Thursday, September 23, 2010

ज्योतिष और हम

अक्सर यह चर्चा सुनने को मिलती है की ज्योतिष का सम्बन्ध मात्र धर्म और आध्यात्म से है.यह विज्ञान सम्मत नहीं है और यह मनुष्य को भाग्य के भरोसे जीने को मजबूर कर के अकर्मण्य बना देता है.परन्तु ऐसा कथन पूर्ण सत्य नहीं है.ज्योतिष पूर्णतः एक विज्ञान है.वस्तुतः विज्ञान किसी भी विषय के नियम बद्द एवं क्रमबद्द अध्ययन को कहा जाता है.ज्योतिष के नियम खगोलीय गणना पर आधारित हैं और वे पूर्णतः वैज्ञानिक हैं वस्तुतः ज्योतिष में ढोंग पाखण्ड का कोंई स्थान नहीं है.परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों की खातिर जनता को दिग्भ्रमित कर के ठगते हैं और उन्हीं के कारण सम्पूर्ण ज्योतिष विज्ञान पर कटाक्ष किया जाता है.यह एक गलत क्रिया की गलत प्रतिक्रिया है.जहाँ तक विज्ञान के अन्य विषयों का सवाल है वे What & How का तो जवाब देते हैं परन्तु उनके पास Why का उत्तर नहीं है.ज्योतिष विज्ञान में इस Why का भी उत्तर मिल जाता है.
जन्म लेने वाला कोई भी बच्चा अपने साथ भाग्य (प्रारब्ध) लेकर आता है.यह प्रारब्ध क्या है इसे इस प्रकार समझें कि हम जितने भी कार्य करते हैं,वे तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म,दुष्कर्म और अकर्म.
यह तो सभी जानते हैं की सद्कर्म का परिणाम शुभ तथा दुष्कर्म का अशुभ होता है,परन्तु जो कर्म किया जाना चाहिए और नहीं किया गया अथार्त फ़र्ज़ (duity) पूरा नहीं हुआ वह अकर्म है और इसका भी परमात्मा से दण्ड मिलता है.अतएव सद्कर्म,दुष्कर्म,और अकर्म के जो फल इस जन्म में प्राप्त नहीं हो पाते वह आगामी जन्म के लिए संचित हो जाते हैं.अब नए जन्मे बच्चे के ये संचित कर्म जो तीव्रगामी होते हैं वे प्रारब्ध कहलाते हैं और जो मंदगामी होते हैं वे अनारब्ध कहलाते हैं.मनुष्य अपनी बुद्धि व् विवेक के बल पर इस जन्म में सद्कर्म ही अपना कर ज्ञान के द्वारा अनारब्ध कर्मों के दुष्फल को नष्ट करने में सफल हो सकता है और मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है.मोक्ष वह अवस्था है जब आत्मा को कारण और सूक्ष्म शरीर से भी मुक्ति मिल जाती है.और वह कुछ काल ब्रह्मांड में ही स्थित रह जाता है.ऐसी मोक्ष प्राप्त आत्माओं को संकटकाल में परमात्मा पुनः शरीर देकर जन-कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेज देता है.भगवान् महावीर,गौतम बुद्ध,महात्मा गांधी,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद,आदि तथा और भी बहुत पहले मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम एवं योगी राज श्री कृष्ण तब अवतरित हुए जब पृथ्वी पर अत्याचार अपने चरम पर पहुँच गया था.
जब किसी प्राणी की मृत्यु हो जाती है तो वायु,जल,आकाश,अग्नि और पृथ्वी इन पंचतत्वों से निर्मित यह शरीर तो नष्ट हो जाता है परन्तु आत्मा के साथ-साथ कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर मोक्ष प्राप्ति तक चले चलते हैं और अवशिष्ट संचित कर्मफल के आधार पर आत्मा भौतिक शरीर को प्राप्त कर लेती है जो उसे अपने किये कर्मों का फल भोगने हेतु मिला है.यदि जन्म मनुष्य योनी में है तो वह अपनी बुद्धि व विवेक के प्रयोग द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रयास कर सकता है.
बारह राशियों में विचरण करने के कारण आत्मा के साथ चल रहे सूक्ष्म व कारण शरीर पर ग्रहों व नक्षत्रों का प्रभाव स्पष्ट अंकित हो जाता है.जन्मकालीन समय तथा स्थान के आधार पर ज्योतिषीय गणना द्वारा बच्चे की जन्म-पत्री का निर्माण किया जाता है और यह बताया जा सकता है कि कब कब क्या क्या अच्चा या बुरा प्रभाव पड़ेगा.अच्छे प्रभाव को प्रयास करके प्राप्त क्या जा सकता है और लापरवाही द्वारा छोड़ कर वंचित भी हुआ जा सकता है.इसी प्रकार बुरे प्रभाव को ज्योतिष विज्ञान सम्मत उपायों द्वारा नष्ट अथवा क्षीण किया जा सकता है और उस के प्रकोप से बचा जा सकता है.जन्मकालीन नक्षत्रों की गणना के आधार पर भविष्य फल कथन करने वाला विज्ञान ही ज्योतिष विज्ञान है.
ज्योतिष कर्मवान बनाता है
ज्योतिष विज्ञान से यह ज्ञात करके कि समय अनुकूल है तो सम्बंधित जातक को अपने पुरुषार्थ व प्रयास से लाभ उठाना चाहिए.यदि कर्म न किया जाये और प्रारब्ध के भरोसे हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहे तो यह अवसर निष्फल चला जाता है.इसे एक उदहारण से समझें कि माना आपके पास कर्णाटक एक्सप्रेस से बंगलौर जाने का reservation है और आप नियत तिथि व निर्धारित समय पर स्टेशन पहुँच कर उचित plateform पर भी पहुँच गए पर गाड़ी आने पर सम्बंधित कोच में चढ़े नहीं और plateform पर ही खड़े रह गए.इसमें आपके भाग्य का दोष नहीं है.यह सरासर आपकी अकर्मण्यता है जिसके कारण आप गंतव्य तक नहीं पहुँच सके.इसी प्रकार ज्योतिष द्वारा बताये गए अनुकूल समय पर तदनुरूप कार्य न करने वाले उसके लाभ से वंचित रह जाते हैं.लेकिन यदि किसी की महादशा/अन्तर्दशा अथवा गोचर ग्रहों के प्रभाव से खराब समय चल रहा है तो ज्योतिष द्वारा उन ग्रहों को ज्ञात कर के उनकी शान्ति की जा सकती है और हानि से बचा भी जा सकता है,अन्यथा कम किया जा सकता है.
ज्योतिष अकर्मण्य नहीं बनाता वरन यह कर्म करना सिखाता है.परमात्मा द्वारा जीवात्मा का नाम क्रतु रखा गया है.क्रतु का अर्थ है कर्म करने वाला.जीवात्मा को अपने बुद्धि -विवेक से कर्मशील रहते हुए इस संसार में रहना होता है.जो लोग अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता को छिपाने हेतु सब दोष भगवान् और परमात्मा पर मढ़ते हैं वे अपने आगामी जन्मों का प्रारब्ध ही प्रतिकूल बनाते हैं.
ज्योतिष अंधविश्वास नहीं
कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने ज्योतिष विज्ञान का दुरूपयोग करते हुए इसे जनता को उलटे उस्तरे से मूढने का साधन बना डाला है.वे लोग भोले भाले एवं धर्मभीरु लोगों को गुमराह करके उनका मनोवैज्ञानिक ढंग से दोहन करते हैं और उन्हें भटका देते हैं.इस प्रकार से पीड़ित व्यक्ति ज्योतिष को अंधविश्वास मानने लगता है और इससे घृणा करनी शुरू कर देता है.ज्योतिषीय ज्ञान के आधार पर होने वाले लाभों से वंचित रहकर ऐसा प्राणी घोर भाग्यवादी बन जाता है और कर्महीन रह कर भगवान को कोसता रहता है.कभी कभी कुछ लोग ऐसे गलत लोगों के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं,जिन के लिए ज्योतिष गंभीर विषय न हो कर लोगों को मूढने का साधन मात्र होता है.इसी प्रकार कुछ कर्म कांडी भी कभी -कभी ज्योतिष में दखल देते हुए लोगों को ठग लेते हैं. साधारण जनता एक ज्योतिषी और ढोंगी कर्मकांडी में विभेद नहीं करती और दोनों को एक ही पलड़े पर रख देती है.इससे ज्योतिष विद्या के प्रति अनास्था और अश्रद्धा उत्पन्न होती है और गलतफहमी में लोग ज्योतिष को अंधविश्वास फैलाने का हथियार मान बैठते हैं.जबकि सच्चाई इसके विपरीत है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाना ही वस्तुतः ज्योतिष का अभीष्ट है.
क्या ग्रहों की शांति हो सकती है?
यह संसार एक परीक्षालय(Examination Hall) है और यहाँ सतत परीक्षा चलती रहती है.परमात्मा ही पर्यवेक्षक(Invegilator) और परीक्षक (Examiner) है. जीवात्मा कार्य क्षेत्र में स्वतंत्र है और जैसा कर्म करेगा परमात्मा उसे उसी प्रकार का फल देगा.आप अवश्य ही जानना चाहेंगे कि तब ग्रहों की शांति से क्या तात्पर्य और लाभ हैं?मनुष्य पूर्व जन्म के संचित प्रारब्ध के आधार पर विशेष ग्रह-नक्षत्रों की परिस्थिति में जन्मा है और अपने बुद्धि -विवेक से ग्रहों के अनिष्ट से बच सकता है.यदि वह सम्यक उपाय करे अन्यथा कष्ट भोगना ही होगा.जिस प्रकार जिस नंबर पर आप फोन मिलायेंगे बात भी उसी के धारक से ही होगी,अन्य से नहीं.इसी प्रकार जिस ग्रह की शांति हेतु आप मंत्रोच्चारण करेंगे वह प्रार्थना भी उसी ग्रह तक हवन में दी गयी आपकी आहुति के माध्यम से अवश्य ही पहुंचेगी.अग्नि का गुण है उसमे डाले गए पदार्थों को परमाणुओं (Atoms) में विभक्त करना और वायु उन परमाणुओं को मन्त्र के आधार पर ग्रहों की शांति द्वारा उनके प्रकोप से बच सकता है.प्रचलन में लोग अन्य उपाय भी बताते हैं परन्तु उन से ग्रहों की शांति होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिलता,हाँ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है.

2 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

अच्छी जानकारी दी...एक बात कहूं पोस्ट थोड़ी छोटी कर देंगे तो शायद अच्छा होगा। बाकी के बारे में मैं नहीं जानती पर ये मेरा मानना है क्योंकि अगर पोस्ट छोटी होगी तो..आराम से,आसानी से और समझकर पढ़ा जा सकेगा।

vijai Rajbali Mathur said...

प्रिय माधव एवं वीणा जी धन्यवाद.

वीणा जी,
आप की बात तो ठीक है लेकिन बहुत से लोगों को इससे भी समझ में नहीं आता और वे भटकाव से नहीं बचते.
मेरा प्रयास लोगों को भटकने और लुटने से बचाना है.