Saturday, September 4, 2010

अपना हाथ जगन्नाथ --- विजय राजबली माथुर

''हाथों की चंद लकीरों का,यह खेल है तकदीरों का''शम्मी कपूर पर फिल्माए विधाता के इस गीत से कौन परिचित नहीं होगा.बुजुर्गों का कहना है-अपना हाथ जगन्नाथ.जी हाँ हमारा अपना हाथ हमारे भविष्य का भाग्य विधाता ही है.कर्म ही पूजा है हम हाथ द्वारा कर्म करके ही जीवन जीते हैं.कभी-कभी हमें हमारे कर्मों का पूरा फल नहीं मिलता है और कभी-कभी कम प्रयास से या बिना प्रयास के भी हमें फल प्राप्ति हो जाती है.ऐसा क्यों होता है?आइये थोडा विचार करें।

कर्म तीन प्रकार के होते हैं -सद्कर्म,दुष्कर्म और अकर्म.अच्छे कर्मों का अच्छा और बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है,यह तो सभी जानते हैं.अकर्म वह है जो करना चाहिए था और किया नहीं गया इसका भी फल मिलता है.अपने जीवन में सभी कर्मों की प्राप्ति नहीं हो पाती है जिन कर्मों का फल मिलने से बच जाता है वे ही आगामी जीवन का भाग्य बन जाते हैं.जब जातक जन्म लेता है तो इस भाग्य को साथ लाता है,जिसकी छाप उसके बाएं हाथ की हथेली में स्पष्ट देखि जाती है जिसे हम हस्त रेखा ज्ञान से समझ सकते हैं.हमारे यहाँ एक गलत धारणा प्रचलित है की बांया हाथ महिलायों का और दांया हाथ पुरुषों का होना चाहिए.साथ ही यूरोप,अमरीका में भी दूसरी गलत धारणा प्रचलित है की दांया हाथ बारोजगार और बांया हाथ बेरोजगार लोगों का देखा जाए चाहे वे महिला हों या पुरुष.कर्म सिद्दांत के अनुसार दांया हाथ हमारे अर्जित कर्मों का लेखा-जोखा दिखाता है.इस प्रकार किसी भी पुरुष या महिला का बांया हाथ देख कर जहाँ हम यह ज्ञात कर लेते हैं की वह कैसा भाग्य लेकर आया है,वहीँ उसके दांये हाथ के अध्ययन से उसके द्वारा उपार्जित कर्मों को देख कर अनुमान लगा लेते हैं की उसने क्या खोया और क्या पाया अथवा भविष्य में क्या पाने की सम्भावना है।

यह याद रखें मनुष्य अपने कर्मों द्वारा अच्छे प्रारब्ध(भाग्य)को भी गँवा सकता है और अपने ही पुरुषार्थ द्वारा वह भी प्राप्त कर सकता है जो उसे प्रारब्ध में प्राप्त नहीं हुआ था.हस्त रेखाओं के अध्ययन से हम क्या करना चाहिए और क्या छोड़ देना चाहिए की दिशा तय कर सकते हैं.प्रातः काल शैय्या त्यागने से पूर्व अपनी दोनों हथेलियों को मिलाकर दर्शन करने से आत्म-बल बढ़ता है,इच्छा शक्ति मजबूत होती है क्योंकि हमें हमारे हाथों के माध्यम से अखिल ब्रह्माण्ड के दर्शन हो जाते हैं.कहा भी है:-
कराग्रे वसते लक्ष्मी,करमध्ये सरस्वती।
करप्र्श्ठे स्थितो ब्रह्मा,प्रभाते करदर्शनम॥

1 comment:

Surendra Singh Bhamboo said...

अति सुन्दर मन भावन रचना है

हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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