ज्योतिष वह विज्ञान है जिसका उद्देश्य मानव जीवन को सुन्दर सुखद और समृद्ध बनाना है.इस मे मनुष्य के जन्मकालीन गृह नक्षत्रों के आधार पर उसके पूर्व जन्मों के संचित प्रारब्ध का अध्ययन कर के भविष्य हेतु शुभ-अशुभ का दिग्दर्शन कराया जाता है.शुभ समय और लक्षण बताने का उद्देश्य उसका अधिकतम लाभ उठाने हेतु प्रेरित करना है और अशुभ काल व लक्षण बता कर उन से बच ने का अवसर प्रदान किया जाता है.दुर्भाग्य से आज हमारे समाज मे दो विपरीत विचारधराएँ प्रचलित है,जो दोनो ही लोगों को दिग्भ्रमित करने का कार्य करती है.यह प्रकृति का नियम है कि जब एक क्रिया होती है तो उसकी प्रतिक्रिया भी होती है.बहुत समय तक ये दोनो परस्पर विचार धराएँ चलती रहती है,फिर उन्हें मिलाकर समन्वय का प्रयास किया जाता है.इस प्रकार थीसिस,एन्टी थीसिस और फिर सिन्थिसिस का उद्भव होता है.कुछ समय बाद सिन्थीसिस,थीसिस मे परिवर्तित हो जाती है फिर उसकी एन्टी थीसिस सामने आती है और पुनः दोनों के समन्वय से सिन्थीसिस का उदय होता है.यह क्रम सृष्टि के आरम्भ से प्रलय तक चलता रह्ता है.
इसी क्रम मे ज्योतिष विज्ञान मानव कल्याण हेतु प्रस्तुत हुआ था.परन्तु कुछ ढोंगी,स्वार्थी,पाखण्डी,और समाज द्रोही लोगों ने ज्योतिष का दुरुपयोग करके लोगों को उलटे उस्त्रे से मूढ्ना शुरु कर दिया,उनकी कमजोरी का अनावश्यक लाभ उठाने लगे और अपना घर तथा जेव भरने मे लग गए.ऐसे पोंगा पंडितों का यह ब्रहम वाक्य है कि,पहले लोगों का मन जीतो धन तो पीछे पीछे स्वतः आ ही जाएगा.ऐसे लोगों का सिद्धान्त है-
'दुनिया लूटो मक्कर से ,रोटी खाओ घी शक्कर से.'
ज्योतिष के नाम पर पनपी इस ठगी और ढोंग की जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और इसकी आलोचना होने लगी .ज्योतिष की आलोचना करने वालों में केवल टुटपुन्जिये ही शामिल नहीं थे बल्कि स्वामी विवेकानन्द,महर्षि दयानन्द,श्री राम शर्मा आचार्य सरीखे मूर्धन्य विद्वानों ने भी ज्योतिष की तीखी आलोचना की है और इसे ढोंग करार दिया है.महर्षि दयानन्द द्वारा ही लिखित पुस्तक है -'संस्कार विधि.' इसमें गर्भाधान से मृत्यु पर्यन्त सोलह संस्कारों का विधिवत उल्लेख है.नामकरण संस्कार के समय जन्मकालीन तिथि और उसके देवता ,नक्षत्र और उसके देवता हेतु आहुतियाँ देने का विधान स्वंय महर्षि दयानन्द ने बताया है.इन तिथियों और नक्ष्त्रों का ज्ञान देने वाला विज्ञान ही ज्योतिष है.इससे सिद्ध होता है कि महर्षि दयानन्द ने ज्योतिष विज्ञान का नहीं बल्कि इस के नाम पर फैलाए गए अज्ञान ,ढोंग और पाखण्ड का ही विरोध किया होगा जो कि सर्वथा उचित है परन्तु आज 'तन-मन-धन सब गुरु जी के अर्पण प्रार्थना कराने वाले तथा कथित गुरु,अवतार और महात्मा भी अनावश्यक रुप से ज्योतिष विज्ञान की आलोचना करने मे लगे हुए है,चूंकि वे स्वंय ढोंग व पाखण्ड के अलम्बरदार है अतः उनका विरोध ज्योतिष के नाम पर ढोंग करने वालों से नहीं है.
यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह सदा ही भविष्य के गर्भ मे क्या छिपा है यह रहस्य जानना चाहता है और अपने कष्टों का समाधान चाहता है.ज्योतिष के नाम पर ठगी करने वाले उसे कैसे मूढ़ते है,इसे एक उदहारण से समझा जा सकता है-
जातक एक सरकारी उपक्रम मे उच्चाधिकरी थे जिन्हें २० जुलाई २००३ को पटना मे रात्रि पौने आठ बजे और आठ बजे मध्य गोली मारी गई थी.कारतूस उनके पेट मे हो कर पीछे कमर से निकल गया.गोली लगने के बाद जातक कार Drive कर के स्वंय अपने रहने के स्थान पर पहुँचे जहाँ से उन के साथी मेडिकल कोलेज ले गए और ओप्रेशन द्वारा उनका उपचार किया गया.जातक के जन्मांग से स्पष्ट है कि सप्तमेश हो कर चतुर्थ भाव मे मंगल अपने अधिशत्रु के साथ् स्थित है.जातक को वाहन सुख तो भरपूर है.कई गाड़ियों के स्वामी हैं.वायुयान अथवा वातानुकूलित यान द्वारा यात्रा करते हैं परन्तु निजी सुख मे शत्रु ग्रहों शुक्र व मंगल कि युति ने खलल डाल दी है.चूंकि शुक्र लग्नेश भी है,अतः हानि नहीं पहुंचा रहा है बल्कि मंगल ग्रह सुख को नष्ट कर रहा है,खर्च बढा रहा है व पत्नी के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है किन्तु उन्हें ज्योतिष के नाम पर दुकानदारी चमका रहे महानुभावों ने दिग्भ्रमित कर दिया कि उनका मंगल अच्छा है और शनि खराब है.जब कि जातक का शनि छठे भाव मे उच्च का है जो कि अनुकूल है.यह भाव शत्रु व रोग का होता है यहाँ वैठ कर शनि उन्हें रोग व शत्रुओं से रक्षा कर रहा है परन्तु पन्डित जी ने उन से शनि गृह की शांति करा दी और उन्हें मूंगे कि अंगूठी पहनवा दी,परिणाम मगल ग्रह और क्रूर होकर भड़क गया तथा जब पृथ्वी के निकट आ रहा था उसी समय उन का स्थान्तरण करा कर गोली का शिकार बना दिया.गोली चलने के समय गोचर में शुक्र उनके शत्रु बढ़ा रहा था और मंगल मारक भाव में था.यहाँ फिर गोचर का शनि ही उनके शत्रु भाव में पड़ कर उनका उद्दारक बना,किन्तु उन पंडित जी ने शनि को ही गोली चलने का कारण पहले बताया और बाद में गुमराह करने का प्रयास किया.अब तक जातक अपने किरायेदार के माध्यम से हमारे संपर्क में आ चुके थे,उन्हें स्पष्ट रूप से समझा दिया गया था कि मंगल उन के लिए घातक है और शनी रक्षक है.अतः मंगल ग्रह की शांति कराएँ,जबकि उक्त पंडित जी शनी ग्रह की शांति हेतु पुनः दबाव बना रहे थे.जातक ने हमारी राय के अनुरूप मंगल ग्रह की शांति अपने निवास पर करायी और उन्हीं के अनुसार अब वह राहत महसूस कर रहे हैं.जातक को यह राहत ज्योतिष विज्ञान द्वारा सही जानकारी उपलब्ध करवाकर तथा वैज्ञानिक विधि द्वारा उपचार करवाने से ही मिली है.यदि जातक ज्योतिष का सहारा नहीं लेते तो अब भी दिग्भ्रमित ही होते रहते.अस्तु ज्योतिष में ढोंग व् पाखण्ड का कोई स्थान नहीं है,उससे बचना चाहिए और ज्योतिष के नाम पर ऊंची दूकान सजा कर ठगी करने वालों से दूर रहना चाहिए.ज्योतिष विज्ञान आपके मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने,सद्कर्म द्वारा मोक्ष प्राप्ति हेतु प्रेरित करने तथा संचित प्रारब्ध के पापों को नष्ट कर के मनुष्य जीवन में राहत दिलाने का मार्ग प्रस्तुत करता है.बस आवश्यकता है तो यह है कि आप पम्प एंड शो के दिखावे में न पड़ें,नकली चमक-दमक से दूर रहें और जहाँ वास्तविक जानकारी उपलब्ध हो वहीँ संपर्क करें.उपचार हेतु सस्ते नहीं,वैज्ञानिक मार्ग हवन-पद्धति को अपनाएँ,तब कोई कारण नहीं कि,ज्योतिष विज्ञान आप को जीवन में सहायक न नज़र आये.जरूरत है बस नजरिया बदलने की.
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