Friday, September 28, 2018

सभ्यता की शुरुआत और अंत का मिलन ------ अनिता गौतम





 Kashish News Sep 27, 2018 हमर बिहार
सभ्यता की शुरुआत और अंत का मिलनः अनिता गौतम
पटनाः कहते हैं सभ्यता की शुरुआत में लोग नंगे रहते थे, इंसान और जानवरों की जिंदगी में कोई फर्क नहीं था। समय के साथ सब कुछ सभ्य और सुव्यवस्थित होता गया। यौन उत्पीडन से बचाव और परिवार की खूबसूरती को बनाये रखने के लिए विवाह जैसी संस्था बनायी गयी। स्त्री पुरुष को पति पत्नी के रूप में स्थापित करने और एक दूसरे के प्रति समर्पण के लिए कुछ सामाजिक दायरे बने। विवाहेत्तर संबंधों को रोकने के लिए और परिवार को टूटने से बचाने के लिए कानून और समाज की मदद लेने व्यवथा की गयी।

आज देश में एक बार फिर से नंगई की वकालत हो रही है। क्षुधा की तृप्ति से ज्यादा अहमियत यौन तृप्ति को दी जा रही है। आपसी सहमति से बनने वाला कोई भी विवाहेतर यौन-संबंध अब कानूनन अपराध नहीं रहा। यह स्त्री और पुरुष या यूँ कहें कि पति और पत्नी दोनों के लिए जायज हो गया है। सिंगल स्त्री पुरुष तो पहले से ही अपने मन की करने के लिए आजाद हैं। प्रगतिशील दिखने और बनने की चाहत में दुर्भाग्य पूर्ण है कि यौन तृप्ति के लिए तो हमारे देश में नित नये नये फैसले हो रहें हैं लेकिन इनके दूरगामी दुष्प्रभावों पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।

रोटी कपड़ा और मकान की शर्तों पर अपने संविधान के साथ हम आजाद हुए थे लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी हम उन्हीं तकलीफों से जूझ रहे हैं। आज भी देश में एक बड़ी आबादी सर पर छत के लिए तरस रही है। मूलभूत संरचनाओं के अभाव में सुन्दर भौगोलिक खाकों के वावजूद हम अपेक्षित तरक्की नहीं कर पाये हैं। ऐसे में चंद लोगों को संतुष्ट करने के लिए, लिए गये फैसले का सीधा असर उस अवाम को झेलना पड़ेगा, जहां पति पत्नी के बीच 'वो'के लिए कोई जगह नहीं है। विवाहेत्तर संबंध के लिए जितनी सहजता से फैसला आया है उतना ही कठिन होगा इसे धरातल पर लाना।

न्यायलय ने इसे लागू करने में जो जल्दबाजी की उस से बेहतर एक सर्वे ही करा लिया होता ताकि इसके अच्छे बुरे प्रभाव तो सामने आ जाते। कानूनी जामा पहना दिये जाने के बाद पति पत्नी विवाहेत्तर संबंध तो बना भी लें पर उन परिवारों का क्या, उन बच्चों का क्या जो विवाह के बीच की अहम कड़ी होते हैं। हमारी सामाजिक व्यवस्था में विवाह न सिर्फ स्त्री पुरुष का बल्कि दो परिवार का भी मिलन होता है।

इतना ही नहीं, इस फैसले की आड़ में वेश्यावृति को बढ़ावा मिल सकता है, स्त्री के शारीरिक शोषण का पक्ष मजबूत हो सकता है। स्त्रियां अपने ही परिवार के बीच असुरक्षित हो जाएंगी। बहुत सारे मजाक के रिश्ते अब गलत उम्मीद लगा कर बैठ जाएंगे। पति पत्नी का रिश्ता भी शक की निगाहों से देखा जाने लगेगा। इतना ही नहीं सामाजिक अराजकता के साथ साथ शारीरिक बीमारियों को भी आमंत्रण देगा यह कानून।पश्चिमी देशों की नकल में सोच को प्रगति शील बनाने, स्त्रियों की दशा सुधारने बाल मजदूरी खत्म करने एवं शिक्षा को बेहतर बनाने जैसे कदम उठाये जाने की जरूरत पर बल दिया जाना चाहिए था।

‎स्त्री और पुरुष दोनों की सुरक्षा और सम्मान पति पत्नी के खूबसूरत रिश्ते में है। इसे तोड़ने और अति आधुनिक बनाने की नयी परिभाषा गढ़ने में कहीं ऐसी सड़ांध न फैल जाये जिसके दुर्गन्ध में न सिर्फ परिवार बल्कि मानवता ही दम तोड़ दे।


‎इतिहास गवाह है, विवाहेत्तर संबंध पहले भी बनते आये हैं और छुप छुपाकर आज भी बन रहे हैं पर उनका समाज पर बहुत ज्यादा असर कभी नही पड़ा है क्योंकि इसे छूत की तरह फैलने से रोकने के लिए कई व्यवस्था पहले थी। लेकिन अब जब इसे कानूनी मान्यता मिल गयी है तो ऐसा लगता है मानों जिस सामाजिक बुराई को सरकारी आदेशों से नहीं रोका जा सके उसे जायज कर दिया जाये। फिर तो समय के साथ बहुत कुछ जायज हो जाये इस से इंकार नहीं किया जा सकता है। बहरहाल शारीरिक भूख मिटाने के लिए नये नये उपाय वाले फैसले से अच्छा होता पेट की भूख को मिटाने के लिए सख्त फैसले होते। जन मानस की प्राथमिकताएं तय होती और देश को वैचारिक मजबूती देने एवं उसके अनुरूप तरक्की की परिभाषा गढ़ी जाती।
साभार : 
https://kashishnews.com/news/104/%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%86%E0%A4%A4-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%83-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A4%AE

~विजय राजबली माथुर ©

गरीबी,भुखमरी,अशिक्षा और बेरोजगारी से मरती जनता को यह कैसा सब्जबाग ? ------ अनिता गौतम

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नवभारत टाईम्स,लखनऊ,27-09-2018, पृष्ठ-1 
नवभारत टाईम्स,लखनऊ,27-09-2018,पृष्ठ-11 
नवभारत टाईम्स , लखनऊ, 27-09-2018, पृष्ठ-12 

नवभारत टाईम्स, लखनऊ,27-09-2018, पृष्ठ-11 



 


 विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं, फेसबुक, ब्लाग वगैरह पर कुछ महिला और कुछ पुरुष लेखकों द्वारा भी समाज के पितृ  सत्तात्मक होने व महिलाओं के दोयम दर्जे की बातें बहुतायत से देखने - पढ़ने को मिल जाती हैं। लेकिन ऐसा हुआ क्यों ? और कैसे ? इस पर कोई चर्चा नहीं मिलती है। अतः यहाँ इसी का विश्लेषण किया जा रहा है जो कि,  समाजशास्त्रीय विधि पर आधारित है । समाजशास्त्रीय विश्लेषण अनुमान विधि को अपनाता है क्योंकि प्राचीन काल के कोई भी प्रमाण आज उपलब्ध नहीं हैं। इस पद्धति में जिस प्रकार 'धुआँ देख कर आग लगने '  का अनुमान   और ' किसी गर्भिणी को देख कर संभोग होने ' का अनुमान किया जाता है  जो कि, पूर्णतया सही निकलते हैं उसी प्रकार प्राप्त संकेतों के अनुसार समाज के विकास - क्रम का अनुमान किया जाता है । 
अपने विकास के प्रारंभिक चरण में मानव समूहबद्ध अथवा झुंडों में ही रहता था। इस समय मनुष्य प्रायः नग्न ही रहता था,भूख लगने पर कच्चे फल फूल या पशुओं का कच्चा मांस खा कर ही जीवन निर्वाह करता था। कोई किसी की संपति (asset) न थी,समूहों का नेतृत्व मातृसत्तात्मक  (mother oriented) था। इस अवस्था को सतयुग पूर्व पाषाण काल (stone age) तथा आदिम साम्यवाद का युग भी कहा जाता है। परिवार के सम्बन्ध में यह ‘अरस्तु’ के अनुसार ‘communism of wives’ का काल था (संभवतः इसीलिए मातृ सत्तामक समूह रहे हों)।
अब से दस लाख वर्ष पूर्व जब इस पृथ्वी पर मानव की सृष्टि हुई तो प्रारम्भिक तौर पर युवा नर और नारी का सृजन हुआ था।इसी प्रकार सभी प्राणी युवा रूप में ही सृजित हुये थे ।  (यदि यूरोपीय दृष्टिकोण को सही मानें तब  यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है  कि, पहले मुर्गी या पहले अंडा ? ) क्योंकि केवल युवा नर - नारी ही सृजन कर सकते थे बाल या वृद्ध नहीं। संतान की पहचान उसकी जननी माँ से होती थी ।
इस समय मानव को प्रकृति से कठोर संघर्ष करना पड़ता था। मानव के ह्रास – विकास की कहानी सतत संघर्षों को कहानी है । अपने विकास के प्रारंभिक चरण में मानव समूहबद्ध अथवा झुंडों में ही रहता था। इस समय मनुष्य प्रायः नग्न ही रहता था,  भूख लगने पर कच्चे फल फूल या पशुओं का कच्चा मांस खा कर ही जीवन निर्वाह करता था। malthas - माल्थस  के अनुसार उत्पन्न संतानों में आहार, आवास तथा प्रजनन के अवसरों के लिए –‘जीवन के लिए संघर्ष’ हुआ करता है जिसमे प्रिंस डी लेमार्क के अनुसार ‘व्यवहार तथा अव्यवहार’ के सिद्दंतानुसार ‘योग्यता ही जीवित रहती है ’अथार्त जहाँ प्रकृति ने उसे राह दी वहीँ वह आगे बढ़ गया और जहाँ प्रकृति की विषमताओं ने रोका वहीँ रुक गया। कालांतर में तेज बुद्धि मनुष्य ने पत्थर और काष्ठ के उपकरणों तथा शस्त्रों का अविष्कार किया तथा जीवन पद्धति को और सरल बना लिया। इसे ‘उत्तर पाषाण काल’ की संज्ञा दी गयी। पत्थरों के घर्षण से अग्नि का अविष्कार हुआ और मांस को भून कर खाया जाने लगा ।  शिकार की तलाश और जल की उपलब्धता के आधार पर इन समूहों को परिभ्रमण करना होता था जिस क्रम में एक स्थान या जलाशय पर नियंत्रण हेतु इन समूहों में परस्पर संघर्ष होने लगे। अपनी शारीरिक संरचना के कारण संघर्ष - युद्धों में स्त्री- नारी - महिला कमजोर पड़ने लगी और बलिष्ठ होने के कारण पुरुषों का प्रभुत्व बढ्ने लगा। अब धीरे - धीरे परिवार व समाज में भी पुरुष वर्चस्व स्थापित होता गया और परिस्थितियों के चलते स्त्री ने भी इसे स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया। अब परिवार की पहचान स्त्री के बजाए पुरुष से होने के कारण संतान की पहचान भी माँ के बजाए पिता से होने लगी।' विवाह ' संस्था  का उदय हुआ और इसी अवस्था से समाज पुरुष - प्रधान होता चला गया है। परंतु विवाह संस्था ने परिवार को स्थिरता प्रदान की अब केवल माँ का ही दायित्व संतान के विकास का नहीं रह गया बल्कि उसमें पिता का भी योगदान मिलने लगा था।
धीरे धीरे मनुष्य ने देखा की फल खा कर फेके गए बीज किस प्रकार अंकुरित होकर विशाल वृक्ष का आकार ग्रहण कर लेते हैं। एतदर्थ उपयोगी पशुओं को अपना दास बनाकर मनुष्य कृषि करने लगा।  कृषि के आविष्कार के कारण स्थाई रूप से निवास भी करने लगा।उत्पादित फसलों के आदान - प्रदान से समाज का निर्वहन होने लगा। 
यहाँ विशेष स्मरणीय तथ्य यह है की जहाँ कृषि उपयोगी सुविधाओं का आभाव रहा वहां का जीवन पूर्ववत ही था यत्र - तत्र पाये जाने वाले आदिवासी समाज इसका उदाहरण हैं परंतु उनमें से भी अधिकांश आज पुरुष - प्रधान हो गए हैं।  इस दृष्टि से गंगा-यमुना का दोआबा विशेष लाभदायक रहा और यहाँ उच्च कोटि की सभ्यता का विकास हुआ जो आर्य सभ्यता कहलाती है और यह क्षेत्र आर्यावर्त। कालांतर में यह समूह  सभ्य,सुसंगठित व सुशिक्षित होता  गया ।  व्यापर कला-कौशल और दर्शन में भी ये सभ्य थे।
 महाभारत काल के बाद समाज में स्थिति बिगड़ने लगी और पौराणिक काल में ब्राह्मणों का प्रभुत्व बढ्ने के साथ - साथ नारियों की स्थिति निम्न से निम्नतर होती गई किन्तु आज स्त्रियाँ संघर्ष के जरिये  समाज में अपना खोया सम्मान प्राप्त करने में सफल हो रही हैं और विवेकवान पुरुष भी इस बात का समर्थन करने लगे हैं।

आदिम अवस्था तो वापिस नहीं लौट पाएगी किन्तु केकेयी व सीता के युग को तो पुनः स्थापित किया ही जा सकता है जिसमें नर और नारी समान थे कोई छोटा या बड़ा नहीं।

    ~विजय राजबली माथुर ©

Saturday, September 22, 2018

दिलचस्प दास्तां है यह ‘मंटो’ की ----- -पराग छापेकर

 यह मंटो की आत्मकथा है जिसमें बीच-बीच में कहानियों को पिरोया गया है।

फोटो साभार : नई दुनिया 






Publish Date:Fri, 21 Sep 2018 04:20 PM (IST)

Movie Review: बहुत दिलचस्प है ‘मंटो’ की यह दास्तां

सआदत हसन मंटो एक ऐसे दीवाने का नाम जिसने बेबुनियाद उम्मीद पर अपने कहानियों की नींव नहीं रखी बल्कि कड़वे यथार्थ को आग में लपेट कर लावा बनाकर अपने अफसाने कहे। उसकी आग उगलती कलम उससे निकलने वाले और रूह को बेदर्दी से थप्पड़ मारते अफसाने ना हिंदुस्तान को पसंद आए और ना ही पाकिस्तान को जहां पार्टीशन के बाद मंटो ने अपनी ज़िंदगी गुजार दी। सिर्फ 42 साल की उम्र में दुनिया से फना हो जाने वाले इस अजूबे कहानीकार का नाम दुनिया के साहित्य में अलग मुकाम रखता है।


नंदिता दास ने एक निर्देशक के तौर पर ‘मंटो’ के उन सारे जज्बातों को कड़वाहटों को उसकी जहर उगलती जुबान को बेहद संजीदगी के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरा है। यह मंटो की आत्मकथा है जिसमें बीच-बीच में कहानियों को पिरोया गया है। फिर भले ‘खोल दो’ हो या ‘ठंडा गोश्त’। उनके फिल्म इंडस्ट्री के अनुभव या उनकी निजी ज़िंदगी के ताल्लुकात को ध्यान में रखते हुए नंदिता ने मंटो के जीवन के सारे आयामों को समेट कर एक खूबसूरत फिल्म बनाई है।
जिन लोगों ने मंटो को पढ़ा है उनके लिए तो यह एक कमाल का तोहफा है मगर जिन लोगों ने मंटो को नहीं पढ़ा उनके लिए यह एक अलग दर्जे का अलहदा सिनेमा है।


अभिनय की बात करें तो नवाज पूरी फिल्म में सिर्फ मंटो ही नजर आए किसी एक फ्रेम में भी यूं नहीं लगता कि वह नवाज है। उनकी पत्नी बनी रसिका दुग्गल ने भी कमाल का परफॉर्मेंस दिया है। इसके अलावा छोटे छोटे किरदारों में ऋषि कपूर, परेश रावल और जाने-माने लेखक और शायर जावेद अख्तर भी नजर आते हैं।
कुल मिलाकर मंटो उस समय का सामाजिक दस्तावेज तो है ही साथ ही एक कालजई लेखक ‘मंटो’ से रूबरू होने का मौका भी है। अगर आप हटकर सिनेमा देखना पसंद करते हैं तो ‘मंटो’ आपको जरूर देखनी चाहिए।


-पराग छापेकर
https://naidunia.jagran.com/entertainment/film-review-manto-movie-review-by-parag-chhapekar-2580316

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24-09-2018: 


~विजय राजबली माथुर ©

Wednesday, September 19, 2018

देवी - देवता , अहिल्या और दुर्गा पूजा ------ विजय राजबली माथुर

*** *** भारतवर्ष को श्रेष्ठ =आर्ष=आर्य होने के कारण आर्यावृत भी कहा जाता था फारसी आक्रांताओं ने इनको हेय और निकृष्ट मानते हुये अपनी भाषा की एक गंदी गाली ' हिन्दू ' से विभूषित किया था। बौद्ध ग्रन्थों में हिंसा देने वालों को हिन्दू कहने का उल्लेख है किन्तु विद्वजन ढोंग- पाखंड को हिन्दू के रूप में पूजने का उपक्रम करते रहते हैं उनको मालूम होना चाहिए था कि ' देवता ' वह होता है जो देता है और लेता नहीं है ; जैसे नदी, वृक्ष, अग्नि, जल,वायु, धरती व आकाश आदि ।***  ***

"आज   देश के हालात कुछ  वैसे हैं :-मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों -२ दवा की। करम खोटे हैं तो ईश्वर  के गुण गाने से क्या होगा ,किया  परहेज़ न कभी  तो दवा खाने से क्या होगा.. आज की युवा शक्ति को तो मानो सांप   सूंघ  गया है वह कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है और हो भी क्यों ? इस  सब के पीछे कुत्सित मानसिकता वाले बुर्जुआ लोग ही हैं । वैसे तो वे बड़े सुधारवादी ,समन्वय वादी बने फिरते हैं,किन्तु यदि उनके ड्रामा को सच समझ कर उनसे मार्ग दर्शन माँगा जाये तो वे गुमनामी में चले जाते हैं,लेकिन चुप न बैठ कर युवा चेहरे को मोहरा बना कर अपनी खीझ उतार डालते हैं । 
ऐसा नहीं है कि यह सब आज हो रहा है.गोस्वामी तुलसीदास ,कबीर ,रैदास ,नानक ,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद जैसे महान विचारकों को अपने -२ समय में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था .१३ अप्रैल २००८ के हिंदुस्तान ,आगरा के अंक में नवरात्र की देवियों के सम्बन्ध में किशोर चंद चौबे साहब का शोधपरक लेख प्रकाशित हुआ था ,आपकी सुविधा के लिए उसकी स्केन प्रस्तुत कर रहे हैं
चैत्र और शरद नव रात्रों मे ढ़ोंगी-पाखंडी ढ़ोल-नगाड़ों से खुराफात करते हैं और खुद को देवी-भक्त घोषित करते हैं। ये नौ देवियाँ क्या हैं?चौबे साहब ने अच्छे और सरल ढंग से समझाया है किन्तु आम जनता की कौन कहे ?हमारे इंटरनेटी विद्वान भी मानने को तैयार न होंगे।
इन बदलते मौसमो मे उपरोक्त वर्णित औषद्धियों के सेवन से मानव मात्र को स्वस्थ रखने की कल्पना की गई थी। इन औषद्धियों से नौ दिन तक विशेष रूप से हवन करते थे जो ' धूम्र चिकित्सा ' का वैज्ञानिक आधार है। लेकिन आज क्या हो रहा है? भगवान =GOD=खुदा के दलालों (पुरोहितवादियों) ने मानव-मानव को लड़ा कर अपनी-अपनी दुकाने चला रखी हैं और मानव 'उल्टे उस्तरे' से उनके द्वारा ठगा जा रहा है। 'साईं बाबा','संतोषी माता','वैभव लक्ष्मी' नामक ठगी के नए स्तम्भ और ईजाद कर लिए गए हैं। जितना विज्ञान तरक्की कर रहा बताया जा रहा है उतना ही ज्यादा ढोंग-पाखंड का प्रचार होता जा रहा है जो पूर्णतः'अवैज्ञानिक' है।
एलोपैथी तो सिर्फ इतना भर जानती और मानती है कि,रोग का कारण बेक्टीरिया होते हैं और उन्हें नष्ट करने से उपचार हो जाता है। अब इसी पद्धति के विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि न तो सभी बेक्टीरिया को नष्ट करना चाहिए और न ही अब एंटी बायोटिक दवाओ का असर रह गया है। पंचम वेद -'आयुर्वेद' मे 'वात-कफ-पित्त' के बिगड़ने को सभी रोगों का मूल माना है और यह निष्कर्ष पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है।


भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु)+I (अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)-इन पाँच तत्वों से मिल कर सम्पूर्ण सृष्टि बनती है जिसमे वनस्पतियाँ और प्राणी सभी शामिल हैं।


1-वात=आकाश +वायु
2-कफ=भूमि +जल
3-पित्त=अग्नि


'आयुर्वेद' मे पाँच तत्वों को उनके यौगिकों के आधार पर तीन तत्वों मे समायोजित कर लिया गया है। इसी लिए 'वैद्य' रोगी के हाथ की कलाई पर स्थित 'नाड़ी' पर अपने हाथ की तीन अंगुलियाँ रख कर इन तीन तत्वों की उसके शरीर मे स्थिति का आंकलन करते हैं। (1 )वात का प्रभाव 'तर्जनी',(2 )कफ का -'अनामिका',(3 )पित्त का 'मध्यमा' अंगुली पर ज्ञात किया जाता है।


 * अंगुष्ठ के तुरंत बाद वाली उंगली 'तर्जनी' है जो हाथ मे ब्रहस्पति -गुरु ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। 'गुरु'ग्रह गैसों का पिटारा है। वायु भी गैसों का संग्रह ही है।


 * तर्जनी के बाद की सबसे बड़ी उंगली ही 'मध्यमा' है जो शनि का प्रतिनिधित्व करती है। शनि को ज्योतिष मे 'आयु' का कारक ग्रह माना गया है और आयुर्वेद मे इसकी उंगली पित्त -ऊर्जा की स्थिति की सूचक है।


 * मध्यमा के तुरंत बाद की उंगली 'अनामिका' है जो हाथ मे सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। ज्योतिष मे सूर्य को 'आत्मा' का कारक मानते हैं और हाथ मे यह उंगली आयुर्वेद के अनुसार  कफ की द्योतक है।


इन तीन उँगलियों पर पड़ने वाली नाड़ी की धमक वैद्य को रोगी के शरीर मे न्यूनता अथवा अधिकता का भान करा देती है जिसके अनुसार उपचार किया जाता है। जिस तत्व की अधिकता रोग का कारक है उसके शमन हेतु उसके विपरीत गुण वाले तत्व की औषद्धिया दी जाती हैं। जिस तत्व की न्यूनता होती है उसकी वृद्धि हेतु उसी तत्व वाले गुण की औषद्धिया दी जाती हैं। हमारे आयुर्वेद मे 'बेक्टीरिया' से रोग की उत्पत्ति मानने की सनक नहीं होती है,यह विशुद्ध प्राकृतिक  और वैज्ञानिक रूप से रोग की खोज करके उपचार करता है इसी लिए इसे आयु का विज्ञान =आयुर्वेद कहते हैं। 'आयुर्वेद' मे 'शल्य'चिकत्सा =सर्जरी का व्यापक महत्व था। गौतम बुद्ध के समय तक 'मस्तिष्क' तक की शल्य चिकित्सा होती थी और सिर दर्द का इलाज भी इस विधि से संभव था। 'बौद्ध' मत के विरोध की आंधी मे पोंगा-पंथियों ने मूल पांडु लिपियों और अनेक ग्रन्थों को जला डाला जिसका परिणाम यह हुआ कि  आगे से  आयुर्वेद मे शोद्ध होना बंद हो गया। उसके बाद 1100 वर्षों की गुलामी मे 'पौराणिकों' ने और ज्यादा ढोंग-पाखंड का कहर बरपाया । संत कबीर आदि ने इस ढोंग-पाखंड का विरोध उस काल मे किया और आधुनिक काल मे स्वामी दयानंद,स्वामी विवेकानंद आदि ने। किन्तु आचार्य श्री राम शर्मा आदि ने इनके प्रयासों पर पानी फेर दिया और ढोंग-पाखंड का आज इतना बोल बाला है कि अनेकों ढोंगियों ने खुद को आज भगवान घोषित कर दिया है।
राजनेता जनता को जाग्रत करने के बजाए जनता को दिग्भ्रमित करने के प्रयासों में लुटेरे व शोषकों की मन - मुराद पूरी करने में लगे हुये हैं : 


जब अर्थ का अनर्थ किया जाएगा तब उसकी प्रतिक्रिया भी वैसी ही होगी : 




  





भारतवर्ष को श्रेष्ठ =आर्ष=आर्य होने के कारण आर्यावृत भी कहा जाता था फारसी आक्रांताओं ने इनको हेय और निकृष्ट मानते हुये अपनी भाषा की एक गंदी गाली ' हिन्दू ' से विभूषित किया था। बौद्ध ग्रन्थों में हिंसा देने वालों को हिन्दू कहने का उल्लेख है किन्तु विद्वजन ढोंग- पाखंड को हिन्दू के रूप में पूजने का उपक्रम करते रहते हैं उनको मालूम होना चाहिए था कि ' देवता ' वह होता है जो देता है और लेता नहीं है ; जैसे नदी, वृक्ष, अग्नि, जल,वायु, धरती व आकाश आदि ।  
~विजय राजबली माथुर ©

Sunday, September 2, 2018

चहेते उद्योगपतियों के लिए कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग कर दी ------ गिरीश मालवीय

   * यानी खेल बिल्कुल साफ है पहले UPA ने इन उद्योगों को, उद्योगपतियों को कर्ज दिया फिर जब आपकी सरकार आयी तो आपने इन कर्ज़ डुबोने वाले उद्योगपतियों को ओर कर्ज दिया टेक्निकल भाषा मे आपने कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग कर दी लेकिन नाम फिर भी आपने सामने नही आने दिए क्योंकि ये नाम आपके चहेते उद्योगपतियों के ही थे
ओर अब आप इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखे जाने से रोक रहे हो
** मोदी जी आपने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में कर्जदारों पर कुछ ठोस कार्यवाही क्या की ? विजय माल्या भगा दिए गए, नीरव मोदी 'अपने मेहुल भाई' भगा दिए


Girish Malviya
02-09-2018 
मोदी जी के नाम एक खुला पत्र.............

बात तो NPA पर होनी ही चाहिए मोदी जी,.... कल आप इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की शुरुआत करते हुए खूब गरजे कि लोन डिफॉल्टर्स से सरकार एक-एक पैसा वसूल रही है ओर एनपीए समस्या के लिए यूपीए सरकार ही जिम्मेदार है,..... ब्ला ब्ला ब्ला.....नामदार कामदार... आदि ..इत्यादि..

पर मोदी जी आपने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में कर्जदारों पर कुछ ठोस कार्यवाही क्या की ? विजय माल्या भगा दिए गए, नीरव मोदी 'अपने मेहुल भाई' भगा दिए गए आपने जो दीवालिया कानून बनाया है वह भी इतना लचर कानून है कि अभी तक सिर्फ 1 या 2 मामले ही इसके अंतर्गत हल हो पाए हैं बाकी सब मामले कानूनी पचड़ों में पड़े हैं

वैसे माल्या से याद आया.... क्या जनता जानती हैं कि देश का सबसे बड़ा कर्जदार व्यक्ति कौन है इस संदर्भ में जो आखिरी आँकड़ा 2016 में आया था उसके अनुसार अनिल अंबानी की कंपनी अनिल धीरुभाई अंबानी ग्रुप पर देश मे सबसे ज्यादा कर्ज है उन पर 1 लाख 13 हजार करोड़ रूपये का कर्ज उस वक्त यानी 2016 में ही था दूसरे नम्बर पर रुइया भाइयों का एस्सार समूह है और उस पर भी एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है इसके बाद अनिल अग्रवाल का वेदांता ओर फिर गौतम अडानी का अडानी ग्रुप चौथा सबसे बड़ा कर्जदार ग्रुप है

देश के सबसे बड़े कर्जदार को आपने फ्रांस के साथ हुए राफेल के सौदे में पार्टनर बनवा दिया, 2015- 16 में रक्षा खरीद में मेक इन इंडिया की नीति को रिलायंस डिफेंस के पक्ष में किस तरह मोड़ा गया यहाँ बताने बैठूँगा तो कितने ही पन्ने भर जाएंगे, आज रिलायंस डिफेंस रिलायंस नेवल बन कर दीवालिया होने वाला है

आपने कल कहा कि UPA सरकार में कितना पैसा फंसा है यह देश से छुपाया गया, चलिए तो आपने क्या किया आपने भी उन कर्जदाताओं के नाम छुपा लिए........... 2016 में भारतीय रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ऋण न चुकाने वालों (डिफॉल्टरों) की सूची को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ही इस सूचना को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था

इस सूचना में एक करोड़ रुपये या अधिक के कर्जों की नियमित अदायगी न करने वालों की जानकारी मांगी गयी थी चलिए सूचना के अधिकार को भी छोड़िए

8 नवम्बर 2016 को की गयी नोटबन्दी के कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट से यह सूचना छिपाई गयी कि किन 57 लोगों के ऊपर 85 हज़ार करोड़ का कर्ज बकाया है. कोर्ट ने रिज़र्व बैंक से पूछा था कि आखिर इन लोगों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं कर दिए जाते ? तब भी आप मोदीं जी इन लोगों के साफ साफ बचा गये !

चलिए 2016 की भी छोड़िए हम आज की ही बात कर लेते हैं संसद में वित्त मामलों की स्थायी समिति ने आपके पिछले सालो के काम का अध्ययन करते हुए यह पाया कि आपके कार्यकाल में बैंक नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) में 6.2 लाख करोड़ रुपये की बढ़त हुई है. यह आंकड़ा मार्च 2015 से मार्च 2018 के बीच का है. समिति की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार इसकी वजह से बैंकों को 5.1 लाख करोड़ रुपये तक की प्रोविजनिंग करनी पड़ी हैं जब कोई लोन वापस नहीं मिलता है तो बैंक को उस रकम की व्यवस्था किसी और खाते से करनी होती है तो इसे प्रोविजनिंग करना कहा जाता है

इस समिति ने RBI से सवाल किया है कि वह आखिर दिसंबर, 2015 में हुई बैंको की एसेट क्वालिटी की समीक्षा (AQR) से पहले जरूरी उपाय अपनाने में विफल क्यों रहा? समिति के सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल थे, समिति ने इसकी वजह जाननी चाही है कि आखिर क्यों कर्जों के रीस्ट्रक्चरिंग (वापसी की शर्तों में फेरबदल) के द्वारा दबाव वाले खातों को एनपीए बनने दिया जा रहा है?

यानी खेल बिल्कुल साफ है पहले UPA ने इन उद्योगों को, उद्योगपतियों को कर्ज दिया फिर जब आपकी सरकार आयी तो आपने इन कर्ज़ डुबोने वाले उद्योगपतियों को ओर कर्ज दिया टेक्निकल भाषा मे आपने कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग कर दी लेकिन नाम फिर भी आपने सामने नही आने दिए क्योंकि ये नाम आपके चहेते उद्योगपतियों के ही थे

ओर अब आप इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखे जाने से रोक रहे हो

देश में 9,339 कर्जदार ऐसे हैं जिन्होंने एक लाख 11 हजार करोड़ रु का कर्ज जानबूझकर नहीं चुकाया यानी यह लोग विलफुल डिफॉल्टर है कानूनन इनका नाम बताया जा सकता हैं लेकिन तब भी उनका नाम डिस्क्लोज नही किया जा रहा है

चीन तो आपका यार है कभी चीन में उन लोगो के क्या हाल किये जाते हैं जो इस तरह जानबूझकर कर्ज नही देते यह पता कीजिएगा.........


मोदी जी सच तो यह है कि आपने अपने मित्रों को बचाने के लिए पूरे देश की अर्थव्यवस्था को भयानक कर्ज के जाल में उलझा दिया है
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/2053248078040163?__xts__%5B0%5D=68.ARC7yN52Q0LSpQbWbtGru56ZC7qRJPRJPvPLPGI6-3MB-CN9mXCuoAZ4G08H-xNGj-lKL4RU9E6pVEKphGf052vPyq4gTZOceuRStEhYpmK8RTKFo7ygknT22MywS0_uEtFWbH7aJfP4ZPgXYiXYFRZxGIxo7XVkSIMp27FkDRRE2lYNklU7vg&__tn__=-R

~विजय राजबली माथुर ©