रामभक्त भटक गए हैं
स्वाधीनता पूर्व जब महात्मा गांधी ने रामराज्य का स्वप्न देखा था तो देश में साम्राज्यवाद विरोधी लहर चल रही थी और विदेशी साम्राज्यवादियों से टक्कर लेने के संघर्ष में बापू को राम एक 'आदर्श क्रांतिकारी' के रूप में दिखाई दिए थे.इसीलिये उन्होंने स्वाधीन भारत में राम के शासन जैसी जनवादी व्यवस्था की कल्पना की थी.लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि,स्वाधीनता के तुरन्त बाद साम्राज्यवादियों के पिट्ठू नाथूराम गोडसे द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हमसे छीन लिया गया और इसी के साथ ही बापू के रामराज्य का स्वप्न मात्र स्वप्न ही रह गया.आज आजादी के ६३ वर्ष बाद भी साम्राज्यवादी शक्तियां अपने प्रतिनिधियों (आर.एस.एस.,वि.हि.प.-जिसे फोर्ड फौन्डेशन ने अपनी बैलेंस शीट में दिखाते हुए भारी चन्दा दिया है और उनके सहयोगी संगठन)के माध्यम से राम के नाम पर अपना शोषण-कारी खेल खेल रही हैं.जाने या अनजाने भारत की धर्म-प्राण जनता 'राम के साम्राज्यवाद विरोधी क्रांतिकारिता 'को भुला कर राम के नाम का साम्राज्यवादियों के हितचिंतकों द्वारा दुरूपयोग होना बर्दाश्त कर रही है.यह हमारे देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि,भारत को एकता के सूत्र में आबद्ध करने वाले राम का नाम भारत को तोड़ने की साजिश में घसीटा जा रहा है.
आज के बदले हुए विश्व में साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रभाव में नहीं ला सकतीं ,इसीलिये ये ताकतें हमारे देश की विभाजनकारी एवं विखंडनकारी शक्तियों को जिन्होंने रामजन्म भूमि का थोथा शिगूफा छोड़ रखा है,को मोहरा बना कर भारत की एकता व अखंडता पर कुठारा घात कर रही हैं.अतः हमारा राष्ट्र-हित में कर्तव्य है कि हम आप को राम की सहयोगी और अर्धांग्नी सीता जी द्वारा राष्ट्र-हित में किये गए त्याग,बलिदान और तप से परिचित कराएं और यह अपेक्षा करते हैं कि आज फिर उसी जोशो-खरोश से साम्राज्यवादी शक्तियों को शिकस्त दें जैसे सीता जी ने रावण को परास्त करने में राम के कंधे से कंधा मिलाकर किया था.
सीता -संक्षिप्त परिचय
जैसा कि 'रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना' में पहले ही उल्लेख हो चुका है-राम के आविर्भाव के समय भारत-भू छोटे -छोटे राज्यों में विभक्त होकर परस्पर संघर्ष शील शासकों का अखाड़ा बनी हुयी थी.दूसरी और रावण के नेतृत्व में साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को दबोचने के प्रयास में संलग्न थीं.अवकाश प्राप्त शासक मुनि विश्वमित्र जी जो महान वैज्ञानिक भी थे और जो अपनी प्रयोग शाला में 'त्रिशंकू' नामक कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाईट)को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर चुके थे जो कि आज भी अपनी कक्षा (ऑर्बिट) में ज्यों का त्यों परिक्रमा कर रहा है जिससे हम 'त्रिशंकू तारा' के नाम से परिचित हैं. विश्वमित्र जी केवल ब्रह्माण्ड (खगोल) विशेषज्ञ ही नहीं थे वह जीव-विज्ञानी भी थे.उनकी प्रयोगशाला में गोरैया चिड़िया -चिरौंटा तथा नारियल वृक्ष का कृत्रिम रूप से सृजन करके इस धरती पर सफल परीक्षण किया जा चुका था .ऐसे ब्रह्मर्षि विश्वमित्र ने विद्वान का वीर्य और विदुषी का रज (ऋषियों का रक्त)लेकर परखनली (टेस्ट ट्यूब) के माध्यम से एक कन्या को अपनी प्रयोगशाला में उत्पन्न किया जोकि,'सीता'नाम से जनक की दत्तक पुत्री बनवा दी गयीं.
वीरांगना-विदुषी सीता
जनक जो एक सफल वैज्ञानिक भी थे सीता को भी उतना ही वैज्ञानिक और वीर बनाना चाहते थे और इस उद्देश्य में पूर्ण सफल भी रहे.सीता ने यथोचित रूप से सम्पूर्ण शिक्षा ग्रहण की तथा उसे आत्मसात भी किया.उनके वयस्क होने पर मैग्नेटिक मिसाईल (शिव-धनुष) की मैग्नेटिक चाभी एक अंगूठी में मड़वा कर उन्हें दे दी गयी जिसे उन्होंने ऋषियों की योजनानुसार पुष्पवाटिका में विश्वमित्र के शिष्य के रूप में पधारे दशरथ-पुत्र राम को सप्रेम -भेंट कर दिया और जिसके प्रयोग से राम ने उस मैग्नेटिक मिसाईल उर्फ़ शिव-धनुष को उठा कर नष्ट (डिफ्यूज ) कर दिया ,जिससे कि इस भारत की धरती पर उसके युद्धक प्रयोग से होने वाले विनाश से बचा जा सका.इस प्रकार हुआ सीता और राम का विवाह उत्तरी भारत के दो दुश्मनों को सगी रिश्तेदारी में बदल कर जनता के लिए वरदान के रूप में आया क्योंकि अब संघर्ष प्रेम में बदल दिया गया था.
दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ सीता
सीता एक योग्य पुत्री,पत्नी,भाभी आदि होने के साथ-साथ जबरदस्त कूट्नीतिग्य भी थीं.इसलिए जब राष्ट्र -हित में राम-वनवास हुआ तो वह भी राम के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल दीं.वस्तुतः साम्राज्यवाद को अस्त्र-शस्त्र की ताकत से नहीं कूट-नीति के कमाल से परास्त किया जा सकता था और यही कार्य सीता ने किया.सीता वन में रह कर आमजनों के बीच घुल मिल कर तथ्यों का पता लगातीं थीं और राम के साथ मिल कर आगे की नीति निर्धारित करने में पूर्ण सहयोग देतीं थीं.रावण के बाणिज्य-दूतों (खर-दूषण ) द्वारा खुफिया जानकारियाँ हासिल करने के प्रयासों के कारण सीता जी ने उनका संहार करवाया.रावण की बहन-सम प्रिय जासूस स्वर्ण-नखा (जिसे विकृत रूप में सूपनखा कहा जाता है ) को अपमानित करवाने में सीता जी की ही उक्ति काम कर रही थी .इसी घटना को सूपनखा की नाक काटना एक मुहावरे के रूप में कहा जाता है.स्वर्ण-नखा का अपमान करने का उद्देश्य रावण को सामने लाना और बदले की कारवाई के लिए उकसाना था जिसमें सीता जी सफल रहीं.रावण अपने गुप्तचर मुखिया मारीची पर बहुत नाज करता था और मान-सम्मान भी देता था इसी लिए उसे रावण का मामा कहा जाता है.मारीची और रावण दोनों वेश बदल कर यह पता लगाने आये कि,राम कौन हैं ,उनका उद्देश्य क्या है?वह वनवास में हैं तो रावण के गुप्तचरों का संहार क्यों कर रहे हैं ?वह वन में क्या कर रहे हैं?.
राम और सीता ने रावण के सामने आने पर एक गंभीर व्यूह -रचना की और उसमें रावण को फंसना ही पडा.वेश बदले रावण के ख़ुफ़िया -मुखिया मारीची को काफी दूर दौड़ा कर और रावण की पहुँच से बाहर हो जाने पर मार डाला और लक्ष्मण को भी वहीं सीता जी द्वारा भेज दिया गया.निराश और हताश रावण ने राम को अपने सामने लाने हेतु छल से सीता को अपने साथ लंका ले जाने का उपक्रम किया लेकिन वह अनभिग्य था कि,यही तो राम खुद चाहते थे कि वह सीता को लंका ले जाए तो सीता वहां से अपने वायरलेस (जो उनकी अंगूठी में फिट था) से लंका की गोपनीय जानकारियाँ जुटा -जुटा कर राम को भेजती रहें.
सीता जी ने रावण को गुमराह करने एवं राम को गमन-मार्ग का संकेत देने हेतु प्रतीक रूप में कुछ गहने विमान से गिरा दिए थे.बाली के अवकाश प्राप्त एयर मार्शल जटायु ने रावण के विमान पर इसलिए प्रहार करना चाहा होगा कि वह किस महिला को बगैर किसी सूचना के अपने साथ ले जा रहा है.चूंकि वह रावण के मित्र बाली की वायु सेना से सम्बंधित था अतः रावण ने केवल उसके विमान को क्षति पहुंचाई और उसे घायलावस्था में छोड़ कर चला गया.जटायु से सम्पूर्ण वृत्तांत सुन कर राम ने सुग्रीव से मित्रता कर ली और उद्भट विद्वान एवं उपेक्षित वायु-सेना अधिकारी हनुमान को पूर्ण मान -सम्मान दिया.दोनों ने राम को सहायता एवं समर्थन का ठोस आश्वासन दिया जिसे समय के साथ -साथ पूर्ण भी किया.राम ने भी रावण के सन्धि- मित्र बाली का संहार कर सुग्रीव को सत्तासीन करा दिया. हनुमान अब प्रधान वायु सेनापति (चीफ एयर मार्शल) बना दिए गए जो कि कूटनीति के भी विशेषज्ञ थे.
सीता द्वारा भेजी लंका की गुप्त सूचनाओं के आधार पर राम ने हनुमान को पूर्ण विशवास में लेकर लंका के गुप्त मिशन पर भेजा.हनुमान जी ने लंका की सीमा में प्रवेश अपने विमान को इतना नीचे उड़ा कर किया जिससे वह समुद्र में लगे राडार 'सुरसा'कीपकड़ से बचे रहे ,इतना ही नहीं उन्होंने 'सुरसा'राडार को नष्ट भी कर दिया जिससे आने वाले समय में हमलावर विमानों की खबर तक रावण को न मिल सके.
लंका में प्रवेश करके हनुमान जी ने सबसे पहले सीता जी से भेंट की तथा गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान किया और सीता जी के परामर्श पर रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण जो उससे असंतुष्ट था ही से संपर्क साधा और राम की तरफ से उसे पूर्ण सहायता तथा समर्थन का ठोस आश्वासन भी प्रदान कर दिया.अपने उद्देश्य में सफल होकर उन्होंने सीता जी को सम्पूर्ण वृत्तांत की सूचना दे दी.सीता जी से अनुमति लेकर हनुमान जी ने रावण के कोषागारों एवं शस्त्रागारों पर अग्नि-बमों (नेपाम बम) की वर्षा कर डाली.खजाना और हथियार नष्ट कर के गूढ़ कूटनीति के तहत और सीता जी के आशीर्वाद से उन्होंने अपने को रावण की सेना द्वारा गिरफ्तार करा लिया और दरबार में रावण के समक्ष पेश होने पर खुद को शांति-दूत बताया जिसका विभीषण ने भी समर्थन किया और उन्हें अंतरष्ट्रीय कूटनीति के तहत छोड़ने का प्रस्ताव रखा.अंततः रावण को मानना ही पडा. परन्तु लौटते हुए हनुमान के विमान की पूँछ पर संघातक प्रहार भी करवा दिया.हनुमान जी तो साथ लाये गए स्टैंड बाई छोटे विमान से वापिस लौट आये और बदली हुयी परिस्थितियों में सीता जी से उनकी अंगूठी में जडित वायरलेस भी वापिस लेते गए.
विभीषण ने शांति-दूत हनुमान के विमान पर प्रहार को मुद्दा बना कर रावण के विदेश मंत्री पद को त्याग दिया और खुल कर राम के साथ आ गया.सीता जी का लंका प्रवास सफल रहा -अब रावण की फ़ौज और खजाना दोनों खोखले हो चुके थे,उसका भाई अपने समर्थकों के साथ उसके विरुद्ध राम के साथ आ चुका था.अब लंका पर राम का आक्रमण एक औपचारिकता मात्र रह गया था फिर भी शांति के अंतिम प्रयास के रूप में रावण के मित्र बाली के पुत्र अंगद को दूत बना कर भेजा गया. रावण ने समपर्ण की अपेक्षा वीर-गति प्राप्त करना उपयुक्त समझा और युद्ध में तय पराजय का वरण किया.
इस प्रकार महान कूटनीतिज्ञ सीता जी के कमाल की सूझ-बूझ ने राम को साम्राज्यवादी रावण के गढ़ में ही उसे परास्त करने का मार्ग प्रशस्त किया. आज फिर आवश्यकता है एक और सीता एवं एक और राम की जो साम्राज्यवाद के जाल को काट कर विश्व की कोटि-कोटि जनता को शोषण तथा उत्पीडन से मुक्त करा सकें.जब तक राम की वीर गाथा रहेगी सीता जी की कूटनीति को भुलाया नहीं जा सकेगा.
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स्वाधीनता पूर्व जब महात्मा गांधी ने रामराज्य का स्वप्न देखा था तो देश में साम्राज्यवाद विरोधी लहर चल रही थी और विदेशी साम्राज्यवादियों से टक्कर लेने के संघर्ष में बापू को राम एक 'आदर्श क्रांतिकारी' के रूप में दिखाई दिए थे.इसीलिये उन्होंने स्वाधीन भारत में राम के शासन जैसी जनवादी व्यवस्था की कल्पना की थी.लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि,स्वाधीनता के तुरन्त बाद साम्राज्यवादियों के पिट्ठू नाथूराम गोडसे द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हमसे छीन लिया गया और इसी के साथ ही बापू के रामराज्य का स्वप्न मात्र स्वप्न ही रह गया.आज आजादी के ६३ वर्ष बाद भी साम्राज्यवादी शक्तियां अपने प्रतिनिधियों (आर.एस.एस.,वि.हि.प.-जिसे फोर्ड फौन्डेशन ने अपनी बैलेंस शीट में दिखाते हुए भारी चन्दा दिया है और उनके सहयोगी संगठन)के माध्यम से राम के नाम पर अपना शोषण-कारी खेल खेल रही हैं.जाने या अनजाने भारत की धर्म-प्राण जनता 'राम के साम्राज्यवाद विरोधी क्रांतिकारिता 'को भुला कर राम के नाम का साम्राज्यवादियों के हितचिंतकों द्वारा दुरूपयोग होना बर्दाश्त कर रही है.यह हमारे देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि,भारत को एकता के सूत्र में आबद्ध करने वाले राम का नाम भारत को तोड़ने की साजिश में घसीटा जा रहा है.
आज के बदले हुए विश्व में साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रभाव में नहीं ला सकतीं ,इसीलिये ये ताकतें हमारे देश की विभाजनकारी एवं विखंडनकारी शक्तियों को जिन्होंने रामजन्म भूमि का थोथा शिगूफा छोड़ रखा है,को मोहरा बना कर भारत की एकता व अखंडता पर कुठारा घात कर रही हैं.अतः हमारा राष्ट्र-हित में कर्तव्य है कि हम आप को राम की सहयोगी और अर्धांग्नी सीता जी द्वारा राष्ट्र-हित में किये गए त्याग,बलिदान और तप से परिचित कराएं और यह अपेक्षा करते हैं कि आज फिर उसी जोशो-खरोश से साम्राज्यवादी शक्तियों को शिकस्त दें जैसे सीता जी ने रावण को परास्त करने में राम के कंधे से कंधा मिलाकर किया था.
सीता -संक्षिप्त परिचय
जैसा कि 'रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना' में पहले ही उल्लेख हो चुका है-राम के आविर्भाव के समय भारत-भू छोटे -छोटे राज्यों में विभक्त होकर परस्पर संघर्ष शील शासकों का अखाड़ा बनी हुयी थी.दूसरी और रावण के नेतृत्व में साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को दबोचने के प्रयास में संलग्न थीं.अवकाश प्राप्त शासक मुनि विश्वमित्र जी जो महान वैज्ञानिक भी थे और जो अपनी प्रयोग शाला में 'त्रिशंकू' नामक कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाईट)को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर चुके थे जो कि आज भी अपनी कक्षा (ऑर्बिट) में ज्यों का त्यों परिक्रमा कर रहा है जिससे हम 'त्रिशंकू तारा' के नाम से परिचित हैं. विश्वमित्र जी केवल ब्रह्माण्ड (खगोल) विशेषज्ञ ही नहीं थे वह जीव-विज्ञानी भी थे.उनकी प्रयोगशाला में गोरैया चिड़िया -चिरौंटा तथा नारियल वृक्ष का कृत्रिम रूप से सृजन करके इस धरती पर सफल परीक्षण किया जा चुका था .ऐसे ब्रह्मर्षि विश्वमित्र ने विद्वान का वीर्य और विदुषी का रज (ऋषियों का रक्त)लेकर परखनली (टेस्ट ट्यूब) के माध्यम से एक कन्या को अपनी प्रयोगशाला में उत्पन्न किया जोकि,'सीता'नाम से जनक की दत्तक पुत्री बनवा दी गयीं.
वीरांगना-विदुषी सीता
जनक जो एक सफल वैज्ञानिक भी थे सीता को भी उतना ही वैज्ञानिक और वीर बनाना चाहते थे और इस उद्देश्य में पूर्ण सफल भी रहे.सीता ने यथोचित रूप से सम्पूर्ण शिक्षा ग्रहण की तथा उसे आत्मसात भी किया.उनके वयस्क होने पर मैग्नेटिक मिसाईल (शिव-धनुष) की मैग्नेटिक चाभी एक अंगूठी में मड़वा कर उन्हें दे दी गयी जिसे उन्होंने ऋषियों की योजनानुसार पुष्पवाटिका में विश्वमित्र के शिष्य के रूप में पधारे दशरथ-पुत्र राम को सप्रेम -भेंट कर दिया और जिसके प्रयोग से राम ने उस मैग्नेटिक मिसाईल उर्फ़ शिव-धनुष को उठा कर नष्ट (डिफ्यूज ) कर दिया ,जिससे कि इस भारत की धरती पर उसके युद्धक प्रयोग से होने वाले विनाश से बचा जा सका.इस प्रकार हुआ सीता और राम का विवाह उत्तरी भारत के दो दुश्मनों को सगी रिश्तेदारी में बदल कर जनता के लिए वरदान के रूप में आया क्योंकि अब संघर्ष प्रेम में बदल दिया गया था.
दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ सीता
सीता एक योग्य पुत्री,पत्नी,भाभी आदि होने के साथ-साथ जबरदस्त कूट्नीतिग्य भी थीं.इसलिए जब राष्ट्र -हित में राम-वनवास हुआ तो वह भी राम के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल दीं.वस्तुतः साम्राज्यवाद को अस्त्र-शस्त्र की ताकत से नहीं कूट-नीति के कमाल से परास्त किया जा सकता था और यही कार्य सीता ने किया.सीता वन में रह कर आमजनों के बीच घुल मिल कर तथ्यों का पता लगातीं थीं और राम के साथ मिल कर आगे की नीति निर्धारित करने में पूर्ण सहयोग देतीं थीं.रावण के बाणिज्य-दूतों (खर-दूषण ) द्वारा खुफिया जानकारियाँ हासिल करने के प्रयासों के कारण सीता जी ने उनका संहार करवाया.रावण की बहन-सम प्रिय जासूस स्वर्ण-नखा (जिसे विकृत रूप में सूपनखा कहा जाता है ) को अपमानित करवाने में सीता जी की ही उक्ति काम कर रही थी .इसी घटना को सूपनखा की नाक काटना एक मुहावरे के रूप में कहा जाता है.स्वर्ण-नखा का अपमान करने का उद्देश्य रावण को सामने लाना और बदले की कारवाई के लिए उकसाना था जिसमें सीता जी सफल रहीं.रावण अपने गुप्तचर मुखिया मारीची पर बहुत नाज करता था और मान-सम्मान भी देता था इसी लिए उसे रावण का मामा कहा जाता है.मारीची और रावण दोनों वेश बदल कर यह पता लगाने आये कि,राम कौन हैं ,उनका उद्देश्य क्या है?वह वनवास में हैं तो रावण के गुप्तचरों का संहार क्यों कर रहे हैं ?वह वन में क्या कर रहे हैं?.
राम और सीता ने रावण के सामने आने पर एक गंभीर व्यूह -रचना की और उसमें रावण को फंसना ही पडा.वेश बदले रावण के ख़ुफ़िया -मुखिया मारीची को काफी दूर दौड़ा कर और रावण की पहुँच से बाहर हो जाने पर मार डाला और लक्ष्मण को भी वहीं सीता जी द्वारा भेज दिया गया.निराश और हताश रावण ने राम को अपने सामने लाने हेतु छल से सीता को अपने साथ लंका ले जाने का उपक्रम किया लेकिन वह अनभिग्य था कि,यही तो राम खुद चाहते थे कि वह सीता को लंका ले जाए तो सीता वहां से अपने वायरलेस (जो उनकी अंगूठी में फिट था) से लंका की गोपनीय जानकारियाँ जुटा -जुटा कर राम को भेजती रहें.
सीता जी ने रावण को गुमराह करने एवं राम को गमन-मार्ग का संकेत देने हेतु प्रतीक रूप में कुछ गहने विमान से गिरा दिए थे.बाली के अवकाश प्राप्त एयर मार्शल जटायु ने रावण के विमान पर इसलिए प्रहार करना चाहा होगा कि वह किस महिला को बगैर किसी सूचना के अपने साथ ले जा रहा है.चूंकि वह रावण के मित्र बाली की वायु सेना से सम्बंधित था अतः रावण ने केवल उसके विमान को क्षति पहुंचाई और उसे घायलावस्था में छोड़ कर चला गया.जटायु से सम्पूर्ण वृत्तांत सुन कर राम ने सुग्रीव से मित्रता कर ली और उद्भट विद्वान एवं उपेक्षित वायु-सेना अधिकारी हनुमान को पूर्ण मान -सम्मान दिया.दोनों ने राम को सहायता एवं समर्थन का ठोस आश्वासन दिया जिसे समय के साथ -साथ पूर्ण भी किया.राम ने भी रावण के सन्धि- मित्र बाली का संहार कर सुग्रीव को सत्तासीन करा दिया. हनुमान अब प्रधान वायु सेनापति (चीफ एयर मार्शल) बना दिए गए जो कि कूटनीति के भी विशेषज्ञ थे.
सीता द्वारा भेजी लंका की गुप्त सूचनाओं के आधार पर राम ने हनुमान को पूर्ण विशवास में लेकर लंका के गुप्त मिशन पर भेजा.हनुमान जी ने लंका की सीमा में प्रवेश अपने विमान को इतना नीचे उड़ा कर किया जिससे वह समुद्र में लगे राडार 'सुरसा'कीपकड़ से बचे रहे ,इतना ही नहीं उन्होंने 'सुरसा'राडार को नष्ट भी कर दिया जिससे आने वाले समय में हमलावर विमानों की खबर तक रावण को न मिल सके.
लंका में प्रवेश करके हनुमान जी ने सबसे पहले सीता जी से भेंट की तथा गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान किया और सीता जी के परामर्श पर रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण जो उससे असंतुष्ट था ही से संपर्क साधा और राम की तरफ से उसे पूर्ण सहायता तथा समर्थन का ठोस आश्वासन भी प्रदान कर दिया.अपने उद्देश्य में सफल होकर उन्होंने सीता जी को सम्पूर्ण वृत्तांत की सूचना दे दी.सीता जी से अनुमति लेकर हनुमान जी ने रावण के कोषागारों एवं शस्त्रागारों पर अग्नि-बमों (नेपाम बम) की वर्षा कर डाली.खजाना और हथियार नष्ट कर के गूढ़ कूटनीति के तहत और सीता जी के आशीर्वाद से उन्होंने अपने को रावण की सेना द्वारा गिरफ्तार करा लिया और दरबार में रावण के समक्ष पेश होने पर खुद को शांति-दूत बताया जिसका विभीषण ने भी समर्थन किया और उन्हें अंतरष्ट्रीय कूटनीति के तहत छोड़ने का प्रस्ताव रखा.अंततः रावण को मानना ही पडा. परन्तु लौटते हुए हनुमान के विमान की पूँछ पर संघातक प्रहार भी करवा दिया.हनुमान जी तो साथ लाये गए स्टैंड बाई छोटे विमान से वापिस लौट आये और बदली हुयी परिस्थितियों में सीता जी से उनकी अंगूठी में जडित वायरलेस भी वापिस लेते गए.
विभीषण ने शांति-दूत हनुमान के विमान पर प्रहार को मुद्दा बना कर रावण के विदेश मंत्री पद को त्याग दिया और खुल कर राम के साथ आ गया.सीता जी का लंका प्रवास सफल रहा -अब रावण की फ़ौज और खजाना दोनों खोखले हो चुके थे,उसका भाई अपने समर्थकों के साथ उसके विरुद्ध राम के साथ आ चुका था.अब लंका पर राम का आक्रमण एक औपचारिकता मात्र रह गया था फिर भी शांति के अंतिम प्रयास के रूप में रावण के मित्र बाली के पुत्र अंगद को दूत बना कर भेजा गया. रावण ने समपर्ण की अपेक्षा वीर-गति प्राप्त करना उपयुक्त समझा और युद्ध में तय पराजय का वरण किया.
इस प्रकार महान कूटनीतिज्ञ सीता जी के कमाल की सूझ-बूझ ने राम को साम्राज्यवादी रावण के गढ़ में ही उसे परास्त करने का मार्ग प्रशस्त किया. आज फिर आवश्यकता है एक और सीता एवं एक और राम की जो साम्राज्यवाद के जाल को काट कर विश्व की कोटि-कोटि जनता को शोषण तथा उत्पीडन से मुक्त करा सकें.जब तक राम की वीर गाथा रहेगी सीता जी की कूटनीति को भुलाया नहीं जा सकेगा.
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