Sunday, September 5, 2010

एक दो तीन -याद रखें प्रतिदिन

हम जो आज हैं वह अपने कल की वजह से हैं और जो हम आज हैं वह अपने कल के लिए ही हैं.हमारा भूतकाल ही हमारे वर्तमान का कारक है और हमारा वर्तमान हमारे भविष्य का निरधारक है.यह संसार यह सृष्टि परमात्मा,आत्मा और प्रकृति के योग पर आधारित है इनमे से एक के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं होगा.प्रकृति भी तीन तत्वों सत,रज और तम के परमाणुओं का संगम है,जब तक ये तीनों विषम अवस्था में रहते हैं सृष्टि का पालन होता रहता है जब भी इन तीनों तत्वों की सम अवस्था आती है वही प्रलय की स्थिति होती है.सृष्टि रचना उसका पालन और फिर उसका संहार ये तीन कृत्य परमात्मा के हैं जिन के कारन ही ब्रह्मा,विष्णु,महेश की कल्पना की गयी है.मनन करने के कारन ही मनुष्य मनुष्य है अन्यथा उसमे और पशु में कोई विभेद नहीं है.आहार-निद्रा-मैथुन ये तीन कृत्य प्रत्येक जीव धारी स्वाभाविक रूप से करता है.यह मनुष्य ही है जो अपने बुद्धि,विवेक से कृत्यों का निष्पादन करता है इसीलिए वेदों में मनुष्य को क्रतु बतलाया गया है.क्रतु का अर्थ ही है कर्म करने वाला.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सदकर्म-दुष्कर्म और अकर्म.सद्कर्म का अभिप्राय अच्छे कामों से है जो स्वयं अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के हित को भी ध्यान में रख कर किये जाते हैं उन का फल सदैव ही अच्छा मिलता है.दुष्कर्म वे कर्म हैं जो छुद्र स्वार्थवश सिर्फ अपने हित में किये जाते हैं और जिन से दूसरों का उत्पीडन होता है उन्हें कष्ट व् दुःख पहुँचता है इनका फल स्वाभाविक रूप से बुरा मिलता है.सर्वाधिक महत्वपूर्ण अकर्म है.अकर्म का आशय उस कर्म से है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.वह फ़र्ज़ वह ड्यूटी वह दायित्व जो हमें करना चाहिए था हमने नहीं किया,हांलांकि ऐसा करके हमने किसी का बुरा तो नहीं किया परन्तु परमात्मा की द्रष्टि में यह अपराध है और जिसका दंड परमात्मा अवश्य ही देता है.उदहारण स्वरुप यदि एक चिकित्सक मार्ग में किसी अपरिचित को दुर्घटनाग्रस्त देखता है और उसका उपचार कर देता है तो यह सद्कर्म हुआ जिसका पुण्य उस चिकित्सक को अवश्य ही मिलेगा परन्तु यदि वाही चिकित्सक उस अपरिचित को देखते हुए भी अपने गंतव्य पर चला जाता है (वैसे उसने कोई दुष्कर्म तो नहीं किया)तो यह उस का अकर्म है और परमात्मा की ओर से इस अकर्म का दंड उस चिकित्सक को भोगना ही पड़ेगा.कर्मों का फल कब मिलेगा यह पूर्णतया परमात्मा के आधीन है इसीलिए गीता में श्रीक्रष्ण ने फल की चिंता किये बगैर सिर्फ कर्म करने पर जोर दिया है.तीनों प्रकार के कर्मों का फल तत्काल भी मिल सकता है,इसी जीवन में भी मिल सकता है और आगामी मनुष्य जन्म में भी मिल सकता है.सिर्फ मनुष्य जन्म में ही पिछले कर्मों का फल मिलता हो ऐसा नहीं है बल्कि मनुष्य द्वारा किये गए दुष्कर्मों का फल तो अन्य योनियों में भी जीवधारी को भोगना ही पड़ता है.मनुष्य के अतिरिक्त अन्य योनियाँ तो हैं ही भोग योनी.सिर्फ मनुष्य योनी ही कर्म प्रधान है.मनुष्य जन्म में ही हम अपने पिछले दुष्कर्मों व् अकर्मों से छुटकारा पाने हेतु अधिकाधिक सद्कर्म व् परमात्मा का चिंतन कर सकते हैं अन्य योनियों में यह संभव नहीं है।

मनुष्य को बचपन,यौवन और बुढ़ापा तीन अवस्थाओं का सामना करना पड़ता है.बचपन में वह सीखता है और बुढापे में किये गए कर्मों को भोगता है-सिर्फ यौवन या जवानी ही वह अवस्था है जिसमे मनुष्य अपने इहलोक और परलोक को संवार या बिगड़ सकता है.यौवन धन और सत्ता इन तीनों का जिसने सदुपयोग कर लिया वही मनुष्य धन्य है।

यौवन काल में ही शहीद भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खान,उधम सिंह,वीर सावरकर,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस आदि असंख्य क्रांतिकारियों ने विदेशी सत्ता से टक्कर ली और देश हित में कुर्बानी दी वे हमेशा स्तुत्य रहेंगे और उनका जीवन सदा अनुकरणीय है.उनसे पूर्व भी महाराणा प्रताप,वीर शिव जी,गुरु गोविन्द सिंह भी अपने यौवन काल में ही विदेशी सत्ता से टकरा कर अमर हो गए.यदि मनुष्य (स्त्री हो या पुरुष)अपने यौवन काल का संयम पूर्वक सद्कर्मों में उपयोग कर ले तो उसका बुढ़ापा तो उत्तम रहेगा ही आगामी जन्मों के लिये भी संचित प्रारब्ध उत्तम रहेगा.परन्तु यदि यौवन का दुरूपयोग किया गया जैसा की सायबर कैफे कांड में संलिप्त युवक युवतियों ने किया तो निश्चय ही पतन और दुर्दिन का उन्हें सामना करना पड़ेगा ही।

इसी प्रकार धन का सदुपयोग भी आवश्यक है.ज़रूरतमंद लोगों को दान देना,उनकी सहायता करना धन का सदुपयोग है.सिर्फ अपने लिये तो पशु भी चरते और मरते हैं.मनुष्यत्व तो प[आर कल्याण के लिये ही जाना जाता है.जो लोग अपने धन का दुरूपयोग करते हैं अथार्त झूठी शान और अहंकार में धन को पानी की तरह बहा देते हैं अथवा दूसरों को पीड़ा पहुचाने व् दुःख देने में अपने धन का अपव्यय करते हैं निश्चय ही वे अपने लिये कांटे ही बो रहे होते हैं.आज समाज में ऐसे ही लोगों का बोल-बाला है.कुछ लोगों ने सहज ही ओछे हथकंडे अपना कर धन अर्जित कर लिया है वे उसे शराब,जुए,सट्टे में लगा कर तबाह कर देते हैं या फिर मकानों को तोड़ते हैं फिर उन्हें बनवाते हैं,संगमरमर से चमकाते हैं और अपनी समृद्धि का नग्न प्रदर्शन करते हैं.वस्तुतः यह समृद्धि नहीं है उनकी आत्मा इस धन को अपने साथ नहीं ले जा सकती है-आत्मा के साथ जाने लायक धन तो उस मनुष्य के सद्कर्म ही हैं।

इसी प्रकार सत्ता का भी सदुपयोग आवश्यक है.सत्ता चाहे शासन की हो,प्रशासन की हो विद्यालय की हो या दूकान की हो उसका दुरूपयोग किया गया तो यह भस्मासुर हो जाती है.सिकंदर ने इस तथ्य को अपने जीवन के अंतिम दिनों में समझ कर अपने शव के दोनों हाथ खाली निकाल कर ले जाने का स्वंय ही निर्देश देदिया था.भिंडरावाले ने धर्म स्थल का दुरूपयोग किया था वहीँ उसका दुखद अंत भी हुआ.जनरल ओ दायर ने निहत्थे देश प्रेमियों पर गोलियां चलवाईं थीं खुद भी बम प्रहार में मारा गया.आतंक का पर्याय बन चूका वीरप्पन भी मारा गया.घात प्रतिघात और हिंसा का चलन आज कल बहुत बढ़ गया है -यह मानव हित में बहुत घातक है।

सिर्फ गृह नक्षत्र ही हमें प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि हमारे क्र्त्यों का गृह नक्षत्र पर भी प्रभाव पड़ता है.आप समुद्र में एक कंकड़ फेंके तो उससे बन्ने वाली तरंगें आप को बहले ही न दिखें परन्तु उस कंकड़ को फेंकने के प्रभाव से तरंगें बनेंगी अवश्य ही.वही कंकड़ जब आप बाल्टी भरे पानी में फेंकेंगे तो तो आप तरंगें देख सकते हैं.हम प्रथ्वी वासी पृथ्वी पर जो कुछ कर रहे हैं उसका प्रभाव अखिल ब्रह्मांड पर हर वक्त पद रहा है और दुष्प्रभाव भी समय समय पर प्रतीत होता जा रहा है.पर्यावरण संतुलन बिगड़ चूका है.ओजोन की परत भी प्रभावित हो गयी है.२६ दिसंबर २००४ को दक्षिण भारत समेत कई देशों को सुनामी प्रकोप का सामना करना पड़ा है इसके लिये मंग्रोव व्रक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई ही समुद्री लहरों को तट तक पहुचने को उत्तरदायी है वर्ना पक्षी अभ्यारण्य के लिये प्रसिद्द पिछ्वाराम गाँव को सुनामी लहरों से इन्ही मंग्रोव वृक्षों ने जिस प्रकार बचाए रखा अन्य जगहों की भी रक्षा कर लेते.२७ दिसंबर २००४ को ही समुद्र तल से १७३७ मीटर ऊँचाई पर स्थित यु.ऐ .ई.की अल्जीस पर्वत पर भारी बर्फ़बारी हुई और मुंबई में १२.६ मी.मी बारिश के बाद तापमान १२ डिग्री नीचे चला गया जहाँ गर्मियों का तापमान ५० डिग्री रहता था.ईसा से ३५० वर्ष पूर्व प्लूटो की लिखित भविष्यवाणी के आधार पर श्री होरे ने १९७१ में प्रकाशित पुस्तक गाइड इंग्लिश फॉर इंडिया के सेकंड एडिशन बुक II के लेसन १६ पर स्पष्ट लिखा था की १८८२ ई.में सूर्य व् पृथ्वी के बीच शुक्र के आने से भंयंकर बाढ़ और तूफ़ान के प्रकोप से एक पूरा साम्राज्य समुद्र के अन्दर समां गया था.पुनः २००४ ई.में पृथ्वी व् सूर्य के मध्य शुक्र के आने से ऐसी ही तबाही होगी.यह पुस्तक C B S E के कोर्स में कक्षा ७ में पढाई जा रही थी किन्तु इस ओर सचेत होने के बजाय मंग्रोव की अंधाधुंध कटाई होती रही और सुनामी ने अटलांटिस थ्योरी के अनुसार अपना कहर धा दिया।
जारी..............

2 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

आपने बहुत ही अच्छा लिखा है। जीवन में बहुत-सी बातें ऐसी हैं जो हम जानते हैं लेकिन खुद उन पर अमल नहीं करते। ऐसे ही कर्म का सिद्धांत है। समझते हैं पर जब अपनी बात आती है तो...मानते नहीं। गीता का सार भी सभी जानते हैं पर अमल कितने लोग करते हैं... आपने लिखा अच्छा है...बधाई

vijai Rajbali Mathur said...

Veena Ji,
Aaap ka kahna sahi hai,isi vajah se pichhle kai lekhon me bar bar baton ko dohraaya hai ki kabhi to logon ko sachchai samajh me aaye.