Wednesday, April 25, 2012

अधर्म को 'धर्म' मानने की गलती

हिंदुस्तान,लखनऊ,23-04-2012 ,पृष्ठ-7

मुद्रा राक्षस जी बुजुर्ग और उच्च कोटि के विद्वान हैं। वह जो कहना चाहते थे उसे समझे बगैर लोगों ने उनका विरोध कर दिया। किन्तु थोड़ी सी गलती उनकी भी यह है कि उन्होने 'हिन्दू धर्म' शब्द का प्रयोग किया है। वस्तुतः 'हिन्दू' कोई धर्म है ही नही।बौद्धो के विरुद्ध क्रूर हिंसा करने वालों ,उन्हें उजाड़ने वालों,उनके मठों एवं विहारों को जलाने वाले लोगों को 'हिंसा देने' के कारण बौद्धों द्वारा 'हिन्दू' कहा गया था। फिर विदेशी आक्रांताओं ने एक भद्दी तथा गंदी 'गाली' के रूप मे यहाँ के लोगों को 'हिन्दू' कहा।साम्राज्यवादियों के एजेंट खुद को 'गर्व से हिन्दू' कहते हैं। 

मुद्रा जी से दूसरी गलती यह हो गई है कि उन्होने आदि शंकराचार्य के बाद 'ज्ञान-विज्ञान'की रचना न किए जाने की बात कही।एक हद तक 'बुद्ध' के विचार 'वैज्ञानिक'थे किन्तु शंकराचार्य ने अविज्ञान का भ्रम फैला कर उन्हें धूलि-धूसरित कर दिया है। आज भारत जो गारत हो गया है वह इन्हीं शंकराचार्य की देंन  है। इन लोगों के बारे मे हकीकत यह है देखें -



मुद्रा जी ने तीसरी गलती यह कर दी है कि उन्होने कहा कि 'ऋग वेद और अथर्व वेद' मे महिलाओं के लिए निंदनीय शब्द हैं। लगता है कि मुद्रा जी ने आचार्य श्री राम शर्मा सरीखे अवैज्ञानिक लोगों की व्याख्याओं को अपने निष्कर्ष का आधार बनाया है।

लगभग सभी बाम-पंथी विद्वान सबसे बड़ी गलती यही करते हैं कि हिन्दू को धर्म मान लेते हैं फिर सीधे-सीधे धर्म की खिलाफत करने लगते हैं। वस्तुतः 'धर्म'=शरीर को धारण करने हेतु जो आवश्यक है जैसे-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,और ब्रह्मचर्य।  इंनका का विरोध करने को आप कह रहे हैं जब आप धर्म का विरोध करते हैं तो। अतः 'धर्म' का विरोध न करके  केवल अधार्मिक और मनसा-वाचा- कर्मणा 'हिंसा देने वाले'=हिंदुओं का ही प्रबल विरोध करना चाहिए।

विदेशी शासकों की चापलूसी मे 'कुरान' की तर्ज पर 'पुराणों' की संरचना करने वाले छली विद्वानों ने 'वैदिक मत'को तोड़-मरोड़ कर तहस-नहस कर डाला है। इनही के प्रेरणा स्त्रोत हैं शंकराचार्य। जबकि वेदों मे 'नर' और 'नारी' की स्थिति समान है। वैदिक काल मे पुरुषों और स्त्रियॉं दोनों का ही यज्ञोपवीत संस्कार होता था। कालीदास ने महाश्वेता द्वारा 'जनेऊ'धरण करने का उल्लेख किया है।  नर और नारी समान थे। पौराणिक हिंदुओं ने नारी-स्त्री-महिला को दोयम दर्जे का नागरिक बना डाला है। अपाला,घोशा,मैत्रेयी,गार्गी आदि अनेकों विदुषी महिलाओं का स्थान वैदिक काल मे पुरुष विद्वानों से  कम न था। अतः वेदों मे नारी की निंदा की बात ढूँढना हिंदुओं के दोषों को ढकना है।


वेद जाति,संप्रदाय,देश,काल से परे सम्पूर्ण विश्व के समस्त मानवों के कल्याण की बात करते हैं। उदाहरण के रूप मे 'ऋग्वेद' के कुछ मंत्रों को देखें -

'संगच्छ्ध्व्म .....उपासते'=
प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बनें।
पूर्वजों की भांति हम कर्तव्य के मानी बनें। ।


'समानी मंत्र : ....... हविषा जुहोमी ' =


हों विचार समान सबके चित्त मन सब एक हों। 
ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। । 


'समानी व आकूति....... सुसाहसती'=


हों सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा। 
मन भरे हों प्रेम से जिससे बढ़े सुख सम्पदा। । 


'सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाः। 
सर्वे भद्राणि पशयन्तु मा कश्चिद दुख भाग भवेत। । '=


सबका भला करो भगवान सब पर दया करो भगवान । 
सब पर कृपा करो भगवान ,सब का सब विधि हो कल्याण। । 
हे ईश सब सुखी हों कोई  न हो दुखारी। 
सब हों निरोग भगवनधन-धान्यके भण्डारी। । 
सब भद्रभाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों। 
दुखिया न कोई होवे सृष्टि मे प्राण धारी। ।    

ऋग्वेद न केवल अखिल विश्व की मानवता की भलाई चाहता है बल्कि समस्त जीवधारियों/प्रांणधारियों के कल्याण की कामना करता है। वेदों मे निहित यह समानता की भावना ही साम्यवाद का मूलाधार है । जब मैक्स मूलर साहब भारत से मूल पांडुलिपियाँ ले गए तो उनके द्वारा किए गए जर्मन भाषा मे अनुवाद के आधार पर महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'दास केपिटल'एवं 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो'की रचना की। महात्मा हेनीमेन ने 'होम्योपैथी' की खोज की और डॉ शुसलर ने 'बायोकेमी' की। होम्योपैथी और बायोकेमी हमारे आयुर्वेद पर आधारित हैं और आयुर्वेद आधारित है 'अथर्ववेद'पर। अथर्ववेद मे मानव मात्र के स्वास्थ्य रक्षा के सूत्र दिये गए हैं फिर इसके द्वारा नारियों की निंदा होने की कल्पना कहाँ से आ गई। निश्चय ही साम्राज्यवादियो के पृष्ठ-पोषक RSS/भाजपा/विहिप आदि के कुसंस्कारों को धर्म मान लेने की गलती का ही यह नतीजा है कि,कम्युनिस्ट और बामपंथी 'धर्म' का विरोध करते हैं । मार्क्स महोदय ने भी वैसी ही गलती समझने मे की जैसी कि मुद्रा राक्षस जी ने यथार्थ को समझने मे कर दी। यथार्थ से हट कर कल्पना लोक मे विचरण करने के कारण कम्युनिस्ट जन-समर्थन प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। नतीजा यह होता है कि शोषक -उत्पीड़क वर्ग और-और शक्तिशाली होता जाता है। 

आज समय की आवश्यकता है कि 'धर्म' को व्यापारियों/उद्योगपतियों के दलालों (तथाकथित धर्माचार्यों)के चंगुल से मुक्त कराकर जनता को वास्तविकता का भान कराया जाये।संत कबीर, दयानंद,विवेकानंद,सरीखे पाखंड-विरोधी भारतीय विद्वानों की व्याख्या के आधार पर वेदों को समझ कर जनता को समझाया जाये तो जनता स्वतः ही साम्यवाद के पक्ष मे आ जाएगी। काश साम्यवादी/बामपंथी विद्वान और नेता समय की नजाकत को पहचान कर कदम उठाएँ तो सफलता उनके कदम चूम लेगी।

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

नोट -पिछली पोस्ट पर फुट नोट देखना न भूलें।    और यह लिंक भी देखने का कष्ट करें । 

Tuesday, April 24, 2012

ग्रहों की चाल ढालती है जिंदगी की चाल को -प्रेक्टिकल उदाहरण


मिसेज X    (09 अक्तूबर 1954,प्रातः 04 बजे,आगरा).....................................................मिसेज Y (07 सितंबर 1979,प्रातः 07-50,आगरा)                             

03 जून 2007 को  हिंदुस्तान,आगरा के अंक मे  प्रकाशित श्रीमती शबाना आज़मी और सुश्री रेखा की जन्मपत्रियों का विश्लेषण उन्हीं को आधार मान कर किया गया था। लेकिन आज यहाँ  प्रस्तुत दोनों कुंडलियाँ मेरे द्वारा ही बनाई गई हैं और ये परस्पर माता-पुत्री की हैं। माता के लिए -मिसेज X और पुत्री के लिए मिसेज Y का प्रयोग किया जा रहा है। इस पूरे परिवार से एक ही कालोनी मे रहने  के कारण जान-पहचान थी। ग्रहों की चाल को प्रेक्टिल रूप से स्पष्ट करने हेतु इन कुंडलियों का सहारा लिया जा रहा है । मिसेज X का जन्म आगरा मे,मद्रास मे जन्मी फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' से लगभग 31 घंटे पूर्व हुआ है। रेखा और मिसेज X की राशियाँ एक ही 'कुम्भ' हैं किन्तु लग्न अलग-अलग हैं। मिसेज X की जन्मपत्री का चयन इसी वजह से किया है कि,'रेखा' की जन्मपत्री का जो विवेचन दिया जा चुका है वह इस विश्लेषण की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है।

मिसेज X

आगरा मे 09 अक्तूबर 1954 की प्रातः 04 बजे X का जन्म हुआ है उस आधार पर जन्म कुंडली बनी है। जन्म लग्न सिंह है,राशि कुम्भ है जो सुश्री रेखा की भी है। समस्त ग्रह रेखा और X की कुंडलियों मे एक ही राशियों मे  हैं। जन्म समय मे 31 घंटे का अंतर होने के कारण सिर्फ लग्न अलग-अलग हैं। अतः ग्रह जिन भावों मे रेखा के हैं उससे भिन्न भावों मे X के हैं।  X की जन्मपत्री के जिस भाव मे जिस राशि मे ग्रह हैं उनके अनुसार फल लिखा है और प्रेक्टिकल (वास्तविक ) जीवन मे वैसा ही चरितार्थ होता दिखा है अतएव 'रेखा'की कुंडली मे उन्हीं ग्रहों के उन्हीं राशियों मे दूसरे भावों मे होने के कारण जो फल लिखा है वह भी प्रेक्टिकल (वास्तविक )जीवन मे वैसा ही चरितार्थ होना चाहिए । यही वजह X की जन्म कुंडली उदाहरणार्थ लेने का कारण बनी हैं।

X ने अपनी जन्मपत्री बनवाने को जब कहा तो विशिष्ट रूप से यह भी निवेदन किया कि,लिखित मे जो दें उससे अलग हट कर उन्हें ,उनके निगेटिव प्वाईंट्स व्यक्तिगत रूप से ज़रूर बता दें। अमूमन तमाम बातें ऐसी रहती हैं कि नजदीकी से नजदीकी व्यक्ति भी निगेटिव प्वाईंट्स नहीं जान पाता है परंतु ग्रहों का ज्योतिषीय विश्लेषण उन तथ्यों को उजागर कर सकता है। चूंकि X की पुत्री Y को न्यूम्रोलाजी का कुछ ज्ञान था अतः उसने अपनी माँ को उनके अपने निगेटिव प्वाईंट्स बताये थे और उन्हीं का वेरीफिकेशन वह मुझ से कराना चाहती थीं,कि क्या ग्रहों की चाल से इतना सब वाकई ज्ञात हो सकता है ?शायद अपनी पुत्री के ज्योतिषीय ज्ञान पर उन्हें भरोसा न रहा      हो किन्तु उन्होने मुझे बताया कुछ नहीं सिर्फ मुझ से बताने को कहा था और बाद मे आत्म-स्वीकृति द्वारा मेरे कथन की परिपुष्टि की थी।

X के शिक्षक पति बेहद सौम्य व्यवहार वाले थे। किन्तु उनकी कुंडली मे स्थित राशि बता रही थी कि वह काफी उग्र स्वभाव के और आक्रामक होंगे। अतः विश्लेषण लिखना शुरू करने से पूर्व X से साफ-साफ पूछा कि क्या मास्टर साहब जैसे दिखाई देते हैं उसके उलट स्वभाव उनका है ,क्या वह वास्तव मे दबंग हैं? X का जवाब प्रश्नवाचक था कि क्या उनकी कुंडली से उनके पति का यह स्वरूप सामने आया है। हाँ कहने पर उन्होने कुबूल किया कि शहर मे तो वह नम्र रहते हैं गाँव मे दबंगी दिखाते हैं कभी वांछित व्यक्ति न मिलने पर उसके घर से भैंस खोल कर अपने घर ले आए थे। समस्त बातें रफ पेपर से पढ़ कर उन्हें सुना दी जिन्हें उन्होने स्वीकार कर लिया परंतु लिखित मे वही दिया जो पॉज़िटिव था। बाद मे X ने अपने हाथ मे भी निगेटिव बातों का ज्ञान होने की बात पूछी थी उन्हें बता दिया था कि जन्मपत्री को गणना मे गलती के आधार पर आप नकार भी दें लेकिन अपनी लकीरों को छिपा या बदल नहीं सकती हैं।

X के पति भाव मे बैठा 'चंद्र' उनके पति को ऊपर से सौम्य बनाए हुये था और लग्न पर पूर्ण सप्तम दृष्टि के कारण खुद X के चेहरे को लावण्य मय रूप  प्रदान कर रखा था ,लग्न ने कमर तक उनके शरीर को आकर्षकत्व प्रदान किया था। उनकी कुंडली मे पति का कारक ग्रह ब्रहस्पति द्वादश भाव मे उच्च का है और नवम  दृष्टि से आयु के  20 वे भाव को देख रहा है जहां  'मीन' राशि स्थित है जो खुद ब्रहस्पति की ही राशि है । अतः  जीवन के 20वे वर्ष मे उनका विवाह तय हो गया और 08 दिसंबर 1974 को विवाह बंधन मे बंध गईं।उस समय वह ब्रहस्पति की महादशा के अंतर्गत 'चंद्र' की अंतर्दशा मे थीं जिसका प्रभाव बाधापूर्ण होता है। तृतीय भाव मे उच्च का शनि है जिसने उनके बाद भाई नहीं उत्पन्न होने दिये। उनके बाद दो बहने और हुई तब ही भाई हुये। शनि की स्थिति उन्हें निम्न -स्तर के कार्यों हेतु प्रेरित करने वाली है। सुख भाव मे मंगल की वृश्चिक राशि मे शुक्र स्थित है जो यह दर्शाता है कि विपरीत योनि के लोग उनमे आकर्षण रखते होंगे और वह उनमे ,उनके जीवन मे उनके प्रेमियों का भी हस्तक्षेप होगा। हाथ की लकीरों से रिश्ता भी स्पष्ट था और उन्हें बता दिया कि छोटे देवर व छोटे बहनोई से उनका शारीरिक संबंध होना चाहिए जिसे यह कह कर उन्होने कुबूल किया कि इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पंचम संतान भाव मे 'मंगल' व 'राहू' की स्थिति से उन्होने बचपन मे अपनी पुत्री Y के अनुत्तीर्ण होने की ही बात नहीं स्वीकारी बल्कि हँसते हुये यह भी स्वीकार किया कि 'एबार्शन' तो जान-बूझ कर करवाए -कितने बच्चे पैदा करते? उन्होने यह भी स्वीकार किया कि पैदा करने पर पहचान का भी भय था।उनकी प्रथम संतान पुत्र है जो ग्रह योगों के अनुरूप ही पूर्ण आज्ञाकारी है।  मिसेज Y उनकी दूसरी संतान है और उससे एक वर्ष छोटी दूसरी पुत्री है। उच्च के ब्रहस्पति ने धन-दौलत,मान-सम्मान,उच्च वाहन सुख सभी प्रदान किए हैं।


मिसेज Y

Y की राशि भी अपनी माँ वाली 'कुम्भ'ही है परंतु लग्न-'कन्या' है जो 'प्रेम' मे असफलता प्रदान करती है। और इस कुंडली मे लग्नेश,पंचमेश व सप्तमेश सभी 'द्वादश'भाव मे बैठे है जो 'व्यय भाव' होता है। अतः Y को प्रेम के मामले मे सावधानी की आवश्यकता थी जो बात  उसने अपनी माँ के माध्यम से पुछवाई थी। X को स्पष्ट रूप से बता दिया गया था कि यदि विवाह करना हो तो 'एरेंज्ड मेरेज' के जरिये ही हो वरना 'प्रेम-विवाह' सफल  नहीं हो सकता। यह बात Y के 2003  मे जाब पर बेंगलोर जाते समय X ने पूछी थी और 2008 मे जब Y ने अंतरजातीय प्रेम विवाह की बात उठाई तो मास्टर साहब ने बेटी और उसके प्रेमी को गोली से उड़ा देने की धमकी दी। X ने पूर्व जानकारी के आधार पर कोई नाटक खेला जिसमे उनका बी पी भी काफी लो हो गया और मास्टर साहब की पूर्व शिष्या लेडी डॉ के मुताबिक दिमाग पर भी झटके का असर था। लिहाजा अपनी शिष्या रही डॉ की सलाह पर मास्टर साहब 'एरेंज्ड मेरेज' करने को राजी हो गए। 15 दिन की तड़ापड़ी मे तैयारी करके 29 जनवरी 2008 को Y का विवाह किया गया।

X और Y की जब तुलना की जाये तो ग्रहों की चाल का असर साफ-साफ समझ आ जाएगा। इंटर पास X को सफलता और क्वालिफ़ाईड इंजीनियर Y को असफलता अपने-अपने ग्रहों के अनुरूप ही मिल रही थी। यदि पूर्व मे ज्योतिषीय ज्ञान से खतरे का आंकलन न होता तो निश्चय ही Y को अपने प्रेमी सहित मौत का सामना करना पड़ता क्योंकि कुंडली मे चंद्रमा षष्ट भाव मे राहू के साथ 'ग्रहण योग' बना रहा है। X की कुंडली मे लग्नेश सूर्य बुध की राशि मे है और बुध शुक्र की राशि मे शनि के साथ जो कि सप्तमेश है ,पंचम 'प्रेम' भाव मे शनि सरीखा राहू तो है ही पंचमेश ब्रहस्पति 'चंद्र' की राशि मे है और 'चंद्र' सप्तम भाव मे शनि की राशि मे। इस प्रकार लग्नेश,पंचमेश और सप्तमेश मे अच्छा तालमेल होने के कारण X विवाहोपरांत भी प्रेमियों से सफल संपर्क कायम रख सकीं जबकि Y को फजीहत और झगड़े के बाद ही X की तिकड़म और हस्तक्षेप से मन की  मुराद पूरी करानी पड़ी। X के हाथ मे विवाह रेखा के समानान्तर दो और सफल रेखाएँ स्पष्ट रूप से स्थित हैं जबकि Y के हाथ मे एक ही रेखा भी जटिल संकेत देती है।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
'रेखा',X और Y के विश्लेषणों द्वारा माता-पिता और संतान के अंतर सम्बन्धों का भी परिचय स्पष्ट मिलता है। अतः कोई तिकड़मी और फितरती ब्लागर यदि मुझे प्रोफेशनली गलत(मूर्ख-अज्ञानी) साबित करने हेतु छल का सहारा लेता है जो पकड़ा भी गया है  तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसकी संतानों की कुंडलियों के विश्लेषण से उसका खुद का भी पर्दाफाश आसानी से किया जा सकता है। किसी भी चालाक से चालाक ब्लागर /व्यक्ति को जिस प्रकार अपने वकील और डॉ से नहीं भिड़ना चाहिए उसी प्रकार किसी ज्योतिष के मामूली से जानकार को भी जलील करने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करना और अपने गिरेबान मे झांक लेना चाहिए। अन्यथा इन्टरनेट के चौराहे पर उसे खुद का भंडाफोड़ कराना पड़ेगा।वर्तमान मे जिस शहर मे वह ब्लागर प्रवास कर रहा है उसी शहर मे कम से कम दो लोग मेरे विरुद्ध लंबे समय से साज़िशों मे लगे हैं। उक्त ब्लागर ने मुझे छलने मे असमर्थ होने पर मेरे पुत्र को छलने का प्रयास किया है जो अभी जारी है। यह विश्लेषण उक्त ब्लागर के लिए चेतावनी भी है कि वह तत्काल मेरे पुत्र के साथ छल-कपट बंद करें और भविष्य मे भी  न मुझे न मेरे पुत्र को छलने का कोई भी कुप्रयास करे।*


---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


बावजूद इस चेतावनी के उक्त ब्लागर ने अपनी हेंकड़ी जारी रखते हुये दूसरे ब्लागो पर टिप्पणियों मे भी मेरे 'रेखा' वाले ज्योतिषीय विश्लेषण पर हमला जारी रखा जैसा कि नीचे स्पष्ट है और यशवन्त को भी ई-मेल मे 'गनीमत' शब्द लिख कर ठेस पहुंचाई जबकि वह उक्त ब्लागर का दिया टास्क अपनी भूख-प्यास छोड़ कर करता रहा है। अतः इसी 'गनीमत'पर उसने भी उक्त ब्लागर की हकीकत उजागर कर दी है। 


(रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM
कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला
Reply

Replies

  1. आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
    मेरी भी शुभकामना है)


    *=एक दूसरे ब्लाग पर उक्त ब्लागर की टिप्पणी इसलिए उद्धृत की है कि सभी को पता चल जाये कि उक्त ब्लागर मेरे विश्लेषण को किस कदर गलत साबित करने पर उतारू रहा कि विश्लेषण एक सप्ताह मे ही सही सिद्ध होने पर बौखलाहट मे अपनी तुलना 'रेखा' से करने की ज़रूरत पड़ गई। कौन सी  पार्टी आत्मघाती कदम (अपनी पार्टी को तहस-नहस करने और अपनी सरकार की छीछालेदार करवाना) उठाना चाहेगी जो उक्त ब्लागर को  राज्य-सभा सदस्य बनवाएगी ? क्योंकि उक्त ब्लागर तो अपनी ही संतानों का भी सगा नहीं है जो 'राष्ट्र और समाज' की सेवा क्या खाकर करेगा?(आत्म-भंजक पार्टी से मै भी उक्त ब्लागर को राज्य सभा मे भिजवाने की सिफ़ारिश करता हूँ )-




    Apr 3

    उक्त ब्लागर की इच्छा पर गलत सलाह न देने के कारण उक्त ब्लागर ने मेरे पुत्र के साथ भी झूठ-छल का प्रयोग किया ,जिस कारण-शबाना आज़मी,रेखा और प्रस्तुत विश्लेषण सार्वजनिक रूप से देने पड़े हैं।  





Thursday, April 19, 2012

रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना---विजय राजबली माथुर

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा'
हिंदुस्तान,आगरा,03 जून 2007 मे प्रकाशित 'रेखा'की जन्म कुंडली 

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता 'जेमिनी' गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे।

धनु लग्न और कुम्भ राशि मे जन्मी रेखा घोर 'मंगली'हैं और उनके द्वादश भाव मे 'शुक्र'ग्रह स्थित है जिसने उन्हे परिवार व समाज से लाभ नहीं प्राप्त होने दिया है। उनके दशम भाव मे जो पिता,कर्म व राज्य का हेतु होता है -कन्या राशि का सूर्य है। इस भाव मे सूर्य की स्थिति उनकी माता और पिता के विचारों मे असमानता का द्योतक है। इसी सूर्य ने उनकी माता को उनके पिता से अलग रखा और इसी सूर्य ने उन्हें खुद को पिता,परिवार व कुल से लाभ नहीं मिलने दिया। तृतीय भाव मे चंद्र ने बैठ कर कुटुंब सुख को और कम किया तथा पति भाव-सप्तम मे बैठ कर 'केतू' ने पति-सुख से वंचित रखा। द्वादश भाव मे 'शुक्र' मंगल की वृश्चिक राशि मे स्थित है जो जीवन भर 'उपद्रव'कराने वाला है और इसी ने उन्हें व्यसनी भी बनाया।

लग्न मे बैठे 'मंगल' की दृष्टि ने वैवाहिक सुख तो नहीं मिलने दिया किन्तु कला-ज्ञान और धन की प्रचुरता उसी ने उपलब्ध कारवाई। लग्न मे ही बैठे 'राहू' ने उन्हें शारीरिक 'स्थूलता' प्रदान की थी जिसे उन्होने अपने प्रयासों से नियंत्रित कर लिया है। यही 'राहू'  उन्हें छोटी परंतु पैनी आँखें ,संकरा तथा अंदर खिचा हुआ सीना,चालाकी तथा ऐय्याशी भी प्रदान कर रहा है।

तृतीय भाव मे बैठा चंद्र 'रेखा' को अल्पभाषी,व म्रदुल व्यवहार वाला भी बना रहा है जिसके प्रभाव से वह कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य करके दिखा सकी हैं। अष्टम भाव मे उच्च का ब्रहस्पति उन्हें दीर्घायु भी प्रदान कर रहा है तथा धनवान व स्वस्थ भी रख रहा है।

राज योग 

दशम भाव मे कन्या राशि का सूर्य 'रेखा' को 'राज्य-भंग ' योग भी प्रदान कर रहा है। इसका अर्थ हुआ कि पहले उन्हें 'राज्य-सुख 'और 'राज्य से धन'प्राप्ति होगी फिर उसके बाद ही वह भंग हो सकता है। लग्न मे बैठा 'राहू' भी उन्हें राजनीति-निपुण बना रहा है। एकादश भाव मे बैठा उच्च का 'शनि' उन्हें 'कुशल प्रशासक' बनने की क्षमता प्रदान कर रहा है। नवम  भाव मे 'सिंह' राशि का होना जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता का द्योतक है। अभी वह कुंडली के दशम भाव मे 58 वे वर्ष मे चल रही हैं और आगामी जन्मदिन के बाद एकादश भाव मे 59 वे वर्ष मे प्रवेश करेंगी। समय उनके लिए अनुकूल चल रहा है।

राज्येश'बुध' की महादशा मे 12 अगस्त 2010 से 23 फरवरी 2017 तक की अंतर्दशाये भाग्योदय कारक,अनुकूल सुखदायक और उन्नति प्रदान करने वाली हैं। 24 फरवरी 2017 से 29 जून 2017 तक बुध मे 'सूर्य' की अंतर्दशा रहेगी जो लाभदायक राज्योन्नति प्रदान करने वाली होगी।

अभी तक रेखा के किसी भी राजनीतिक रुझान की कोई जानकारी किसी भी माध्यम से प्रकाश मे नहीं आई है ,किन्तु उनकी कुंडली मे प्रबल राज्य-योग हैं। जब ग्रहों के दूसरे परिणाम चरितार्थ हुये हैं तो निश्चित रूप से इस राज्य-योग का भी लाभ मिलना ही चाहिए। हम 'रेखा' के राजनीतिक रूप से भी सफल होने की मंगलकामना करते हैं।
---------------------------------------------------------------------------------

हिंदुस्तान,लखनऊ के 27-04-2012 अंक मे प्रकाशित सूचना-



शुभ समय ने अपना असर दिखाया और 'रेखा' जी को राज्य सभा मे पहुंचाया। हम उनकी सम्पूर्ण सफलता की कामना करते है और उम्मीद करते हैं कि वह 'तामिलनाडू' की मुख्य मंत्री पद को भी ज़रूर सुशोभित करेंगी।
27 अप्रैल,2012 

---------------------------------------------------------------------------------






Tuesday, April 17, 2012

यह ईमानदारी है क्या बला ?



कमल हासन  जी के सजीव अभिनय का यह वीडियो उनके 'कर्म'के प्रति समर्पण का ज्वलंत प्रतीक है। नीचे प्रस्तुत उनके विचार स्तुत्य एवं अनुकरणीय हैं। स्कैन को डबल क्लिक करके सुगमता पूर्वक पढ़ा जा सकता है। -




बड़ी ही ईमानदारी और बेबाकी के साथ कमल हासन जी ने अपने विचारों को छात्रों के सामने रखा है। उनका यह कहना की विद्यालयी शिक्षा के बाद ही असल शिक्षा प्रारम्भ होती है मेरी निगाह मे सोलह आने सच है। उन्होने यह भी बिलकुल सच कहा है कि,"ईमानदारी मंहगा शौक" है। कम से कम मै तो खुद ही भुक्त भोगी हूँ उनकी बात मुझ पर भी लागू होती है।

1973 मे सरु स्मेल्टिंग ,मेरठ मे व्यक्तिगत स्तर पर अपनी नौकरी बचा लेने के बाद 'सारू मजदूर संघ'ने मुझे पिछली तारीख से सदस्यता देकर कार्यकारिणी मे शामिल कर लिया था। अध्यक्ष महोदय अंदर-अंदर मेनेजमेंट से मिले हुये थे यह आभास होते ही मैंने कार्यकारिणी से स्तीफ़ा दे दिया। मेनेजमेंट से मिल कर यूनियन नेताओ ने पहले सस्पेंड फिर बर्खास्त करा दिया। यह ईमानदारी की सजा थी।

1984 मे 'होटल मुगल कर्मचारी संघ' के अध्यक्ष ने मेनेजमेंट से मिल कर पहले सस्पेंड फिर 1985 मे बर्खास्त करा दिया। मै इस यूनियन का संस्थापक महामंत्री था और मुझे  यहाँ भी पिछली तारीख से सदस्यता देकर यूनियन गठन के दौरान यह पद सौंपा गया था । अपने कार्यकाल मे लोअर केडर को सर्वाधिक लाभ दिलवाया था अतः मेनेजमेंट के साथ-साथ अपर केडर स्टाफ की आँखों की भी किरकिरी था। यह ईमानदारी की दूसरी सजा थी।

1994 मे जब मै व्यक्तिगत परेशानियों मे उलझा था तब यूनियन नेता और केस के पैरोकार ने मेनेजमेंट से मिल कर अनुपस्थित रह कर एक्स पार्टी निर्णय मेरे ही विरुद्ध करा दिया। यह ईमानदारी की तीसरी सजा थी। 

एक बार तो ईमानदारी के परिणामों पर चर्चा करते हुये मैंने अपने पिताजी से पूछा था कि आपने बचपन से ही ईमानदारी सिखाई ही क्यों थी? उन्होने कहा जैसे अजय और शोभा को भी तो बचपन से ईमानदारी सिखाने के बावजूद उन्होने इसे छोड़ दिया,तुम भी छोड़ दो!लेकिन मेरे लिए अपने छोटे बहन-भाई का अनुसरण करना संभव नहीं था और न मैंने किया ही। नतीजा यह है कि माता-पिता के निधन के बाद भाई ने मेरा ही साथ छोड़ दिया और बहन-बहनोई ऊपर से मिल कर पिछले वर्ष तक भीतरघात करते रहे और अब मैंने खुद ही उनसे संपर्क तोड़ दिया।

न तो अकाउंट्स का जाब करते वक्त मैंने बेईमानी का सहारा लिया जैसे कि अनेकों अकाउंटेंट  करके बाद मे खुद सेठ बन गए। न ही अपने 'ज्योतिष' के प्रोफेशन मे मैंने छल और तिकड़म को अंगीकार किया जैसा कि तमाम दूसरे लोग कर रहे हैं। यदि बेईमानी करता तो आगरा मे ही दूसरा 'ताज महल' बना सकता था और मकान बेच कर लखनऊ न आता।

राजनीति मे भी पहले भाकपा ,बाद मे  सपा और फिर भाकपा मे रहते हुये जितना ईमानदारी से हो सकता है उतना ही सक्रिय रहता हूँ लेकिन औरों की तरह बेईमानी करके धन कमाने या ऊपर उठने का कोई प्रयास मै नहीं कर सकता। इसी वजह से मुझे 'मूर्ख' समझा जाता है। फिर भी पहले भाकपा -आगरा मे छोडते वक्त जिला  कोषाध्यक्ष था ,यह पद मुझे जबर्दस्ती सौंपा गया था। सपा मे भी पहले पूर्वी विधानसभा क्षेत्र,आगरा का महामंत्री फिर नगर कार्यकारिणी मे शामिल किया गया था। जहां दूसरे लोग पद खरीदते सुने गए मैंने खुद ही पद छोड़े जबकि सौंपे मुझे जबर्दस्ती गए थे। भाकपा मे वापिस आने के बाद 2008 मे मुझे द्वितीय सहायक जिला मंत्री पद सौंपा गया था किन्तु मैंने एक माह मे ही छोड़ दिया। लखनऊ मे भी जिला काउंसिल मे मुझे शामिल कर लिया गया है।

गैर जिम्मेदार लोग राजनीति और राजनीतिज्ञों को कोसते रहते हैं मै शौकिया राजनीति मे शामिल हूँ और पूरी ईमानदारी से डटा हुआ हूँ मुझे किसी प्रकार की समस्या नहीं है। ढोंग-पाखंड के विरुद्ध तथ्यामक विश्लेषण देकर ब्लागर्स बंधुओं का अवश्य ही कोपभाजन बना हुआ हूँ। जैसे कि,भ्रष्ट सरकारी उच्चाधिकारी जब लिखते हैं-'अन्ना के पीछे नहीं भागें तो किसके पीछे भागें'-तब मै DIR मे उनकी गिरफ्तारी की जोरदार मांग करता हूँ। सबूत एकत्र कर अन्ना/रामदेव को जन-विरोधी बताकर उनके बहिष्कार का आव्हान करता हूँ।

मेरे व्यक्तिगत अनुभव मे भी यह बात है कि समाज मे ईमानदारी पर चलने के कारण शत्रु अनेक हैं और मित्र कोई नहीं। अतः कमल हासन जी का यह कहना कि,'ईमानदारी मंहगा शौक,ट्राई करें' मुझे सटीक लगता है। काफी नुकसान उठा कर भी मै इस शौक को पाले हुये हूँ और पाले रहूँगा। 

Friday, April 13, 2012

दान देना कितना घातक हो सकता है --जानिए अपने ग्रहों से

तमाम  तथा कथित महात्माओ ,पुजारियों,पुरोहितों से आप आए दिन ये प्रवचन सुनते रहते हैं कि खूब दान करो-दान करना पुण्य कार्य है। लेकिन मै आपको सख्त चेतावनी देना चाहता हूँ कि जितना भी दान आप दें उसका खामियाजा आपके सिवा कोई दूसरा नहीं भुगतने जा रहा । आपको ऐसा लग सकता है कि इस सठियाये आदमी को पागल कुत्ते ने काट खाया होगा जो एकदम उल्टी बात बॅक रहा है। ऐसा बिलकुल नहीं है,लगभग 7-8 वर्ष पूर्व आगरा मे मेरे एक क्लाईंट जो UPIDC मे EXEN है(अब लखनऊ मे ही पोस्टेड हैं ) ने फरवरी माह की एक रात लगभग साढ़े दस बजे रात को फोन पर कहा कि वह वृन्दावन से तीर्थ करके लौट रहे थे रास्ते मे उनके साथ डकैती पड़ गई। उन्होने यह भी कहा मेरे जन्मपत्री विश्लेषण मे उनके परिवार के उस समय के तीनों सदस्यों का समय ठीक था फिर ऐसा हादसा क्यों हुआ?मैंने उन्हें अगले दिन अपनी श्रीमती जी के साथ आने को कहा और वह अपनी छोटी बच्ची को भी साथ ले कर अगले दिन आए भी। तीनों की जन्म-पत्री देखने के बाद दिमाग मे कौंधा कि इंजीनियर साहब और उनकी पत्नी दोनों ही 'दान-शील'हैं जरूर इनहोने किसी को भोजन कराया होगा जो इस हादसे का कारण बना है। पूछने पर खुशी से दोनों एक साथ बोले हमने एक नहीं दो भूखों के पेट भरे थे,यह तो पुण्य का कार्य है। मैंने कहा यही कार्य आपके साथ लूट की घटना होने का हेतु है। क्या आप के साथ पहले भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं?उन्होने बताया कि जब भोजन तैयार नहीं होता है तो सीधा दे देते हैं। यह भी कुबूल किया कि तीर्थ स्थानों पर ही उनके साथ लूट भी हुई है। 'वैष्णो देवी' के दर्शन के बाद उनकी पत्नी के कुंडल खींचे गए थे जिसमे कान भी छिल गया था। वृन्दावन वाली घटना मे दोनों का सारा कैश और स्वर्ण आभूषण लूटे गए थे। वस्तुतः इंजीनियर साहब का 'सूर्य' उच्च का है और उन्हें अन्न और इससे बने पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए जो वह करते थे और लुटते रहते थे।

जिन लोगों का 'ब्रहस्पति' उच्च का या 'स्व-ग्रही' होता है उन्हें किसी भी मंदिर या उपासना स्थल चाहे वह मस्जिद हो,मजार या चर्च  मे दान नहीं करना चाहिए। इस संबंध मे पहले खुद का उदाहरण-

"हमारी बउआ को बाँके बिहारी मंदिर,वृन्दावन पर अत्यधिक आस्था व विश्वास था। हालांकि 1962 मे उन्होने बाबूजी को अपने पास से (नानाजी -मामाजी से मिले पैसे) देकर वृन्दावन जाने को कहा था और एक हफ्ते मे वहाँ से लौटते मे घर के करीब पहुँचते -पहुँचते बाबू जी के दफ्तर के किसी साथी ने रिक्शा रुकवा कर  सूचना दी कि बाबूजी का ट्रांसफर सिलीगुड़ी हो गया है। आफिस पहुँचते ही उन्हें रिलीव कर दिया जाएगा। पाँच वर्ष वहाँ रहने के दौरान ही ईस्टर्न कमांड अलग बन गया और वापिस सेंट्रल कमांड मे ट्रांसफर मुश्किल था। कानपुर से निर्वाचित भाकपा समर्थित निर्दलीय सांसद कामरेड एस एम बेनर्जी के अथक प्रयासों से मूल रूप से सेंट्रल कमांड से गए लोग वापिस आ सके थे तब बाबूजी मेरठ आए थे।


1984 अप्रैल मे जब यशवन्त लगभग साढ़े चार माह का था बउआ की इच्छा पर हम लोग वृन्दावन -बाँके बिहारी मंदिर गए थे। वहाँ बाबूजी ने रु 10/- देकर यशवन्त को गोसाईञ्जी के माध्यम से मुख्य मूर्ती के द्वार पर मत्था टेकने भेज दिया था। लौट के आने के दो दिन के अंदर मुझे फर्जी इल्जाम लगा कर होटल मुगल से सस्पेंड कर दिया गया था -यूनियन प्रेसीडेंट को मेनेजमेंट ने पहले ही अपनी ओर मिला लिया होगा।


अतः जब बीमारी चलते के बीच ही शालिनी ने वृन्दावन-बाँके बिहारी मंदिर जाने की इच्छा व्यक्त की तो मै जाने का इच्छुक नहीं था। परंतु शालिनी ने बउआ से समर्थन करा दिया तो अनिच्छापूर्वक इतवार को जाने का फैसला करना पड़ा। इस खातिर शनिवार 11 जून को हेयर कटिंग भी कराना पड़ा। 12 जून इतवार को सुबह 08 बजे वाली पेसेंजर ट्रेन से मथुरा जाकर वहाँ से टेम्पो के माध्यम से वृन्दावन गए........ 


16 तारीख,गुरुवार  को फिर मै ड्यूटी नहीं गया। दोपहर मे यशवन्त ने ब्रेड खाने से मना कर दिया तो शालिनी ने कहा वह परांठा नहीं बनाएँगी मुझे बना कर देने को कहा। मैंने यशवन्त को पराँठे खिला दिये तो वह संतुष्ट थीं और उसके खाने के बीच ही सो गई। सोते ही सोते उनका प्राणान्त हो गया था एक परिचित डॉ को बुलवाया तो वह बोले अब दम है ही नहीं अस्पताल ले जाना बेकार है।"

जो लोग 'विद्रोही स्व-स्वर मे ' भी पढ़ते हैं वे इन घटनाओं से पूर्व मे ही वाकिफ होंगे और आगे वर्णित घटनाओ से भी । मेरी छोटी बहन डॉ शोभा माथुर ने BHELकालोनी, झांसी के मंदिर मे रु 1100/- दान दिया और उनकी कार का भयंकर एक्सीडेंट हुआ जिसका मुकदमा 8 वर्ष तक झेला और काफी नुकसान उठाया।

एक और रिश्तेदार ने एक मंदिर मे रु 101/- दान दिया और उनकी माता जी का पैर मे फ्रेक्चर होने से काफी धन बर्बाद हुआ ही वृद्धावस्था मे अपार कष्ट भी उनकी माँ को हुआ।

निकटतम और घनिष्ठतम लोगों के उदाहरण उनकी जन्म-पत्रियों की ओवरहालिंग करने के बाद ही दिये हैं, मेरा ब्रहस्पति स्व-राशि का है बाकी सभी का उच्च का । अब प्रश्न है कि आप कैसे जानेंगे कि आप का कौन सा ग्रह उच्च का या स्व-ग्रही है और उसके लिए क्या-क्या दान नहीं करना चाहिए?इसके लिए निम्न-लिखित तालिका का अवलोकन करें-


क्रम संख्या          ग्रह       उच्च राशि            स्व-राशि 

1-                 सूर्य              मेष (1 )                सिंह (5 )


 2-               चंद्र                 वृष  (2 )                 कर्क (4 )


3-              मंगल             मकर (10 )                 मेष (1 ) और वृश्चिक (8 )


4-              बुध                कन्या (6 )                  मिथुन (3 ) और कन्या (6 )


5-             ब्रहस्पति        कर्क (4 )                     धनु (9 ) और मीन (12 )


6-             शुक्र                मीन (12 )                   वृष (2 ) और तुला (7 )


7-            शनि                 तुला (7 )                     मकर (10 ) और कुम्भ (11 )


8-            राहू                   मिथुन (3 )                 'राहू' और 'केतू' वस्तुतः हमारी पृथिवी के उत्तरी और 

9-            केतू                   धनु (9 )                दक्षिणी      ध्रुव हैं जिन्हें छाया ग्रह के रूप मे गणना मे लिया जाता है

ऊपर क्रम संख्या मे ग्रहों के नाम दिये हैं जबकि राशियों की क्रम संख्या कोष्ठक मे दी गई है। जन्मपत्री मे बारह घर होते हैं और उनमे ये बारह राशिया उस व्यक्ति के जन्म के अनुसार राशियो की क्रम संख्या मे अंकित रहती हैं। उस समय के अनुसार जो ग्रह जिस राशि मे होता है वैसा ही जन्मपत्री मे लिखा जाता है। यदि सूर्य संख्या (1 ) मे है तो समझें कि उच्च का है। ब्रहस्पति यदि संख्या (4 ) मे है तो उच्च का है। इसी प्रकार ग्रह की स्व-राशि भी समझ जाएँगे। अब देखना यह है कि जितने ग्रह उच्च के अथवा स्व-राशि के हैं उनसे संबन्धित पदार्थों का न तो दान करना है और न ही निषेद्ध्य किया गया कार्य करना है वरना कोई न कोई हादसा या नुकसान उठाना ही पड़ेगा। नीचे नवों ग्रहों से संबन्धित निषिद्ध वस्तुओं का अवलोकन करके सुनिश्चित कर लें-


1-सूर्य 

सोना,माणिक्य,गेंहू,किसी भी प्रकार के अन्न से बने पदार्थ,गुड,केसर,तांबा और उससे बने पदार्थ,भूमि-भवन,लाल और गुलाबी वस्त्र,लाल और गुलाबी फूल,लाल कमल का फूल,बच्चे वाली गाय आदि।


2-चंद्र 

चांदी,मोती,चावल,दही,दूध,घी,शंख,मिश्री,चीनी,कपूर,बांस की बनी चीजें जैसे टोकरी-टोकरा,सफ़ेद स्फटिक,सफ़ेद चन्दन,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,मछली आदि।


3-मंगल 

किसी भी प्रकार की मिठाई,मूंगा,गुड,तांबा और उससे बने पदार्थ,केसर,लाल चन्दन,लाल फूल,लाल वस्त्र,गेंहू,मसूर,भूमि,लाल बैल आदि।

4-बुध 

छाता,कलम,मशरूम,घड़ा,हरा मूंग,हरे वस्त्र,हरे फूल,सोना,पन्ना,केसर,कस्तूरी,हरे रंग के फल,पाँच-रत्न,कपूर,हाथी-दाँत,शंख,घी,मिश्री,धार्मिक पुस्तकें,कांसा और उससे बने बर्तन आदि।

5-ब्रहस्पति 

सोना,पुखराज,शहद,चीनी,घी,हल्दी,चने की दाल,धार्मिक पुस्तकें,केसर,नमक,पीला चावल,पीतल और इससे बने बर्तन,पीले वस्त्र,पीले फूल,मोहर-पीतल की,भूमि,छाता आदि। कूवारी कन्याओं को भोजन न कराएं और वृद्ध-जन की सेवा न करें (जिनसे कोई रक्त संबंध न हो उनकी )।किसी भी मंदिर मे और मंदिर के पुजारी को दान नहीं देना चाहिए।

6-शुक्र 

हीरा,सोना, सफ़ेद छींट दार चित्र और  वस्त्र,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,सफ़ेद स्फटिक,चांदी,चावल,घी,चीनी,मिश्री,दही,सजावट-शृंगार की वस्तुएं,सफ़ेद घोडा,गोशाला को दान,आदि। तुलसी  की पूजा न करें,युवा स्त्री का सम्मान न करें ।


7-शनि 

सोना,नीलम,उड़द,तिल,सभी प्रकार के तेल विशेष रूप से सरसों का तेल,भैंस,लोहा और स्टील तथा इनसे बने पदार्थ,चमड़ा और इनसे बने पदार्थ जैसे पर्स,चप्पल-जूते,बेल्ट,काली गाय,कुलथी, कंबल,अंडा,मांस,शराब आदि।

8-राहू 

सोना,गोमेद,गेंहू,उड़द,कंबल,तिल,तेल सभी प्रकार के,लोहा और स्टील तथा इनके पदार्थ,काला घोडा, काला वस्त्र,काला फूल,तलवार,बंदूक,सप्तनजा,सप्त रत्न,अभ्रक आदि।

9-केतू 

वैदूर्य (लहसुन्यिया),सीसा-रांगा,तिल,सभी प्रकार के तेल,काला वस्त्र, काला फूल,कंबल,कस्तूरी,किसी भी प्रकार के शस्त्र,उड़द,बकरा (GOAT),काली मिर्च,छाता,लोहा-स्टील और इनके बने पदार्थ,सप्तनजा आदि।

पति या पत्नी किसी एक के भी ग्रह उच्च या स्व ग्रही होने पर दोनों मे से किसी को भी उससे संबन्धित दान नहीं करना है और उन दोनों की आय  से किसी तीसरे को भी दान नहीं करना है। 

ठोकर खाने और नुकसान उठाने के बाद काफी ज्योतिष साहित्य देखा उसका अध्यन किया और विद्वानों के विचारों को समझा तब जाकर आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है। टी वी पर,जगह-जगह प्रवचनों मे अखबारो मे आपको दान देने का महत्व प्रचारित करके नुकसान पहुंचाने का उपक्रम किया जाता है और आप धर्म के नाम पर ठगे जाकर गर्व की अनुभूति करते हैं। यह आप पर है कि ढ़ोंगी-लुटेरे महात्माओ के फेर मे दान देकर नुकसान उठाएँ या फिर इस प्रस्तुतीकरण का लाभ उठाते हुये दान न दें। बेहतर यही है कि दान देकर पाखंडियों की लूट और शोषण को मजबूत न करें। 

Thursday, April 12, 2012

धन , धर्म और तानाशाही




Hindustan-Lucknow--08/02/2012
Hindustan-Lucknow-28/03/2012

Hindustan-Lucknow-28/03/2012 
ऊपर जो स्कैन कापियाँ आप देख रहे हैं उन से स्पष्ट होता है कि 'धन' की ललक मे देश की सुरक्षा का भी ख्याल नहीं किया जा रहा है। असंख्य क्रांतिकारियों एवं देश भक्तों के अपना जीवन बलिदान करने के बाद हमे यह आजादी मिली है। लेकिन आज अपने निजी एशों -आराम के लिए कुछ लोग देश की सुरक्षा से भी खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे हैं। आजादी की कीमत को भुला दिया गया है।सेना के कमजोर होने और सेना व सरकार मे मतभेद होने की खबरें तब तक छापी और दिखाई जाती रहीं जब तक अदालती रोक नहीं लग गई।

फेस बुक पर प्रचारित चित्र (साभार )





CIA एजेन्टों को पहचाने -


एक बार पुनः!

अन्ना-टीम को किसने भारत की जनता के प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया है और इस महा-भ्रष्ट टीम का क्या अधिकार-क्षेत्र है कि यह प्रधान-मंत्री से उत्तर मांगे!!!

प्रधान-मंत्री से उत्तर माँगने का अधिकार संसद का है!

अन्ना-टीम लगातार संसद के अधिकार-क्षेत्र की अवमानना और संसद का अपमान कर रही है. भारत की जनता कब तक CIA के इन एजेंटों को झेलेगी !!!!
अन्ना के पीछे नहीं भागें तो किसके पीछे भागें-जैसे बयान देने वाले देशद्रोही इस जानकारी पर क्या कहना चाहेंगे?


सुरक्षा-एजेंसिओं (सेना) और जांच-एजेंसिओं (CBI) पर लगातार अन्ना-टीम के द्वारा भ्रष्टाचार, पक्षपात और अक्षमता के आरोप किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा तो हैं ही, इन्हें लोकपाल के दायरे में लाकर एक निरंकुश लोकपाल, जो संसद और उच्चतम न्यायालय के भी ऊपर और पकड़ से बाहर हो, के आधीन करवाले का षड्यंत्र भी है ताकि तानाशाह विदेशी ताक़तों, जिनका पैसा इस अन्ना-टीम को मिल रहा है, के हित पूरे होते रहें.




अन्ना भक्त क्या जवाब देंगे?


जांच-एजेंसिओं को बार-बार अन्ना-टीम अक्षम, भ्रष्ट और पक्षपातपूर्ण कह रही है !

यह जांच-एजेंसिओं को हतोत्साहित करना ही नहीं, उनको बनानेवाली संसद पर आरोप है और भारतीय व्यवस्था-तंत्र को घटिया माननेवाली अमेरिकी मानसिकता का प्रचार है!!

अन्ना-टीम भारत-विरोधी अमेरिकी प्रचार-तंत्र का अंग है!!!


अन्ना हज़ारे के मौसेरे भाई रामदेव उनके साथ मिल कर वर्तमान सेनाध्यक्ष का भी नाम अभी से ही अपने साथ घसीट रहे हैं जैसा की नीचे दिये समाचार के स्कैन कापी से स्पष्ट है। ऐसा भी कहा जा चुका है कि सेनाध्यक्ष महोदय ने भाजपा के टिकट पर राज्य सभा की सदस्यता प्राप्त करने के लिए इस प्रकार भूमिका बांधी थी। अन्ना टीम के एक अहम सदस्य प्रशांत भूषण ने काश्मीर के संबंध मे जो विवादित बयान दिया था उस पर एक जागरूक फेसबुक विद्वान की प्रतिक्रिया देखें इस समाचार के नीचे।




हिंदुस्तान,लखनऊ,06 अप्रैल 2012 


सम्पूर्ण अन्ना टीम की घोर निंदा की जानी चाहिए,प्रत्येक देश भक्त का यही कर्तव्य है। अन्ना के पीछे भागने वाले देशद्रोही हैं।

‎********CLICK ON LIKE AND SHARE IF YOU ARE AGREE WITH THIS ******

About 100's Soldiers, Hindustan is Losing Every Year For Saving the Kashmir ..
And People Like Prashant Bhusan are commenting For the "Azad OF Kashmir"

● Don't You Think It is Hurting the Our Army Who are Standing Such Strong Cold for Saving the Kashmir for the Hindustan, ??

● Don't You Think It is Hurting Mother and Father and Family of the Army ??

● Don't You Think its a Insult to The Freedom Fighter who Fought for the Unity of the Nation ??

Being A Hindustani We Really Feels SHAME THAT WE SUPPORTED SUCH PEOPLE .. :((
We can't Even Speak Against This...
***********IF YOU AR AGREE WITH THIS THEN AT-LEST RAISE YOUR VOICE NOW ITS NOW OR NEVER *********

JO HAI WAH KAM NAHI JO NAHI WSKA GUM NAHI
 ·  ·  · 4 hours ago


इस प्रकार स्पष्ट है कि धर्म  और नैतिकता का दुरुपयोग करते हुये भ्रष्टाचार दूर करने के नाम पर शोषकों,उतपीडकों और देशद्रोही तत्वों एवं विदेशी शक्तियों से साठ-गांठ करके जो लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं उनकी ज्यादा से ज्यादा पोल खोली जाए और जनता को सच्चाई समझाई जाये। जो लोग जान-बूझ कर अन्ना/रामदेव आदि का समर्थन कर रहे हैं उनके विरुद्ध DIR (भारत रक्षा कानून )के तहत सख्त कारवाई की जाए। धर्म के नाम पर भ्रष्टाचार,शोषण एवं उत्पीड़न करने वालों के विरुद्ध कानूनी कारवाई भी की जाएँ और उनके विरुद्ध जनता को भी लाम बंद किया जाये यही 'धर्म' और 'समय ' की पुकार है। इसके लिए पहले धन और धनिकों की पूजा बंद करनी होगी अन्यथा अर्द्ध सैनिक तानाशाही स्थापित करने की तमन्ना रखने वाले संसदीय लोकतन्त्र को नष्ट करने हेतु 'राजनीति' एवं 'राजनेताओं' के विरुद्ध थोथा अभियान चला कर कामयाब हो जाएँगे। 

Monday, April 9, 2012

जन -चिकित्सा थी- होम्योपैथी ------ विजय राजबली माथुर

10 अप्रैल -महात्मा हैनीमेन जयंती पर विशेष : 

डॉ हैनीमेन का जन्म 10 अप्रैल सन 1755 ई .को जर्मन साम्राज्य के अंतर्गत सेकसनी प्रदेश के 'माइसेन 'नामक एक छोटे से गाँव मे हुआ था और 02 जूलाई सन 1843 ई .मे नवासी वर्ष की आयु मे उनका निधन हुआ। "कीर्तिर्यस्य स जीवति"= इस असार संसार को छोडने से पूर्व डॉ हैनीमेन 'चिकित्सा-विधान'मे एक अक्षय कीर्ति स्थापित कर गए। 

उपलब्ध जानकारी के अनुसार डॉ हैनीमेन जर्मनी के एक कीर्ति प्राप्त उच्च -पदवी धारी एलोपैथिक चिकित्सक थे। अनेकों बड़े-बड़े चिकित्सालयों मे बहुत से रोगियों का इलाज करते हुये उनके ध्यान मे यह बात आई कि अनुमान से रोग निर्वाचन (DIAGNOSIS) कर,और कितने ही बार अनुमान पर निर्भर रह कर दवा देने के कारण भयंकर हानियाँ होती हैं,यहाँ तक कि बहुत से रोगियों की मृत्यु तक हो जाया करती है। इन बातों से उन्हें बेहद वेदना हुई और अंततः उन्होने इस भ्रमपूर्ण चिकित्सा (एलोपैथी )द्वारा असत उपाय से धन-उपार्जन करने की लालसा ही त्याग दी एवं निश्चय किया कि अब वह पुस्तकों का अनुवाद करके अपना जीविकोपार्जन करेंगे। इसी क्रम मे एक दिन एक-'मेटिरिया मेडिका' का अनुवाद करते समय उन्होने देखा कि शरीर स्वस्थ रहने पर यदि सिनकोना की छाल सेवन की जाये तो 'कम्प-ज्वर'(जाड़ा-बुखार)पैदा हो जाता है और सिनकोना ही कम्प-ज्वर की प्रधान दवा है। यही बोद्ध डॉ हैनीमेन की नवीन चिकित्सा पद्धति के आविष्कार का मूल सूत्र हुआ। इसके बाद इसी सूत्र के अनुसार उन्होने अनेकों भेषज-द्रव्यों का स्वंय सेवन किया और उनसे जो -जो लक्षण पैदा हुये ,उनकी परीक्षा की । यदि किसी रोगी मे वे लक्षण दिखाई देते तो उसी भेषज-द्रव्य को देकर वह रोगी को 'रोग-मुक्त'भी करने लगे।


डॉ हैनीमेन अभी तक पहले की भांति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे। परंतु उन्हे यह एहसास हुआ कि रोग,आरोग्य हो जाने पर भी कुछ दिन बाद रोगी मे दुबारा बहुत सारे अनेक लक्षण पैदा हो जाते हैं। जैसे किनाइन का सेवन करने पर ज्वर तो आरोग्य हो जाता है ,परंतु उसके बाद रोगी मे --रक्त हीनता,प्लीहा,यकृत,पिलई,शोथ (सूजन ),धीमा बुखार आदि अनेक नए-नए उपसर्ग पैदा होकर रोगी को एकदम जर्जर बना डालते हैं। बस उसी एहसास के बाद से उन्होने दवा की मात्रा घटानी आरम्भ कर दी। इससे उन्हें यह मालूम हुआ कि,परिमाण या मात्रा भले ही कम हो ,आरोग्य दायिनी शक्ति पहले की तरह ही मौजूद रहती है और दुष्परिणाम भी पैदा नहीं होते।

अन्त मे उन्होने दवा का परिमाण क्रमशः भग्नांश के आकार मे प्रयोग करना आरम्भ किया और वे भग्नांश दवाएं फ्रेंच स्प्रिट,दूध की चीनी (शुगर आफ मिल्क)और चुयाया हुआ पानी (डिस्टिल्ड वाटर)इत्यादि औषद्ध-गुण विहीन चीजों के साथ मिला कर प्रयोग करना शुरू किया। यही नियम इस समय -'सदृश्य-विधान' कहलाता है जिसे डॉ हैनीमेन के नाम पर 'होम्योपैथिक-चिकित्सा' कहा जाता है। 

होम्योपैथी का 'सदृश्य -विधान' हमारे देश के 'आयुर्वेद' के सदृश्य सिद्धान्त से मेल खाता है। होम्योपैथी दवाएं होती भी हैं बहुत कम कीमत की। पहले होम्योपैथी चिकितक कोई कनसलटेशन चार्ज या परामर्श शुल्क भी नहीं लेते थे। एलोपैथी चिकित्सकों की भांति होम्योपैथी चिकित्सक कोई गरूर या घमंड भी नहीं रखते थे। अधिकांश होम्योपैथी चिकित्सकों के पीछे यह स्लोगन लिखा होता था-I TREATS,HE CURES.तब यह चिकित्सा पद्धति जनता की प्रिय चिकित्सा पद्धति थी।

गत 4-5 वर्षों से एलोपैथी चिकित्सा क्षेत्र मे फैले कमीशन वाद ने इस जन-चिकत्सा पद्धति (होम्योपैथी )को भी अपनी गिरफ्त मे ले लिया है। अब डॉ को कमीशन की रकमे बढ़ा दी गई हैं और विदेश दौरे के पेकेज जैसे एलोपैथी डॉ को मिलते थे वैसे ही मिलने लगे हैं। बाजार वाद के प्रभाव ने इस चिकित्सा पद्धति को भी मंहगा बनाना प्रारम्भ कर दिया है। यह महात्मा हैनीमेन की सोच के विपरीत है। आज जब हम डॉ हैनीमेन की 258 वी जयंती मना रहे हैं तो एक बार इस बात का भी मनन करें कि जिस एलोपैथी चिकित्सा की बुराइयों से त्रस्त होकर डॉ हैनीमेन ने नई जनोपयोगी चिकित्सा पद्धति का सृजन किया था उसे पुनः एलोपैथी की बुराइयों मे फँसने से बचाया जाये। वही डॉ हैनीमेन को सच्ची श्रद्धांजली होगी।  

Sunday, April 8, 2012

देश के लिए शहादत




08 अप्रैल-1857 को मंगल पांडे जी की शहादत,1929 मे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेंबली मे बम फेंका जाना -मुंबई के आतंकवादी हमले मे शहीद संदीप उन्नीकृष्णन जी का जन्मदिन। 

http://krantiswar.blogspot.in/2011/03/blog-post_22.html



Saturday, April 7, 2012

शबाना आज़मी को सम्मान क्यों?


हिंदुस्तान,लखनऊ,05 अप्रैल 2012 को प्रकाशित चित्र जो राष्ट्रपति महोदया  से  'पद्म भूषण'  लेते समय का है। 


हिंदुस्तान,आगरा,03 जून,2007 को प्रकाशित कुंडली 
शीर्षक देख कर चौंके नहीं। मै शबाना आज़मी जी को पुरस्कार प्राप्त होने का न कोई विरोध कर रहा हू और न यह कोई विषय है। मै यहाँ आपको प्रस्तुत शबाना जी की जन्म कुंडली के आधार पर उन ग्रह-नक्षत्रो से परिचय करा रहा हूँ जो उनको सार्वजनिक रूप से सम्मान दिलाते रहते हैं।

शुक्र की महा दशा मे राहू की अंतर्दशा 06 मार्च 1985 से 05 मार्च 1988 तक फिर ब्रहस्पत की अंतर्दशा 05 नवंबर 1990 तक थी। इस दौरान शबाना आज़मी को 'पद्म श्री' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कुंडली मे पंचम भाव मे चंद्रमा,सप्तम भाव मे बुध,अष्टम भाव मे शुक्र और दशम भाव मे ब्रहस्पत स्व-ग्रही हैं। इन अनुकूल ग्रहो ने शबाना जी को कई फिल्मी तथा दूसरे पुरस्कार भी दिलवाए हैं। वह कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री भी इनही ग्रहो के कारण चुनी गई हैं। सूर्य और ब्रहस्पत की स्थिति ने उन्हे राजनीति मे भी सक्रिय रखा है। वह भाकपा की कार्ड होल्डर मेम्बर भी रही हैं। 06 नवंबर 1996 से 05 जनवरी 1998 तक वह शुक्र महादशा मे केतू की अंतर्दशा मे थीं तभी उन्हे राज्य सभा के लिए नामित किया गया था।

वर्तमान 'पद्म भूषण'पुरस्कार ग्रहण करते समय चंद्रमा की महादशा के अनर्गत शुक्र की अंतर्दशा चल रही है  जो 06 नवंबर 2011 से लगी है और 05 जूलाई 2013 तक रहेगी।* यह समय स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ नरम भी हो सकता है। हानि,दुर्घटना अथवा आतंकवादी हमले का भी सामना करना पड़ सकता है। अतः खुद भी उन्हे सतर्क रहना चाहिए और सरकार को भी उनकी सुरक्षा का चाक-चौबन्द बंदोबस्त करना चाहिए। इसके बाद 29 नवंबर 2018 तक समय उनके अनुकूल रहेगा।

शबाना जी की जन्म लग्न मे राहू और पति भाव मे केतू बैठे हैं जिसके कारण उनका विवाह विलंब से हुआ। पंचम-संतान भाव मे नीच राशि का मंगल उनके संतान -हींन रहने का हेतु है। यदि समय पर 'मंगल' ग्रह की शांति कारवाई गई होती तो वह कन्या-संतान प्राप्त भी कर सकती थी। इसी प्रकार वर्तमान अनिष्टकारक समय मे 'बचाव व राहत प्राप्ति' हेतु उन्हें शुक्र मंत्र-"ॐ शु शुकराय नमः " का जाप प्रतिदिन 108 बार पश्चिम की ओर मुंह करके और धरती व खुद के बीच इंसुलेशन बना कर अर्थात किसी ऊनी आसन पर बैठ कर करना चाहिए।

कुछ तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी ज्योतिष की कटु आलोचना करते हैं और इसके लिए जिम्मेदार हैं ढ़ोंगी लोग जो जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं। ऐसे ही लोगो के कारण 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद व समृद्ध'बनाने वाला ज्योतिष विज्ञान हिकारत की नजरों से देखा जाता है। ये ग्रह-नक्षत्र क्या हैं और इंनका मानव जीवन पर प्रभाव किस प्रकार पड़ता है यदि यह समझ आ जाये तो व्यक्ति दुखो व कष्टो से बच सकता है यह पूरी तरह उस व्यक्ति पर ही निर्भर है जो खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है। जो भाग्य को कोसते हैं उनको विशेषकर नीचे लिखी बातों को ध्यान से समझना चाहिए की भाग्य क्या है और कैसे बंनता या बिगड़ता है-

सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म -का फल जो व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन मे प्राप्त नहीं कर पाता है आगामी जीवन हेतु संचित रह जाता है। ये कर्मफल भौतिक शरीर नष्ट होने के बाद आत्मा के साथ-साथ चलने वाले कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर के साथ गुप्त रूप से चलते रहते हैं। आत्मा के चित्त पर गुप्त रूप से अंकित रहने के कारण ही इन्हे 'चित्रगुप्त' संज्ञा दी गई है। चित्रगुप्त ढोंगियों द्वारा बताया गया कोई देवता या कायस्थों का सृजक नहीं है।

कर्मानुसार आत्मा 360 डिग्री मे बंटे ब्रह्मांड मे (भौतिक शरीर छोडने के बाद ) प्रतिदिन एक-एक राशि मे भ्रमण करती है और सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म जो अवशिष्ट रहे थे उनके अनुसार आगामी जीवन हेतु निर्देश प्राप्त करती है। 30-30 अंश मे फैली एक-एक राशि के अंतर्गत सवा दो-सवा दो नक्षत्र आते हैं। प्रत्येक नक्षत्र मे चार-चार चरण होते हैं। इस प्रकार 12 राशि X 9 ग्रह =108 या 27 नक्षत्र X4 चरण =108 होता है। इसी लिए 108 को एक माला का क्रम माना गया है जितना एक बार मे जाप करना निश्चित किया गया है। इस जाप के द्वारा अनिष्ट ग्रह की शांति उच्चारण की तरंगों (VIBRATIONS) द्वारा उस ग्रह तक संदेश पहुंचाने से हो जाती है।

जन्मपत्री के बारह भाव 12 राशियों को दर्शाते हैं और जन्म समय ,स्थान और तिथि के आधार पर ज्ञात 'लग्न' के अनुसार अंकित किए जाते हैं। नवो ग्रह उस समय की आकाशीय स्थिति के अनुसार अंकित किए जाते हैं। इनही की गणना से आगामी भविष्य का ज्ञान होता है जो उस व्यक्ति के पूर्व जन्म मे किए गए सदकर्म,दुष्कर्म एवं अकर्म पर आधारित होते हैं। अतः व्यक्ति खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है वह बुद्धि,ज्ञान व विवेक का प्रयोग कर दुष्प्रभावो को दूर कर सकता है या फिर लापरवाही करके अच्छे को बुरे मे बदल डालता है।

उपरोक्त कुंडली का विश्लेषण वैज्ञानिक आधार पर है। कुंडली जैसी अखबार मे छ्पी उसे सही मान कर विश्लेषण किया गया है।

=======
*

*
 

Thursday, April 5, 2012

संसदीय लोकतन्त्र और साम्यवाद


कल 06 अप्रैल - दंतेवाड़ा त्रासदी की वर्षगांठ के अवसर पर हम आज  यह बताना चाहते हैं कि 'हिंसा' को छोड़ कर अपने संसदीय लोकतन्त्र के माध्यम से ही हम 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध' बनाने हेतु प्रयास करके सफल हो सकते हैं। दो वर्ष पूर्व इस त्रासदी पर मैंने समाधान हेतु विचार प्रस्तुत किए थे ,पहले उनमे से कुछ का अवलोकन करें जो इस प्रकार हैं-

दंतेवाडा आदि नक्सली आन्दोलनों का समाधान हो सकता है सर्वप्रथम दोनों और की हिंसा को विराम देना होगा फिर वास्तविक धर्म अथार्त सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रहम्चर्य का वस्तुतः पालन करना होगा.

सत्य-सत्य यह है कि गरीब मजदूर-किसान का शोषण व्यापारी,उद्योगपति,साम्राज्यवादी सब मिलकर कर रहे हैं.यह शोषण अविलम्ब समाप्त किया जाये.
अहिंसा-अहिंसा मनसा,वाचा,कर्मणा होनी चाहिए.शक्तिशाली व सम्रद्द वर्ग तत्काल प्रभाव से गरीब किसान-मजदूर का शोषण और उत्पीडन बंद करें.
अस्तेय-अस्तेय अथार्त चोरी न करना,गरीबों के हकों पर डाका डालना व उन के निमित्त सहयोग –निधियों को चुराया जाना तत्काल  प्रभाव से बंद किया जाये.कर-अप्बंचना समाप्त की जाये.
अपरिग्रह-जमाखोरों,सटोरियों,जुअरियों,हवाला व्यापारियों,पर तत्काल प्रभाव से लगाम कसी जाये और बाज़ार में मूल्यों को उचित स्तर पर आने दिया जाये.कहीं नोटों को बोरों में भर कर रखने कि भी जगह नहीं है तो अधिकांश गरीब जनता भूख से त्राहि त्राहि कर रही है इस विषमता को तत्काल दूर किया जाये.
ब्रह्मचर्य -धन का असमान और अन्यायी वितरण ब्रहाम्चर्य व्यवस्था को खोखला कर रहा हैऔर इंदिरा नगर लखनऊ के कल्याण अपार्टमेन्ट जैसे अनैतिक व्यवहारों को प्रचलित कर रहा है.अतः आर्थिक विषमता को अविलम्ब दूर किया जाये.चूँकि हम देखते हैं कि व्यवहार में धर्मं का कहीं भी पालन नहीं किया जा रहा है इसीलिए तो आन्दोलनों का बोल बाला हो रहा है. दंतेवाडा त्रासदी खेदजनक है किन्तु इसकी प्रेरणा स्त्रोत वह सामाजिक दुर्व्यवस्था है जिसके तहत गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है.कहाँ हैं धर्मं का पालन कराने वाले?पाखंड और ढोंग तो धर्मं नहीं है,बल्कि यह ढोंग और पाखण्ड का ही दुष्परिणाम है  कि शोषण और उत्पीडन की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं.जब क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया होगी ही.


शुद्द रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं.
इसीलिए तो आज ,सुखी कोई परिवार नहीं.


उत्तर प्रदेश और पंजाब के पिछले विधान सभा चुनावों मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने बाम-पंथी मोर्चा बना कर चुनाव लड़े थे किन्तु जनता का समर्थन न मिल सका। अब पटना सम्मेलन के बाद यू पी मे सत्तारूढ़ सपा को लेकर तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास भाकपा द्वारा किया जा रहा है। संसदीय लोकतन्त्र मे ऐसे प्रयास ठीक हैं। परंतु बाम-पंथी और साम्यवादी सपनों का देश बनाने मे इन प्रयासों से कुछ भी भला न हो सकेगा,उल्टे साम्यवादी दल एवं बाम-पंथ भी बदनाम होगा जिससे अब तक बचा हुआ है। 

जातिगत,सांप्रदायिक आधार लेकर कारपोरेट जगत के सहारे से सत्तारूढ़ सपा व्यवहारिक सोच मे 'समाजवादी' नहीं है। 
न तो सपा डॉ लोहिया के आदर्शों पर ही चल रही है और न ही डॉ लोहिया के विचार साम्यवाद के लिए सहायक हैं जैसा कि सत्यनारायन ठाकुर साहब ने अपने लेखों की श्रंखला मे स्पष्ट किया था। उस पर मैंने यह टिप्पणी दी थी-

"सत्य नारायण ठाकुर साहब ने डा. लोहिया के विचारों के विरोधाभास को उजागर करते हुए तीन कड़ियों में विस्तार से बताया है उस पर ध्यान देने की पर्मावाश्यक्ता है.
वस्तुतः डा.लोहिया ने १९३० में 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी'की स्थापना १९२५ में स्थापित भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी'और इसके आंदोलन को विफल करने हेतु की थी.
स्वामी दयानंद के नेतृत्व में 'आर्य समाज'के माध्यम से देश की आजादी की जो मांग १८७५ में उठी थी उसे दबाने हेतु १८८५ में कांग्रेस की स्थापना रिटायर्ड आयी.सी.एस.श्री ह्यूम द्वारा वोमेश बेनर्जी की अध्यक्षता में हुयी थी जिसमें आर्य समाजियों ने घुस कर आजादी की मांग उठाना शुरू कर दिया था.बाद में कम्यूनिस्ट भी कांग्रेस में घुस कर ही स्वाधीनता आंदोलन चला रहे थे.
१९२० में स्थापित हिन्दू महासभा के विफल रहने पर १९२५ में आर.एस.एस. की स्थापना अंग्रेजों के समर्थन और प्रेरणा से हुयी जिसने आर्य समाज को दयानंद के बाद मुट्ठी में कर लिया तब स्वामी सहजानंद एवं गेंदा लाल दीक्षित सरीखे आर्य समाजी कम्यूनिस्ट आंदोलन में शामिल हो गए थे.
सी.एस. पी की वजह से जनता भ्रमित रही और क्रांतिकारी ही कम्यूनिस्ट हो सके.
डा.लोहिया ने अपनी पुस्तक'इतिहास चक्र'में साफ़ लिखा है 'साम्यवाद' और पूंजीवाद'सरीखा कोई भी वाद भारत के लिए उपयोगी नहीं है .
हम कम्यूनिस्ट जनता को यह नहीं समझाते थे -कम्यूनिज्म भारतीय अवधारणा है जिसे मैक्समूलर साहब की मार्फ़त महर्षि मार्क्स ने ग्रहण करके 'दास केपिटल'लिखा था.हमने धर्म को अधर्मियों के लिए खुला छोड़ दिया और कहते रहे-'मैन हेज क्रियेटेड गाड फार हिज मेंटल सिक्यूरिटी आनली'.हम जनता को यह नहीं समझा सके -जो शरीर को धारण करे वह धर्म है.नतीजा यह रहा जनता को भटका कर धर्म के नाम पर शोषण को मजबूत किया गया. डा.लोहिया भी रामायण मेला आदि शुरू कराकर जनता को जागृत करने के मार्ग में बाधक रहे.

आज यदि हम धर्म की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करके जनता को स्वामी दयानद,विवेकानंद,कबीर और कुछ हद तक गौतम बुद्ध का भी सहारा लेकर समझा सकें तो मार्क्सवाद को भारत में सफल कर सकते हैं जो यहीं सफल हो सकता है.यूरोपीय दर्शन जो रूस में लागू हुआ विफल हो चुका है.केवल और केवल भारतीय दर्शन ही मार्क्सवाद को उर्वर भूमि प्रदान करता है,यदि हम उसका लाभ उठा सकें तो जनता को राहत मिल सके.व्यक्तिगत स्तर पर मैं अपने 'क्रांतिस्वर' के  माध्यम से ऐसा ही कर रहा हूँ.परन्तु यदि सांगठनिक-तौर पर  किया जा सके तभी सफलता मिल सकती है।" 



हमारे कामरेड्स के बीच यह बड़ी गलतफहमी है कि धर्म कम्यूनिज़्म का विरोधी है। चूंकि वे पोंगा-पंथियों के प्रलाप को ही धर्म मानते हैं इसलिए ऐसा सोचते हैं। बात-बात मे चीन का उदाहरण देने वाले हमारे कामरेड्स बंधु इस समाचार पर गौर करके अमल करें तो लाभान्वित हो सकते हैं-


हिंदुस्तान,आगरा,23 फरवरी,2007
इसी ब्लाग के माध्यम से व्यक्तिगत-स्तर पर मै तो  'धर्म' की वास्तविक व्याख्या बार-बार समझाने का प्रयास करता रहूँगा तथा ढोंग-पाखंड का प्रबल विरोध करता रहूँगा किन्तु दुख और खेद के साथ कहना चाहता हूँ कि हमारे कामरेड साथी ही जो धर्म को सिरे से ही खारिज करते हैं अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन मे धर्म के नाम पर प्रदूषित पोंगा-पंथ का खूब अनुसरण करते है-मंदिर,मस्जिद और मजारों,चर्च और गुरुद्वारों  तक जाते हैं। जबकि मै केवल वैज्ञानिक 'हवन' ही करता हूँ और किसी भी प्रकार के  ढ़ोंगी स्थानो  पर जाने से परहेज करता हूँ। 


भारत मे लोकतान्त्रिक रूप से साम्यवादी -सत्ता स्थापित करने हेतु जनता को वास्तविक -वैज्ञानिक 'धर्म' से परिचय कराना ही होगा -आज नहीं तो कल। अन्यथा तीसरे-चौथे मोर्चे के नाम पर फिर वही लुटेरे राज करते रहेंगे।सी पी आई और सी पी एम के विलय के प्रयास भी हो रहे हैं केवल इतने मात्र से साम्यवादी विचार -धारा को 'हिन्दी क्षेत्र' मे समर्थन नहीं हासिल हो सकेगा। डॉ राम मनोहर लोहिया,राजर्षि पुरुषोत्तम दास  टंडन,सरदार पटेल,लाल बहादुर शास्त्री जी,चौ.चरण सिंह  आदि ऐसे ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय नेता रहे हैं जिनहोने बड़े ही सुनियोजित ढंग से हिन्दी क्षेत्र मे साम्यवादी आंदोलन को कुचला और दबाया था। जब हम हिन्दी क्षेत्र मे साम्यवादी आंदोलन की पुनः प्रतिष्ठा करने का प्रयास करेंगे तो हमे जनता को यह भी समझाना पड़ेगा कि इन प्रसिद्ध नेताओ ने 'धर्म की गलत व्याख्या' को समर्थन देने के कारण साम्यवाद का विरोध किया था। ऐसा करने से ही हम जनता का समर्थन सत्ता हेतु प्राप्त कर सकेंगे। अन्यथा जनता अपनी मूलभूत समस्याओ का निराकरण साम्यवादियों से कराती रहेगी और चुनावो मे वोट जातीय और धार्मिक आधार पर देती रहेगी। आखिर क्या वजह है कि हम जनता को 'धर्म' के वास्तविक अर्थ समझा कर उसका ठोस समर्थन हासिल नहीं कर सकते?