हिन्दुत्व की राजनीति को समझते हुये उसका पर्दाफाश करना चाहिए और तर्क के आधार पर उसे अनैतिक व अधार्मिक सिद्ध करना चाहिए न कि, राहुल गांधी,अखिलेश यादव और ममता बनर्जी की भांति उसमें उलझ कर फंसना चाहिए। यदि हम सही मार्ग अपना सके तब ही आर एस एस और हिन्दुत्व की कार्पोरेटी राजनीति को परास्त कर सकेंगे अन्यथा गलत राह पकड़ने पर देश को दक्षिण पंथी तानाशाही का शिकार बना देंगे। ****** ****** ****** हम डॉ भीम राव आंबेडकर के 27 फरवरी 1942 के वक्तव्य को देखें या डॉ जगदीश्वर चतुर्वेदी के 30 दिसंबर 2017 के फेसबुक स्टेटस को डॉ तेजल का वक्तव्य देखें अथवा प्रोफेसर अपूर्वा नन्द का साक्षात्कार सभी विद्वान आर एस एस के दुष्प्रचार के बढ़ते प्रसार से चिंतित दिखाई देते हैं । परंतु सिर्फ चिंता करने मात्र से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। हमें वैज्ञानिक - वैचारिक आधार पर उसका प्रतिवाद करना और जनता को वास्तविकता समझाना चाहिए केवल आलोचना करके उनको परास्त नहीं कर सकते बल्कि उनका काम सुगम करना होगा।
अपूर्वा नन्द :
जिसका अपना जीवन ही 'संतुलित ' नहीं वह संत कैसे ? : बहुत बड़े - बड़े विद्वान, साहित्यकार और पत्रकार भी कुछ असामाजिक प्रवृति के लोगों के लिए साधु , संत , महात्मा, आध्यात्मिक गुरु आदि आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह सब पढ़ कर वेदना होती है। मेरा अपना निजी विचार है कि, किसी भी शब्द का अपना एक विशेष महत्व और अर्थ होता है । मैंने जो निष्कर्ष निकाले हैं उनके अनुसार ------ समस्या की जड़ है-ढोंग-पाखंड-आडंबर को 'धर्म' की संज्ञा देना तथा हिन्दू,इसलाम ,ईसाईयत आदि-आदि मजहबों को अलग-अलग धर्म कहना जबकि धर्म अलग-अलग कैसे हो सकता है ? वास्तविक 'धर्म' को न समझना और न मानना और ज़िद्द पर अड़ कर पाखंडियों के लिए खुला मैदान छोडना संकटों को न्यौता देना है। (1 ) धर्म= सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। (2 ) भगवान = भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी) । (3 ) चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। (4 ) इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं। (5 ) अध्यात्म = अध्यन + आत्मा अपनी आत्मा का अध्यन करना आडंबर प्रदर्शन नहीं। (6 ) संत = संतुलित हो जीवन जिसका। (7 ) साधु = साध चुका हो जो जीवन अपना। (8 ) भक्ति = "भक्ति"शब्द ढाई अक्षरों क़े मेल से बना है."भ "अर्थात भजन .कर्म दो प्रकार क़े होते हैं -सकाम और निष्काम,इनमे से निष्काम कर्म का (आधा क) और त्याग हेतु "ति" लेकर "भक्ति"होती है.आज भक्ति है कहाँ ? (9 ) ज्योतिष = अक्सर यह चर्चा सुनने को मिलती है की ज्योतिष का सम्बन्ध मात्र धर्म और आध्यात्म से है.यह विज्ञान सम्मत नहीं है और यह मनुष्य को भाग्य के भरोसे जीने को मजबूर कर के अकर्मण्य बना देता है.परन्तु ऐसा कथन पूर्ण सत्य नहीं है.ज्योतिष पूर्णतः एक विज्ञान है.वस्तुतः विज्ञान किसी भी विषय के नियम बद्ध एवं क्रम बद्ध अध्ययन को कहा जाता है.ज्योतिष के नियम खगोलीय गणना पर आधारित हैं और वे पूर्णतः वैज्ञानिक हैं ********
वस्तुतः ज्योतिष में ढोंग पाखण्ड का कोंई स्थान नहीं है.परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों की खातिर जनता को दिग्भ्रमित कर के ठगते हैं और उन्हीं के कारण सम्पूर्ण ज्योतिष विज्ञान पर कटाक्ष किया जाता है.यह एक गलत क्रिया की गलत प्रतिक्रिया है.जहाँ तक विज्ञान के अन्य विषयों का सवाल है वे What & How का तो जवाब देते हैं परन्तु उनके पास Why का उत्तर नहीं है.ज्योतिष विज्ञान में इस Why का भी उत्तर मिल जाता है.
पूजा के दो फूल चढ़ा कर कहता है इंसान कि, मुझको मिल जाये भगवान। .... भगवान बसे भैया खेतों में, भगवान बसे भैया खलिहानों में, वह तो बसे भैया बांधों में, खानों में, भैया वह तो बसे कल- कारखानों में।..... माथे पे तिलक लगा कर , पूजा के दो फूल चढ़ा कर कहता है इंसान मुझको मिल जाये भगवान। ..... जो सोचा है बावले यदि मिल जाये भगवान तो जगा ले मन में इतना ध्यान, जगा ले मन में इतना ज्ञान कि, जग में है क्या अमीर और क्या गरीब सब एक समान। ............ इस फिल्म के माध्यम से संदेश दिया गया है कि, प्रिंसिपल सरीखे आदर्श शिक्षक नंदू जैसे होनहार बालकों को पहचान कर उनको समर्थन व सहयोग देकर अमीरों को भी गरीबों का हमदर्द बनाने में सफल हो सकते है। नौकर धामू की ही तरह आज के युवा भी पेट की खातिर (रोजगार बचाने की मजबूरी के चलते ) अमीरों के इशारे पर गलत कार्य में सहयोगी बन रहे हैं उनको भटकने से बचाने के लिए रेहमान चाचा जैसे सुधारकों की भी आज महती आवश्यकता है। आज के कारपोरेटी लूट के युग में युवाओं और बालकों के मध्य इस फिल्म के प्रसार - प्रचार से उस पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा सकता है जिसे योग्य और देशभक्त फिल्म निर्माताओं ने साठ वर्ष पूर्व दूरदृष्टियुक्त कल्पना के सहारे प्रस्तुत किया था।
16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश एक अलग मुल्क के रूप में आज़ाद हुआ था एक लंबे संघर्ष और कुर्बानी के बाद जिसमें भारत का भी सहयोग था॰ रूडकी रोड क़े क्वार्टर में रहते हुए P .O .W .का जो नज़ारा देखा था उसके उल्लेख क़े बगैर बात अधूरी ही रहेगी.मेरठ कालेज की गतिविधियों में भाग लेते हुए मैंने बांग्ला -देश को मान्यता देने का विरोध किया था.नवभारत टाईम्स क़े समाचार संपादक हरी दत्त शर्मा अपने 'विचार-प्रवाह'में निरन्तर लिख रहे थे-"बांग्ला-देश मान्यता और सहायता का अधिकारी".पाकिस्तानी अखबार लिख रहे थे कि,सारा बांग्ला देश आन्दोलन भारतीय फ़ौज द्वारा संचालित है.बांग्ला देश क़े घोषित राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान को भारतीय एजेंट ,मुक्ति वाहिनी क़े नायक ताज्जुद्दीन अहमद को भारतीय फ़ौज का कैप्टन तेजा राम बताया जा रहा था.लेफ्टिनेंट जेनरल टिक्का खां का आतंक पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ता जा रहा था और उतनी ही तेजी से मुक्ति वाहिनी को सफलता भी मिलती जा रही थी.जनता बहुमत में आने पर भी याहिया खां द्वारा मुजीब को पाकिस्तान का प्रधान-मंत्री न बनाये जाने से असंतुष्ट थी ही और टिक्का खां की गतिविधियाँ आग में घी का काम कर रही थीं.रोजाना असंख्य शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से भाग कर भारत आते जा रहे थे. उनका खर्च उठाने क़े लिये अद्ध्यादेश क़े जरिये एक रु.का अतिरिक्त रेवेन्यु स्टेम्प(रिफ्यूजी रिलीफ) अपनी जनता पर इंदिरा गांधी ने थोप दिया था.असह्य परिस्थितियें होने पर इंदिरा जी ने बांग्ला - देश मुक्ति वाहिनी को खुला समर्थन दे दिया और उनके साथ भारतीय फौजें भी पाकिस्तानी सेना से टकरा गईं.टिक्का खां को पजाब क़े मोर्चे पर ट्रांसफर करके लेफ्टिनेंट जेनरल ए.ए.क़े.नियाजी को पूर्वी पाकिस्तान का मार्शल ला एडमिनिस्ट्रेटर बना कर भेजा गया .राव फरमान अली हावी था और नियाजी स्वतन्त्र नहीं थे.लेकिन जब भारतीय वायु सेना ने ढाका में छाताधारी सैनिकों को उतार दिया तो फरमान अली की इच्छा क़े विपरीत नियाजी ने हमारे लेफ्टिनेंट जेनरल सरदार जगजीत सिंह अरोरा क़े समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया.९०००० पाक सैनिकों को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से बहुतों को मेरठ में रखा गया था. इनके कैम्प हमारे क्वार्टर क़े सामने भी बनाये गये थे. मेरठ से रूडकी जाने वाली सड़क क़े दायीं ओर क़े मिलेटरी क्वार्टर्स थे.गेट क़े पास वाले में हम लोग थे.सड़क उस पार सेना का खाली मैदान तथा शायद सिग्नल कोर की कुछ व्यवस्था थी.उसी खाली मैदान में सड़क की ओर लगभग ५ फुट का गैप देकर समानांतर विद्युत् तार की फेंसिंग करके उसमें इलेक्टिक करेंट छोड़ा गया था.उसके बाद अन्दर बल्ली,लकड़ी आदि से टेम्पोरेरी क्वार्टर्स बनाये गये थे.यह कैम्प परिवार वाले सैनिकों क़े लिये था जिसमें उन्हें सम्पूर्ण सुविधाएँ मुहैया कराई गई थीं.सैनिकों/सैन्य-अधिकारियों की पत्नियाँ मोटे-मोटे हार,कड़े आदि गहने पहने हुये थीं.यह भारतीय आदर्श था कि वे गहने पहने ही सुरक्षित वापिस गईं.यही यदि पाकिस्तानी कैम्प होता तो भारतीय सैनिकों को अपनी पत्नियों एवं उनके गहने सुरक्षित प्राप्त होने की सम्भावना नहीं होती.पंजाब तथा गोवा क़े पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल जे.ऍफ़.जैकब ने अपनी शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक में लिखा है (हिंदुस्तान ७/ १ /२०११ ) ढाका में तैनात एक संतरी से जब उन्होंने उसके परिवार क़े बारे में पूंछा "तो वह यह कहते हुए फूट-फूट कर रो पड़ा कि एक हिन्दुस्तानी अफसर होते हुए भी आप यह पूछ रहे हैं जबकि हमारे अपने किसी अधिकारी ने यह जानने की कोशिश नहीं की".तो यह फर्क है भारत और पाकिस्तान क़े दृष्टिकोण का.इंदिराजी ने शिमला -समझौते में इन नब्बे हजार सैनिकों की वापिसी क़े बदले में तथा प.पाक क़े जीते हुए इलाकों क़े बदले में कश्मीर क़े चौथाई भाग को वापिस न मांग कर उदारता का परिचय दिया ? वस्तुतः न तो निक्सन का अमेरिका और न ही ब्रेझनेव का यू.एस.एस.आर.यह चाहता था कि कश्मीर समस्या का समाधान हो और जैसा कि बाद में पद से हट कर पी. वी.नरसिंघा राव सा :ने कहा (दी इनसाईडर) - हम स्वतंत्रता क़े भ्रम जाल में जी रहे हैं.भारत-सोवियत मैत्री संधी से बंधी इंदिराजी को राष्ट्र हित त्यागना पड़ा.अटल जी द्वारा दुर्गा का ख़िताब प्राप्त इंदिराजी बेबस थीं.
अक्सर यह चर्चा सुनने को मिलती है की ज्योतिष का सम्बन्ध मात्र धर्म और आध्यात्म से है.यह विज्ञान सम्मत नहीं है और यह मनुष्य को भाग्य के भरोसे जीने को मजबूर कर के अकर्मण्य बना देता है.परन्तु ऐसा कथन पूर्ण सत्य नहीं है.ज्योतिष पूर्णतः एक विज्ञान है.वस्तुतः विज्ञान किसी भी विषय के नियम बद्ध एवं क्रम बद्ध अध्ययन को कहा जाता है.ज्योतिष के नियम खगोलीय गणना पर आधारित हैं और वे पूर्णतः वैज्ञानिक हैं वस्तुतः ज्योतिष में ढोंग पाखण्ड का कोंई स्थान नहीं है.परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों की खातिर जनता को दिग्भ्रमित कर के ठगते हैं और उन्हीं के कारण सम्पूर्ण ज्योतिष विज्ञान पर कटाक्ष किया जाता है.यह एक गलत क्रिया की गलत प्रतिक्रिया है.जहाँ तक विज्ञान के अन्य विषयों का सवाल है वे What & How का तो जवाब देते हैं परन्तु उनके पास Why का उत्तर नहीं है.ज्योतिष विज्ञान में इस Why का भी उत्तर मिल जाता है. ज्योतिष को विकृत व बदनाम किया है ब्राह्मण पुजारियों ने : ज्योतिष वह विज्ञान है जो मानव जीवन को सुंदर, सुखद व समृद्ध बनाने हेतु चेतावनी व उपाय बताता है। लेकिन आज इस विज्ञान को स्वार्थी व धूर्त लोगों ने पेट-पूजा का औज़ार बना कर इसकी उपादेयता को गौड़ कर दिया व इसे आलोचना का शिकार बना दिया है।
इसी प्रकार सरस्वती को ब्रह्मा की पुत्री बताना और पौराणिक गलत आख्यानों के आधार पर पूजा करवाना एक ऐसा घिनौना खेल है जिसने भारत में चारित्रिक पतन ला दिया है। 'वेदों' में 'सरस्वती', 'गोमती' आदि शब्दों के व्यापक अर्थ हैं न कि संकुचित जैसा कि इन ब्राह्मणों ने पुरानों में लिख डाला है और पुरानों को वेद आधारित बताने का कुचक्र रच रखा है। वस्तुतः पुराण वेदों में निहित उद्देश्यों से जनता को भटकाने हेतु ब्राह्मणों ने बड़ी चालाकी से गढ़े हैं। 'नास्तिक' संप्रदाय अपने गलत कदमों से इन ढ़ोंगी ब्राह्मणों की चालों को और मजबूत करता रहता है। जनता के सामने बचाव के बजाए भुगतने का ही विकल्प इस प्रकार बचा रह जाता है। इसी वजह से अब भी कोई एहतियात नहीं बरती जाएगी और आपको आगे भी दुखद घटनाओं के समाचार सुनने-पढ़ने को मिलते रहेंगे।
जिस प्रकार 1980 में इन्दिरा कांग्रेस और फिर 1984 में राजीव गांधी की अध्यक्षता वाली कांग्रेस को आर एस एस का पूर्ण समर्थन मिला था भाजपा के स्थान पर कुछ उसी प्रकार से गुजरात चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस को पुनः आर एस एस का समर्थन मिलने जा रहा है। जिस प्रकार पी एम मोदी ने भाजपा को नियंत्रण में लेने के बाद आर एस एस को नियंत्रित करने का अभियान चला रखा है उससे आर एस एस नेतृत्व उनको कमजोर करने का मार्ग ढूंढ रहा था। यू एस ए के हितार्थ लागू की गई नोटबंदी फिर गलत तरीके से लागू की गई जी एस टी पर जिस प्रकार आर एस एस व भाजपा नेता मोदी सरकार पर हमलावर हुये हैं और आर एस एस के आनुषंगिक संगठन भामस द्वारा मोदी सरकार के विरुद्ध दिल्ली में प्रदर्शन किया गया है उससे ऐसे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। यदि गुजरात में मोदी - शाह की भाजपा परास्त होती है तो वह राहुल गांधी के चमत्कार या कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव का दिग्दर्शक न होकर आर एस एस की वह रणनीति होगी जिसके द्वारा वह सत्ता और विपक्ष दोनों को अपने नियंत्रण में लाकर भविष्य के लिए अपना मार्ग निष्कंटक बनाना चाहता है। यदि यह प्रयोग सफल रहा तो मेनका व वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल करवाकर मेनका गांधी को कांग्रेसी पी एम के रूप में सुनिश्चित करना आर एस एस का लक्ष्य होगा। इस प्रकार देश को आगामी लोकसभा चुनावों में मोदी से तो मुक्ति मिल जाएगी लेकिन आर एस एस का शिंकजा और मजबूत हो जाएगा। इस तथ्य को हाल ही में सम्पन्न उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनावों के रुझान से भी समझने में मदद मिलेगी। विधानसभा चुनावों के बाद यहाँ पी एम और भाजपा अध्यक्ष की चाहत केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा जी को सी एम बनाने की थी यदि ऐसा हो जाता तो यह जोड़ी आर एस एस को झुकाने में कामयाब हो जाती । अतः आर एस एस ने पी एम की नापसंद के के योगी जी को सी एम बनवा दिया जिनको वर्तमान पी एम के विकल्प के रूप में मजबूती देने हेतु यहाँ भाजपा को आर एस एस का समर्थन प्राप्त हुआ है। लेकिन गुजरात में भाजपा का परंपरागत मतदाता भाजपा के विरोध की ओर झुका हुआ है और उसे आर एस एस का समर्थन प्राप्त है। हालांकि इसी वजह से भाजपा की गुप्त नीति के तहत अराजकता उत्पन्न कर भाजपा विरोधियों को मतदान से विरक्त करने की योजना बनी होगी। किन्तु सफलता उनको आर एस एस का समर्थन न मिलने से नहीं मिल पाएगी और तभी भाजपा की गुजरात में शिकस्त से आर एस एस पर आसन्न संकट से मुक्ति मिल सकेगी।