिला सभा' की कुछ महिलाओं को इस प्रकार के सिटिंग एरेञ्ज्मेंट्स से बैठा कर फोटो खींच कर अखबार मे खबर और फोटो सुर्खियों के साथ छाप दिये। प्रदर्शन काफी बड़ा नजर फोटो मे आ रहा था। ऐसे पत्रकारों को मेनेज किए बगैर भाजपा /आडवाणी रथ यात्रा सुर्खियां कैसे बटोर सकती थी?अतः यह धन-वितरण उसी का एक छोटा सा नमूना है।ये भी खबरें हैं कि यू पी से एम पी मे प्रवेश के समय 'टोल टैक्स'की भी चोरी की गई है तथा आडवाणी साहब की सभाओं हेतु माईक के लिए बिजली चोरी की स्तेमाल की गई है।

प्रगतिशील पत्रकार धन नहीं दूसरे तरीकों से लेखकों को अपने इशारे पर नचाने का प्रयास करते हैं। वे अपने ही राष्ट्रीय नेताओं के पक्ष की टिप्पणियों और लेखों को सेंसर करके रख देते हैं एवं ब्लाग्स तथा अखबार मे नहीं छापते हैं। उन्हें भय है कि कहीं नए लोग दूसरों की नजर मे न आ जाएँ ,इसलिए उन्हें दबा दो भले ही इससे उनके अपने  संगठन को क्षति होती है तो होती रहे उनका एक छत्र राज् तो कायम ही रहेगा। 

उन्होने 18 अक्तूबर 2011 के उपवास-धरना हेतु sms जारी किए जिनमे 'you have to' शब्दों का इस्तेमाल किया गया था जबकि वह खुद प्रदर्शन-स्थल पर 12 .14 pm पर पधारे और 01 .19 पर प्रस्थान कर गए जबकि उनके वरिष्ठ नेता ने 'please attend' शब्दावली का प्रयोग किया था और पूरे वक्त प्रदर्शन स्थल पर डटे रह कुशल संचालन किया।

(चार बामपंथी दलों के आह्वान पर पूरे प्रदेश से आए कार्यकताओं ने राजधानी के 'झूले लाल वाटिका' मे एक-दिवसीय 'उपवास'और धरना दिया जो साँय तक शांतिपूर्ण और पूर्ण अनुशासित रूप सम्पन्न हुआ। इसके उद्देश्यों को नीचे स्कैन को डबल क्लिक करके देख सकते हैं।)



सभा का संचालन भाकपा के राज्य सचिव डॉ गिरीश ने किया और उदघाटन भाषण दिया फारवर्ड ब्लाक के प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर शर्मा जी ने। महिला फ़ेडरेशन की आशा मिश्रा जी,एडवा की मधु गर्ग जी, सी पी एम के प्रदेश सचिव डॉ श्री प्रकाश कश्यप,भकपा के वरिष्ठ नेता अशोक मिश्रा जी, डॉ अरविंद राज स्वरूप AISF की प्रदेश संयोजिका निधि चौहान,AIYF के प्रदेश संयोजक नीरज यादव ,पूर्व विधायक इम्तियाज़ अहमद आदि ने संबोधित किया। बामपंथी नेताओं के वक्तव्यों मे जनता  के हितों उसकी मूलभूत समस्याओं पर ज़ोर था। डॉ प्रो .रमेश दीक्षित ने भी सभा को संभोधित करते हुये बाम-पंथ का आह्वान किया की जनता उनकी ओर देख रही है और वे आगे आ कर उसका मार्ग-दर्शन व नेतृत्व करें। डॉ दीक्षित खुद बामपंथी नहीं हैं और उनका संबंध यू पी ए के एक घटक से है,परंतु वह जन-हितैषी हैं इसलिए AISF तथा प्रगतिशील लेखकों के सम्मेलन मे भी उपस्थित रहे थे। 

1991 के बाद से अपनाई 'उदारीकरण'की आर्थिक नीतियों को भ्रष्टाचार  के तीव्र प्रसार का कारक वक्ताओं ने बताया। 70 प्रतिशत 'काला धन'श्रमिकों की मजदूरी चुराने से सृजित होता है। अतः शोषण समाप्त किए बगैर भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। जो लोग लफ्फाजी करके जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं वे वस्तुतः 'कारपोरेट घरानों'का ही संरक्षण कर रहे हैं। इसी हेतु उनकी 'जन-लोकपाल' मे कारपोरेट घरानों को लाने की मुहिम नहीं है और इसलिए भी कि देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों से उनके एन जी ओज को भारी रकम चंदे के नाम पर रिश्वत स्वरूप मिलती है। 

2012 के यू पी के चुनावों मे चारों बामपंथी दलों ने मिल कर जनता को उसके वास्तविक शत्रुओं -जातिवाद,संप्रदाय वाद से परिचित कराने का संकल्प व्यक्त किया। किसानों के भूमि-अधिग्रहण,उनकी आत्म-हत्याओं ,मजदूरों के शोषण-उत्पीड़न,बेरोजगारी,मंहगाई आदि का सामाजिक जन-जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है अतः इंनका वास्तविक निदान कराने हेतु  जनता को बाम-पंथी मोर्चे के पीछे लामबंद करने की आवश्यकता बताई गई। डॉ ,सर्जन,प्रो ,आदि बुद्धिजीवी लोग लगातार भाकपा कार्यालय मे आकर उनसे ऐसा निवेदन कर रहे हैं।   

सभा के अंत मे लोक मंडली ने एक नाटक प्रस्तुत किया जिसकी मुख्य उल्लेखनीय बातों मे था-'जय हो जय हो भ्रष्टाचार विरोधी नारे की जय हो','आयेगा-आयेगा एन जी ओ वाला आयेगा -उल्टे उस्तरे से जनता को मूढ़ ले जाएगा'। 

भ्रष्टाचार सिर्फ आर्थिक ही नहीं होता है वह-सामाजिक,धार्मिक भी होता है। जब तक इस सामाजिक-धार्मिक भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं होगा तब तक आर्थिक भ्रष्टाचार का भी खात्मा नहीं हो सकता। चाहे जितनी रथ-यात्राएं निकल जाएँ,जितने चाहे प्रदर्शन -अनशन हो जाएँ।

2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर लेख..... आखिरी पंक्तियाँ सच्ची और एकदम सटीक हैं......

Bharat Bhushan said...

आपका विश्लेषण एकदम सटीक है. दरअसल मीडिया का सारा खेल कार्पोरेट घराने ही पीछे बैठ कर खेलते हैं. मीडिया अपने आकाओं की भाषा बोले के लिए मजबूर है और कभी स्वतंत्र नहीं होता. धार्मिक संगठन भी इऩसे अलग नहीं हैं. नीतिनिर्धारण में इनकी भूमिका पूरे रंग में है.