Friday, November 18, 2011

नाच न आवे आँगन टेढ़ा

आज कल बैठे ठाले कुछ लोग 'ज्योतिष' की आलोचना करना अपना कर्तव्य और बड़प्पन समझ रहे हैं। बे सिर पैर की बातों को लेकर आधार हींन  और अतार्किक प्रश्न उठा कर ज्योतिष को चेलेंज देना तो कोई इनसे बड़ी सरलता से सीख सकता है। वस्तुतः 'काला अक्षर भैंस बराबर' इंनका ज्योतिष ज्ञान है और फुटपाथ पर बैठे 'तोता 'वाले या सड़क पर घूमते 'बैल'वाले को ही ये ज्योतिषी मानते हैं और ज्योतिष की 'धुआंधार आलोचना' करने लग जाते हैं।                                                                                                                                          

'ढोंग पाखंड और ज्योतिष'  मे मैंने ऐसे लोगों की पोल खोल कर सावधान रहने का जनता से आह्वान किया था। परंतु भाषा और साहित्य के ये प्रचंड विद्वान मुझ जैसे अज्ञात व्यक्ति के विचारों को कैसे स्वीकार कर सकते हैं?


मैंने 'ज्योतिष और हम'  द्वारा मानव जीवन पर पड़ने वाले ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव को सरलतम ढंग से स्पष्ट करने का भी प्रयास किया था। जो लोग जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं उन्हें तो सच्चाई कभी स्वीकार हो ही नहीं सकती परंतु खेद का विषय यह है कि जो लोग खुद को प्रगतिशील और जनता का हमदर्द बताते हैं वे भी झूठ को ही बल प्रदान करते हैं । अफसोसजनक ही है कि जिस 'ज्योतिष' का उद्देश्य 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध'बनाना है उसे ही तथाकथित प्रगतिशील विद्वान त्याज्य बताते हुये भर्त्सना  करते हैं।

ज्योतिष = ज्योति अर्थात प्रकाश का ज्ञान। 'ज्योतिष' का विरोध करके प्रकाश और ज्ञान से जनता को वंचित करके ये विद्वान किसका हितसाधन कर रहे हैं यह स्वतः स्पष्ट है। इसी प्रकार 'धर्म' का विरोध भी एक प्रगतिशील फैशन के तहत किया जा रहा है। 'धर्म'वह नहीं है जिसे पुरोहितवादी उत्पीड़न और लूट को पुख्ता बनाने के लिए घोषित करते हैं परंतु ये विद्वान उसी ढोंग को ही 'धर्म' माने बैठे है । वे  ढोंगियों और ढोंगवाद की तो भर्त्सना करते नहीं ,उनका विरोध करते नहीं और बिना जाने-बूझे 'धर्म' पर हमला करते हैं। अधर्म के अलमबरदारों और इनमे कोई मौलिक अंतर नहीं है।


'धर्म और विज्ञान' शीर्षक से लिखे लेख मे मैंने 'धर्म' का वैज्ञानिक अर्थ स्पष्ट करने की चेष्टा की है,परंतु सुधी विद्वजन उस पर कोई ध्यान ही नहीं देना चाहते और अपनी गलत धारणाओं को जबरिया सब पर थोप देना चाहते हैं। यही नहीं 'श्रद्धा,विश्वास और ज्योतिष' तथा 'ज्योतिष और अंध विश्वास' के माध्यम से मैंने वैज्ञानिक तर्क सहित 'ज्योतिष' और ढोंग के अंतर को भी स्पष्ट किया है। ढोंग और पाखंड किसी भी रूप मे ज्योतिष नहीं हैं और उनका न केवल विरोध बल्कि उन्मूलन भी होना चाहिए। लेकिन थोथे  वक्तव्यों द्वारा ज्योतिष की आलोचना करने वाले कई ऐसे कामरेड्स को मै जानता हूँ जो प्रत्येक ब्रहस्पतिवार को मजार पर जाकर दीप जलाते है। धर्म और ज्योतिष की आलोचना करने वाले सी पी एम के एक नेता ने तो मुझ से अपनी पुत्री तथा पुत्र की जन्म-पत्री बनवाकर उनका भविष्य इन्टरनेट के जरिये मंगवाया था।  एक बड़बोले आर्यसमाजी ( जो अब अपने पुत्र के पास बेंगलोर चले गए हैं)ने आगरा मे अपनी पुत्री की शादी हेतु जन्म-पत्र आर्यसमाज के ही पूर्व मंत्री से बनवाकर भेजी थी। सरला बाग (दयाल बाग),आगरा मे राधास्वामी मत के अनुयायियों ने मुझसे जन्म-पत्र बनवाए और अपने बच्चों का भविष्य ज्ञात किया लेकिन प्रवचनों मे ज्योतिष की आलोचना करते रहे। जिनकी कथनी और करनी मे अंतर है ऐसे लोग जनता और समाज के शत्रु ही हैं ,हितैषी नहीं। अतः ऐसे लोगों की 'ज्योतिष' अथवा 'धर्म' संबंधी आलोचना को 'जन-विरोधी' समझा जाना चाहिए। 

5 comments:

विभूति" said...

सारगर्भित पोस्ट....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्या कहें ...इस विषय पर तो कोई जानकारी नहीं रखती

मनोज कुमार said...

मुझे तो इस विज्ञान पर पूरा-पूरा भरोसा है।

Bharat Bhushan said...

चंद्रमा का मानव मन पर प्रभाव चिकित्सा शास्त्र के लिए नया नहीं है. इसी प्रकार हस्तरेखा विज्ञान सबसे सरल प्रोबिंग साइँस है. आँख मूँद कर विरोध करना ठीक नहीं.

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन प्रस्तुति।
शानदार अभिव्यक्ति