Wednesday, March 28, 2012

भगवान को बचाओ

हिंदुस्तान-लखनऊ-26/03/2012 

 प्रसन्न प्रांजल साहब द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की स्कैन मे आप साफ-साफ देख रहे हैं कि वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है -"जल,वायु,आकाश,प्रथिवी और अग्नि (ऊर्जा )इन्हीं पाँच तत्वों से बनी है प्रकृति और मानव शरीर। आज जरूरत इन तत्वों के संरक्षण और संतुलन की है। "

इसी बात को इसी ब्लाग मे कई बार लगातार मै भी स्पष्ट कर चुका हूँ। वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत इन पाँच तत्वों का समन्वय ही तो भगवान है। -

भ =भूमि अर्थात प्रथिवी।
ग = गगन अर्थात आकाश।
व = वायु ।
I=अनल अर्थात अग्नि ( ऊर्जा )।
न =नीर अर्थात जल ।

इन पाँच तत्वों के प्रथमाक्षर भ +ग +व +I +न  मिल कर ही तो भगवान हुये। चूंकि इन्हें किसी प्राणी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसीलिए 'खुदा' हैं। ये पाँच तत्व ही प्रत्येक प्राणी और वनस्पति की उत्पत्ति (Generate),स्थिति (Operate)और संहार (Destroy) करने के कारण ही GOD कहलाते हैं।

लेकिन आप आज क्या देखते हैं कि पाखंडी-ढ़ोंगी-पुरोहितों ने भगवान,खुदा,GOD तीन अलग -अलग गढ़ डाले हैं और उनके नाम पर एक इंसान दूसरे इंसान के खून का प्यासा बना हुआ है। अनपढ़ गवारों की बात तो अलग है लेकिन पढे-लिखे उच्चाधिकारी भी जो अन्ना /रामदे
व,आशा राम बापू,मुरारी बापू,बाल योगेश्वर,आनंद मूर्ती,रवी शंकर आदि ढेरों ढोंगियों के चेले कहलाने मे गौरव की अनुभूति करते हैं। बड़े फख्र के साथ कहते हैं कि -"अन्ना के पीछे नहीं भागें तो किसके पीछे भागें। " अपने पाखंड का सार्वजनिक प्रदर्शन करके औरों को गुमराह करते हैं और और लोग भी उनका अंधानुकरण करने मे अपने को धन्य समझते हैं।

जो भगवान-खुदा-GOD समस्त प्रकृति का नियंता है उसकी रक्षा करने -बचाने -संरक्षण करने की बजाए ये लोग उसे और नष्ट करने पर तुले हुये हैं। अपने समान दूसरे इंसान द्वारा बनाए हुये चित्र या मूर्ती को धूप-दीप दिखा कर यह भगवान की पूजा करने का स्वांग करते हैं जबकि इससे पर्यावरण और प्रदूषित होकर भगवान के अस्तित्व को ही खतरा इन लोगों द्वारा खड़ा किया जा रहा है। यदि भगवान ही न बचेगा तो यह सृष्टि स्वतः ही नष्ट हो जाएगी।

केवल हम ही नहीं प्रबुद्ध वैज्ञानिक भी भगवान को बचाने की गुहार कर रहे हैं। भगवान को बचाने का एकमात्र हल हमारी प्राचीन 'हवन' पद्धति को बहाल करना ही है। वैसे तो इसी ब्लाग मे विस्तृत उल्लेख पहले से ही इस संबंध मे किया जा चुका है किन्तु आगामी पोस्ट मे एक बार फिर इसके महत्व को बताने का प्रयास किया जाएगा।


Sunday, March 25, 2012

येदियुरप्पा/रोड रेज़ और नवरात्र का स्वांग


Hindustan-Lucknow-24/03/2012
हिंदुस्तान,लखनऊ के 15 मार्च और 24 मार्च के अंको मे छ्पी ये स्कैन आप देख रहे हैं। दोनों बातो मे कोई अंतर नही है। जब अनैतिक व्यापार द्वारा अवैध धनार्जन होता है तो परिणाम ऐसे ही होते हैं जैसे इनमे व्यक्त किए गए हैं। आज समाज मे सिर्फ और सिर्फ पैसे वालों का सम्मान है कोई यह देखने -पूछने वाला नहीं है कि यह धन किस स्त्रोत से आ रहा है। जब गलत स्त्रोत से धन कमाया जाता है तो वह निकलता भी गलत तरीके से ही है। गाजियाबाद के एक जूनियर इंजीनियर जो पूरे सर्विस काल सिर्फ इसी लिए जूनियर ही बने रहे कि तभी वह कारखानों के मीटर चेक करके मालामाल हो सकेंगे। उन्होने अपनी इस काली कमाई को अपने बड़े बेटे के नाम से अपने सालों की काली कमाई से हो रहे बिल्डर व्यवसाय मे लगा दिया। रेत का खेल खेल कर अंधाधुंध पैसा इनके बेटे ने बचाया और क्रेताओ को उल्टे उस्तरे से ठगा। इनके पौत्र के जन्म पर लगभग एक लाख रुपया नर्सिंग होम मे खर्च हुआ तब जाकर इनकी पुत्र वधू और पौत्र की ज़िंदगी बच सकी। इनके दामाद ने इनकी बेटी को छोड़ कर दूसरी जगह विवाह रचा लिया और अब बुढ़ापे मे यह मुक़दमेबाज़ी कर रहे हैं।

झांसी से संबधित बिल्डर लुटेरिया तो नाम के मुताबिक लूटने का ही खेल खेलते हैं। लुटेरिया अपनी भाभी की सहेली के इशारे पर नाहक ही अपने से अंनजान व्यक्ति को भी परेशान करने मे आनंदानुभूति करते हैं। धन के नशे मे चूर ये लोग यह भी नहीं सोचते कि समाज मे सुख-दुख कुएं के रहट की तरह चलते हैं। एक खाली होता है तब दूसरा भरता  है।

आज कल नवरात्र चल रहे हैं इस प्रकार के ठग और लुटेरे दान के नाम पर ढोंग-पाखंड को खूब बढ़ावा दे रहे हैं। आम जनता तो बस पैसे वालों का अंधानुकरण करके अपने लिए आत्मघाती कदम उठा कर ही खुश होती है। स्वांग रचने वालो को खूब पूजा जाता है,जंतर-मंतर पर आज फिर ड्रामा खेला जा रहा है। शोषण और उत्पीड़न को ढकने का ढकन है भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन। IAS अधिकारियों की पत्नियों और पैसे वाले लुटेरो के NGOs रीढ़ हैं ऐसे बहकाने वाले आंदोलनो की। इंनका समर्थन करने वाले सरकारी अधिकारी ढ़ोंगी पूजा करते हुये अपने फोटो फेसबुक पर लगा का बड़े गौरान्वित महसूस करते हैं।

In this mechanical era (कल युग ) मे स्वांग,ढोंग और पाखंड ही धर्म के नाम पर पूजा जा रहा है। धर्म का मतलब दूसरों को नीचा दिखाना और अहंकार प्रदर्शन से आज लगाया जा रहा है। धर्म क्या है ?इसे न तो कोई जानना चाहता है और न ही वास्तविक धर्म को मानने को तैयार ही है। रोज ब रोज रोड रेज़ होते रहेंगे,खदाने लुटती रहेंगी और अखबारों मे खबरे छपती  रहेंगी हमे और आपको पढ़ने लिखने को मसाला मिलता रहेगा कुछ भी नहीं बदलेगा । 

Thursday, March 22, 2012

संवत 2069 आप सब को मंगलमय हो

क्रांतिकारी भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव जी 






हिंदुस्तान-लखनऊ-19 मार्च 2012



क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु,सुखदेव जी का बलिदान दिवस 23 मार्च प्रत्येक भारतीय को 'कर्तव्य दिवस'के रूप मे मनाना चाहिए। इन नौजवानों ने हँसते-हँसते अपने जीवन को देश की आजादी के संघर्ष मे कुर्बान कर दिया था। आज हम आजाद देश के प्रति कितने निष्ठावान हैं यह खुद से सवाल उठाने की बात है न कि दूसरों के कर्तव्यों को याद दिलाने की। अपनी कर्तव्यहीनता को छिपाने के वास्ते लोग धूर्तता का सहारा लेते हैं कि राजनीति और राजनेताओ ने देश को रसातल मे डुबो दिया है। वस्तुतः ढ़ोंगी-पाखंडी अधार्मिक लोगों ने ही 'धर्म' के नाम पर इतना जबर्दस्त जहर बो दिया है जो देश और इसकी जनता के लिए कहर बन गया है। इस वर्ष
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ,शुक्रवार  23 मार्च ,2012 से विक्रमी संवत 2069 प्रारम्भ हो रहा है। इसी दिन से सार्वजनिक नव रात्र भी प्रारम्भ हो रहे हैं। आप देखेंगे कि लोग तरह तरह के ढोंग-पाखंड द्वारा नौ दिन स्वांग रचेंगे।14 अक्तूबर 2010 मे दिये विचारों को एक बार फिर दोहरा कर ही उपरोक्त सम्पाद्कीय के संबंध मे विचार दूंगा-

"आज   देश के हालात कुछ  वैसे हैं :-मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों -२ दवा की.करम खोटे हैं तो ईश्वर  के गुण गाने से क्या होगा ,किया  परहेज़ न कभी  तो दवा खाने से क्या होगा.. आज की युवा शक्ति को तो मानो सांप   सूंघ  गया है वह कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है और हो भी क्यों ? जिधर देखो उधर ओसामा बिन लादेन बिखरे पड़े हैं, चाहें वह ब्लॉग जगत ही क्यों न हो जो हमारी युवा शक्ति को गुलामी की प्रवृत्तियों से चिपकाये रख कर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ती करते रहते हैं.अफगानिस्तान हो ,कश्मीर हो ,देश भर में फैले नक्सलवादी हों या किसी भी तोड़ -फोड़ को अंजाम देने वाले आतंकवादी हों सब के पीछे कुत्सित मानसिकता वाले बुर्जुआ लोग ही हैं .वैसे तो वे बड़े सुधारवादी ,समन्वय वादी बने फिरते हैं,किन्तु यदि उनके ड्रामा को सच समझ कर उनसे मार्ग दर्शन माँगा जाये तो वे गुमनामी में चले जाते हैं,लेकिन चुप न बैठ कर युवा चेहरे को मोहरा बना कर अपनी खीझ उतार डालते हैं .
ऐसा नहीं है कि यह सब आज हो रहा है.गोस्वामी तुलसीदास ,कबीर ,रैदास ,नानक ,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद जैसे महान विचारकों को अपने -२ समय में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था .१३ अप्रैल २००८ के हिंदुस्तान ,आगरा के अंक में नवरात्र की देवियों के सम्बन्ध में किशोर चंद चौबे साहब का शोधपरक लेख प्रकाशित हुआ था ,आपकी सुविधा के लिए उसकी स्केन प्रस्तुत कर रहे हैं :



बड़े सरल शब्दों में चौबेजी ने समझाया है कि ये नौ देवियाँ वस्तुतः नौ औषधियां  हैं जिनके प्राकृतिक संरक्षण तथा चिकित्सकीय प्रयोग हेतु ये नौ दिन निर्धारित किये गए हैं जो सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन रहते दो बार सार्वजानिक रूप से पर्व या उत्सव के रूप में मनाये जाते हैंलेकिन हम देखते हैं कि ये पर्व अपनी उपादेयता खो चुके हैं क्योकि इन्हें मनाने के तौर -तरीके आज बिगड़ चुके हैं .दान ,गान ,शो ,दिखावा ,तड़क -भड़क ,कान -फोडू रात्रि जागरण यही सब हो रहा है जो नवरात्र पर्व के मूल उद्देश्य से हट कर है । "



जिस प्रकार रस्सी की रगड़ से कुएं की मन और घिर्री भी घिस जाती है उसी प्रकार एक ही बात को बार-बार दोहराते रहने से मानव मन भी शायद सच्ची बात से धंस ही जाये यही सोच कर प्रयास जारी रखे हुये हूँ। WHO-विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वोच्च अधिकारी द्वारा व्यक्त विचारों के आधार पर हिंदुस्तान,लखनऊ के  सम्पादकीय मे उठाई  चिंता पर गंभीर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। 


वस्तुतः एलोपैथी चिकित्सक अपने सम्पूर्ण घमंड के साथ भारतीय चिकित्सा पद्धततियों का घिनौना मखौल उड़ाते हैं।(मै अपनी तरफ से डॉ तारीफ साहब को अपवाद की श्रेणी मे रखता हूँ जैसे विचार उनके ब्लाग मे पढ़ने को मिलते हैं उनके आधार पर। )  एलोपैथी तो सिर्फ इतना भर जानती और मानती है कि,रोग का कारण बेक्टीरिया होते हैं और उन्हें नष्ट करने से उपचार हो जाता है। अब इसी पद्धति के विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि न तो सभी बेक्टीरिया को नष्ट करना चाहिए और न ही अब एंटी बायोटिक दवाओ का असर रह गया है। पंचम वेद -'आयुर्वेद' मे 'वात-कफ-पित्त' के बिगड़ने को सभी रोगों का मूल माना है और यह निष्कर्ष पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। 


भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु)+I (अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)-इन पाँच तत्वों से मिल कर सम्पूर्ण सृष्टि बनती है जिसमे वनस्पतियाँ और प्राणी सभी शामिल हैं। 


1-वात=आकाश +वायु 
2-कफ=भूमि +जल 
3-पित्त=अग्नि 


'आयुर्वेद' मे पाँच तत्वों को उनके यौगिकों के आधार पर तीन तत्वों मे समायोजित कर लिया गया है। इसी लिए 'वैद्य' रोगी के हाथ की कलाई पर स्थित 'नाड़ी' पर अपने हाथ की तीन अंगुलियाँ रख कर इन तीन तत्वों की उसके शरीर मे स्थिति का आंकलन करते हैं। (1 )वात का प्रभाव 'तर्जनी',(2 )कफ का -'अनामिका',(3 )पित्त का 'मध्यमा' अंगुली पर ज्ञात किया जाता है। 


अंगुष्ठ के तुरंत बाद वाली उंगली 'तर्जनी' है जो हाथ मे ब्रहस्पति -गुरु ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। 'गुरु'ग्रह गैसों का पिटारा है। वायु भी गैसों का संग्रह ही है। 


तर्जनी के बाद की सबसे बड़ी उंगली ही 'मध्यमा' है जो शनि का प्रतिनिधित्व करती है। शनि को ज्योतिष मे 'आयु' का कारक ग्रह माना गया है और आयुर्वेद मे इसकी उंगली पित्त -ऊर्जा की स्थिति की सूचक है। 


मध्यमा के तुरंत बाद की उंगली 'अनामिका' है जो हाथ मे सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। ज्योतिष मे सूर्य को 'आत्मा' का कारक मानते हैं और हाथ मे यह उंगली आयुर्वेद के अनुसार  कफ की द्योतक है।


इन तीन उँगलियों पर पड़ने वाली नाड़ी की धमक वैद्य को रोगी के शरीर मे न्यूनता अथवा अधिकता का भान करा देती है जिसके अनुसार उपचार किया जाता है। जिस तत्व की अधिकता रोग का कारक है उसके शमन हेतु उसके विपरीत गुण वाले तत्व की औषद्धिया दी जाती हैं। जिस तत्व की न्यूनता होती है उसकी वृद्धि हेतु उसी तत्व वाले गुण की औषद्धिया दी जाती हैं। हमारे आयुर्वेद मे 'बेक्टीरिया' से रोग की उत्पत्ति मानने की सनक नहीं होती है,यह विशुद्ध प्राकृतिक  और वैज्ञानिक रूप से रोग की खोज करके उपचार करता है इसी लिए इसे आयु का विज्ञान =आयुर्वेद कहते हैं। 'आयुर्वेद' मे 'शल्य'चिकत्सा =सर्जरी का व्यापक महत्व था। गौतम बुद्ध के समय तक 'मस्तिष्क' तक की शल्य चिकित्सा होती थी और सिर दर्द का इलाज भी इस विधि से संभव था। 'बौद्ध' मत के विरोध की आंधी मे पोंगा-पंथियों ने मूल पांडु लिपियों और अनेक ग्रन्थों को जला डाला जिसका परिणाम यह हुआ कि  आगे से  आयुर्वेद मे शोद्ध होना बंद हो गया। उसके बाद 1100 वर्षों की गुलामी मे 'पौराणिकों' ने और ज्यादा ढोंग-पाखंड का कहर बरपाया । संत कबीर आदि ने इस ढोंग-पाखंड का विरोध उस काल मे किया और आधुनिक काल मे स्वामी दयानंद,स्वामी विवेकानंद आदि ने। किन्तु आचार्य श्री राम शर्मा आदि ने इनके प्रयासों पर पानी फेर दिया और ढोंग-पाखंड का आज इतना बोल बाला है कि अनेकों ढोंगियों ने खुद को आज भगवान घोषित कर दिया है। देखिये 21 मार्च को फेसबुक पर व्यक्त विद्वानो के विचार-



  • सुना तो होगा आप लोंगों ने भी .कोई रविशंकर महाराज कहलाते हैं .बोलते हैं तो आवाज स्त्री की लगती है .कल जय पुर में बयान दिया की सरकारी स्कूल बंद करदेने चाहिए सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही नक्सलबादी बनते हैं .अब लीजिये नया फंडा ,न जाने कौन संस्था रोज एक महाराज ,एक साधू पैदा करती है पहले चोरी चोरी धन कमाते हैं जब फ़ैल जाते हैं तो नाटक करते हैं .जितने इस प्रकार के लोग हैं उन्हें ,धर्मभीरु लोग ही बढ़ाते हैं ,रविशंकर .निर्मल बाबा ,आशा राम बापू ,मुरारी बापू,रामदेव .और पता नहीं कितने डेरा सच्चा सौदा आदि आदि .उसी में हजारे को भी जोड़ देना चाहिए .इन्ही को देश शौंप देना चाहिए ,संबिधान हटा देना चाहिए ,अन्यथा ऐसी ब्यवस्था हो की इनके चोंच बंद हों ,दुखदाई हैं
  • Ramji Tiwari ये अभी बलिया में भी आये थे ...देखकर और सुनकर मन क्षोभ से भर उठा ...ऐसे लोगों को कैसे समाज के दिग्दर्शक बनने का दावा करने लगते है , जिन्हें रत्ती भर भी समझ नहीं ...
  • Pankaj Chaturvedi फिर बाबाजी यह भी कहेंगे मंदिर अंधविश्वासी बनाते हें उनको गिरा दो और बाबाजी के ही मंदिर बनादो, साडी चदौत उनको ही दे दो



चैत्र और शरद नव रात्रों मे ढ़ोंगी-पाखंडी ढ़ोल-नगाड़ों से खुराफात करते हैं और खुद को देवी-भक्त घोषित करते हैं। ये नौ देवियाँ क्या हैं?चौबे साहब ने अच्छे और सरल ढंग से समझाया है किन्तु आम जनता की कौन कहे ?हमारे इंटरनेटी विद्वान भी मानने को तैयार न होंगे। 


इन बदलते मौसमो मे उपरोक्त वर्णित औषद्धियों के सेवन से मानव मात्र को स्वस्थ रखने की कल्पना की गई थी। इन औषद्धियों से नौ दिन तक विशेष रूप से हवन करते थे जो 'धूम्र चिकित्सा' का वैज्ञानिक आधार है। लेकिन आज क्या हो रहा है?भगवान =GOD=खुदा के दलालों (पुरोहितवादियों) ने मानव-मानव को लड़ा कर अपनी-अपनी दुकाने चला रखी हैं और मानव 'उल्टे उस्तरे' से उनके द्वारा ठगा जा रहा है। 'साईं बाबा','संतोषी माता','वैभव लक्ष्मी' नामक ठगी के नए स्तम्भ और ईजाद कर लिए गए हैं। जितना विज्ञान तरक्की कर रहा बताया जा रहा है उतना ही ज्यादा ढोंग-पाखंड का प्रचार होता जा रहा है जो पूर्णतः'अवैज्ञानिक' है। 'जनहित' मे मैंने प्रार्थना-स्तुति के द्वारा भी स्वास्थ्य-लाभ (उपचार) प्राप्त करने का मार्ग बताया है जिसे लोग अपनाना नहीं चाहते और मंहगे उपचार मे फंस कर अपना अहित करते रहते हैं। 


संवत 2069 सम्पूर्ण मानव जाति के लिए मंगलमय हो इस शुभकामना के साथ मै इस नारे को दोहराना चाहूँगा-


'धरती बांटी,अंबर बांटा ,बाँट दिया भगवान को । 
दुनिया की खुशहाली चाहो-अब न बांटो इंसान को । । '

Tuesday, March 20, 2012

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा

Hindustan-Lucknow-18 March-2012
फेसबुक से प्राप्त फोटो 

ऊपर आप दो चित्रों को देख रहे हैं । एक मे उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षामंत्री एक तथाकथित सन्यासी से आशीर्वाद ग्रहण कर रहे हैं और इन रक्षामंत्री के पूर्व सलाहकार और पूर्व राष्ट्रपति दूसरे चित्र मे दूसरे सन्यासियों से।

जब ऐसी प्रक्रियाएं सार्वजनिक रूप से होती हैं तो आम जनता भी इनकी देखा-देखी इन लोगों के पीछे भागती और ठगी जाती है। ये लोग अपनी मार्केटिंग के तहत राजनीतिज्ञों को फँसाते हैं और उन्हें आशीर्वाद देकर उनके कृत्यों को ईमानदारी के प्रमाण पत्र जारी करते हैं। आज देश और दुनिया के सामने जितने भी भयंकर संकट खड़े हैं सब के सब इन पुरोहितवादियो की गलत धार्मिक व्याख्याओं के कारण ही टिके और खड़े हैं।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम जरूर ईमानदारी पर चल कर ही ऊपर उठे थे न कि ऐसे साधू -सन्यासियों के आशीर्वाद से!इसी प्रकार अखिलेश यादव भी जनता के वोटों से ही मुख्यमंत्री बने हैं न कि रामदेव जी  के आशीर्वाद से।

फिर क्या वजह है जो ये शक्तिशाली राजनीतिज्ञ सन्यासियों के चक्कर लगाते हैं। ये सन्यासी धन उन लोगों के दान से प्राप्त करते हैं जो गरीब मजदूर-किसान के शोषण हेतु जिम्मेदार हैं। शोषण द्वारा बटोरे धन का एक भाग बतौर कमीशन 'दान' के आवरण मे ऐसे धार्मिकों को भेंट किया जाता है और बदले मे ये धार्मिक दानदाताओं का गुण गाँन करते हैं। धर्म की गलत व्याख्याएँ प्रस्तुत करते हैं जिनसे शोषण व्यवस्था और मजबूत होती है।

आज जरूरत है 'मानव द्वारा मानव के शोषण से मुक्त 'समाज स्थापित करने की जिसमे ऐसे सन्यासियों  को महिमा मंडित करना बाधक बंनता है। कुछ कमी उन लोगों की तरफ से भी है जिन्होने 'धर्म' का विरोध करने के नाम पर 'धर्म' की गलत व्याख्याएँ करने की छूट दे रखी है। आज आवश्यकता है जनता को वास्तविक 'धर्म' समझाने की न कि 'धर्म' का थोथा विरोध करने की। जब तक शोषण विहीन समाज स्थापित करने के अलमबरदार 'धर्म' को शोषकों के चंगुल से नहीं मुक्त कराते ,ढोंग-पाखंड का ठोस विरोध नहीं करते तब तक शोषण विहीन समाज स्थापित करने की बात कहना बेमानी ही है।

Friday, March 16, 2012

ग्रहों के आईने मे अखिलेश सरकार


शपथ ग्रहण के समय सपाइयों का उपद्रव और अखिलेश की चिंता 

अखिलेश जी की शपथ-कुण्डली





2003 और 2004 मे  'ब्रह्मपुत्र समाचार',आगरा मे मैंने मुलायम सिंह जी के मुख्यमंत्री पद की शपथ-कुण्डली,पार्टी नेत्री आशा ख्नड़ेलवाल की प्रश्न कुण्डली,सांसद राज बब्बर आदि के संबंध मे ज्योतिषयात्मक विवेचन दिये थे।  अखबार की स्कैन कापियाँ दिये गए लिंक पर 'कलम और कुदाल'ब्लाग मे उपलब्ध हैं। अब मै किसी भी अखबार के लिए न लिख कर अपने ब्लाग्स पर ही विचार दे रहा हूँ। कुछ लोग किन्ही पूर्वाग्रहों के कारण तो कुछ लोग अखबारो मे छ्पी तस्वीरों और खबरों को देख कर चिंतित हैं। 'अमर उजाला'ने नजीराबाद,अमीनाबाद,लखनऊ के टुंडा कवाब के हवाले से सिपाही और होमगार्ड को सपा विधायक के नुमाइन्दो  द्वारा पीटे जाने के आधार पर पूरी सरकार को कटघरे मे खड़ा कर दिया है। हम यहाँ आपको अखिलेश यादव जी की शपथ-कुण्डली के आधार पर ग्रह-नक्षत्रो की चाल से अवगत कराएंगे,यह जानते हुये भी कि आप मे से तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी महानुभाव इसकी कड़ी आलोचना करेंगे।

अखिलेश यादव जी ने लखनऊ मे सुबह 11-30 मिनट पर 'पद एवं गोपनीयता की शपथ' ग्रहण की है। चैत्र कृष्ण अष्टमी विक्रमी संवत 2068,शक संवत 1933  ,गुरुवार,मूल नक्षत्र,साध्य योग एवं कौलव करण मे शपथ ग्रहण हुआ है और उस समय लखनऊ के पूर्वी क्षितिज पर 'वृष' लग्न थी,हालांकि समारोह के मध्य ही मिथुन लग्न भी लग गई और कुछ मंत्रियों का शपथ ग्रहण दूसरी लग्न मे भी हुआ परंतु हम मुख्यमंत्री की शपथ को ही सरकार के भविष्य के लिहाज से लेंगे।

पहले यह देख लें कि मतदान 08 फरवरी से 04 मार्च के मध्य उत्तर प्रदेश मे सम्पन्न हुआ था जिस समय 'शनि'और 'मंगल'वक्री चल रहे थे जिसका परिणाम सचिव,सभासद हेतु आपदा कारक था। 29 तारीख की प्रातः 'शुक्र' मेष राशि मे 'गुरु'के साथ आ गया था जिसका फल सत्ता नायक और सत्ता दल पर भारी था। अतः 06 मार्च को घोषित परिणाम बसपा सरकार के विरुद्ध गया और मायावती जी को पद छोडना पड़ा। किन्तु अखिलेश जी ने मनोनीत होने के बावजूद किसी न किसी बहाने से तुरंत शपथ नहीं ली।

चैत्र कृष्ण सप्तमी =14 मार्च को 'सूर्य' 'मीन राशि' मे प्रवेश कर गया जो दलपति-नायक,राजदूत,राजपत्रित अधिकारियों हेतु शुभ है अतः अखिलेश जी ने 15 मार्च को सुबह स्थिर लग्न-वृष मे शपथ ग्रहण किया। ऊपर उस समय की कुण्डली दी गई है अवलोकन करें। तिथि अष्टमी सर्वथा शुभ तिथि होती है,नक्षत्र-'मूल' का प्रभाव यह होगा कि वह अखिलेश जी को यशस्वी,समाजसेवी,कला और विज्ञान का प्रेमी बना कर साहस,कर्मठता,नेतृत्व शक्ति का धनी और उत्तम विचारो का पोषक भी बनाएगा।

'चंद्रमा' धनु राशि मे होने के कारण हठवादी, चतुर और मधुर-भाषी बनाए रखेगा। गुरुवार का दिन तो शपथ ग्रहण के लिए शुभ होता ही है। 'वृष'लग्न स्थिर होने के कारण सामान्यतः सरकार को 'स्थिर' रखेगी। जन -समाज का स्नेह-भाजन मुख्यमंत्री को बनाने वाली लग्न रहेगी।

शपथ-ग्रहण के समय 'शुक्र' की महादशा मे 'शुक्र' की ही अंतर दशा थी जो अभी 08 जून 2015 तक चलेगी जो सरकार के लिए शुभता प्रदान करती रहेगी। शपथ-कुण्डली का दूसरा भाव (जो जनता तथा राज्य कृपा का भाव है ) तथा पंचम भाव ( जो लोकतन्त्र का है )का स्वामी होकर बुध एकादश भाव मे सूर्य के साथ है। अतः बुद्धिमानी द्वारा हानि पर नियंत्रण पाने की क्षमता बनी रहेगी।

तीसरा भाव पराक्रम और जनमत का है जिसका स्वामी होकर चंद्रमा अष्टम भाव मे चला गया है जो सरकार के स्थाईत्व हेतु शुभ नहीं है।

सातवें भाव (जो सहयोगियों,राजनीतिक साथियों एवं पार्टी नेतृत्व का है )का स्वामी मंगल चतुर्थ भाव (जो लोकप्रियता व मान-सम्मान का है )मे सूर्य की राशि मे स्थित है । यह स्थिति शत्रु बढ़ाने वाली है इसी के साथ-साथ सातवें भाव मे मंगल की राशि मे 'राहू' स्थित है जो कलह के योग उत्पन्न कर रहा है।

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार के मध्य काल तक पार्टी मे अंदरूनी कलह-क्लेश और टकराव बढ़ जाएँगे। ये परिस्थितियाँ पार्टी को दो-फाड़ करने और सरकार गिराने तक भी जा सकती हैं। निश्चय ही विरोधी दल तो ऐसा ही चाहेंगे भी।*****

लेकिन 09 जून 2015 से प्रारम्भ शुक्र मे सूर्य की अंतर दशा और फिर 09 जून 2016 से प्रारम्भ चंद्र की अंतर दशाओं के भी शुभ रहने एवं शपथ ग्रहण के दिन गुरुवार ,मूल नक्षत्र,और चंद्रमा के गुरु की धनु राशि मे होने तथा तिथि अष्टमी रहने के कारण अखिलेश जी अपनी कुशाग्र बुद्धि से सभी समस्याओं का निदान करने मे सफल रहेंगे ऐसी संभावनाएं मौजूद हैं और सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सकेगी ऐसी हम आशा करते हैं ।

*****

Wednesday, March 14, 2012

धर्म की गलत व्याख्या और हत्याये



दोनों चित्र साभार-हिंदुस्तान-लखनऊ -14/03/2012 
पूर्व पुलिस कमिश्नर वाई पी सिंह साहब ने बहुत ही स्पष्ट ढंग से समझाया है कि किस प्रकार ईमानदार अफसरो को प्रताड़ित होना पड़ता है और भ्रष्ट अफसर,नेता व ठेकेदार मजे मे रहते हैं। सपा नेत्री शम्मी कोहली की हत्या भी ऐसे धंधे और राजनीति का घालमेल ही है। शम्मी कोहली का शराब का व्यवसाय था और उसी के बूते उन्हे सबसे पहले कांग्रेस ने आगरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाया था जिसमे वह भाजपा से हार गई थी। सपा मे एक और शराब व्यवसाई नेत्री आशा खंडेलवाल थी अतः शम्मी कोहली कांग्रेस छोड़ कर बसपा मे चली गई। 2007 मे आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र से उन्होने अपने बेटे नितिन के लिए बसपा का टिकट मांगा था जो न मिलने पर 'बसपा कांशी राम'बना कर उसने चुनाव लड़ा और हारने के बाद माँ -बेटे सपा मे शामिल हो गए क्योंकि आशा खंडेलवाल सपा से बसपा मे चली गई थी। बाद मे आशा खंडेलवाल फिर सपा मे लौट भी आई। कमलानगर मे ही नितिन का टाटा इंडिकाम का फ्रेचाईजी भी था जो झगड़ो के कारण ही टाटा ने टेक ओवर कर लिया था।

आशा खंडेलवाल के तो लड़के ही झगड़ालू थे किन्तु शम्मी कोहली खुद भी बेटो के साथ-साथ झगड़ालू थी। आशा खंडेलवाल का समर्थक भट्टा-व्यवसाई मनोज अग्रवाल कई बार शम्मी कोहली द्वारा कार से खींच-खींच कर पीटा जा चुका था। शम्मी कोहली पुलिस अधिकारियों से भी दबंग व्यवहार रखती थी। अब उनके बेटे नितिन ने अपने भाई की पत्नी के विरुद्ध उनकी हत्या मे शामिल होने का इल्जाम लगाया है। अखबार मे शम्मी कोहली की उम्र 46 वर्ष दी है। 2007 मे यदि नितिन कोहली 25 वर्ष का रहा हो तो अब 30 वर्ष का होगा इस प्रकार उसके जन्म के समय शम्मी कोहली की उम्र 16 वर्ष रही होगी। तो क्या शम्मी कोहली का बाल-विवाह हुआ था?

क्या और क्यो व कैसे हुआ कानून की समस्या है। किन्तु हमारा उद्देश्य यह बताना है कि ऐसी समस्याएँ चाहे वे ईमानदार पुलिस अधिकारी नरेंद्र जी की हत्या हों या भ्रष्ट नेत्री शम्मी कोहली की हत्या केवल और केवल गलत सामाजिक परम्पराओं एवं गलत धार्मिकता के बोलबाले के कारण घटित होती हैं। शराब व्यवसाई आशा खंडेलवाल प्रतिवर्ष भागवत,देवी भागवत,रामायण आदि के पाठ करा कर पुरोहितो को ऊंची -ऊंची रकमे दक्षिणा मे भेंट करती हैं बदले मे ये तथा कथित धार्मिक पुरोहित आशा खंडेलवाल को दयालू,सहृदय और बेहद धार्मिक महिला घोषित करते रहते हैं जबकि उनका व्यवसाय ही अनैतिक है। इसी प्रकार शम्मी कोहली भी ढोंग-पाखंड के आडंबर करते रह कर धार्मिक मानी जाती थी। व्यापारी ,बिल्डर,आदि अपने कर्मचारियो को शराब पिला-पिला कर उनकी आदत बिगाड़ देते हैं जिसका खामियाजा उनकी पत्नी और बच्चो को भुगतना पड़ता है। अनेकों परिवारों को भुखमरी और बदहाली के कगार पर पहुंचाने वाली शराब की ये व्यापारी नेत्रिया धार्मिक पुरोहितो द्वारा धर्मपरायाण घोषित होने के कारण जनता मे भी श्रद्धा से देखी जाती रही है।

मै इस ब्लाग मे अनेकों बार 'धर्म' को स्पष्ट कर चुका हूँ किन्तु खेद  है कि तमाम पढे-लिखे समझदार लोग भी अंध-विश्वास और ढोंग-पाखंड को ही धर्म मानते है और मेरा उपहास उड़ाते हैं। केवल दो हतयाये तो उदाहरण मात्र है सम्पूर्ण देश मे प्रतिदिन बहुत कुछ अनैतिक घटित होता रहता है और जिम्मेदार लोग खुद आत्मावलोकन करने के बजाए राजनीति और राजनेताओ को दोषी ठहरा कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं। जब तक समाज मे धर्म की अधार्मिक व्याख्याए प्रचलित रहेंगी और पुरोहितो का ढोंग-पाखंड पूजा जाता रहेगा समाज व राष्ट्र मे सर्वत्र अव्यवस्था एवं अशांति व्याप्त रहेगी। सबसे पहले आडंबर को हटा कर धर्म को शुद्ध करना होगा तभी सब कुछ स्वतः शुभ होगा।

Monday, March 12, 2012

यू पी चुनाव और कम्यूनिज़्म की संभावनाएं

"मायावती की माया और मुलायम की माया में कुछ बहुत फ़र्क नहीं है। दोनों ही मायावी हैं। जातीय राजनीति में आकंठ धंसे, भ्रष्टाचार में सिर से पांव तक सने और तानाशाही का मुकुट पहने अहंकार के समुद्र में लेटे दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। उत्तर प्रदेश की जनता यह भली भांति जानती है कि एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ। पर चूंकि उस के पास विकल्प भी कुछ और नहीं है तो ऐसे में जनता करे भी तो क्या। रही बात भाजपा और कांग्रेस की तो वह दोनों भी कुछ दूसरी विशेषताओं के साथ ही सही नागनाथ और सांपनाथ की ही भूमिका में भारतीय राजनीति में उपस्थित हैं। सो हैरान-परेशान जनता करे तो आखिर क्या करे? क्यों कि सच तो यह है कि इन में से किसी भी एक दल का लोकतंत्र या लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन एक पैसे का भी नहीं रहा। सभी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों मे तब्दील हैं। बल्कि कारपोरेट कल्चर में लथ-पथ। सब के सब जनता के दम पर जनता पर राज करने की फ़िराक में रहते हैं। सेवा-सुशासन आदि इन के लिए पुरातात्विक महत्व की बातें हो चली हैं।"


('हस्तक्षेप' मे व्यक्त ये विचार है 30 जनवरी 1958 को जन्मे  और 33 वर्ष का अनुभव लिए  वरिष्ठ पत्रकार दयानन्द पांडे जी के)  

यो  तो संबन्धित लेख मे पांडे जी की और बाते भी सत्य है किन्तु उपरोक्त अनुच्छेद अक्षरशः सत्य है। इसमे "पर चूंकि उस के पास विकल्प भी कुछ और नहीं है तो ऐसे में जनता करे भी तो क्या।" वाक्य विशेष उल्लेखनीय है। इस बार के चुनावो मे 'बाम पंथी मोर्चा' ने कुल 115 स्थानो पर जिसमे से भाकपा ने 51 सीटो पर चुनाव लड़ा था। परिणामो से पता चलता है कि जनता ने इनमे से किसी पर विश्वास नही किया। आखिर क्यो?जिस प्रकार बर्तन से मात्र डेढ़ चावल देख कर अनुमान लग जाता है कि खिचड़ी पकी है अथवा नही।उसी प्रकार मात्र लखनऊ (मलीहाबाद -सु ) विधान सभा क्षेत्र के भाकपा प्रत्याशी के चुनाव अभियान मे भाग लेने से मैंने अनुमान लगाया है कि पार्टी कामरेड्स ने 'मनसा-वाचा-कर्मणा' पार्टी प्रत्याशियों का साथ दिया ही नही तब जनता क्या करे?कही किसी और कही किसी बहाने से पार्टी कामरेड्स ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों को जिताने की अपेक्षा समाजवादी पार्टी के हित मे कार्य किया । एक वरिष्ठ कामरेड ने मुझे व्यक्तिगत रूप से ई मेल पर मेरे द्वारा व्यक्त चिंता  पर यह टिप्पणी दी-"Dear com. lal salam
What you have wrote in your blog is looks everywhere in India, so do not bother . In each party congress the decisions taken are not followed by the state parties so we are far away from victory in elections,& loosing the candidates in parliamentary elections ,those which are contesting elections they are pure workers of the party and trying to hold ideology of communist party.In India corrupt & bad malpractices win the election .Unit should strong on the base of masses to contest elections so we can win."


आखिर हम जनता को क्यो समझाने मे विफल रहते हैं?इसका कारण वरिष्ठ कामरेड और विद्वान लेखक अनिल राजिम वाले साहब ने पार्टी जीवन मे लिखे एक लेख मे   स्पष्ट किया है कि बावजूद रूसी नेताओ लेनिन,स्टालिन आदि के समझाने के बाद भी हमारे संस्थापक नेताओ द्वारा उनकी बाते न मानना है। रूसी नेताओ ने भारतीय नेताओ को सुझाव दिया था कि भारतीय परिस्थितियो के अनुरूप पार्टी का गठन और इसका प्रचार करे न कि रूसी पैटर्न की नकल करे। परंतु हमारे नेताओ ने उनकी उपेक्षा करके रूसी पैटर्न को अपना लिया और परिणाम हमारे सामने हैं। खुद रूस मे भी उनका पैटर्न विफल हो गया और जो चीन मे चल रहा है वह वस्तुतः पूंजीवादी तानाशाही है न कि 'कम्यूनिज़्म'। 


कम्यूनिज़्म मूलतः भारतीय अवधारणा है जो मैक्स मूलर साहब द्वारा ले जाई गई मूल पांडु लिपियों के साथ जर्मनी पहुंची और उनके द्वारा जर्मन भाषा मे किए गए अनुवादों के आधार पर कार्ल मार्क्स द्वारा -दास केपिटल एवं कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के द्वारा प्रचारित व प्रसारित की गई। विदेशी विद्वानो ने न तो भारतीय संदर्भों का उल्लेख किया न ही पालन फलतः व्यवहारिक धरातल पर उनके सिद्धान्त टिक न सके। लेकिन आज भी भारतीय कामरेड्स उसी प्रवृति को अपना कर भारत मे कम्यूनिज़्म लाने का दिवा-स्वप्न देखते हैं। मैंने अपने लेख मे गत वर्ष ही लिखा था जिसे ज्यों का त्यों पुनः उद्धृत कर रहा हूँ और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आगामी 27 मार्च से 31 मार्च तक होने वाली पार्टी कान्फरेंस मे यदि भारतीय संदर्भों के आधार पर प्रचार -शैली को अपनाने का निश्चय हो जाये तो संसदीय चुनावो मे जनता का समर्थन हासिल करके भारत मे सफलता पूर्वक कम्यूनिज़्म को लागू किया जा सकता है। -

वैदिक मत के अनुसार मानव कौन ?

त्याग-तपस्या से पवित्र -परिपुष्ट हुआ जिसका 'तन'है,
भद्र भावना-भरा स्नेह-संयुक्त शुद्ध जिसका 'मन'है.
होता व्यय नित-प्रति पर -हित में,जिसका शुची संचित 'धन'है,
वही श्रेष्ठ -सच्चा 'मानव'है,धन्य उसी का 'जीवन' है.


इसी को आधार मान कर महर्षि कार्ल मार्क्स द्वारा  साम्यवाद का वह सिद्धान्त प्रतिपादित  किया गया जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने का मन्त्र बताया गया है. वस्तुतः मैक्स मूलर सा : हमारे देश से जो संस्कृत की मूल -पांडुलिपियाँ ले गए थे और उनके जर्मन अनुवाद में जिनका जिक्र था महर्षि कार्ल मार्क्स ने उनके गहन अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाले थे उन्हें 'दास कैपिटल' में लिपिबद्ध किया था और यही ग्रन्थ सम्पूर्ण विश्व में कम्यूनिज्म  का आधिकारिक स्त्रोत है.स्वंय मार्क्स महोदय ने इन सिद्धांतों को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार लागू करने की बात कही है ;परन्तु दुर्भाग्य से हमारे देश में इन्हें लागू करते समय इस देश की परिस्थितियों को नजर-अंदाज कर दिया गया जिसका यह दुष्परिणाम है कि हमारे देश में कम्यूनिज्म को विदेशी अवधारणा मान कर उसके सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया और धर्म-भीरु जनता के बीच इसे धर्म-विरोधी सिद्ध किया जाता है.जबकि धर्म के तथा-कथित ठेकेदार खुद ही अधार्मिक हैं परन्तु हमारे कम्यूनिस्ट साथी इस बात को कहते एवं बताते नहीं हैं.नतीजतन जनता गुमराह होती एवं भटकती रहती है तथा अधार्मिक एवं शोषक-उत्पीडक लोग कामयाब हो जाते हैं.आजादी के ६३ वर्ष एवं कम्यूनिस्ट आंदोलन की स्थापना के ८६ वर्ष बाद भी सही एवं वास्तविक स्थिति जनता के समक्ष न आ सकी है.मैंने अपने इस ब्लॉग 'क्रान्तिस्वर' के माध्यम से ढोंग,पाखण्ड एवं अधार्मिकता का पर्दाफ़ाश  करने का अभियान चला रखा है जिस पर आर.एस.एस.से सम्बंधित लोग तीखा प्रहार करते हैं परन्तु एक भी बामपंथी या कम्यूनिस्ट साथी ने उसका समर्थन करना अपना कर्तव्य नहीं समझा है.'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता'  परन्तु कवीन्द्र रवीन्द्र के 'एक्ला चलो रे ' के तहत मैं लगातार लोगों के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास कर रहा हूँ -'दंतेवाडा त्रासदी समाधान क्या है?','क्रांतिकारी राम','रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना','सीता का विद्रोह','सीता की कूटनीति का कमाल','सर्वे भवन्तु सुखिनः','पं.बंगाल के बंधुओं से एक बे पर की उड़ान','समाजवाद और वैदिक मत','पूजा क्या?क्यों?कैसे?','प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है -यह दुनिया अनूठी है' ,समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स,१८५७ की प्रथम क्रान्ति आदि अनेक लेख मैंने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अभिमत के अनुसार प्रस्तुत किये हैं जो संतों एवं अनुभवी विद्वानों के वचनों पर आधारित हैं.

मेरा विचार है कि अब समय आ गया है जब भारतीय कम्यूनिस्टों को भारतीय सन्दर्भों के साथ जनता के समक्ष आना चाहिए और बताना चाहिए कि धर्म वह नहीं है जिसमें जनता को उलझा कर उसका शोषण पुख्ता किया जाता है बल्कि वास्तविक धर्म वह है जो वैदिक मतानुसार जीवन-यापन के वही सिद्धांत बताता है जो कम्यूनिज्म का मूलाधार हैं.कविवर नन्द लाल जी यही कहते हैं :-

जिस नर में आत्मिक शक्ति है ,वह शीश झुकाना क्या जाने?
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है वह पाप कमाना क्या जाने?
माँ -बाप की सेवा करते हैं ,उनके दुखों को हरते हैं.
वह मथुरा,काशी,हरिद्वार,वृन्दावन जाना क्या जाने?
दो काल करें संध्या व हवन,नित सत्संग में जो जाते हैं.
भगवान् का है विशवास जिन्हें दुःख में घबराना क्या जानें?
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से .
रण- भूमि में पीछे जा के वह कदम हटाना क्या जानें?
हो कर्मवीर और धर्मवीर वेदों का पढने वाला हो .
वह निर्बल दुखिया बच्चों पर तलवार चलाना क्या जाने?
मन मंदिर में भगवान् बसा जो उसकी पूजा करता है.
मंदिर के देवता पर जाकर वह फूल चढ़ाना क्या जानें?
जिसका अच्छा आचार नहीं और धर्म से जिसको प्यार नहीं.
जिसका सच्चा व्यवहार नहीं 'नन्दलाल' का गाना क्या जानें?

संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महा पुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है.दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं.सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है। 

*                                                                                     *                                                        *

यदि हम चुनावो मे जनता के समक्ष कम्युनिस्ट पार्टी को एक विकल्प के रूप मे प्रस्तुत करेंगे तो निश्चय ही जनता कम्यूनिज़्म के अतिरिक्त किसी और को नहीं चुनेगी बस सिर्फ उसे समझाना भर है कि कम्यूनिज़्म भारतीय विचार धारा है ,विदेशी नहीं -विदेश मे विफलता ही इसी कारण मिली क्योंकि वह भारतीय अवधारणा पर नही चलाई गई थी।ज़ोर शोर से खुद को ठेठ और पुराना कम्युनिस्ट कहने वाले कलाई पर कलावा बांधते है,मजार,मस्जिद और मंदिर भी जाते हैं उनकी कथनी और करनी मे अंतर रहता है। किन्तु मेरे द्वारा विश्लेषित दृष्टिकोण को सिरे से ही ठुकरा देते हैं। यदि 'सत्य' को स्वीकार किया जाये तो सफलता स्वतः मिलेगी।                          

Wednesday, March 7, 2012

नई बोतल मे पुरानी शराब

होली के रंग मे भंग 

लोगो ने होली को मस्ती और मनोरंजन का त्योहार बना डाला है जबकि यह वैज्ञानिक आधार पर मानव को 'हेल्थ एंड हाईजीन'द्वारा चुस्त-दुरुस्त रखने का पर्व होता था। नई बात न कह कर पुरानी दोहरा कर इस मस्ती के रंग मे भंग घोल रहा हूँ-


बुधवार, 26 अक्तूबर 2011


विकृत होते दीपावली/होली पर सकारात्मक पहल


पावर कार्पोरेशन के स्पेशल  डाइरेक्टर जेनेरल शैलजाकान्त मिश्र साहब ने अपने साथियों के साथ पटाखे छोडने के स्थान पर 'टेसू' के वृक्ष लगाने की जो मुहिम शुरू की है वह न केवल सराहनीय वरन अनुकरणीय भी है। 'टेसू' या 'पलाश' अब उत्तर-प्रदेश का राजकीय वृक्ष तो है ही पर्यावरण संरक्षा मे भी सहायक है। 'टेसू' के फूलों से पहले होली मे रंग एक-दूसरे पर डाला जाता था। इसका रंग कच्चा होने के साथ-साथ जो आसानी से छूट जाता है,चर्म-रोगों से त्वचा की रक्षा भी करता है। पटाखे केवल ध्वनि-प्रदूषण ही नहीं करते बच्चों-बड़ों सभी  के लिए घातक भी होते हैं।

प्रतिवर्ष दीपावली पर करोड़ों रुपए पटाखों पर फूँक दिये जाते हैं। इनसे सिर्फ पर्यावरण ही नहीं प्रदूषित होता। इनके निर्माण के पीछे असंख्य बच्चों के शोषण की कहानी भी छिपी हुई है जिस पर विगत वर्ष मे कुछ ब्लागर्स ने अपने-अपने ब्लाग्स पर खुलासा भी किया था। सुप्रसिद्ध आर्य सन्यासी (अब दिवंगत) स्वामी स्वरूपानन्द  जी के प्रवचन कमलानगर,आगरा मे सुनने का अवसर मिला है। उन्होने बड़ी बुलंदगी के साथ बताया था कि जिन लोगों की आत्मा हिंसक प्रकृति की होती है वे ही पटाखे छोड़ कर धमाका करते हैं। उनके प्रवचनों से कौनकितना प्रभावित होता था या बिलकुल नहीं होता था मेरे रिसर्च का विषय नहीं है। मै सिर्फ इतना ही बताना चाहता हूँ कि यशवन्त उस समय 13 या 14 वर्ष का रहा होगा और उसी दीपावली से उसने पटाखे छोडना बंद कर दिया है क्योंकि उसने अपने कानों से स्वामी जी के प्रवचन को सुना और ग्रहण किया। वैसे भी हम लोग केवल अपने पिताजी द्वारा प्रारम्भ परंपरा निबाहने के नाते प्रतीक रूप मे ही छोटे लहसुन आदि उसे ला देते थे। पिताजी ने अपने पौत्र को शुगन के नाम पर पटाखे देना इस लिए शुरू किया था कि औरों को देख कर उसके भीतर हींन भावना न पनपे। प्रचलित परंपरा के कारण ही हम लोगों को भी बचपन मे प्रतीकात्मक ही पटाखे देते थे। अब जब यशवन्त ने स्वतः ही इस कुप्रथा का परित्याग कर दिया तो हमने अपने को धन्य समझा।

स्वामी स्वरूपानन्द जी  आयुर्वेद मे MD  थे ,प्रेक्टिस करके खूब धन कमा सकते  थे लेकिन जन-कल्याण हेतु सन्यास ले लिया था और पोंगा-पंथ के दोहरे आचरण से घबराकर आर्यसमाजी बन गए थे। उन्होने 20 वर्ष तक पोंगा-पंथ के महंत की भूमिका मे खुद को अनुपयुक्त पा कर आर्यसमाज की शरण ली थी और जब हम उन्हें सुन रहे थे उस वक्त वह 30 वर्ष से आर्यसमाजी प्रचारक थे। स्वामी स्वरूपानन्द जी स्पष्ट कहते थे जिन लोगों की आत्मा 'तामसिक' और हिंसक प्रवृति की होती है उन्हें दूसरों को पीड़ा पहुंचाने मे आनंद आता है और ऐसा वे धमाका करके उजागर करते हैं। यही बात होली पर 'टेसू' के फूलों के स्थान पर सिंथेटिक रंगों,नाली की कीचड़,गोबर,बिजली के लट्ठों का पेंट,कोलतार आदि का प्रयोग करने वालों के लिए भी वह बताते थे। उनका स्पष्ट कहना था जब प्रवृतियाँ 'सात्विक' थीं और लोग शुद्ध विचारों के थे तब यह गंदगी और खुराफात (पटाखे /बदरंग)समाज मे दूर-दूर तक नहीं थे। गिरते चरित्र और विदेशियों के प्रभाव से पटाखे दीपावली पर और बदरंग होली पर स्तेमाल होने लगे।

दीपावली/होली क्या हैं?

हमारा देश भारत एक कृषि-प्रधान देश है और प्रमुख दो फसलों के तैयार होने पर ये दो प्रमुख पर्व मनाए जाते हैं। खरीफ की फसल आने पर धान से बने पदार्थों का प्रयोग दीपावली -हवन मे करते थे और रबी की फसल आने पर गेंहूँ,जौ,चने की बालियों (जिन्हें संस्कृत मे 'होला'कहते हैं)को हवन की अग्नि मे अर्द्ध - पका कर खाने का प्राविधान  था।  होली पर अर्द्ध-पका 'होला' खाने से आगे आने वाले 'लू'के मौसम से स्वास्थ्य रक्षा होती थी एवं दीपावली पर 'खील और बताशे तथा खांड के खिलौने'खाने से आगे शीत  मे 'कफ'-सर्दी के रोगों से बचाव होता था। इन पर्वों को मनाने का उद्देश्य मानव-कल्याण था। नई फसलों से हवन मे आहुतियाँ भी इसी उद्देश्य से दी जाती थीं।

लेकिन आज वेद-सम्मत प्रविधानों को तिलांजली देकर पौराणिकों ने ढोंग-पाखंड को इस कदर बढ़ा दिया है जिस कारण मनुष्य-मनुष्य के खून का प्यासा बना हुआ है। आज यदि कोई चीज सबसे सस्ती है तो वह है -मनुष्य की जिंदगी। छोटी-छोटी बातों पर व्यक्ति को जान से मार देना इन पौराणिकों की शिक्षा का ही दुष्परिणाम है। गाली देना,अभद्रता करना ,नीचा दिखाना और खुद को खुदा समझना इन पोंगा-पंथियों की शिक्षा के मूल तत्व हैं। इसी कारण हमारे तीज-त्योहार विकृत हो गए हैं उनमे आडंबर-दिखावा-स्टंट भर  गया है जो बाजारवाद की सफलता के लिए आवश्यक है। पर्वों की वैज्ञानिकता को जान-बूझ कर उनसे हटा लिया गया है ।

इन परिस्थितियों मे चाहे छोटी ही पहल क्यों न हो 'पटाखा-विरोधियों'का 'टेसू'के पौधे लगाने का यह अभियान आशा की एक किरण लेकर आया है। सभी देश-भक्त ,जागरूक,ज्ञानवान ,मानवता-हितैषी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे इस अभियान की सफलता मे अपना भी योगदान दें। हम इन समाज-हितैषियों की सफलता की कामना करते हैं।

महिला दिवस क्यो?

इत्तिफ़ाक से कल होली पर ही 08 मार्च 2012 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी पड़ रहा है। गत वर्ष एक ब्लागर साहब ने आपत्ति की थी कि महिला दिवस 365 दिन क्यों नही?क्या वे और उन जैसे लोग बताएँगे कि यू एन ओ  डे सिर्फ 24 अक्तूबर को क्यो पूरे 365 दिन क्यो नहीं। 08 मार्च को यू एन ओ ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया है। 15 अगस्त को ही हमारा स्वतन्त्रता दिवस क्यो?पूरे 365 दिन क्यो नही?क्या जवाब है ?खैर गत वर्ष के ही लेख को दोबारा पेश कर रहा हूँ। 


सोमवार, 7 मार्च 2011


वेद में नारी

महिला दिवस ८ मार्च के उपलक्ष्य में यह संकलन प्रस्तुत है:-


२७ .१२ १९९७ के राष्ट्रीय सहारा ,लखनऊ में  प्रकाशित  सुश्री अंशु नैथानी के विचार सर्वप्रथम देखें इस स्कैन कापी में-

भ्रामक भारतीयता के मसीहा नरेंद्र मोदी के गुजरात में देखें महिलाओं की यह दुर्दशा-


  


                     हिंदुस्तान लखनऊ-२७/फरवरी/2011


०६ .०३ २०११ के हिंदुस्तान रीमिक्स में प्रकाशित का.शबाना आजमी के यह विचार -







-(सार्वदेशिक साप्ताहिक,११ अक्टूबर १९९८ से साभार  ) यह लेख  प्रस्तुत है-
"भूमिर्माता द्यौ :न पिता " (अथर्व.६ -१२०- २)

समाज में पुरुष और स्त्री का वही कार्य है,जो भू मंडल में प्रथ्वी और सूर्य का.,सूर्य प्रथिवी के बिना कोई सृजन नहीं कर सकता.

वेद में स्त्री के लिये उषा शब्द का प्रयोग हुआ है-"उषा वै सूर्यस्य पुरोगवी ".उषा सूर्य के आगे चलने वाली है.पुरुष सूर्य है और स्त्री पुरुष की पुरोगवी उषा है.तभी तो विवाह संस्कार में यज्ञ  वेदी की परिक्रमा करते हुए वधू आगे-आगे चलती है और वर पीछे-पीछे .
"स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ "  (ऋग.८ -३३ -१६ )

स्त्री-गृह,समाज,राष्ट्र एवं विश्व की ब्रह्मा है.मानव की जन्मदात्री,निर्मान्कत्री,संरक्षिका,शिक्षिका तथा संचालिका है."यथा ब्रह्मा तथा रचना".यदि स्त्री का अपना जीवन श्रद्धा,लज्जा,संयम,धैर्य,त्याग,स्नेह,सुशीलता,पवित्रता आदि श्रेष्ठ गुणों से युक्त होगा तो उसकी संतान भी शुद्ध,संयमी,धर्मात्मा,आस्तिकेवं कर्तव्य परायण होगी,और इसके विपरीत यदि नारी अक्षम,अबोध,अज्ञानी,असंयमी है,तो उसकी रचना भी त्रुटिपूर्ण होगी.अतः जिस राष्ट्र की नारी आदर्श ब्रह्मा औए शिक्षिका होगी,वही राष्ट्र आदर्श राष्ट्र बनेगा.

आर्य सभ्यता में नारी का सतीत्व सर्वोपरि है,तथा सतीत्व रक्षा का अचूक और श्रष्ट उपाय है,नारी का स्वंय सबला और सशस्त्र होना.महिला सम्मलेन करके,अधिकार मांगने,पुरुषों के आगे गिडगिडाने से कुछ भी मिलने वाला नहीं है.इसके लिए वेद माता का दिव्य-सन्देश नारी समाज ध्यान से सुने,समझे और फिर आचरण/व्यवहार में लाये तभी उसकी समस्याओं का समाधान हो जायेगा.

आलाक्ता ......वृह्न्नमः.. (ऋग .६ -७५ -१५)

भावार्थ-नारियां सुन्दर सुशील हों,पर साथ ही वीरांगना,सबला और सशस्त्रा भी हों.सतीत्व पर वार होने पर भयंकर,विकराला,विष से बुझी कटारियां हों तथा राष्ट्र पर संकट आने पर शास्त्रों और शरों की वर्षा करने वाली दुर्गा-लक्ष्मीबाई भी हों.समाज में ऐसी नारियों का सर्वाधिक सम्मान होना चाहिए.

राजपूत महिला किरण बाई ने 'मीना बाजार'से अपह्रत हो जाने पर साक्षात दुर्गा बन कर बादशाह अकबर की छाती पर चढ़ कर कटार तान दी थी और उसके प्राणों की भीख मांगने पर तथा भविष्य में मीना बाजार न लगाने का वचन लेकर उसे जीवन दान देकर -इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया.इसी प्रकार झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई ने राष्ट्र रक्षा के लिए साक्षात दुर्गा बन कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.

वैदिक संस्कृति में नारी का स्थान पुरुष से एक हजार गुना ऊंचा है तथा उसका कार्य क्षेत्र गृह है.अपने घर की सुव्यवस्था करना दिव्यगुणी संततियों को जन्म देके उनका सुसंस्कारों से युक्त करके निर्माण करना प्रमुख दायित्व है.गृहस्थ रूपी गाडी के दो पहिये हैं-स्त्री व पुरुष .यदि दोनों ही अपनी -अपनी लीक (मर्यादा)में चलेंगे तभी घर स्वर्ग-धाम बनेगा.दोनों के ही सर्विस या धनोपार्जन में लग जाने से अनेक समस्यायें उत्पन्न होंगी .संतानों को आयाओं पर छोड़ कर सुयोग्य नहीं बनाया जा सकता.

वैदिक संस्कृति में नारी शक्ति की अधिष्ठात्री -'दुर्गा,'धन की 'लक्ष्मी' तथा ज्ञान की 'सरस्वती'के रूप में मानी , गयी है.कन्याएं साक्षात 'दुर्गा'हैं,वही विवाह के पश्चात 'गृह लक्ष्मी एवं साम्राज्ञी'बन जाती हैं तथा प्रौढ़ावस्था में ज्ञान व अनुभवों से संपन्न होकर 'सरस्वती'बन जाती हैं.हमने अज्ञानवश इनकी कल्पित -फर्जी मूर्तियाँ बनाकर पूजना आरम्भ करके अपने असली स्वरूप को भुला दिया.

विवाह से पूर्व कन्या दो हाथ वाली है,विवाह हो जाने पर चार भुजाधारी और बेटा होने पर छः भुजाधारी तथा पुत्र-वधु आ जाने पर अष्ट भुजाधारी तथा वीर पुत्रों-पुत्रों की मान व दादी मान बन कर सिंह-वाहिनी बन जाती है.

जिस अष्ट-भुजाधारी व सिंह वाहिनी 'दुर्गामाता'की कल्पित मूर्ती की हम पूजा करते हैं-वह किसी चित्रकार ने 'भारत-माता'के रूप में अपनी कल्पना के आधार पर एक चित्र बनाया है.राष्ट्र की सामजिक व्यवस्था में उसके चारों अंगों -ब्राह्मन,क्षत्रिय ,वैश्य एवं शूद्र सभी का सहयोग रहता है.राष्ट्र पर शत्रु का आक्रमण होने पर चारों वर्णों के दो-दो हाथ मिला कर भारत माता 'अष्ट भुजाधारी'चारों के सिंह सदृश्य वीर पुत्रों के सहयोग से 'सिंह वाहिनी'बन जाती है.'वाहिनी'शब्द सेना के लिए भी प्रयोग होता है.

घर एक विश्वविद्यालय
संसार के महान  पुरुषों का प्रारंभिक शिक्षण अपने घर में ही हुआ है.बच्चे की सर्व प्रथम आचार्या उसकी माता है.है .हमारा अपना घर ही संसार का लघु संस्करण है.जैसे परिवार के स्त्री-पुरुष होंगे ,वैसा ही समाज बनेगा,जैसा समाज बनेगा,वैसा ही राष्ट्र होगा और जैसे राष्ट्र होंगे,वैसा ही विश्व होगा.

स्वामी विवेकानंद से किसी अमेरिकन महिला ने पूछा-स्वामी जी आपने कौन से विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की है,मैं भी अपने एक बेटे को उसी में पढाना चाहती हूँ.स्वामी जी ने उत्तर दिया-"वह विश्वविद्यालय तो अब टूट चूका है".कौन सा था वह विश्वविद्यालय ?यह पूछने पर स्वामी जी ने कहा-वह विश्वविद्यालय था-मेरी जन्मदात्री माँ-जो अब इस संसार में नहीं है.'माता निर्माता भवति'.

गृहस्थ विज्ञानं
गृहस्थ विज्ञानं संसार का सबसे बड़ा विज्ञानं है,जिसकी सर्वथा उपेच्छा  की जा रही है.उस विज्ञानं को भली भांति'संस्कार चन्द्रिका'पुस्तक में समझ कर आचरण में लाने पर माताएं बच्चे को संत,महात्मा,ऋषी,वीर,राजा अथवा चोर व डाकू जैसा चाहे बना सकती हैं.विधाता ने यह सामर्थ्य नारी को ही दिया है.वीर अभिमन्यु ने माँ के पेट में ही चक्रव्यूह भेदन क्रिया सीख ली थी.नेपोलियन की माता गर्भावस्था में नित्य सैनिक परेड देखती थी.अष्टावक्र ने गर्भ काल में ही वेदान्त की शिक्षा प्राप्त कर ली थी.महारानी मदालसा ने अपने तीन बेटों को ऋषी और चौथे को श्रेष्ठ राजा बना दिया था.

वैदिक विवाह
विवाह शब्द का अर्थ है-विवहनार्थ -विविध कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों के पालन हेतु दो आत्माओं और दो जीवनों का आजीवन अभिन्न मिलन.जहाँ दोनों मिल कर परिवार,समाज,राष्ट्र एवं विश्व की उन्नति में अपना योगदान करेंगे तथा लोक व परलोक की सुसाधना करेंगे.

वैदिक विवाह में तलाक का कोई स्थान नहीं है.आजीवन साथ रहने का विधान है.जैसे दो स्थानों का जल मिला देने पर संसार का बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी उन्हें अलग नहीं कर सकता .यह है वैदिक विवाह की श्रेष्ठता एवं विशेषता.विवाह से पूर्व ही केवल चरम नेत्रों से नहीं बल्कि ज्ञान नेत्रों से भी वर एवं कन्या के वंश ,गुण ,शील,स्वभाव,रूप-रंग,चरित्र आदि की परख कर लेनी आवश्यक है.केवल बाह्य रूप,रंग,कार-कोठी,पैसा,सर्विस आदि को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए.विवाह संस्कार वैदिक रीति से -वर एवं वधु स्वंय वेद मन्त्र बोल कर उनके अर्थ समझ कर प्रसन्नतापूर्वक आजीवन एक साथ रहने की प्रतिज्ञा करें.

आजकल विदेशियों की नक़ल करके जो प्रेम विवाह हो रहे हैं,उनमें से अधिकाँश का १ -२ वर्ष के भीतर तलाक हो जाता है.और अब तो विदेशों में यह मान कर कि जब विवाह का अंत तलाक में होना है,तो क्यों न विवाह को ही बीच में निकाल दिया जाए.परिणाम स्वरूप वहां हजारों स्त्री-पुरुष बिना विवाह्किये ही साथ -साथ रह रहे हैं-जिसके कारण वहां की सरकारों के सामने उनके बच्चों के पालन-पोषण ,शिक्षा व उत्तराधिकार जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं.उनका गृहस्थ जीवन पशुओं जैसा बन गया है.

भारत में भी यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है.दूरदर्शन व सिनेमा के माध्यम से विवाहोंतर संबंधों एवं बिन विवाह किये बच्चे को जन्म देने का हवाला अब शान के साथ दिया जाने लगा है.जो शीघ्र ही एक भयंकर त्रासदी की और देश को ले जायेगा

वैदिक संस्कृति के अभाव में नारी के अपने दिव्य स्वरूप,अपनी छमताओं,परिवार,समाज एवं राष्ट्र निर्माण में अपनी उज्जवल भूमिका  को  भुला  दिया  है .पुरुष  जो  उसी  की कृति है  -  नारी को एक  अभिशाप  के रूप  में चित्रित कर रहा है.आज का पुरुष यदि शैतान हैतो इसका मूल कारण यही है कि  नारी ने उसे संत बनाने की चिंता नहीं की.आज नारी ही नारी की शत्रु बन रही है.दहेज़ के कारण होने वाली अधिकाँश हत्याओं तथा कन्याओं की भ्रूण हत्याओं एवं गर्भपात में मूल रूप से सास व ननदें ही दोषी पाई जाती हैं.

हे मातृ शक्ति !वैदिक संस्कृति संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है.जैसे आत्मा के बिना शरीर निष्प्राण हो जाता है,उसी प्रकार अपनी संस्कृति के बिना आपका जीवन,परिवार,समाज व राष्ट्र निष्प्राण होकर अनेकों समस्याओं व संकटों से घिर गया है,तथा विनाश के कगार पर खड़ा है.

हे मानव की जन्मदात्री व निर्माण कर्त्ती माता !वैदिक संस्कृति को अपना कर 'सृष्टि की ब्रह्मा' बन कर वेदमाता के आदेश -'जनया दैव्यं जनम 'का पालन करके दिव्य-श्रेष्ठ गुणों से युक्त पुत्र व पुत्रियों को ही जन्म दो,तभी आपकी ,समाज,राष्ट्र एवं विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान होकर नवयुग-निर्माण होकर संसार स्वर्ग धाम बन जायेगा.आज संसार को 'मिस इण्डिया'या 'मिस यूनिवर्स'की नहीं बल्कि हजारों लाखों मदाल्साओं एवं दुर्गों की आवश्यकता है.

मथुरा के आर्य भजनोपदेशक श्री विजय सिंह जी के अनुसार-

हमें उन वीर माओं की कहानी याद आती है
मरी जो धर्म की खातिर कहानी याद आती है
बरस चौदह रही वन में पति के संग सीता जी
पतिव्रत धर्म मर्यादा निभानी याद आती है
कहा सरदार ने रानी निशानी चाहिए मुझ को
दिया सर काट रानी ने निशानी याद आती है
हज़ारों जल गयीं चित्तोड़ में व्रत धर्म का लेकर
चिता पद्मावती तेरी सजानी याद आती है
कमर बाँध कर बेटा लड़ी अंग्रेजों से डट कर
हमें वह शेरनी झांसी की रानी याद आती है. 


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विश्व महिला दिवस पर समस्त नारी समाज को मंगलकामनाएं.

तो यह रहा नई बोतल मे पुरानी शराब =होली पर रंग मे भंग। आप सब को सपरिवार होली मंगलमय हो।