Tuesday, September 7, 2010

''भू नभ अंतर्गत पदार्थ मंगलदायक हो जावें। विज्ञानी प्रकृति के सारे गूढ़ रहस्य बतावें॥'' ...........


ऋग्वेद के मंडल ७ सूक्त ३५ के मन्त्र का यह अनुवाद है जिससे स्पष्ट होता है कि वेदों में वैज्ञानिकों का दायित्व प्रकृति के रहस्यों को खोज कर जनता तक पहुंचाना बताया गया है.सम्पूर्ण वेद विज्ञान सम्मत हैं परन्तु एक राष्ट्रीय दैनिक के अर्ध ज्ञानी और अपरिपक्व सम्पादकीय में ६ सितम्बर २०१० को लिखा हुआ है-

''अध् कचरे परम्परावादी ही धर्म और विज्ञान की घाल मेल कर के यह साबित करने में लगे होते हैं कि हमारे धर्म ग्रंथों में जो है वह सब विज्ञान सम्मत है या वेदों में सारे आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य मौजूद हैं.''प्रो.स्टीफन होकिंग की प्रकाशित होने वाली पुस्तक के आधार पर उन सम्पादक महोदय ने वेदों को अ-वैज्ञानिक ठहरा दिया है.मैक्समूलर भारत में ३० वर्ष रह कर संस्कृत का गहन अध्ययन करके जो मूल पांडुलिपियाँ ले गए उनकी मदद से वैज्ञानिक आज भी खोजबीन में लगे हैं;जैसा कि प्रो.यशपाल ने कहा है-''वैसे ब्रह्मांड संरचना के बारे में अभी ज्यादा कुछ नहीं जाना जा सका है,खोज अभी जारी है.''सितम्बर २००७ में एम्सतरदम में संपन्न भौतिकविदों के सम्मलेन में १९८० में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले जेम्स वाटसन क्रोनिन ने कहा था -''हमें गलतफहमी है कि हम ब्रह्मांड के बारे में बहुत जानते हैं.लेकिन सच तो यह है कि हम इसके सिर्फ ४% हिस्से से वाकिफ हैं.''कोस्मिक ऊर्जा" का ७३% हिस्सा डार्क एनर्जी और २३% ''डार्क मैटर '' के रूप में है जिसे न तो देखा जा सकता है और न ही उपकरणों से ही पकड़ा जा सकता है.४% में ''सामान्य पदार्थ'' आता है जिस के परमाणुओं व् अणुओं से हमारा दिखाई पड़ने वाला ब्रह्मांड बना हुआ है.फ़्रांस के न्यूक्लीयर एंड पार्टिकल फिजिक्स वेत्ता स्टारवोस कैटसेनवस् ने कहा था -''हमें डार्कमैटर के मानकों का हल्का फुल्का अंदाजा भर है.''होकिंग द्वारा भगवान् को न मानना तथा उस पर बनारस के विद्वानों द्वारा हल्ला बोलना दोनों बातें इसलिए हैं कि भगवान् को चर्च,मस्जिद ,मंदिर या ऐसे ही स्थानों पर पोंगापंथियों ने बता रखा है.पिछली पोस्ट्स देखें तो कई बार स्पष्ट किया है कि भगवान् -भूमि,गगन,वायु,अग्नि और नीर इन पञ्च तत्वों का मेल है जो सृष्टि, पालन और संहार करने के कारन GOD कहलाते हैं और स्वयं ही बने होने के कारन खुदा हैं.कोई भेद नहीं है.धर्म और विज्ञान में भेद बताना या देखना अज्ञान का सूचक है.विज्ञान किसी भी विषय का नियमबद्ध और क्रमबद्ध अध्ययन है जबकि जो धारण करता है वो ही धर्म है.धर्म या भगवान् को किसी भी शास्त्र या स्थान में कैद नहीं किया जा सकता है.अभी तक की खोजों में विज्ञान में एनर्जी को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है.कहा जाता है ENERGY IS GHOST .विज्ञानं क्या?और कैसे?का जवाब देने में समर्थ है परन्तु क्यों?का जवाब आज का विज्ञान अभी तक नहीं खोज पाया है जब कि वैदिक विज्ञान में क्यों का जवाब है-जरूरत है वैदिक विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को समझने की.लेकिन पश्चिम के विज्ञानी तो वेदों पर हमला करते ही हैं हमारे पौराणिकविद भी वेदों को तोड़ मरोड़ देते हैं.पुराण,कुरआन की तर्ज़ पर तब लिखे गए जब भारत में विदेशियों ने आकर सत्ता जमा ली थी.ये उन शासकों को खुश करने के लिए रचे गए जिनका धर्म या विज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं था.धर्म और विज्ञान को समझने हेतु वेदों की ही शरण लेनी पड़ेगी जिनकी उक्त सम्पादकीय में खिल्ली उडाई गयी है.

4 comments:

Rohit Singh said...

बात पूरी तरह से सही है। जरुरत है अपने ही संस्कुति की गोद में जाकर पढ़ना।

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

vijai Rajbali Mathur said...

@bole to bindaas-Dhanyvad,aap ka bhi blog dekha tha;aap kelekh sateek hain.

vijai Rajbali Mathur said...

@ajay kumar ji,Dhanyvaad.