Thursday, August 30, 2012

सीमा आज़ाद ,जनता और सच्चाई

            हिंदुस्तान ,लखनऊ,29 अगस्त 2002,पृष्ठ-08

"हमे पकड़ने के बाद तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कथित माओवादी खात्मे के नाम पर आठ हजार करोड़ 

का पेकेज लिया "---सीमा आज़ाद 

"एक दो नहीं हमे लगता है कि सारे कानून काले हैं"---विश्वविजय (मानवाधिकार कार्यकर्ता और सीमा आज़ाद के पति)

"अनेक राज्यों मे आंदोलनों को कुचलने के लिए सेना का इस्तेमाल किया जाता है। सेना के  साथ  अगर हैं तो देश भक्त हैं ... अगर नहीं हैं तो राष्ट्र द्रोही । "---आलोचक वीरेंद्र यादव 

एक साक्षात्कार मे सीमा आज़ाद ने यह भी बताया -सरकारें जल-जंगल-जमीन हड़पने के लिए कानून बना रही हैं ,जिसका लोग कडा विरोध कर रहे हैं। उनका साथ हमारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता दे रहे हैं । ऐसे मे राज्य के खिलाफ माहौल बन रहा है। उस पर काउंटर करने के लिए राज्य आक्रामक हो रहा है और लोकतन्त्र की धज्जियां उड़ा रहा है। उन्होने यह भी बताया कि पहले राज्य आम लोगों के लिए कार्य करता था । अब उसकी पहली प्राथमिकता मे प्राकृतिक संसाधनों की लूट करने वाले कारपोरेट घराने हैं। इसमे रोड़ा बनने वालों को दबाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं।

भुक्तभोगी जुझारू कार्यकर्ताओं एवं आलोचक-विश्लेषक विद्वान के उपरोक्त कथनों के संबंध मे यदि ऐतिहासिक विवेचन किया जाये तो हम पाते हैं कि 65 वर्ष पूर्व जब भारत वर्ष स्वाधीन हुआ था तो यहाँ सुई भी नहीं बनती थी और आज हमारे यहाँ वायु यान ही नही,अस्त्र-शस्त्र ही नहीं राकेट,मिसाईल,परमाणु बम तक बन रहे हैं। आज़ादी के बाद कल-कारखानों का विकास हुआ है। किन्तु जनता की सुख-सुविधाएं पहले से भी ज़्यादा घटी हैं।'आसमान से टपका -खजूर मे अटका' की तर्ज पर सम्पूर्ण विकास का लाभ कुछ चुनिन्दा लोगों तक ही सिमट कर रह गया है और शेष जनता वैसे ही त्राही-माम,त्राही-माम करने को विवश है। हमारी शासन व्यवस्था राजनीतिक रूप से लोकतान्त्रिक है परंतु जब शोषित -दमित जनता एक जुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा की बात करती है तब चुनी हुई सरकारें ही भ्रष्ट-व्यापारियों,उद्योगपतियों,देशी-विदेशी निवेशकों,कारपोरेट घरानों के इशारे पर आम जनता का दमन करने हेतु पुलिस और सेना का सहारा लेती हैं। एक बहाना गढ़ लिया गया है माओवादी आतंकवाद का। सच्चाई यह है कि CIA अमेरिकी कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए कुछ प्रशिक्षित आतंकवादियों को धन व शस्त्र मुहैया कराकर पुलिस व सेना पर आघात कराती है जिससे सरकारों को उनके सफाये के नाम पर गरीब असहाय जनता का दमन करने हेतु पुलिस व सेना का प्रयोग करना जायज ठहराया जा सके।

शोषक कारपोरेट घरानों का विरोध करने के कारण ही सीमा आज़ाद और उनके पति को ढाई वर्ष तक जेल मे बंद रखा गया और उनको आजीवन कैद की सजा सुना दी गई परंतु अलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसी माह की छह तारीख को निर्णय दिया कि विपरीत विचार रखने के कारण किसी को जेल मे नहीं रखा जा सकता और दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया। ऐसे लगभग दस हजार कार्यकर्ता पूरे देश मे जेलों मे बंद हैं। क़ानूनों का खुला दुरुपयोग किया गया है और सभी मुकदमा लड़ते हुये हाई कोर्ट तक नहीं पहुँच पाते उनकी जिंदगी जेलों मे सड़ जाती है। बाकी लोग भय से चुप रह जाते हैं।

जल-जंगल-ज़मीनों की लूट मे एक दूसरा पहलू पर्यावरण का भी है उसकी भी अनदेखी की जा रही है। प्रकृति की निर्मम लूट का दुष्परिणाम मौसम पर भी पड़ता है जिससे फसलों को क्षति पहुँचती है। खाद्यान का आभाव हो जाता है और मुनाफाखोर व्यापारी जनता का और अधिक शोषण करते हैं। मुश्किल और मुसीबत यह है कि जनता को यह सब समझाये कौन?

जो लोग और पार्टियां जन-हितैषी हैं उनको एक भूत सवार है कि वे 'नास्तिक' हैं और 'धर्म' तथा 'भगवान' को नहीं मानते। दूसरी ओर सांप्रदायिक लोग (सांप्रदायिकता और साम्राज्यवाद सहोदरी हैं) धर्म की व्याख्या व्यापारियों -लुटेरों के हित मे प्रस्तुत करके उसी गरीब-शोषित जनता को उनके विरुद्ध कर देते हैं जो उनके हकों की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। इसलिए भी माओवाद के नाम का सहारा लिया जाता है। 

फिर क्या हो?

होना यह चाहिए कि जनवादी शक्तियों को एकजुट होकर आम जनता को यह समझाना चाहिए कि 'धर्म' वह नही है जो ढ़ोंगी पोंगा-पंथी बता रहे हैं। बल्कि धर्म वह है जो शरीर को धारण करने हेतु आवश्यक है,जैसे-'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।

भगवान कभी भी नस और नाड़ी के बंधन मे नहीं बधता है इसलिए वह भगवान या उसका अवतार नही है जिसे  पोंगापंथी लुटेरे बताते हैं। भ (भूमि-प्रथिवी )+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल) का समुच्य ही भगवान है और चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं किसी ने बनाए नहीं हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। इंका काम प्राणी मात्र का सृजन,पालन  और संहार है =G(जेनरेट)+O (आपरेट)+D(डेसट्राय)  अतः ये ही GOD हैं।

समस्या की जड़ यहीं है कि 'मार्क्स भगवान' कह गए हैं कि man has created the GOD for his mental security only तब उनके अंध-भक्त मार्क्सवादी-साम्यवादी कैसे जनता को 'धर्म' और 'भगवान' की वास्तविकता समझाएँ?

जनता लुटती-पिटती रहेगी ,सीमा आज़ाद उनके पति विश्वविजय और हजारों निरीह कार्यकर्ता बेकसूर जेलों मे बंद किए जाते रहेंगे। सांप्रदायिक तत्व धर्म के नाम पर धोखा परोस कर व्यापारियों,उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाते रहेंगे। काश जनवादी-साम्यवादी-बामपंथी समय की पुकार को समझ सकें?

Sunday, August 26, 2012

यह दुनिया है रंग-रंगीली

दुनिया लूटो मक्कर से ,रोटी खाओ घी शक्कर से ।


जिन लोगों का उपरोक्त सिद्धान्त है वे चाहे ब्लाग जगत मे हों ,समाज सेवा मे,समाज सुधार या राजनीति मे मज़े ही मज़े मे हैं। लेकिन यदि कोई मेरी तरह वाकई जन हित मे ,निस्वार्थ सेवाएँ प्रदान करता है तो प्राप्तकर्ता उसका कैसे मखौल उड़ाते हैं ,निम्नांकित  ब्यौरे से यह स्पष्ट हो जाता है। यह तीसरा मामला है जिसमे लाभार्थी द्वारा एहसान फरामोशी का व्यवहार किया गया है। इससे पूर्व विदेश स्थित प्रो डॉ ए पी मिश्रा और पूना प्रवासी ब्लागर्स ऐसा ही बर्ताव कर चुके हैं।


22 अगस्त को फेसबुक मे दो  टिप्पणियाँ दी थीं -

 1) - 30 -35 आयु वर्ग के युवा ब्लागर्स जो किसी सरकारी उच्च पद पर हैं या शिक्षा जगत मे ऊंचा मुकाम हासिल कर सके हैं 'घोर अहंकार' मे डूबे हुये हैं। वे अपने-अपने ग्रुप मे सबको शामिल कर लेते हैं जब उनको दूसरे द्वारा अपने ग्रुप मे शामिल किया गया तो ग्रुप छोड़ गए क्योंकि ग्रुप प्रवर्तक न तो उनके 'आय वर्ग' का था और न ही कोई ओहदेदार। कितना उचित है यह व्यवहार?

2)-  'रेखा के राजनीति मे आने 'के संबंध मे 19 अप्रैल 2012 को एक पोस्ट 'क्रांतिस्वर' मे दिया था और 26 अप्रैल को राष्ट्रपति महोदया ने उनको 'राज्य सभा ' मे मनोनीत कर दिया था। IBN7 के एक पत्रकार के ब्लाग पर पूना प्रवासी एक ब्लागर( जिसने अपने बच्चों
की चार (4 ) कुंडलियाँ पहले मुझसे विश्लेषण करवा ली थीं )ने उसकी खिल्ली उड़ाई और अब उनके शिष्य द्वारा उनको 'द्रोणाचार्य' की पदवी दी गई है। पदवी दाता ने भी मुझसे चार (4 ) कुंडलियों का विश्लेषण हासिल किया था। प्रश्न यह है कि यदि वह ब्लागर द्रोणाचार्य हैं तो ज़रूर किसी न किसी 'एकलव्य' का अंगूठा काटा होगा ?इसमे कोई संशय नहीं होना चाहिए।


------------------------------------------------------------------- 
इसके पश्चात बुधवार 22 अगस्त को ही संबन्धित ब्लागर की प्रातक्रिया और उत्तर-प्रत्युत्तर इस प्रकार हैं-

 

    • मैं अभी भी नहीं समझ पा रही की रश्मि प्रभा जी ने खिल्ली उढ़ाई होगी आपकी किन्तु मैं आपके ज्ञान की पूरी पूरी इज्जत करती हूँ। आप लोग बात करें ना करें हमेशा करती रहूँगी। सादर
  • Vijai RajBali Mathur
    • सोनिया जी ,आप ब्लाग लिखना यथावत चालू रखें। जब हम लोग आपके घर आए थे और आपके यहाँ भोजन भी किया था तब आपको स्पष्ट बतलाया भी था कि,रश्मि प्रभा जी ने किस प्रकार अपने बच्चों की जन्म पत्रियाँ बनवाने के पश्चात तीसरे ब्लाग पर खिल्ली उड़ाई थी और यशवन्त को ठगने का प्रयास किया था। सब जानकारी के बावजूद रश्मि जी का जो गुण गाँन आपने किया उसे हम अपने ऊपर 'जले पे नमक छिड़कना' ना समझें तो क्या समझें?खैर आपने यशवन्त को पहले भी पूना मे नौकरी करने का आफ़र किया था। मैंने यशवन्त को आपसे संपर्क न रखने को कहा है और वह उसी का पालन कर रहा है। मैंने ही उसे रश्मि जी से संपर्क न रखने को कहा था। रश्मि प्रभा जी कानपुर से संबन्धित पंडित ए पी मिश्रा जिंनका नोट आपने देखा होगा तथा कुछ तांत्रिकों की मदद से हम लोगों को निरंतर परेशान कर रही हैं और आप उनके साथ हैं तब आप पर कैसे विश्वास किया जा सकता है?किन्तु आपने टिप्पणी मे हम लोगों को दोषी ठहरा दिया है। हमने ही समझने मे गलती की होगी।
  • सोनिया बहुखंडी गौड़
    • नहीं चाचा जी मैं उस समय वहाँ नहीं थी प्रदीप थे और ये मुझे कोई बात शेर नहीं करते मुझे सुंनकर बहुत बुरा लग रहा है। ये सच बात है मुझे मोटी मोटी बात पता थी अगर वो इतना गलत काम आपके संग कर रही हैं तो मैं उनके साथ मित्रता कैसे रख सकती हूँ। विश्वास करिए की मैं आपको वास्तव मे दिल से अच्छे संबंध की तरह देखती हूँ। हाँ यशवंत को ठगा ये बात मुझे पता थी। आपके मैसेज से मुझे बहुत ही अच्छे रिश्ते की पहचान हूइ। मुझे आभाष हो गया था की आपने ही यश को माना किया होगा। दिल से किसी को नहीं निकाला जा सकता ये भी मैं जानती हूँ। रश्मि जी ने जब मेरे से कविता मांगी थी तो मैंने यश से पूछा था अगर आप मन से मुझे बेटी मानते तो बोलते की कोई जरूरत नहीं। देने की.... बिना पिता की बेटी हूँ आपसे स्नेह मिला तो लगा पापा फिर से मिल गए। आप यश को रोक सकते हैं आपका बेटा है। मैं तो बस दो दिन की ही बहन बन पाई दुख हुआ दिल से। अगर लगे की मैं सच कह रही हूँ तो यश से कहना की मेरे से बात करे। frown आप लोगों की मुझे जादा जरूरत है नाकी रश्मि जी की
  • सोनिया बहुखंडी गौड़
    • maine us post ko hi delete kar diya hai.... agar aap chahen to rishta banaye rakhen.... aapki marji sadar
  • Vijai RajBali Mathur
    • सोनिया जी आपके दो मेसेज एक साथ आज ही देखे। आपने जो लिखा वह आपका अधिकार था मैंने उसे हटाने की अपेक्षा नहीं की थी। जहां तक मुझे याद है प्रदीप जी से ज्योतिष,राजनीति और यशवन्त की पढ़ाई-नौकरी के बारे मे ही बात हुई थी। रश्मि जी के बारे मे बात सीधे आप ही से हुई थी। आप भूल गई हों तो अलग बात है। यदि आपको रश्मि जी से कोई लाभ हो तो मैं नहीं चाहूँगा कि आप उनसे ब्रेक-अप करें। मैं खुद अपनी तरफ से आश्वस्त कर सकता हूँ कि हम लोग आप लोगों का कोई नुकसान नहीं करेंगे। जब तक रश्मि-प्रभा जी की हरकतें बंद नहीं हो जातीं तब तक के लिए मैं अभी यशवन्त को चुप ही रहने देना चाहता हूँ। वैसे फिलहाल अरुण प्रकाश मिश्रा की तरह अभी मैंने रश्मि प्रभा पर जवाबी हमला नहीं किया है परंतु आपकी तरह उनको कन्सेशन भी नहीं देने जा रहा।
  • सोनिया बहुखंडी गौड़
    • Mujhe unse koi profit nahi. Hindi yugm k publisher ne mujhe niji msg de kar gujarish ki thi review likhne k liye. Wo review apne aap me ek kataksh tha dronacharya wala ex. Jiska uttar aap ne apne cmnt me de diya tha. Eklavya ka. Aur adhikar aapka bhi kuch bhi kahne ka ek baar phn to karte aap daante mujhe. Aap logon ne to mera phn bhi nahi pick kiya
  • Vijai RajBali Mathur
    • Ph.jaanboojh kar attend naheen karte hain. aap yahan msg par hee kahen. daantne ka prashn hee naheen hai. n hee hame shikvaa hai. keval apne man kee baat bata dee thee. aap nishchint rahen.
  • सोनिया बहुखंडी गौड़
    • Shukriya mathur jee. B happy with ur family. Ishwar sada aape saath rahe. Good bye
----------------------------------------------------------------------- 

 






























Friday, August 24, 2012

जस्टिस काटजू और पत्रकारों का व्यवहार

हिंदुस्तान,लखनऊ,पृष्ठ 11 दिनांक 06 अगस्त 2012
प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस काटजू की चिंता निरर्थक नहीं है। एक समय आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी ने रेलवे की अधिक वेतन की नौकरी छोड़ कर अलाहाबाद मे 'सरस्वती' के संपादक के रूप मे मात्र रु 20/-माहवार की नौकरी पसंद की थी। उनका मानना था कि,पत्रकारिता के माध्यम से वह देश,समाज की सेवा साहित्य -सृजन द्वारा भली प्रकार कर सकेंगे। एक प्रसंग मे उन्होने लिखा है कि,'साहित्य' मे वह शक्ति छिपी रहती है जो तोप,तलवार और बम के गोलों मे भी नहीं पाई जाती'। आचार्य दिवेदी का आंकलन कितना सही था यह 1789 की फ्रांस की राज्य -क्रान्ति के प्रणेता 'जीन जेक रूसो' के लेखों को पढ़ने से ज्ञात होगा। रूसो से सम्राट ने जब पूछा कि 'आपने किस विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है?' तो रूसो का जवाब था ''विपत्ति के विश्वविद्यालय' से।

स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान तमाम पत्रकार अनेकों संघर्ष सह कर भी कर्तव्य पथ से नहीं डिगे थे। आज प्रेस परिषद के अध्यक्ष को ही पत्रकारों की भूमिका उचित नहीं लगी तो इसका कारण यह है कि अब पत्रकारिता मे लोग देश सेवा या समाज कल्याण की भावना से नहीं आए हैं। आज हर क्षेत्र की भांति इस क्षेत्र मे भी अधिकाधिक और शीघ्रता से शीघ्र धन कमाना ही अभीष्ट लेकर लोग आ रहे हैं। मालिक को खुश रख कर ही तरक्की के सुखद अवसर मिल सकते हैं। समाचार पत्र मालिक आजकल कारपोरेट घराने हैं। कारपोरेट कल्चर भ्रष्टाचार की जननी है। कारपोरेट भ्रष्टाचार सरकारी दफ्तरों के भ्रष्टाचार से भी कई गुना अधिक वीभत्स है। कारपोरेट व्यवसाय मे ईमानदारी को कोई स्थान प्राप्त नहीं है। मैं खुद भुक्तभोगी हूँ। 1983-84 मे ITC होटल मुगल की  फिक्स्ड़ एसेट  का इंटरनल आडिट  मैंने फाइनल किया था और पौने छह लाख का घपला पकड़ा था। रिपोर्ट फिजिकल वेरिफिकेशन पर आधारित थी। मुझे रिवार्ड देने की बजाए पहले सस्पेंड फिर टर्मिनेट कर दिया गया। लेबर कोर्ट के प्रेसाइडिंग आफिसर (जो रिटायर्ड़ IAS होते हैं) को मिला कर मेरे विरुद्ध एक्स पार्टी जजमेंट करा दिया गया। यह निजी उदाहरण तो कारपोरेट खेल को समझाने हेतु ही दिया है। (विस्तृत विवरण 'विद्रोही स्व-स्वर मे' उपलब्ध है। ) उस समय खरीददारी मे 8 प्रतिशत कमीशन पर्चेज मेनेजर द्वारा चलता था। जब तक मैं सुपरवाइज़र (फाईनेंस)रहा खुद खाता नहीं था खाने वालों को दिक्कत थी मुझे इंटरनल आडिट के नाम पर हटा दिया गया,वहाँ भी ईमानदारी की रिपोर्ट पेश करते ही कंपनी से बाहर कर दिया गया। यही हाल सभी कारपोरेट कंपनियों का है।

ऐसे ही कारपोरेट घरानों ने मिल कर NGOs (जिंनका नियंत्रण अधिकांशतः IAS आफिसर्स की पत्नियों के पास है) को चंदा-दान देकर और भड़का कर 'भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन' अन्ना के नेतृत्व मे खड़ा करा दिया। वे 'जन लोकपाल' के नाम पर आलोकतांत्रिक सत्ता केंद्र निर्मित करना चाहते थे। देशी-विदेशी कारपोरेट के दबाव मे हमारे पी एम साहब ने भी अन्ना को पर्दे के पीछे से समर्थन दिया एवं व्यापारियों-उद्योगपतियों के हितैषी RSS ने भी। चूंकि अखबारों के मालिक कारपोरेट हैं अतः कर्मचारी पत्रकारों को मालिकों की जी-हुज़ूरी करनी थी और उन्होने खुद को 'अन्ना आंदोलन का हिस्सा' बना लिया।  जैसा कि जस्टिस काटजू इसे गलत बता रहे   हैं उनका दृष्टिकोण सामाजिक और राष्ट्रीय हितों के मद्दे नज़र है लेकिन पत्रकारों का दृष्टिकोण यह अब कहाँ है?तगड़ी -तगड़ी फ़ीसें देकर जो छात्र पत्रकारिता कर के आ रहे हैं वे वेतन व सुविधा देखें या कि देश सेवा? आज समाज मे जब हर चीज़ को 'धन' के आधार पर देखा और तौला जा रहा है ,कोई यह नहीं पूंछ रहा है कि वह धन आ कहाँ से रहा है?'धन' है तो सब रिश्ते-नाते हैं नहीं तो सब फाखे हैं। अब बेचारे पत्रकार क्या करें?क्या वे सब मेरी तरह निशुल्क सेवा मे लग जाएँ ?मेरी ही तरह लोगों की मदद करके बदनाम हों और बुराई का तमगा बटोरें?

Monday, August 20, 2012

वैज्ञानिक परम्पराएँ-वेद और हवन ------ विजय राजबली माथुर

हमारे देश मे एक फैशन चलता है कि हमारा देश एक पिछड़ा हुआ देश है और यहाँ ज्ञान,विज्ञान जो आया वह पश्चिम की देंन है। आज़ादी के एक लंबे अरसे बाद भी गुलामी की बू लोगों के दिलों से अभी निकली नहीं है। प्रस्तुत स्कैन आप देख रहे हैं उसमे आधुनिक अनुसंधान के आधार पर देश मे प्रचलित कुछ प्राचीन  परम्पराओं को विज्ञान -सम्मत बताया गया है।

मैक्स मूलर साहब जर्मनी से भारत आकर यहाँ 30 वर्ष रहे और संस्कृत सीख कर  मूल पांडुलिपियाँ लेकर जर्मनी रवाना हो गए। जर्मनी भाषा मे उनके अनुवादों को पढ़ कर वहाँ अनुसंधान हुये *-होमियोपैथी,बायोकेमिक चिकित्सा पद्धतियों को वहाँ ईजाद किया गया जो एलोपेथी  से श्रेष्ठ हैं। परमाणु तथा दूसरे आयुधों का आविष्कार भी वेदोक्त ज्ञान से वहाँ हुआ। जर्मनी की द्वितीय विश्व युद्ध मे पराजय के बाद अमेरिका और रूस ने इन परमाणु वैज्ञानिकों को अपने-अपने देश मे लगा लिया। अमेरिका ने सबसे पहले जापान की आत्म समपर्ण की घोषणा के बाद रूस को डराने के लिए 06 और 09 अगस्त को परमाणु बमो का प्रहार किया।

जर्मनी आदि पाश्चात्य देशों ने षड्यंत्र पूर्वक भारत मे यह प्रचार किया कि,'वेद गड़रियों के गीत 'के सिवा कुछ भी नहीं हैं (जबकि ये ही देश खुद वेद-ज्ञान का लाभ उठा कर खुद को विज्ञान का आविष्कारक बताते रहे)। हमारे देश के पाश्चात्य समर्थक विद्वान चाहे वे दक्षिण पंथी हों या प्रगतिशील बामपंथी दोनों ही साम्राज्यवादी इतिहासकारों के 'भटकाव' को ज्ञान-सूत्र मानते हैं जिसके अनुसार 'आर्य' मध्य यूरोप से घोड़ों पर सवार होकर भारत आए और यहाँ के 'मूल निवासियों' को दास बना लिया। इसी मान्यता के कारण देश मे आजकल एक साम्राज्यवाद पोषक आंदोलन 'मूल निवासियों देश को मुक्त करो' भी ज़ोर-शोर से चल रहा है। 

साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासकों ने( जब सेफ़्टी वाल्व के रूप मे स्थापित कांग्रेस  आर्यसमाजियों के प्रभाव से 'राष्ट्र वादी आंदोलन चलाने लगी तब )अपने हितों की रक्षा हेतु RSS का गठन एक पूर्व क्रांतिकारी के माध्यम से कराया। RSS और मुस्लिम लीग ने देश को विभाजित करा दिया। आज भी नफरत की सांप्रदायिकता फैला कर साम्राज्यवादी अमेरिका को दोनों संप्रदायों के कुछ संगठन लाभ पहुंचा रहे हैं। RSS और इसके दूसरे सहायक संगठन 'गर्व से हिन्दू' की मुहिम चलाते हैं। प्रगतिशील-बामपंथी कहलाने वाले विद्वान भी हिन्दू,इस्लाम,ईसाइयत को ही धर्म मानते हैं और प्रकट मे धर्म की आलोचना तथा छिपे तौर पर उन सांप्रदायिक गतिविधियों का पालन करते हैं। 

धर्म =सत्य,अहिंसा (मनसा,वाचा,कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के समुच्य को धर्म कहते हैं जो शरीर को धारण करने हेतु आवश्यक हैं। जो लोग 'धर्म' की आलोचना करते हैं वे इन सदगुणो का पालन न करने को प्रेरित करते हैं। इसी कारण 1917 मे सम्पन्न साम्यवादी क्रांति रूस मे विफल हो गई क्योंकि शासक पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता का शोषण कर रहे थे। आज वहाँ समाज-सरकार द्वारा स्थापित उद्योग पूर्व शासकों ने अपने भ्रष्टाचार की कमाई से खरीद लिए हैं और पूंजीपति बन गए हैं। 

भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)। प्रकृति के ये पाँच तत्व ही संयुक्त रूप से 'भगवान' हैं चूंकि इनको किसी ने बनाया नहीं है और ये खुद ही बने हैं इसलिए ये ही 'खुदा' हैं।  इंनका कार्य G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय) करना है इसलिए ये ही 'गाड ' हैं। जो भगवान=खुदा=गाड को दिमागी फितूर कहते हैं वे सच से आँखें मूँद लेने को ही कहते हैं। 

भगवान या खुदा या गाड =प्रकृति के पाँच तत्व । अतः इनकी पूजा का माध्यम केवल और केवल 'हवन' है। 'पदार्थ विज्ञान' =मेटेरियल साईन्स के मुताबिक अग्नि मे यह गुण है कि उसमे डाले गए पदार्थों को 'परमाणुओ' -'एटम्स' मे विभक्त कर देती है और वायु उन परमाणुओं को पर्यावरण मे प्रसारित कर देती है। अर्थात भगवान या खुदा या गाड को वे परमाणु प्राप्त हो जाते हैं क्योंकि ये तत्व सर्वत्र व्यापक हैं-घट-घट वासी हैं। इनके अतिरिक्त नदी,समुद्र,वृक्ष,पर्वत,आकाश,नक्षत्र,ग्रह आदि देवताओं को भी हवन द्वारा प्रसारित परमाणु प्राप्त हो जाते हैं। 'देवता' =जो देता है ,लेता नहीं है। अतः इन प्राकृतिक संसाधनो के अतिरिक्त और कोई देवता नहीं होता है। 

विवाद तभी शुरू होता है जब हिन्दू,इस्लाम,ईसाइयत  आदि के नाम पर 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को धर्म की संज्ञा देकर पूजा जाता है। वस्तुतः व्यापारियों-उद्योगपतियों और शासकों ने मिल कर ये विभाजन अपने-अपने व्यापार को चमकाने हेतु समाज मे कर रखे हैं। प्रगतिशील-बामपंथी जनता को इन लुटेरे व्यापारियों के चंगुल से छुड़ाने हेतु 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करने के बजाए धर्म का विरोध करते हैं किन्तु पाखंड से उनको गुरेज नहीं है उसे वे भी धर्म ही पुकारते हैं। दमन जनता का होता है।

आज से 10 लाख वर्ष पूर्व जब मानव अपने वर्तमान स्वरूप मे आया तो प्रकृति के अनुरूप समाज मे पालन करने हेतु जो नियम बनाए गए वे ही 'वेद' हैं। वेद सभी समय के सभी मनुष्यों के लिए देश-काल के भेदभाव के बिना समान व्यवहार का मार्ग बताते हैं। शासकों और व्यापारियों ने अपने निजी स्वार्थ वश 'कर्मगत' वर्ण व्यवस्था को 'जन्मगत' जाति-व्यवस्था मे परिवर्तित करके शासितों का उत्पीड़न-शोषण किया। वेदोक्त परम्पराएँ विलुप्त हो गईं और समाज मे विषमता की खाई उत्पन्न हो गई। भारत मे विदेशी शासकों के आगमन पर उनके द्वारा यहाँ की जनता को 'हिन्दू' कह कर पुकारा गया जो फारसी भाषा मे एक गंदी और भद्दी गाली है। कुछ लोग अरबी भाषा के 'स ' को 'ह ' उच्चारण से जोड़ कर हिन्दू शब्द की हिमायत करते हैं तब भी यह विदेशियों की ही देंन साबित होता है। कुछ 'कुतर्क करने वाले  लोग ' हिन्दू शब्द की प्राचीनता टटोलते फिरते हैं,किन्तु ईरानियों के आने से पूर्व बौद्ध मठों,विहारों को उजाड़ने वाले उनके ग्रन्थों को जलाने वाले हिंसक लोगों को बौद्धों ने 'हिन्दू' की संज्ञा दी थी। 'हिन्दू' शब्द विदेशी और पूरी तरह से अभारतीय है। 'कुरान' की तर्ज पर विदेशी शासकों ने यहाँ के विद्वानों को 'सत्ता' व 'धन' सुख देकर 'पुराण' लिखवाये जो वेद-विपरीत हैं। किन्तु तथा कथित गर्व से हिन्दू लोग वेद और पुराण को गड्म गड करके गुमराह करते हैं और दुखद है कि प्रगतिशील बामपंथी भी उसी झूठ को मान्यता देते हैं। 

यू एस ए की राजधानी वाशिंगटन (DC) मे अग्निहोत्र यूनिवर्सिटी मे अनवरत 24 घंटे हवन चलता रहता है जिसके परिणामस्वरूप USA के क्ष्तिज पर बना ओज़ोन का छिद्र परिपूर्ण हो गया और वह सरक कर दक्षिण-पूर्व एशिया की तरफ आ गया है। इस क्षेत्र मे प्राकृतिक प्रकोपों का कारण यह ओज़ोन छिद्र ही है जो यू एस ए आदि पाश्चात्य देशों के कुकृत्य का कुफ़ल है। किन्तु हमारे बामपंथी भाई और प्रगतिशील पत्रकार जिनमे दैनिक जागरण के चेनल IBN 7वाले प्रमुख हैं 'हवन' का घोर विरोध करते हैं-व्यंग्य उड़ाते हैं। 

यदि हमे अपने देश 'भारत' को प्रकृतिक प्रकोपों से बचाना है,अपने नागरिकों को शुद्ध पर्यावरण उपलब्ध कराना है और परस्पर भाई-चारा उत्पन्न करना है तो 'वेदोक्त हवन' का सहारा लेना ही चाहिए। अन्यथा तो जो चल रहा है चलता रहेगा फिर रोना-झींकना क्यों?

 ---------------------------------------- 
*वेदों के 'समष्टिवाद' का ही आधुनिक रूप है 'साम्यवाद' जिसका निरूपण किया जर्मनी के महर्षि कार्ल मार्क्स ने उन जर्मन ग्रन्थों के अवलोकन के पश्चात जो वेदों की मूल पांडु लिपियों से अनूदित थे। लेकिन भारतीय साम्यवादी विद्वान 'साम्यवाद' को पाश्चात्य विज्ञान मानते हैं और इसी मुगालते मे जनता से कटे रहते हैं। वस्तुतः 'साम्यवाद'='समष्टिवाद' मूल रूप से भारतीय अवधारणा है और इसे लागू भी तभी किया जा सकेगा जब हकीकत को समझ लिया जाएगा।

Wednesday, August 15, 2012

स्वाधीनता और स्वतन्त्रता का भ्रम -जाल

15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी क्या झूठी है?

सुप्रसिद्ध जन-कवि अदम गोंडवी साहब का कहना है-

"सौ मे 70 आदमी फिलहाल जब नाशाद है,
दिल पे रख कर हाथ कहिए ,देश क्या आज़ाद है?"



'राजनीतिक' रूप से 65 वर्ष पूर्व हमारा देश ब्रिटिश दासता से मुक्त हुआ था जिस उपलक्ष्य मे 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस के रूप मे मनाया जाता है। हमारे देश का अपना स्वतंत्र संविधान भी है जिसके अनुसार जनता अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना शासन स्वतंत्र रूप से चलाती है। लेकिन आर्थिक नीतियाँ वही हैं जो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने बनाई थीं अतः आज़ादी के थोड़े दिनों बाद कामरेड बी टी रणदिवे के आह्वान पर भाकपा ने नारा दे दिया था-'यह आज़ादी झूठी है,भारत की जनता भूखी है'। असंख्य कार्यकर्ता और नेता बेरहमी से गिरफ्तार किए गए और आंदोलन कुचल दिया गया। भाकपा जो सत्तारूढ़ कांग्रेस के बाद संसद मे दूसरे नंबर पर थी और मुख्य विरोधी दल थी धीरे-धीरे सिमटती गई।

नेहरू जी की  'मिश्रित आर्थिक नीति' बनाने वाले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी RSS के थे और उन्होने बाद मे 'जनसंघ' बनाया जो अब 'भाजपा' के रूप मे मुख्य विरोधी दल है। 1991 मे 'उदारवाद' की नीति के प्रणेता डॉ मनमोहन सिंह अब पी एम हैं और उनकी नीतियों को यू एस ए मे जाकर अपनी नीतियों को चुराया जाना कहने वाले एल आडवाणी साहब की शिष्या श्रीमती सुषमा स्वराज लोकसभा मे विरोधी दल की नेता हैं।

पद से हटने के बाद 1991 के पी एम पामूलपति वेंकट नरसिंघा राव साहब ने 'दी इन साईडर' मे स्पष्ट किया था-"हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल मे जी रहे हैं"।

निम्नलिखित लिंक्स का अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि विद्वान लेखक भी यही दोहरा रहे हैं जिसे पूर्व पी एम ने कुबूल किया था-

1-http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/blog-post_13.html

2-http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/2_13.html

राजनीतिक आज़ादी के बावजूद पूर्ण कार्यकाल मे अनुभव के आधार पर नरसिंघा राव जी का कथन और सुनील दत्ता जी के विश्लेषण  मे समानता है कि हमारे देश की आर्थिक नीतियाँ आज भी 'दासता युग' की ही हैं और पूर्णतः जन -विरोधी हैं। उनका निष्कर्ष है -"
साम्राज्यी देशो के साठ लूट व प्रभुत्व बनाये रखने वाले संबंधो को तोड़ने इससे इस राष्ट्र को मुक्त कराने औनिवेशिक काल के कानूनों को खत्म करने और औपनिवेशिक राज्य के ढाचे को राष्ट्र हित एवं जनहित के जनतांत्रिक ढाचे के रूप में बदलने की जिम्मेवारी भी अब देश के जनसाधारण की ही है | इसलिए उसे ही 1947 के वास्तविक चरित्र को अब अपरिहार्य रूप से समझना होगा |"
एक नज़र -हम गुलाम कैसे हुये थे?- 
 'गजनी' का शासक महमूद गजनवी तो तब के बैंक (मंदिरों) से खजाना लूट-लूट कर चला गया था किन्तु 'गोर' का शासक मोहम्मद गौरी ,जयचंद के बुलावे पर आने के बाद यहाँ का शासक बन बैठा और उसके बाद बने शासक यहाँ राजनीतिक शासन तो करते रहे किन्तु आर्थिक सम्पदा लूट कर अपने-अपने देश नहीं ले गए यही एशों-आराम पर खर्च कर दी। अंतिम मुगल शासक के कमजोर होने के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहाँ किस प्रकार और किस उद्देश्य से सत्ता स्थापित की उसका विस्तृत विवरण उपरोक्त लिंक्स मे स्पष्ट है। 
जन साधारण को 'साम्राज्यवाद' की सहोदरी 'सांप्रदायिकता' ने बुरी तरह से ग्रसित कर रखा है। सांप्रदायिकता को धर्म के नाम पर पुष्पित-पल्लवित किया जाता है और 'धर्म'='सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य' का कहीं भी पालन नहीं हो रहा है। दुर्भाग्य यह है कि जन-साधारण के पक्षधर प्रगतिशील तत्व भी पाखंडियो-ढोंगियों द्वारा घोषित सांप्रदायिक तत्वों को ही धर्म के रूप मे मान्यता देते हैं और वास्तविक 'धर्म' की चर्चा करना तो दूर सुनना भी नहीं पसंद करते हैं। परिणाम यह होता है कि,साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपनी सहयोगी सांप्रदायिक शक्तियों के सहारे से झूठ को धर्म के नाम पर फैलाने व जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ्ने मे हमेशा सफल हो जाती हैं। प्रगतिशील और बामपंथी आंदोलन निरंतर विभक्त होता तथा सिकुड़ता जाता हैयदि जनता को जागरूक करके 'वास्तविक धर्म' का मर्म समझाने का प्रयास किया जाता है तो प्रगतिशीलता का लबादा ओढ़े विदेश मे प्रवास कर रहे प्रो अपने सांप्रदायिक हितों के संरक्षण तथा साम्राज्यवादी आकाओं की संतुष्टि हेतु प्रयास कर्ता पर व्यक्तिगत प्रहार करके उन प्रयासों को निष्प्रभावी बनाने मे जुट जाते हैं। दिल्ली मे बैठे दूसरे प्रो 'राम' की तुलना 'ओबामा' से करके जन-मानस को ठेस पहुंचाते हैं । इन परिस्थितियों मे 'जन साधारण' कैसे राष्ट्र के औपनिवेशिक ढांचे को लोकतान्त्रिक ढांचे मे बदल सकता है?
साम्राज्यवादी देश विभाजन जिसे सांप्रदायिक विभाजन कहा जाता है को विफल करने हेतु पाकिस्तानी फ़िल्मकार वजाहत मलिक का विचार है कि,"भारत और पाकिस्तान के लिए सुखद रिश्ते बनाने का सबसे अच्छा रास्ता लोगों के बीच ज़्यादा मेल-जोल है। इसके लिए व्यापार और पर्यटन भी ज़रूरी है। .... 'यदि लोग साथ आएंगे तो सरकारें भी पीछे-पीछे आएंगी। "
 भारत-पाकिस्तान-बांग्ला देश सभी आंतरिक और बाह्य समस्याओं से ग्रसित हैं जब तक इनकी सरकारें (साम्राज्यवाद के शिकंजे मे जकड़े होने के कारण )एकमत नहीं होतीं तब तक सभी देशों की जनता को साहित्यिक -सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिये एकता की पहल करके साम्राज्यवादी /सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त करना चाहिए । यही कदम वास्तविक स्वाधीनता,शांति और एकता बहाल कर सकता है।
 

 

Thursday, August 9, 2012

श्री कृष्ण -साम्यवाद और वेद विज्ञान ------ विजय राजबली माथुर

ज़िला मंत्री-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,लखनऊ ने काउंसिल की एक बैठक मे श्री कृष्ण के बचपन की उस घटना का उल्लेख करते हुये कार्यकर्ताओं का आह्वान किया था कि हमे उनसे प्रेरणा लेकर संघर्ष पथ  पर बढ़ना चाहिए। कामरेड  जिलमंत्री ने स्पष्ट किया कि उस समय गावों का शहरों द्वारा शोषण चरम पर था और बालक श्री कृष्ण को यह गवारा न हुआ अतः उन्होने शहरों की ओर 'मक्खन' ले जाती ग्वालनों की मटकियाँ फोड़ने का कार्यक्रम अपने बाल साथियों के साथ चलाया था।

योगीराज श्री कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन शोषण-उत्पीड़न और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करते हुये ही बीता किन्तु ढ़ोंगी-पोंगापंथी-पुरोहितवाद ने आज श्री कृष्ण के संघर्ष को 'विस्मृत' करने हेतु उनको अवतार घोषित करके उनकी पूजा शुरू करा दी। कितनी बड़ी विडम्बना है कि 'कर्म' पर ज़ोर देने वाले श्री कृष्ण के 'कर्मवाद' को भोथरा करने के लिए उनको अलौकिक बता कर उनकी शिक्षाओं को भुला दिया गया और यह सब किया गया है शासकों के शोषण-उत्पीड़न को मजबूत करने हेतु। अनपढ़ तो अनपढ़ ,पढे-लिखे मूर्ख ज़्यादा ढोंग-पाखंड मे उलझे हुये हैं।


तथा कथित प्रगतिशील साम्यवादी बुद्धिजीवी जिंनका नेतृत्व विदेश मे बैठे पंडित अरुण प्रकाश मिश्रा और देश मे उनके बड़े भाई पंडित ईश मिश्रा जी  करते हैं सांप्रदायिक तत्वों द्वारा निरूपित सिद्धांतों को धर्म मान कर धर्म को त्याज्य बताते हैं। जबकि धर्म=जो शरीर को धारण करने के लिए आवश्यक है वही 'धर्म' है;जैसे-सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य । अब यदि ढ़ोंगी प्रगतिशीलों की बात को सही मान कर धर्म का विरोध किया जाये तो हम लोगों से इन सद्गुणों को न अपनाने की बात करते हैं और यही कारण है कि सोवियत रूस मे साम्यवाद का पतन हो गया(सोवियत भ्रष्ट नेता ही आज वहाँ पूंजीपति-उद्योगपति हैं जो धन जनता और कार्यकर्ता का शोषण करके जमा किया गया था उसी के बल पर) एवं चीन मे जो है वह वस्तुतः पूंजीवाद ही है।दूसरी ओर थोड़े से  पोंगापंथी केवल 'गीता' को ही महत्व देते हैं उनके लिए भी 'वेदों' का कोई महत्व नहीं है। 'पदम्श्री 'डॉ कपिलदेव द्विवेदी जी कहते हैं कि,'भगवद  गीता' का मूल आधार है-'निष्काम कर्म योग'

"कर्मण्ये वाधिकारस्ते ....................... कर्मणि। । " (गीता-2-47)

इस श्लोक का आधार है यजुर्वेद का यह मंत्र-

"कुर्वन्नवेह कर्मा................... न कर्म लिपयाते नरो" (यजु.40-2 )

इसी प्रकार सम्पूर्ण बाईबिल का मूल मंत्र है 'प्रेम भाव और मैत्री' जो यजुर्वेद के इस मंत्र पर आधारित है-

"मित्रस्य मा....................... भूतानि समीक्षे।  ....... समीक्षा महे । । " (यजु .36-18)

एवं कुरान का मूल मंत्र है-एकेश्वरवाद-अल्लाह की एकता ,उसके गुण धर्मा सर्वज्ञ सर्व शक्तिमान,कर्त्ता-धर्त्तासंहर्त्ता,दयालु आदि(कुरान7-165,12-39,13-33,57-1-6,112-1-4,2-29,2-96,87-1-5,44-6-8,48-14,1-2,2-143 आदि )। 


इन सबके आधार मंत्र हैं-


1-"इंद्रम मित्रम....... मातरिश्चा नामाहू : । । " (ऋग-1-164-46)

2-"स एष एक एकवृद एक एव "। । (अथर्व 13-4-12)
3-"न द्वितीयों न तृतीयच्श्तुर्थी नाप्युच्येत। । " (अथर्व 13-5-16)


पहले के विदेशी शासकों ने हमारे महान नेताओं -राम,कृष्ण आदि को बदनाम करने हेतु तमाम मनगढ़ंत कहानियाँ यहीं के चाटुकार विद्वानों को सत्ता-सुख देकर लिखवाई जो 'पुराणों' के रूप मे आज तक पूजी जा रही हैं। बाद के अंग्रेज़ शासकों ने तो हमारे इतिहास को ही तोड़-मरोड़ दिया। यूरोपीय इतिहासकारों ने लिख दिया आर्य एक जाति-नस्ल थी जो मध्य यूरोप से भारत एक आक्रांता के रूप मे आई थी जिसने यहाँ के मूल निवासियों को गुलाम बनाया। इसी झूठ को ब्रह्म वाक्य मानते हुये 'मूल निवासियों भारत को आज़ाद करो' आंदोलन चला कर भारत को छिन्न-भिन्न करने का कुत्सित प्रयास चल रहा है। अंग्रेजों ने लिख दिया कि 'वेद गड़रियों के गीत हैं' और साम्राज्यवाद विरोधी होने का दंभ भरने वाले पंडित अरुण प्रकाश मिश्रा सरीखे उद्भट विद्वान उसी आधार पर वेदों को अवैज्ञानिक बताते नहीं थकते हैं।


जर्मनी के मैक्स मूलर साहब भारत आए और यहाँ 30 वर्षों तक रह कर 'संस्कृत' सीख कर वेदों को समझा एवं मूल पांडु लिपियाँ एकत्र कर चलते बने। जर्मन मे उनके अनुवाद किए गए फिर अङ्ग्रेज़ी आदि दूसरी भाषाओं मे जर्मन भाषा से अनुवाद हुये। हिटलर ने खुद को आर्य घोषित करते हुये दूसरों के प्रति नफरत फैलाई जो कि आर्यत्व के विपरीत है। 'आर्य'=श्रेष्ठ अर्थात वे स्त्री पुरुष जिनके आचरण और कार्य श्रेष्ठ हैं 'आर्य' है इसके विपरीत लोग अनार्य हैं। न यह कोई जाति थी न है।


'आर्य' सार्वभौम शब्द है और यह किसी देश-काल की सीमा मे बंधा हुआ नहीं है। आर्यत्व का मूल 'समष्टिवाद' अर्थात 'साम्यवाद' है। प्रकृति में संतुलन को बनाए रखने हेतु हमारे यहाँ यज्ञ -हवन किये जाते थे। अग्नि में डाले गए पदार्थ परमाणुओं में विभक्त हो कर वायु द्वारा प्रकृति में आनुपातिक रूप से संतुलन बनाए रखते थे.'भ'(भूमि)ग (गगन)व (वायु) ।(अनल-अग्नि)न (नीर-जल)को अपना समानुपातिक भाग प्राप्त होता रहता था.Generator,Operator ,Destroyer भी ये तत्व होने के कारण यही GOD है और किसी के द्वारा न बनाए जाने तथा खुद ही बने होने के कारण यही 'खुदा'भी है।  अब भगवान् का अर्थ मनुष्य की रचना -मूर्ती,चित्र आदि से पोंगा-पंथियों के स्वार्थ में कर दिया गया है और प्राकृतिक उपादानों को उपेक्षित छोड़ दिया गया है जिसका परिणाम है-सुनामी,अति-वृष्टि,अनावृष्टि,अकाल-सूखा,बाढ़ ,भू-स्खलन,परस्पर संघर्ष की भावना आदि-आदि.


एक विद्वान की इस प्रार्थना पर थोडा गौर करें -

ईश हमें देते हैं सब कुछ ,हम भी तो कुछ देना सीखें.
जो कुछ हमें मिला है प्रभु से,वितरण उसका करना सीखें..१ ..

हवा प्रकाश हमें मिलता है,मेघों से मिलता है पानी.
यदि बदले में कुछ नहीं देते,इसे कहेंगे बेईमानी..
इसी लिए दुःख भोग रहे हैं,दुःख को दूर भगाना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..२ ..

तपती धरती पर पथिकों को,पेड़ सदा देता है छाया.
अपना फल भी स्वंय न खाकर,जीवन उसने सफल बनाया..
सेवा पहले प्रभु को देकर,बाकी स्वंय बरतना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..३..

मानव जीवन दुर्लभ है हम,इसको मल से रहित बनायें.
खिले फूल खुशबू देते हैं,वैसे ही हम भी बन जाएँ..
जप-तप और सेवा से जीवन,प्रभु को अर्पित करना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..४..

असत नहीं यह प्रभुमय दुनिया,और नहीं है यह दुखदाई.
दिल-दिमाग को सही दिशा दें,तो बन सकती है सुखदाई ..
'जन'को प्रभु देते हैं सब कुछ,लेकिन 'जन'तो बनना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..५..

शीशे की तरह चमकता हुआ साफ़ है कि वैदिक संस्कृति हमें जन  पर आधारित अर्थात  समष्टिवादी बना रही है जबकि आज हमारे यहाँ व्यष्टिवाद हावी है जो पश्चिम के साम्राज्यवाद की  देन है। दलालों के माध्यम से मूर्ती पूजा करना कहीं से भी समष्टिवाद को सार्थक नहीं करता है,जबकि वैदिक हवन सामूहिक जन-कल्याण की भावना पर आधारित है। IBN 7 के पत्रकार हवन का विरोध पोंगापंथ को सबल बनाने हेतु करते है और दूसरे चेनल वाले भी। साम्राज्यवादी -विदेशी तो खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए वेदों का विरोध करते ही हैं एवं उनके निष्कर्षों का लाभ लेकर उसे अपना आविष्कार बताते हैं।

ऋग्वेद के मंडल ५/सूक्त ५१ /मन्त्र १३ को देखें-

विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये.
देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्व्हंससः ..

(जनता की कल्याण -कामना से यह यज्ञ  रचाया.
विश्वदेव के चरणों में अपना सर्वस्व चढ़ाया..)

जो लोग (अरुण प्रकाश मिश्रा -ईश मिश्रा जी और उनके चेले सरीखे )धर्म की वास्तविक व्याख्या को न समझ कर गलत  उपासना-पद्धतियों को ही धर्म मान कर चलते हैं वे अपनी इसी नासमझ के कारण ही  धर्म की आलोचना करते और खुद को प्रगतिशील समझते हैं जबकि वस्तुतः वे खुद भी उतने ही अन्धविश्वासी हुए जितने कि पोंगा-पंथी अधार्मिक होते हैं। 

ऋग्वेद के मंडल ७/सूक्त ३५/मन्त्र १ में कहा गया है-

शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शन्न इन्द्रावरुणा रातहव्या डे
शमिन्द्रासोमा सुविताय शंयो :शन्न इन्द्रा पूष्णा वाजसात..

(सूर्य,चन्द्र,विद्युत्,जल सारे सुख सौभाग्य बढावें.
रोग-शोक-भय-त्रास हमारे पास कदापि न आवें..)

वेदों में किसी व्यक्ति,जाति,क्षेत्र,सम्प्रदाय,देश-विशेष की बात नहीं कही गयी है.वेद सम्पूर्ण मानव -सृष्टि की रक्षा की बात करते हैं.इन्हीं तत्वों को जब मैक्समूलर साहब जर्मन ले गए तो वहां के विचारकों ने अपनी -अपनी पसंद के क्षेत्रों में उनसे ग्रहण सामग्री के आधार पर नई -नई खोजें प्रस्तुत कीं हैं.जैसे डा.हेनीमेन ने 'होम्योपैथी',डा.एस.एच.शुस्लर ने 'बायोकेमिक'  भौतिकी के वैज्ञानिकों ने 'परमाणु बम'एवं महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'वैज्ञानिक समाजवाद'या 'साम्यवाद'की खोज की। 

दुर्भाग्य से महर्षि कार्ल मार्क्स ने भी अन्य विचारकों की भाँती ही गलत उपासना-पद्धतियों (ईसाइयत,इस्लाम और हिन्दू ) को ही धर्म मानते हुए धर्म की कड़ी आलोचना की है ,उन्होंने कहा है-"मैंन  हैज क्रियेटेड द गाड फार हिज मेंटल सिक्योरिटी ओनली".आज भी उनके अनुयाई एक अन्धविश्वासी की भांति इसे ब्रह्म-वाक्य मान कर यथावत चल रहे हैं.जबकि आवश्यकता है उनके कथन को गलत अधर्म के लिए कहा गया मानने की.'धर्म'तो वह है जो 'धारण'करता है ,उसे कैसे छोड़ कर जीवित रहा जा सकता है.कोई भी वैज्ञानिक या दूसरा विद्वान यह दावा नहीं कर सकता कि वह-भूमि,गगन,वायु,अनल और नीर (भगवान्,GODया खुदा जो ये पाँच-तत्व ही हैं )के बिना जीवित रह सकता है.हाँ ढोंग और पाखण्ड तथा पोंगा-पंथ का प्रबल विरोध करने की आवश्यकता मानव-मात्र के अस्तित्व की रक्षा हेतु जबरदस्त रूप से है। 

***************************
Facebook Comment :
05-09-2015 ---
25-08-16 

Sunday, August 5, 2012

सीमा आज़ाद और उनके पति को रिहा किया जाये

सीमा आज़ाद के जन्मदिवस 05 अगस्त पर ---

हम सीमा आज़ाद को जन्मदिन की मुबारकवाद देते हैं और उनके सुखद,सुंदर,स्वस्थ,समृद्ध और उज्ज्वल पारिवारिक,सामाजिक,राजनीतिक भविष्य  एवं दीर्घायुष्य  की मंगलकामना तथा उनके और उनके पति की शीघ्र रिहाई की आशा करते हैं। 



 सीमा-विश्वविजय रिहाई मंच के द्वारा 19 जूलाई 2012 को जारी प्रेस नोट मे  अध्यक्ष की 04 जूलाई की प्रेस कान्फरेंस के हवाले से कहा गया है कि-
“पत्रकार सीमा आजाद और विश्वविजय के पास वास्तव में कोई माओवादी साहित्य था ही नहीं. पुलिस ने जो भी आपत्तिजनक साहित्य बरामद दिखाया, वह सब उन्हें झूठा फंसाने की उच्च-स्तरीय साज़िश के तहत फर्जी तरीके से दिखाया गया था.”

01 जूलाई को नैनी जेल मे मिलने गए प्रतिनिधिमंडल से  सीमा आजाद ने  कहा कि उनके पास कोई माओवादी साहित्य था ही नहीं. जो किताबें वह दिल्ली स्थित विश्व पुस्तक मेले से खरीद लायी थीं उनमें उम्दा किस्म की साहित्यिक रचनाएँ थीं. जिनकी सूची उन्होंने उक्त जेल मुलाकात के दौरान नोट भी करा दी।  इसी आधार पर उक्त प्रतिनिध-मंडल में शामिल ‘सीमा-विश्वविजय रिहाई मंच’ के तदर्थ अध्यक्ष जीपी मिश्र ने पत्रकार वार्ता में यह बयान दिया था।

हिमांशु कुमार जी ने अपने फेसबुक स्टेटस द्वारा जागरूक छात्रों, महिलाओं, मजदूरों, किसानों और लोकतंत्र-पसंद बुद्धिजीवियों से  UAPA और 121, 121A, 124A आईपीसी जैसे काले कानूनों के तहत तमाम बेक़सूर युवाओं, साहसी पत्रकारों एवं समर्पित सामाजिक कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाये जाने के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए सीमा आज़ाद के जन्मदिन 05 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंत्र मे साँय 05 बजे एकत्र होने का आह्वान किया है।

हम जो लोग दिल्ली नहीं पहुँच सके  सीमा आज़ाद के जन्मदिन पर उनके और उनके पति की रिहाई की मांग करते हैं।  8 जून को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री सुनील कुमार सिंह की अदालत द्वारा ढाई साल से नैनी केन्द्रीय कारागार में निरुद्ध रही सीमा आजाद और उनके पति विश्वविजय को विभिन्न धाराओं में उम्र कैद की सज़ा सुना दी थी जबकि हकीकत यह थी कि सीमा आज़ाद अवैध्य खनन माफिया के विरुद्ध अभियान चला रही थीं। गैर कानूनी कारोबारियों को बचाने के लिए कानून का गलत प्रयोग करके सीमा आज़ाद और उनके पति को जेल मे रखा गया है। आज सीमा आज़ाद के जन्मदिन पर उनकी ही आवाज़ मे ये पाँच क्रांतिकारी गीत सुनिए-




   

Friday, August 3, 2012

'विद्रोही स्व-स्वर मे' का तीसरा वर्ष प्रारम्भ

दो वर्ष पूर्व 03 अगस्त 2010 को इस ब्लाग को शुरू किया गया था ,उद्देश्य था 'लखनऊ से लखनऊ' तक के सफर का विवरण संकलित करना। जितना जो याद है और जितना लिखना आवश्यक है उतना अलग-अलग पोस्ट मे देता जा रहा हूँ। बीच-बीच मे कुछ असाधारण परिस्थितियों ने लेखन-क्रम को सिलसिलेवार रूप से हट कर लिखने पर विवश किया है। कभी-कभी न चाहते हुये भी बाहरी परिस्थितियाँ आंतरिक परिस्थितियों को प्रभावित कर ही देती हैं। लोगों को सहायता देना उनकी मदद करना एक शौक रहा है ,हालांकि इससे खुद को हानि ही हुई है। ब्लाग और फेसबुक से संबन्धित लोगों को निशुल्क ज्योतिषीय परामर्श देना भी इसी श्रेणी मे आता है। पूना मे प्रवास कर रही एक ब्लागर महोदया ने अपने बच्चों की चार कुंडलियों बनवाने के बाद एक दूसरे ब्लाग पर मेरे ज्योतिषीय विश्लेषण की खिल्ली उड़ाई । 19 अप्रैल 2012 को रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना के अंतर्गत 'रेखा जी' की कुंडली का विश्लेषण दिया था और 26अप्रैल 2012 को राष्ट्रपति महोदया ने उनको राज्यसभा मे मनोनीत कर दिया था। 

 रेखा के मनोनयन पर ही वह खिल्ली उड़ाई गई थी। उस खिल्ली की चेतावनी देने के लिए X-Y कुंडलियों का विश्लेषण दिया था। तब तमाम लोगों ने अपना-अपना भविष्य जानने के लिए मुझसे अपने विश्लेषण करवाए थे जिनमे चार कम्युनिस्ट विचारधारा के बड़े लोग भी शामिल थे। उनमे एक ने अपना विश्लेषण हासिल करने के बावजूद विदेश मे प्रवास करते हुये पूना प्रवासी का अनुसरण किया बल्कि और दस कदम आगे निकल गए ।उन महाशय ने रुप से'लाल झण्डा यूनिटी सेंटर' ग्रुप मे  मुझे ब्लाक कर दिया जबकि वह और मैं दोनों ही प्रवर्तक द्वारा एडमिन बनाए गए थे। जिन पोस्ट को आधार बना कर मुझे ब्लाक किया गया उनमे कुछ और जोड़ कर उनकी एक ई-बुक 'जन-क्रान्ति' मुंशी प्रेम चंद जी के जन्मदिन 31 जूलाई पर प्रकाशित की जा चुकी है।

 यह ब्लाग हमारी बड़ी भांजी की बेटी के जन्मदिन पर शुरू किया गया था। पहले हम उन सबके जन्मदिन पर हवन करते थे। अप्रैल  2011 मे बहन जी के हमारे घर आगमन के बाद जो खुलासे हुये उनके मद्दे नज़र अब इस प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया है। कुछ लोगों को हमारा लेखन खूब अखरता है और कुछ लोगों को जीवन। अतः 17 जूलाई 2012 को 'श्रद्धांजली सभा की सैर' शीर्षक से किसके क्या विचार मेरे बारे मे हैं अपने को श्रद्धांजली के रूप मे प्रकाशित कर दिये थे। उसका विवरण भी उन ढ़ोंगी साम्यवादी पोंगा पंडित को पीड़ादायक लगा था। उनके संबंध मे लिखे मेरे नोट्स और लेख फेसबुक के दूसरे ग्रुप्स मे साम्यवादी चिंतकों द्वारा सराहे गए हैं। उस ग्रुप के प्रवर्तक ने भी अप्रत्यक्ष रूप से मेरा समर्थन किया है-'आप अपना लेखन जारी रखें,RSS के कुत्ते दम दबा कर भाग जाएँगे...'। वाशिंगटन स्थित एक भारतीय परमाणु वैज्ञानिक ने मुझे सुझाव दिया है की जिस ग्रुप मे मेरे निष्कर्षों को महत्व और मुझे सम्मान दिया जाये उसी मे मैं सक्रिय रहूँ उनका सुझाव सहर्ष स्वीकार कर लिया है।  27 जूलाई 2012 को 'जनहित' नामक एक  नए ग्रुप का गठन भी कर दिया है।

कल 02 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व था। 19 वर्ष पूर्व 1993 मे भी 02 अगस्त को यही पर्व था जिस दिन हमारी बहन जी फरीदाबाद से (मुझसे छोटे भाई अजय के पास से  उनको राखी बांध कर ) हमारे घर कमला नगर,आगरा  आई थीं । स्टेशन हम लोग लेने गए थे ,टिकट उनका गिर गया और उनके पैर के नीचे दब गया ,पर्स ,अटेची सब खोल कर देख लिया नहीं मिला जगह से हिल नहीं रही थीं एक ही रट कि पेनल्टी दे देंगे। समय खराब हो रहा था घर पर बउआ-बाबू जी इंतज़ार कर रहे थे। मैंने ज़बरदस्ती  हटाने के इरादे से कहा कि जब पेनल्टी देना ही है तो चलो तो ,जैसे ही आगे पैर बढ़ाया टिकट सामने दीख गया। शाम को हमने मोपेड़ खरीदने का तय किया हुआ था ले आए। बहन जी को चुभ गया। बउआ द्वारा मँगवाई मिठाई उन्होने नहीं खाई,अगले दिन खाने को कह कर टाल दिया। और अगले दिन यह कह कर तमक गई कि हम मीठा खा कर सफर नहीं कर सकते अतः न खाया। झांसी स्टेशन पर कमलेश बाबू उनको लेने पहुंचे थे परंतु दोनों एक-दूसरे को ढूंढते रहे और डॉ शोभा अकेले घर पहुँचीं। पूरी ट्रेन देख लेने और ट्रेन छूट जाने के बाद कमलेश बाबू घर पहुंचे। हमारी सहूलियत देख कर चिढ़ी थीं खुद तकलीफ उठाई। ऐसे ही दुनिया के और लोग हैं जाने क्यों उनको हमारी खुशी से कोफ्त होती है?                                          


आगरा से लखनऊ आने तक लगभग 15 वर्ष का विवरण लिखना शेष है। इस दौरान इस वर्ष जनवरी मे 'विद्रोही स्व-स्वर मे-प्रथम भाग' को ई बुक के रूप मे संकलित भी किया जा चुका है। उम्मीद है कि शीघ्र सम्पन्न कर सकूँगा।


रिश्तेदार जलन के कारण मुझे सफल नहीं देखना चाहते,सांप्रदायिक तत्व अपने पर चोट के कारण और प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक होने का दावा करने वाले इसलिए नहीं कि वस्तुतः उनकी कथनी और करनी मे अन्तर है। मेरा प्रयास 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करके सांप्रदायिक शक्तियों के नीचे से ज़मीन खींच लेने का था परंतु वह नक्कारखाने मे तूती की आवाज़ बन कर रह गाया है। जहां एक ओर कारपोरेट लाबी का पसंदीदा  'कबीर'; नामक NGO  का कर्ता जनता की वाहवाही बटोर रहा है वहीं 'कबीर कला मंच' की शीतल साठे भूमिगत रह कर जनता की सेवा मे तत्पर हैं ,सुनिए उनकी आवाज़ मे देश की दशा-


Aye Bhagat singh tu Zinda hai by Hashiya सटी

 शहीदे आजम भगत सिंह 'सत्यार्थ प्रकाश' के अध्यन के बाद क्रांतिकारी बने थे। उन्होने खुद कॉ 'नास्तिक' घोषित किया था क्योंकि उस समय नास्तिक का अभिप्राय जिसका ईश्वर पर विश्वास न हो से लिया जाता था। स्वामी विवेकानंद ने बताया था कि 'आस्तिक=जिसका खुद पर विश्वास हो' और 'नास्तिक=जिसका खुद पर विश्वास न हो'। भगत सिंह जी कॉ खुद पर विश्वास था अतः वह आस्तिक हुये न कि नास्तिक। मैं  अपने ऊपर आस्था और विश्वास रखते हुये अर्थात आस्तिक होते हुये अपने सीमित अवसरों एवं साधनों से जन-कल्याण के कार्यों मे तत्पर रहता हूँ क्योंकि अपने लिए जिये तो क्या जिये?   'बाजारवाद ' के विरुद्ध संजीव कुमार जी की अदाकारी भरा संघर्ष देखें-